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Saturday, January 22, 2011

मोती कुत्‍ता

''मैं तो कुत्ता राम का, मोतिया मेरा नाम।''

राम की कौन कहे, सबकी खबर ले लेने वाले कबीर ने क्यों कहा होगा ऐसा? 'मैं', कबीर अपने लिए कह रहे हैं या कुत्ते की ओर से बात, उनके द्वारा कही जा रही है। पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी होते तो जवाब मिल जाता, अब नामवर जी और पुरुषोत्तम जी के ही बस का है, यह।

लेकिन किसी के भरोसे रहना भी तो ठीक नहीं। बैठे-ठाले खुद ही कुछ गोरखधंधा क्यों न कर लें, तो मुझे लगता है, यह कबीर की भविष्यवाणी है। वे यहां बता रहे हैं कि सात सौ साल बाद एक 'राम' (विलास पासवान, रेल मंत्री) होंगे और उनका एक कुत्ता 'मोती' होगा। आप ऐसा नहीं मानते ? दस्तावेजी सबूत ?, चलिए आगे देखेंगे। नास्त्रेदेमस को भविष्यवक्ता क्यों माना जाता है, जबकि लगता तो यह है कि होनी-अनहोनी घट जाती है तो उसकी नास्त्रेदेमीय व्याख्‍या कर दी जाती है। हमारे यहां तो भविष्य पुराण (आगत-अतीत) की परम्परा ही रही है।

कर्म और पुरुषार्थ के नैतिक, धार्मिक और विवेकशील संस्कारों के बावजूद मैंने भी कीरो, सामुद्रिक, भृगु संहिता, रावण संहिता, लाल-पीली जैसी किताबों को पढ़ने का प्रयास किया है, किन्तु भाग्य-प्रारब्ध का मार्ग भूल-भुलैया है ही, ये मुझे फलित के बजाय भाषाशास्त्र के शोध का विषय जान पड़ती हैं, जिसमें अपना भविष्य खोजते हुए, भाषा में भटकने लगता हूं। भाषाविज्ञानी परिचितों से आग्रह कर चुका हूं कि इन पुस्तकों की भाषा पर शोध करें। कैसी अद्‌भुत भाषा है, जो सबका मन रख लेती है। इससे भाषाशास्त्र का कल्याण ही होगा और शायद कुछ की तकदीर भी बदल जाए।

चलिए, फिर आ जाएं मोती कुत्ते पर। कर्मणा संस्कृति से जुड़े होने के कारण कोई परिचित दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के सांस्कृतिक कोटा के विरुद्ध भरती की चर्चा के लिए आए, लेकिन मेरा ध्यान अटक गया अधिसूचना- आरपीएफ का कुत्ता 'मोती' पर। फिर एक खबर यह भी छपी- इस 'मोती की नीलामी रोकने हाईकोर्ट में याचिका।' (दस्तावेजी सबूत)

अब तो मान लें कि कबीर भविष्यवक्ता थे और मोती नाम वाले राम के कुत्ते मामले की भविष्यवाणी से भी वे आज प्रासंगिक हैं। आप नहीं मानते तो न माने, हमारी तो मानमानी।

लेबलःहाहाहाकारी पोस्‍ट

Monday, November 8, 2010

रेलगाड़ी

आगरा स्‍टेशन। पिछले दिनों उत्‍कल एक्‍सप्रेस से सफर में विदेशी नजारा देख रहे थे और फोटू पर फोटू खींचे या उतारे जा रहे थे। हम उड़न तश्‍तरी की तरह (लेकिन हाइवे पर नहीं पलेटफारम पर) नजारे का नजारा देख रहे थे। माजरा कुछ समझ में नहीं आ रहा था हमारे। हम सोच रहे थे कि किस देश के अनाड़ी हैं, क्‍या इनके देश में रेलगाड़ी नहीं होती। फिर लगा सोचना समझना बाद में घर पहुंचकर कर लेंगे, अभी तो अनुकरण पद्धति अपनाते हुए हम भी चमका दें, अपना भी तो है, भारी-भरकम न सही, मोबाइल वाला। घर आकर भूल गए कि कब क्‍या जमा कर लिया है। मोबाइल की गैलरी में फोटो देखते हुए समझ में नहीं आया तो स्‍क्रीन पर बड़ा करके देखा। पहले फोटू में तो भजिया-पकौड़ी का मिरची और केचप सहित कुछ मामला दिखा। कैद की तरह सलाखों से हाथ बाहर निकल रहे हैं। ये खिड़की ... ओह ... शीशा निकल गया है, तो अब टॉयलेट काम का तो रहा नहीं, चलो, लोगों ने बेकार नहीं छोड़ा, काम में ले लिया, अपने लिए जगह बना ली।

दूसरे चित्र में भी कुछ यही चल रहा है, लेकिन यहां बंदूक वाले खाकी वरदी की भी दखल है, याद आया वह भी कुछ लेन-देन कर रहा था, शायद भजिया या कुछ और पता नहीं, लेकिन फोटो में दाहिने खाकी वरदी में उसके जिस सहयोगी की झलक है, वह पहले भोक्‍ता को टकटकी लगाए दृष्‍टा की तरह सारे कार्य-व्‍यापार पर नजर रखे है। 'द्वा सुपर्णा ... ' चलिए, चलिए बहुत हो गया, आपको आंखों देखी बताने के चक्‍कर में हमारी ट्रेन न छूट जाए। लेकिन ये फिरंगी बेकार में कैमरा क्‍यों चमकाते हैं जी, आप ही बताइये।

इसी सफर के एक फेरे में हमराही थे, कोलकाता मुख्‍यालय वाले 'भारत सेवाश्रम संघ' के 80 पार कर चुके स्‍वामी जी। बच्‍चों सी कोमल-चपलता लेकिन सजग, मोबाइल पर फोन सुनते, भक्‍तों सहित सहयात्रियों का लगातार ख्‍याल रखते हुए। रेलगाड़ी के एसी डिब्‍बे में उनके असबाब में हाथ-पंखा, बाने के साथ उनका अभिन्‍न हिस्‍सा लगता था, आप भी देखिए फोटू में ऐसा लगता है क्‍या।

पुछल्‍लाः

पत्रकारनुमा एक ब्‍लॉगर मित्र का कहना था कि क्‍या गरिष्‍ठ पोस्‍ट लगाते रहते हो, कुछ तो हो पढ़ने लायक। फिर उदारतापूर्वक उन्‍होंने समझाया कि ''कहीं जाते-आते हो, राह चलते मोबाइल का कैमरा चटकाते रहो, घर पर आराम से बैठ कर सब फाटुओं को देखो, एक से एक बढि़या पोस्‍ट बनेगी। अरे हमारे साथी तो इस टेकनीक से एक्‍सक्‍लूसिव खबरें बना लेते हैं, पोस्‍ट क्‍या चीज है।'' मित्र, निरपेक्ष किस्‍म के सर्व-शुभचिंतक हैं, उन पर भरोसा भी है, इसलिए उनके सुझाव और टेकनीक का पालन करते हुए यह पोस्‍ट-जैसा तैयार किया है। हे मित्र ! यह आपको समर्पित करते हुए निवेदन कि आपके निर्देशनुमा सुझाव का उचित पालन हुआ हो तो टिप्‍पणी में आकर कृपया इसे स्‍वीकार करें।

(रश्मि रविजा जी का मेल है 14 नवम्‍बर, बाल दिवस के लिए संस्‍मरण लिख भेजने का, इसीसे शायद वह भी सध जाए।)