''मैं तो कुत्ता राम का, मोतिया मेरा नाम।''
राम की कौन कहे, सबकी खबर ले लेने वाले कबीर ने क्यों कहा होगा ऐसा? 'मैं', कबीर अपने लिए कह रहे हैं या कुत्ते की ओर से बात, उनके द्वारा कही जा रही है। पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी होते तो जवाब मिल जाता, अब नामवर जी और पुरुषोत्तम जी के ही बस का है, यह।
लेकिन किसी के भरोसे रहना भी तो ठीक नहीं। बैठे-ठाले खुद ही कुछ गोरखधंधा क्यों न कर लें, तो मुझे लगता है, यह कबीर की भविष्यवाणी है। वे यहां बता रहे हैं कि सात सौ साल बाद एक 'राम' (विलास पासवान, रेल मंत्री) होंगे और उनका एक कुत्ता 'मोती' होगा। आप ऐसा नहीं मानते ? दस्तावेजी सबूत ?, चलिए आगे देखेंगे। नास्त्रेदेमस को भविष्यवक्ता क्यों माना जाता है, जबकि लगता तो यह है कि होनी-अनहोनी घट जाती है तो उसकी नास्त्रेदेमीय व्याख्या कर दी जाती है। हमारे यहां तो भविष्य पुराण (आगत-अतीत) की परम्परा ही रही है।
कर्म और पुरुषार्थ के नैतिक, धार्मिक और विवेकशील संस्कारों के बावजूद मैंने भी कीरो, सामुद्रिक, भृगु संहिता, रावण संहिता, लाल-पीली जैसी किताबों को पढ़ने का प्रयास किया है, किन्तु भाग्य-प्रारब्ध का मार्ग भूल-भुलैया है ही, ये मुझे फलित के बजाय भाषाशास्त्र के शोध का विषय जान पड़ती हैं, जिसमें अपना भविष्य खोजते हुए, भाषा में भटकने लगता हूं। भाषाविज्ञानी परिचितों से आग्रह कर चुका हूं कि इन पुस्तकों की भाषा पर शोध करें। कैसी अद्भुत भाषा है, जो सबका मन रख लेती है। इससे भाषाशास्त्र का कल्याण ही होगा और शायद कुछ की तकदीर भी बदल जाए।
चलिए, फिर आ जाएं मोती कुत्ते पर। कर्मणा संस्कृति से जुड़े होने के कारण कोई परिचित दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के सांस्कृतिक कोटा के विरुद्ध भरती की चर्चा के लिए आए, लेकिन मेरा ध्यान अटक गया अधिसूचना- आरपीएफ का कुत्ता 'मोती' पर। फिर एक खबर यह भी छपी- इस 'मोती की नीलामी रोकने हाईकोर्ट में याचिका।' (दस्तावेजी सबूत)
अब तो मान लें कि कबीर भविष्यवक्ता थे और मोती नाम वाले राम के कुत्ते मामले की भविष्यवाणी से भी वे आज प्रासंगिक हैं। आप नहीं मानते तो न माने, हमारी तो मानमानी।
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