गौरैया के बाद पंडुक, फिर पंडुक-पंडुक, और अब लिटिया। आकार से लगता है कि अंग्रेजी के लिटिल और लिटिया नामधारी इस छोटी सी चिडि़या का कोई रिश्ता जरूर होगा। लिटिया यानि दरजी, फुटकी या टेलर बर्ड- Orthotomus sutorius। घोंसला-माहिर इस चिडि़या को बया यानि वीवर बर्ड के साथ याद किया जाता है। बया, बुनकर तो लिटिया, दरजी। लिटिया पत्तों और तिनके-डंठल को आपस में मिलाकर घोंसला रचती है। छत्तीसगढ़ के कई लिटिया/लटिया गांवों को शायद इसी से नाम मिला है।
यह चिडि़या आसपास हो तो इसके चहचहाने की आवाज के बाद इसकी काया जितनी लंबी और खास ढंग से उठी पूंछ, इस चंचल जीव की ओर जरूर ध्यान खींचती है। कुछ दिनों से घर की बैठकी के पास पारिजात, हरसिंगार, शेफाली या जास्मीन जैसे मधुर नाम (Nyctanthes arbor-tristis नाम से तो घबराहट होती है) वाले पेड़ पर अधिक फुदकती।
तब हमारा ध्यान गया कि जहां वह बार-बार आ कर बैठ रही है वहां एक छोटा घोंसला है, पत्तों में ओझल-सा।
अवसर पाकर घोंसले में झांका, वह यहां आप भी देखिए-
छोटी सी बात, बस इत्ती-सी। छत्तीसगढ़ी शब्द खोन्धरा (गांव का नाम भी) होता है घोंसला, खोता, नीड़ का समानार्थी और आशियाना या घरौंदा के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है, लेकिन सोच रहा हूं कि घोंसला तो सौरघर, प्रसूति गृह के अधिक निकट का अर्थ देता है। पैतृक निवास से स्वेच्छया विस्थापित बसेरे से दूर, नीड़ का निर्माण कर वास करते मुझे, अब घर से खबर आई है, इन चूजों के उड़ जाने की।
(तस्वीरें, 22-23 अगस्त 2011, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ की)