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Saturday, June 23, 2012

रॉबिन

मौसम-मिजाज से, न खैर-खबर से, कभी तो सलाम-बंदगी भी रह जाती है, जब मोहित साहू जी से बात शुरू होती है। वे पूछ रहे हैं, पिछले साल की पंडुक, गौरैया, लिटिया के बारे में, मेरे पास जवाब खाली है, बचने को कहता हूं, पिछले दिनों व्‍यस्‍त रहा खुसरा चिरई के ब्‍याह में, कुछ नया बताऊंगा इस साल। मई का आखिरी हफ्ता। नवतपा की दोपहर। याद कर रहा हूं, इस मौसम में भी सक्रिय रॉबिन के जोड़े को। सोचता हूं, उन पर ध्यान दूं, शायद मोहित जी से अगली बातचीत तक कोई जवाब बन जाए।

रॉबिन?, यह किस चिड़िया का नाम है। इसका पूरा नाम इंडियन रॉबिन है यानि Saxicoloides fulicata या हिन्दी में कलचुरि और छत्तीसगढ़ी में कारीसुई (और इसकी जोड़ीदार मैगपाई रॉबिन छत्तीसगढ़ में बक्सुई कही जाती है)। हमारे लिए आमतौर पर इंडियन या मैगपाई रॉबिन के बजाय रॉबिन ब्ल्यू अधिक सुना गया शब्द है, जो लगभग नील का पर्याय था और इसी के कारण मैं मानता था कि रॉबिन का रंग नीला होता होगा, बहुत बाद में पता लगा कि नीली रॉबिन हिमालय की तराई, म्‍यांमार, पश्चिमी घाट और श्रीलंका में तो होती है लेकिन इस अंचल के लिए रॉबिन का नीलापन विसंगत है।

इस चिड़िया के नाम कलचुरि-इंडियन रॉबिन के साथ रॉबिनहुड, रॉबिन ब्ल्यू नील, नील की तीन कठिया खेती, चम्पारण, स्वाधीनता संग्राम, गांधी जी, कलचुरि राजवंश ... ... यानि प्रकृति, पर्यावरण, भूगोल, पुरातत्व-इतिहास, राजनीति, अर्थशास्त्र, राष्ट्रीयता, शौर्य, लोकोपकार, सब कुछ जुड़ जाता है, लेकिन फिलहाल तो ललित निबंध लिखने का कोई इरादा नहीं है। यह पोस्ट रॉबिन चिड़िया की जानकारी के लिए भी नहीं है, क्‍योंकि चिड़ियों के मामले में मेरी जानकारियों की तुलना में रुचि का पलड़ा एकतरफा भारी होता है। जानकारी के लिए पहल करने वाले मोहित साहू जी, विवेक जोगलेकर जी सहज उपलब्ध हो जाते हैं और फिर भी कुछ न निपट पाए तो सालिम अली हैं, जिन्होंने चिड़ियों के पीछे पूरा जीवन बिता दिया, उनकी पुस्तक देख लेता हूं और उनके काम और जीवन की सार्थकता को अपने-आप में पुष्ट करता रहता हूं।

मोहित जी से पिछले हफ्ते फिर बात हुई, मैं आगे बढ़ कर बताने लगा। रोजाना के रास्ते में, मेरी पहुंच में, बस नाम की ओट में, अहिंसा की प्रतिमूर्ति तीर्थंकर पार्श्‍वनाथ प्रतिमा (निबंध लिखना हो तो अब धर्म भी है और कला भी) की छत्रछाया में रॉबिन का जोड़ा अपने चूजे पाल रहा है। मोहित कहते हैं कि यह चिड़िया अपने घोंसले की सफाई का खास ध्यान रखती है, चूजे का पोषण चिड़ा, चिड़ी दोनों करते हैं और कई तरह की ढेरों जानकारियां, इसलिए फिलहाल मुझे न सालिम अली की जरुरत है न गूगल की। अपनी रुचि के अनुकूल अवसर है। चूजे तो बेझिझक हैं ही, चिड़ा-चिड़ी का रवैया भी सहयोगी है, सो कुछ तस्वीरें निकल आई हैं-


चिड़ी का चुग्‍गा

घोसले के आसपास चिड़ा-चिड़ी

अब चिड़े की बारी
लगभग महीने भर का वक्‍त, रॉबिन के पलने-पालने में उनके लिए किस तरह पल-पल बीता होगा, मेरे लिए तो समय के मानों पर लग गए और वह पंछी की तरह फुर्र हुआ।