Thursday, March 3, 2022

चिरई-चुरगुन बारामिंझरा

चिरई या चिराई, चिड़िया है, चिड़ा-चिड़ी भी कहा जाता है, सामान्यतः सबसे आम घरेलू पक्षी गौरैया का अर्थ देता है। यों पक्षी की परिभाषा ‘परधारी द्विपद‘, जैसी छोटी सी सरल सुबोध, हल्की-फुल्की है। बारामिंझरा है डाइवर्स या एसार्टेड, विविध-मिलाजुला, इस संदर्भ में जैव-विविधता। बच गया ‘चुरगुन‘, शायद चिरई का जोड़ बिठाने वाला शब्द। किसी शब्द का अर्थ स्पष्ट न हो, शब्द पारिभाषिक-सीमित न हो तो छूट ली जा सकती है, अपनी गति-मति अनुरूप उसका आशय तय कर लेने की। मैदानी छत्तीसगढ़ में ‘चिरई-चुरगुन‘ शब्द का प्रयोग ‘पक्षी वगैरह‘ की तरह होता है। तो यहां चिरई और बारामिंझरा के बीच जो भी है, सब कुछ इस ‘चुरगुन‘ में शामिल मान रहा हूं। समय-समय पर ध्यान में आई बातें ‘अनड्यूलेटिंग‘ मौजी मन की लहरदार, हिचकोले वाली उड़ान है।

इंडियन पित्ता यानि नवरंग जैसी बहुरंगी चिड़िया, शायद हमारे देश में कोई नहीं और उसकी पुकार भी कम खास नहीं, उसको एक बार पुकारना सुनते जी भर के देख लेना, लगता है पक्षी निहारन सफल। और पांड हेरॉन यानि अंधा बगुला, तालाब बगुला या खोखी, इतने रूपों में दिखता है कि जानकार भी धोखा खा जाएं, कि यह कौन सा अजीब पक्षी है और पहचान आने पर खीझते कहते हैं- पौंडिया कहीं का! इसलिए नवरंग से मुलाकात हो जाए फिर पक्षी-प्रेम स्थायी और इस बगुले को देखते ही, पहली नजर में पहचान लेना, जानकार बनने की ओर पहला कदम। मुझे अब भी यह बगुला कई बार चौंकाता है।

सवाल होने लगता है, आप भी बर्डिंग करते हैं? आप पांच-पचीस पक्षियों को पहचानने लगें कि बस आपको आरनिथालॉजिस्ट और सलीम अली का खिताब अता होते देर नहीं लगती। आपको खुद अपनी पहचान बनाने की जितनी जल्दी नहीं होती, कई बार उतनी जल्दी लोगों को होती है और लोगों से मिली पहचान का मन-बेमन सम्मान न भी हो, स्वीकार तो करना ही पड़ता है। मेरे साथ हुआ कुछ यूं था कि गोंटी-गुलेल, एयर गन, प्वाइंट टूटू से बारह बोर तक का सफर तय करते बायनाकुलर हाथ में आ गया। लोगों के सवाल और इधर-उधर से पता लगा कि ‘बर्डिंग‘ भी कुछ होता है तो ऐसा हल्का-फुल्का कैमरा साथ रखने लगा, जिससे बायनाकुलर का काम चलाया जा सके और देखा वह दर्ज हो सके, अब लोग फोटोग्राफर मानने लगे। ऐसी ही कुछ तस्वीरें यहां-
&सभीतस्वीरें रायपुर-बिलासपुर के आसपास,
कैनन-पावर शाट या निकान-प्वाइंट एंड शूट से ली गई

समझ कुछ अलग बनने लगी। सालिम अली की किताब, बचपन में देखी थी। बाद में ग्रिमिट-इन्सकिप और बीएनएचएस के प्रकाशन मिल गए, यह सभी अंग्रेजी में। पक्षियों पर हिंदी में भी किताबे आती रहीं, जिनमें से कुछ प्रचलित, महत्वपूर्ण की जानकारी, प्रकाशन वर्ष / संस्करण - पुस्तक का शीर्षक - लेखकवार, इस तरह है-

1958/2013 - भारत के पक्षी - राजेश्वर प्रसाद नारायण सिंह
1974/1992 - भारतीय पक्षी - सुरेश सिंह
1998/2011 - आनंद पंछी निहारन का - विश्वमोहन तिवारी
2004/2012 - भारत के पक्षी (अनूदित) - सलीम अली, अनु.- रामकृष्ण सक्सेना

इसके अतिरिक्त कुछ अन्य पुस्तकें यह भी हैं-

1962/2013 - हमारे जल-पक्षी - राजेश्वरप्रसाद नारायण सिंह
1970/2013 - पक्षी जगत - जमाल आरा
1971 - शिकार के पक्षी - सुरेश सिंह
2001 - प्रवासी पक्षी - डॉ. अशोक कुमार मल्होत्रा, श्यामसुंदर शर्मा
2006 - हमारे पक्षी - असद आर. रहमानी

पक्षियों पर हिंदी और अंगरेजी के अलावा अन्य भाषाओं की बात करें तो पक्षी-प्रेमी मराठी परिचितों के माध्यम से सन 2002 में प्रकाशित मारुति चितमपल्ली की पुस्तक ‘पक्षिकोश‘ से परिचित हुआ। लगता नहीं कि ऐसी पुस्तक अन्य किसी भारतीय भाषा में है। इस पुस्तक में पक्षियों के अंगरेजी और अंतरराष्ट्रीय नाम के साथ उनका अर्थ तो हैं ही, संस्कृत, प्राकृत, अर्द्धमागधी, हिंदी, गुजराती, तेलुगू, कन्नड़, तमिल, कोंकणी के साथ महाराष्ट्र की मराठी (भंडारा, चंद्रपुर, नासिक, पुणे, ठाणे, सिंधुदुर्ग, अमरावती क्षेत्र भिन्नता सहित), गोंडी, माड़िया गोंड़, कोरकू, पारधी बोली के नाम भी दिए गए हैं। गौरैया, चिमणा-चिमणा है, जो चिड़िया का भी समानार्थी है। इसमें पोपट मिला, जो हिंदी में सामान्यतः उपहासात्मक है किंतु मराठी में तोता, पोपट कहा जाता है। चातक या पपीहा के लिए पावस आला, काफल पाको, पेरते व्हा, पियू कहां, ब्रेन फीवर जैसे नाम भी रोचक हैं। किसी अन्य स्रोत से उल्लू का समानार्थी खूंसट और चुगद जानना भी मजेदार था।

नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी से 1966 में प्रकाशित हिंदी विश्वकोश के अनुसार केवल ध्वनियों के संकेत से स्थूल भावनाएं प्रकट करना ही यदि भाषा हो तो पक्षियों की भाषा होती है, ऐसा कहा जा सकता है। पक्षियों की मुख्यतः तीन पंकार की बोली पहचानी जा सकती है- साधारण पुकार, भयसूचक और प्रेम-प्रदर्शन बोली। इसके अतिरिक्त अन्य प्रकार की बोलियां हैं- क्षणिक भावावेश बताना, पुकारना, एक दूसरे का अभिवादन करना, सतर्क करना, आश्चर्य प्रकट करना, खतरे का संकेत करना, मोरचा लेना तथा प्रोत्साहन देना।
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बैठे ठाले रायपुर, शंकर नगर में अपने घर की बालकनी से खम्हारडीह तालाब दिखाई देता है और सामने दूरदर्शन का हरा-भरा परिसर हैै। यहां रहते हुए दिखने वाली चिड़ियों को याद करते हुए उनकी सूची बनाई है। इसके अलावा उल्लेखनीय कि ग्रे फ्रैंकोलिन यानि तीतर की आवाज कभी आसपास और वार्बलर की आवाज मौसम में सुनाई दे जाती है। सूची इस प्रकार है-

01 - House Sparrow
02 - Pied kingfisher
03 - Common kingfisher
04 - White throated kingfisher
05 - Black crowned night Heron
06 - Indian Pond Heron
07 - Little Egret
08 - Cattle Egret
09 - Intermediate Egret
10 - Asian Openbill
11 - Coppersmith Barbet
12 - Cinnamon Bittern
13 - Black Bittern
14 - Indian Silverbill
15 - Scally breasted Munia
16 - Pied Myna
17 - Brahminy Starling
18 - Common Myna
19 - House Crow
20 - Rose ringed Parakeet
21 - Common Iora
22 - Asian Paradise Flycatcher
23 - Little Cormorant
24 - Indian Cormorant
25 - Common Coot
26 - White breasted Waterhen
27 - Grey heade Swamphen
28 - Common Moorhen
29 - Bronz winged Jacana
30 - Long tailed Jacana
31 - Plain Prinia
32 - Common Tailorbird
33 - Baya Weaver
34 - Shikra
35 - Red vented Bulbul
36 - Black Kite
37 - Black eared Kite
38 - Black-winged Kite
39 - Asian Koel
40 - Southern Coucal
41 - Lesser whistling Duck
42 - Spot billed Duck
43 - Pygmy cotton Goose
44 - Little Grebe
45 - Laughing Dove
46 - Indian Robin
47 - Magpie Robin
48 - Purple Sunbird
49 - Common Pigeon
50 - House Swift


हमारे निवास वाले घोसले के इस पीढ़ी की पंडुक,
फुदकते-फुदकते उड़ान भरना शुरू कर रही है,
सफल उड़ान के बाद मानों तारीफ पाना हो,
मेरे पास कुरसी की पुश्त पर भी आ बैठती है।

यहां बालकनी में पंडुक घोंसला बनाती है, हिल-मिल गई है। एक घोंसला सिल्वर बिल है, जिसे मौका पा कर स्केली ब्रेस्टेड मुनिया भी आशियाना बना चुकी है। बुलबुल और गौरैया भी इसमें दिलचस्पी लेते दिखती हैं।
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पक्षियों के आंचलिक, छत्तीसगढ़ी नाम की चर्चा होती रहती है, यहां कुछ नाम इकट्ठा करने का प्रयास है, जिसे दुरुस्त किया जाना है, ध्यान रहे कि आंचलिक नाम वैज्ञानिक आधार अथवा उद्देश्य से नहीं होते, बल्कि मात्र सूचक-संकेतक होते हैं। एक उदाहरण ‘अइरी, ऐरी या एंड़री‘ है, जो सामान्यतः Coot को कहा जाता है, मगर पानी में रहने-तैरने वाले और बदक समूह से अलग किसी भी पक्षी का यह नाम लिया जाता है साथ ही पक्षियों के नर-मादा के लिए एंड़रा-एंड़री प्रयुक्त होता है। (अंगरेजी नामों के लिए मुख्यतः ग्रिमिट-इन्सकिप की पुस्तक को आधार बनाया गया है।)-

Asian Koel- कोइली
Asian Openbill- खलारी, घोघिया, सारस कोकड़ा
Babbler, Jungle- खोखापोंगा, केरकेट्टा, सतबहिनिया
Barbet, Coppersmith- कुप्पू, कठखोलवा
Baya Weaver- रेरा, सुहरा, सुहेरा सुहेलिया
Bee-Eater, Green- पतरेंगवा, टिल्लो, टिहला
Bulbul, Red-vented- ललपोंदिया, चेंपा, डिट्ठोड़ो
Bustard, Great Indian- हुम्मा
Coot- बलही, नांदुल, ऐरी
Coucal, Southern- बनकुकरा

Cormorant- तेलसरा, पनकउआ, पनखउली
Cotton Pygmy-goose- केंवट पदरा
Crane, Demoiselle- कुररी, कुर्री
Crow, House- कउवां
Cuckoo, Common Hawk- पपीहा
Duck, Comb- नकटाएल
Dove, Laughing- पंडकी
Dove, Eurasian Collard- बुढेल
Dove, Red Collared- चोंहटी, ललपिठवा
Dove, Spotted- बनइला, छितकुल, गउठान पंडकी

Drongo, Black- कर्रौआं
Egret, Cattle- कोकड़ा
Egret, Little - बोकला
Francolin, Grey - तीतुर
Gadwall- कबरा
Grebe, Little- ओडकेर्री
Heron, Night- अंधियारी, धुसरी
Heron, Pond- खोखी
Heron, Purple- सारखी
Hoopoe, Common- नाउ चिराई

Hornbill, Indian Grey- धनेस, धनेस मुड़िया
Ibis, Black-headed - कलारी
Ibis, Glossy- कराकुल
Iora, Common- धनबहेर 
Jacana, Bronze-winged- लमगोड़ी
Jacana, Pheasant-tailed- लमपूंछी, लमपूंछा
Junglefowl, Red- बनकुकरा
Kingfisher- कोदा, मछरखया, किलकिला, टिहला
Kite, Black- गिधवा
Kite, Black-winged- छछान, छछांद

Lapwing- टिटही, पनटिहला
Lark, Ashy-crowned Sparrow- भरही
Lark, Asian Short-toed- बगरइल
Lark, Crested-चंडुल
Lark, Oriental Skylark- भरदा, भरर
Myna, Common- सल्हाई, साल्हो
Myna (Starling), Brahminy- गुखोदली
Myna (Starling), Asian-pied- पपई
Nightjar, Indian- कापू, दपकुल
Oriole - हरदुलिया, पिहू

Owl, Brown Fish - करही 
Owl, Indian Eagle- बांदू,घुघुवा
Owl, Mottled Wood- जीचिरई
Owlet, Spotted - खुसरा
Paradise-flycatcher, Asian- लमपुंछिया
Parakeet Rose-ringed- सुआ, मिट्ठू
Parakeet Alexandrine- करन सुआ
Peafowl, Indian- मंजूर
Pigeon, Common- परेवा
Pigeon, Yellow-footed Green- हारिल

Prinia, Plain- पुटकी
Quail, Common- घाघर, बटई
Quail, Jungle-bush- गुर्रू, गुंडरू, गुरलू
Quail, Rain - लवा, जुहरा, जुहासुसा
Robin, Indian - कारीसुई
Robin, Oriental Magpie- बक्सुई, दहिगल, दहिंगला
Roller, Indian- टेंहो, टेहर्रा, नीलकंठ
Shelduck, Rudy- गोनिन-गोना, सुरखाब
Sparrow, House - गुड़ेरिया, बाम्हन चिरई
Stork, Adjutant - गरुड़ 

Stork, White - चांदना 
Stork, Woolly-necked - बुज्जा, कमरोढ़ा या कम्मर ओढ़ा
Sunbird Purple- फुलचुक्की, फुलचुहकी
Swamphen, Purple- कैम, कयम
Swift, House- धनबोड़ा, धनचिराई 
Swift/Swallow - कन्हैया 
Tailorbird, Common- लिटिया
Vulture, Indian- रौना, रायगीध
Vulture, Egyptian - गुकोड़ी
Wagtail, White - धोबनिन

Wagtail, White-browed - खंजन, कुसियार चिरई
Waterhen, White-breasted- कोवा
Woodpecker- कठफोड़वा

कुछ अन्य पक्षियों के नाम जबान पर होते हैं, मगर उनकी पहचान अब तक सुनिश्चित न कर पाने के कारण इस सूची में शामिल नहीं हैं, जैसे- रैमुनिया, रामचिराई, रनचिरई, रेंडुली, पाखनफोर, तिलरा, लेंधरा, गिरजा, घुटनूं, सारदुल, चिंबरी, चुंगी, सिल्ली, ठनकुकरा, खमकुकरा, पनसू आदि।
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यह बारहमासी (चिरई) फाग गीत, छलियाराम साहनी जी, राजिम वाले द्वारा संकलित कर उपलब्ध कराया गया है-

गजब मीठ लागे दौना, बोली तोर चिरई कस मीठ लागे।
चैत में चमगेदरी, चकही हा बोले ओ बैसाखे में बगुला के मन डोले ओ,
जेठ में जटायुराज, झुमे चिल, गिधवा-बाज महके बंसत रितुवा राज,
नीक लागे गजब मीठ लागे दौना, बोली तोर चिरई कस मीठ लागे। 

असाढ़ अबाबील सरग ले बुलाय, सावन सलहाई सुवा के गीत गाये
भादो भरगे समाज धन छत्तीसगढ़ के राज भुवना गुंजथे आज,
नीक लागे गजब मीठ लागे दौना, बोली तोर चिरई कस मीठ लागे।

बोले कठखोलवा, कुंवार आगे कातिक में कोइली, गावन लागे
अगहन में कंव्वा हा करे कांव मन लेथे तोरेच नाव, अगहन में कहां जांव, 
नीक लागे गजब मीठ लागे दौना, बोली तोर चिरई कस मीठ लागे।

पूस में परेवा, पंड़की हा गोहराय मांघ में मयूर हा, डेना बगराय
फागुन फुलचुकिया आय, लिचलिच कनिहा डोलाय
छलिया गाके सुनाय, नीक लागे गजब मीठ लागे दौना, बोली तोर चिरई कस मीठ लागे।
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चिड़िया पकड़ने के लिए कई तरह के उपाय किए जाते हैं। इन तरीकों में आमतौर पर फांदा, फिटका, जाल, लासा इस्तेमाल होता है। इसमें से फिटका और जाल से जुड़ी दो बातें-

फिटका में बगुला पकड़ने के लिए ‘घुंई‘ चारा लगा कर रखा गया है। बगुला कह रहा है- दोसी अस न दासी, तैं का बर लगे फांसी। घुंई कहता है- नाचा ए न पेखन, तैं का ल आए देखन। फिर आगे कहता है- जिव जाही मोर, फेर मांस खाही तोर। यानि फिटका में चारा के लिए फंसा कर रखे घुंई से बगुला पूछ रहा है कि तुम दोषी हो न दासी, फिर इस तरह क्यों फंसे हुए हो। इस पर घुंई जवाब देते हुए बगुले को आगाह करता है कि यहां नाचा या कोई खेल-तमाशा तो हो नहीं रहा है, फिर तुम क्या देखने चले आए और तुम मुझे खाते हो तो मेरी जान जाएगी, लेकिन तुम्हारा मांस खाया जाएगा।

जाल संबंधी एक मार्मिक पद है- ‘तीतुर फंसे, घाघर फंसे, तूं का बर फंस बटेर, मया पिरित के फांस म आंखी ल देहे लड़ेर। हुआ यह है कि शिकारी ने चिड़िया फंसाने के लिए जाल बिछाया, उसमें तीतर और घाघर फंस गए हैं। उसमें बटेर भी है, जबकि जाल के छेद इतने बड़े हैं कि तीतर, बटेर तो फंस जाएं, मगर बटेर, छोटे आकार का होने के कारण उसमें से आसानी से निकल सकता है, इसके बावजूद भी आंखें मूंदे पड़ा है। पूछने पर बटेर बता रहा है कि हम साथ-साथ चारा चर रहे थे। साथी जाल में फंस गए, उनका साथ कैसे छोड़ दूं, इसलिए मैं भी साथी तीतर-बटेर के साथ आंखें मूंदे पड़ा हूं।

रेरा चिरई‘ एक मार्मिक लोरी है। इसी तरह एक अन्य प्रसंग सुनाया जाता है, जिसमें पीपर के पेड़ पर चिड़ा-चिड़ी का वास, राहगीर का आना और पेड़ के नीचे रात बासा की तैयारी, उसे भूखा सोते देख, चिड़ा राहगीर को भूखा जान कर, वहां आग में कूदने की बात कहता है, इस पर चिड़ी कहती है कि इससे उसका पेट न भरेगा, इसलिए मैं भी आग में कूद कर भुन जाऊंगी और दोनों अतिथि के लिए प्राणोत्सर्ग करते हैं। कहानी के अंत में कहा जाता है कि राहगीर पेट भर खाया, मजे से सोया और सुबह उठ कर चला गया। ‘खाइस पिइस राज करिस।‘ फिर बताया जाता है- 'पहिली पहुना ल जी दे के मानय, चिरई तक ले, अब तो देखत म जी जरथे, छाती करथे धक ले। मोर किस्सा पुरा गे, सब के कान जुड़ा गे।' यानि पहले अतिथि के लिए चिड़िया भी जान तक दे देते थे, अब उन्हें देखते ही जान जलती है, छाती धक से करता है। और इसके बाद, इस तरह मेरी कहानी पूरी हुई, जो सबके लिए कान को तृप्त करने वाली है।
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सांपों के सामान्यतः चर्चा में आने वाले स्थानीय नाम हैं- अजगर, अदराली-अदरौली या चरगोड़िया, अंधवा-तेलिया या चिक्कन सांप, असढ़िया, अहिराज, उड़न सांप, कराएत- बेलिया कराएत, घोड़ा कराएत या? खड़दंगिया दो तरह का, गउहां, चिंगराज, जदर्रा-जोदर्रा (दो तरह का), डोंढ़िया, डोमी, डोमी- केंवटा डोमी, डार डोमी, भांठा डोमी, भंइसा डोमी, दूमुंहा सांप, धमना या धनगोड़ा, नांग- करिया नांग, दुध नांग, नौनक्का, पिटपिटी, बेशरम सांप, बछराज, मुसलेड़ी, सुआ सांप।

इसके अलावा कुछ अन्य नाम हैं- चूड़ा महामंडल, सुंत नाग, पहरचित्ती, चितावर।

मछलियों के स्थानीय नामों का उल्लेख यहां देख सकते है।

तितलियों के छत्तीसगढ़ी/स्थानीय नामों की जानकारी मुझे नहीं है, किंतु छत्तीसगढ़ की 159 तितलियों की सूची यहां है, इसके बाद यह संख्या अब बढ़ कर 168 हो गई है।

सिंहावलोकन‘ में चिड़ियों पर अन्य पोस्ट के लिंक- 

1 comment:

  1. बहुत शानदा,उपयोगी और संग्रहणीय लेख।स्थानीय पारिस्थितिकी और पर्यावरण के प्रति जागरूकता के लिए इस पूरे लेख को प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाया जाना चाहिए।

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