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Wednesday, November 3, 2021

सतनाम

छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पश्चात, एक सप्ताह विभिन्न स्थलों का सर्वेक्षण राजमहंत श्री जगतूराम सोनवानी, रायपुर और राजमहंत श्री रामसनेही सोनवानी जी, बिलासपुर के मार्गदर्शन में संस्कृति विभाग के अधिकारी डा. के.पी. वर्मा द्वारा किया गया था। यहां प्रस्तुत जानकारी मुख्यतः डा. वर्मा के नोट का अंश है, साथ ही इस संबंध में डा. जे.आर. सोनी जी तथा डा. अनिल भतपहरी जी से प्राप्त सुझाव को भी सम्मिलित किया गया है।

सोनी जी ने गुरु घासीदास के 7 सिद्धांतों तथा 42 उपदेशों (राधाकृष्ण प्रकाशन की पुस्तक ‘गुरु घासीदास‘) में प्रमुख संदेश- 1. मदिरा-पान का त्याग 2. मांस का त्याग 3. मानव-मानव एक समान 4. मूर्ति-पूजा बन्द करो 5. गायों को हल में मत जोतो 6. दोपहर में हल मत चलाओ 7. निरन्तर सतनाम का ध्यान करो, बताया है। इसी पुस्तक में उल्लेख है कि राजमहंत किशनलाल कुर्रे ने उनकी अमृतवाणियों की संख्या 82 मानी है तथा बाबाजी-गुरु घासीदास द्वारा भूमिहीनों को भूमि का मालिक बनाने के लिए प्रयास की ओर ध्यान आकृष्ट कराया तथा भतपहरी जी ने सतनाम रावटी दर्शन यात्रा के 22 से 25 दिसंबर 2018 तक, तीन दिवसीय शोध अध्ययन अभियान की जानकारी उपलब्ध कराई है, जिसमें 1-चिरईपदर, 2-दंतेवाड़ा, 3-कांकेर, 4-पानाबरस, 5-डोंगगरगढ़, 6-भंवरदाह, 7-भोरमदंव, 8-रतनपुर तथा 9-दल्हापहाड़ की यात्रा की गई थी। इन रावटी स्थलों में धर्मोपदेशना और सतनाम-पान (दीक्षा) भी हुआ करते थे। उक्त स्थलों पर दर्शनार्थी वर्षों से आते-जाते हैं। अब जो कुछ वीरान थे, वहां भी जाने लगे हैं। यहां प्रदर्शित नक्शा भी भतपहरी जी ने उपलब्ध कराया है।

वर्मा जी से प्राप्त नोट का अंश- 
छत्तीसगढ़ में बाबा गुरु घासीदास की रावटी (पड़ाव) से संबंधित कई स्थल हैं लेकिन राजगुरु या महंतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर महत्वपूर्ण स्थल/रावटी संबंधी की जानकारी इस प्रकार है-

छाता पहाड़- रायपुर जिले के सतनामी सम्प्रदाय के महंत स्वर्गीय श्री जगतूराम सोनवानी के अनुसार बाबा घासीदास ने सोनाखान जमींदारी के अंतर्गत छाता पहाड़ नामक स्थल पर तपस्या की थी। यह स्थल गिरौदपुरी से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर महराजी ग्राम से 2 किलोमीटर अंदर जंगल में स्थित है। छाता पहाड़ में एक विशाल चट्टान है जिसके उपर बाबाजी ने तपस्या किया था तथा उसके पास घने जंगलों के मध्य पहाड़ी झरना स्थित है। इसके बाद नवागांव होते हुए छेरकापुर में रुके थे जहां पर मंदिर निर्मित है तथा यहां से अमेरा होते हुए तेलासी तथा भण्डार गये।

भण्डारपुरी उनकी कर्मभूमि रही तथा यहां पर उनके बड़े लड़के अमरदास जी का पलंग अभी भी रखा है जिसकी पूजा होती है। भण्डारपुरी से पांच किलोमीटर की दूरी पर तेलासी बाड़ा है। यहां पर भी उनके बड़े लड़के अमरदास निवास करते थे। एक किवदंती के अनुसार एक बार बाबा घासीदास जी घूमते हुए तेलासी पहुंचे तथा उनके बड़े लड़के से ग्राम के बाहर तालाब के मेड़ में मुलाकात हुई। बाबा जी ने लड़के को पहचानने से मना कर दिया बाद में ग्रामीणों के समझाने पर वे माने। यहां पर बाबा घासीदास जी का परिवार निवास करता था बाद में उनके बड़े लड़के अमरदास जी दुर्ग जिले में तपस्या करते हुए शिवनाथ नदी के दायें तट पर चेटुआ घाट में समाधि लीन हो गये।

चिरई पदर- यह स्थल वर्तमान दंतेवाड़ा जिले के अंर्तगत है जहां पर बाबा जी ने घूमकर तपस्या करते हुए गये थे तथा वहां की जनता को उपदेश दिये तथा प्रभावित किया।

पानाबरस- यह स्थल कांकेर जिले के अंतर्गत आता है यहां पर भी बाबा जी घूमते हुए गए थे तथा पड़ाव डाला था। वहां रूककर उन्होंने जनता को तथा साधु संतों को उपदेश दिया तथा अपने विचारों से प्रभावित किया। 

डोंगरगढ़- कांकेर तरफ से लौटते हुए बाबा जी ने डोंगरगढ़ में भी रावटी लगाई थी तथा इस क्षेत्र की जनता भी इनके प्रभाव में आई और बाबा जी के सत्कर्मों एवं विचारों से प्रभावित हुए। 

भंवर दहरा- डोंगरगढ़ से घूमते हुए राजनांदगांव जिले के गंडई पंडरिया नामक स्थल से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी के उपर घने जंगलों के मध्य बाबा जी गये तथा जहां पर आज भी ऊंची-ऊंची चट्टाने हैं तथा पानी का झरना है। यहां की चट्टानों में मधुमख्खियां भी हैं तथा जंगली जानवरों का आज भी आतंक है। यहां से भी बाबा जी ने इस क्षेत्र की जनता को उपदेशों के द्वारा काफी प्रभावित किया।

रतनपुर- इस स्थल का निरीक्षण मेरे (डा. के.पी. वर्मा) द्वारा बिलासपुर जिले के महंत ग्राम सेंदरी के श्री रामसनेही गुरुजी के साथ दिनांक 23.12.01 को किया गया था। रतनपुर बस्ती के पहले दुलहरा तालाब की मेड़ पर बाबा जी ने रावटी लगायी थी जहां पर प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा में मेला भरता है इस क्षेत्र की जनता को भी बाबा जी ने अपने उपदेशों से काफी प्रभावित किया था।

दलहा पहाड़- रतनपुर से घूमते हुए बाबा घासीदास जी ने बलौदा होते हुए 16 किलोमीटर की दूरी पर दलहा पहाड़ नामक स्थल पर भी रावटी लगाई थी जो बम्हनी नामक ग्राम से 7 किलोमीटर अंदर है। यहां पर पहाड़ी में एक कुंड है तथा वर्तमान में एक धर्मशाला भी है। यहां पर भी साधु संत तथा दर्शनार्थी आते थे। महंत रामसनेही से प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां के कुंड के पानी को अमृत बनाकर मलेरिया बुखार से पीड़ित लोगों को दिया करते थे जिससे वे ठीक हो जाते थे। यहां पर जगदेवा जी स्वामी का 19 वर्ष पूर्व का बना हुआ तपस्या स्थल है।

इसके बाद बाबा जी यहां से तपस्या करते हुए बलोदा से 11 किलोमीटर दूरी पर खोंड़ पचरी नामक ग्राम भी गये थे जिनके साथ साधु संत भी थे यहां पर एक विशाल तालाब 22 एकड़ क्षेत्रफल में निर्मित है, जिसकी मेड़ पर बाबा जी ने तपस्या किया था तथा रावटी लगाई थी। यहां पर भी दर्शक तथा बीमार लोग आते थे। उनको भी बाबा जी ने उपदेशों एवं अपने विचारों से अवगत कराया तथा सत्कर्मों एवं अच्छे विचारों के द्वारा जनता को प्रभावित किया। तत्पश्चात बाबा घासीदास जी पामगढ़ तथा गिधौरी होते हुए गिरौदपुरी चले गये। यह उनकी अंतिम रावटी थी। खोंड पचरी में चैत्र-कृष्ण पक्ष में सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी को मेला मरता है।

इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से यह जानकारी प्राप्त होती है कि आज से ढाई सौ वर्ष पूर्व में आवागमन के साधनों की कमी तथा बीहड़ जंगलों के होते हुए भी बाबा जी ने संपूर्ण छत्तीसगढ़ में तत्कालीन मानव समाज के दूषित आचरण में उनके मन को मानव समाज में निहित विषमताओं के कारणों को जानने हेतु उद्वेलित किया। मानव का आपस में जाति भेद, ऊंच नीच का भेद, छुआ-छूत आदि के कारण मानव द्वारा मानव पर हृदय विदारक अत्याचार का दृश्य देखा था। सतनाम धर्म साधना से आई शक्तियों ने उन्हें एकांत चिंतन की ओर तथा एकांत चिंतन ने उन्हें समाधि की ओर अग्रेषित किया। समाधि साधना से उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई तथा उन्होंने अपने आध्यात्मिक शक्ति साधना से अनेकों सिद्धियां प्राप्त की।

बाबा घासीदास ने अपनी सिद्धि से सही धर्म तथा जाति की स्थापना, मानव के विभिन्न दुखों का आध्यात्मिक ज्ञान से इलाज, मानव में सामाजिक चेतना एवं राष्ट्रीय चेतना का विकास, लोगों को कर्मशील, परिश्रमी बनाना तथा नारियों को विकास की धारा में जोड़ना, दलितों में स्वाभिमान जागृत करना, नशा सेवन, मांस भक्षण आदि को दूर करना, जीवों के कष्टों को अहसास करने की क्षमता मनुष्यों में पैदा करना, जीव हत्या को रोकना, बलि प्रथा का अंत करना, पशुओं पर अत्याचार बंद कराना आदि उद्देश्यपूर्ण हुए तथा एक महान संत के रूप में उभरकर जनता के सामने प्रकट हुए।

सतनाम धर्म-संस्कृति के प्रणेता गुरु घासीदास जी से संबंधित विभिन्न स्तरीय शोध-प्रकाशन हुए हैं। डा. सोनी तथा डा. भतपहरी के अलावा मंगत रवीन्द्र जी, रामशरण टंडन जी जैसे परिचितों से इस संबंध में चर्चा होती रही है। अब तक बाबाजी और सतनाम धर्म-संस्कृति से संबंधित गंभीर, तथ्यात्मक जानकारियों, साहित्य आदि की सूची, संभव है कि तैयार की गई हो, किंतु सहज उपलब्ध नहीं होती। पुराने कामों में श्री नम्मूराम मनहर, संत मंगल, पंडित सखाराम बघेल, पं. मनोहरदास नृसिंह, श्री नकुल ढीढी, श्री समयदास अविनाशी, डा. हीरालाल शुक्ल आदि की चर्चा, उल्लेख देखने को मिलता है। एक पुस्तक संस्कृति विभाग के सहयोग से राधाकृष्ण प्रकाशन द्वारा, तपश्चर्या एवं आत्म-चिंतन ‘गुरु धासीदास‘ शीर्षक से प्रकाशित हुई है। ऐसे सभी महत्वपूर्ण प्रकाशित संदर्भों की सूची संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाश में आने, इंटरनेट पर उपलब्ध करा दिए जाने से छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक इतिहास के इस पक्ष में रुचि लेने वालों, अध्येताओं, शोधार्थियों और सर्व समाज के लिए आवश्यक और उपयोगी होगा।