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Monday, June 11, 2012

खुसरा चिरई

औद्योगिक तीर्थ भिलाई, दुर्ग के साथ मिलकर छत्‍तीसगढ़ का जुड़वा शहर और कला-संस्‍कृति तीर्थ भी है। आसपास ऐसे कुछ अन्‍य तीर्थ हैं- पद्मभूषण तीजनबाई का गांव गनियारी, बिसंभर यादव मरहा और दाउ रामचंद्र देशमुख का बघेरा, देवदास बंजारे का धनोरा, दाउ महासिंग चंद्राकर का मतवारी, फिदाबाई का सोमनी, झाड़ूराम देवांगन का बासिन, पद्मश्री पूनाराम निषाद और भुलवाराम का रिंगनी और खड़े साज नाचा का जोड़ा गांव दाउ मंदराजी का रवेली, देवार कलाकारों का डेरा, दुर्ग का सिकोलाभांठा, पचरीपारा, दुर्ग वाले गुरुदत्‍त-परदेसी (राम बेलचंदन) और दुर्ग के शहरी आगोश में समाया, लेकिन विलीन होने से बचा गांव पोटिया।

पोटिया (वरिष्‍ठ हास्‍य अभिनेता शिवकुमार दीपक भी इसी गांव के हैं) में केदार यादव के परम्‍परा की स्‍मृति है। अपने दौर से सबसे लोकप्रिय छत्‍तीसगढ़ी गायक केदार की प्रतिभा ''चंदैनी गोंदा'' के मंच पर उभरी और उसके बाद ''नवा बिहान'' की शुरुआत हुई। उनसे ''तैं बिलासपुरहिन अस अउ मैं रयगढि़या'' और ''हमरो पुछइया भइया कोनो नइए ग'', जैसे रामेश्‍वर वैष्‍णव के गीत सुनना, अविस्‍मरणीय हो जाता। पहले गीत की मूल पंक्ति ''आज दुनों बम्‍बई म गावत हन ददरिया'' में बम्‍बई को बदलकर उस स्‍थान का नाम लिया जाता, जहां कार्यक्रम प्रस्‍तुत किया जा रहा हो और इसी तरह दूसरे गीत में ''ए भांटो'' का महिला स्‍वर आते ही लोग झूम जाते। केदार के साथ पूरी परम्‍परा रही, जिसमें उनकी जीवनसंगिनी-सहचरी साधना, उनके भाई गणेश उर्फ गन्‍नू यादव और उनकी जीवनसंगिनी-सहचरी जयंती तथा अन्‍य कलाकार भाई पीताम्‍बर, संतोष रहे हैं।

झुमुकलाल जी की विरासत
  के साथ गन्‍नू यादव
पूरे परिवार को संगीत के संस्‍कार मिले पिता झुमुकलाल यादव से, जो परमानंद भजन मंडली के सदस्‍य थे। पचास-साठ साल पहले रायपुर-दुर्ग में सैकड़ों ऐसी मंडलियां थीं, जिनमें मुख्‍यतः बद्रीविशाल परमानंद के गीत गाए जाते थे। झुमुकलाल, बद्रीविशाल जी के साथी थे, उनकी औपचारिक शिक्षा की जानकारी नहीं मिलती, लेकिन जिस सजगता और व्‍यवस्थित ढंग से उन्‍होंने गीत-परम्‍पराओं का अभिलेखन कर उन्‍हें सुरक्षित किया, वह लाजवाब है। इस अनमोल खजाने में अप्रत्‍याशित ही ''खुसरा चिरई के ब्‍याह'' मिल गई। खरौद के बड़े पुजेरी कहे जाने वाले पं. कपिलनाथ मिश्र की यह रचना, (ऐसे ही शीर्षक की रचनाकार के रूप में जगन्‍नाथ प्रसाद 'भानु' का नाम भी मिलता है) खूब सुनी-सुनाई जाने वाली, मेलों में बिकने वाली, लेकिन लगभग इस पूरी पीढ़ी के लिए सुलभ नहीं रही है। बिलासा केंवटिन के गीत में जिस तरह सोलह मछलियों से सोलह जातियों की तुलना है उसी तरह यहां कविता क्‍या, आंचलिक-साहित्यिक, परम्‍परा और पक्षी-विज्ञान की अनूठी आरनिथॉलॉजी है यह-

खुसरा चिरई के ब्याह

     टेक जांघ बांध जघेंला बांध ले, और केड़ के ढाला
     खुसरा चिरई के ब्याह होवत है, नेवतंव काला काला
1   एक समय की बात पुरानी, सुनियों ध्यान लगानी
     बड़े प्रेम से कहता हू मैं, खुसरा चिरई के कहानी
2   एक समय का अवसर था, सब चिड़ियों का मेला
     खुसरा बिचारा बैठे वहां पर, पड़ा बड़ा झमेला
3   बड़े मौज से घुसरा बैठे, घुघवा करे सलाव
     खुसरा भइया तैं तो डिड़वा, जल्दी करव बिहाव
4   कौन ल भेजय सगा सगाई, कौन ल बररौखी
     कौन ल पगरहित बनावंय, कौन सुवासा चोखी
5   नंउवा कौंवा करे सगाई, कर्रउवा बररौखी
     पतरेगिया ल पगरहित बनाइस, सुवा सुवासा चोखी
6   बामंन आवे लगिन धरावंय, मंगल देवय गारी
     आन जात ल नरियर देवय, जात ल पान सुपारी
7   बिल ले निकरय बिल पतरेगिया, हाथे में धरे सुपारी
     भरही चिरैया कागज हेरे, चांची लगिन बिचारी
8   काकर हाथ में तेल उठगे, काकर हाथ में चाउंर
     कौन बैठगे लोहा पिंजरवा, कौन बैठगे राउर
9   पड़की हाथ में तेल उठगे, परेवना हाथ में चाउंर
     सुवा बैठगे लोहा पिंजरवा, कोयली बैठगे राउर
10 अवो नवाईन लबक लुआठी, चल चुलमाटी जाइन
     लाव लसगर नगर बलुउवा, गीत मनोहर गाइन
11 कठवा ले कठखोलवा बोलय, सुन रे खुसरा साथी
     बने बने मोला नेवता देबे, ठोनक देहंव तोर आंखी
12 दहरा के नेवतेंव दहरा चिरैया, नरवा के दोई अड़ंवा
     कारी अऊ कर्रउंवा ला नेवतेंव, तेला बनावय गड़वा
13 इहां के समधिन कारी हावंय, उंहा के समधीन भूरी
     ईहां के समधिन नकटायल है, उहां के समधिन कुर्री
14 छोटे दाब अैरी के नेवतेंव, कोयली देवय गारी
     मकुट बांध के सारस आवे, कुर्री के दल भारी
15 कौन चिरई मंगरोहन लावे, कौन गड़ावे मड़वा
     कौन चिरई करसा लावे, घर घर नेवते गड़वा
16 मंग रोहन चिरई मंगरोहन लावे, कन्हैया गड़ावे मड़वा
     पतरेगिया हा करसा लावे, घर घर नेवते गड़वा

17 पीपर पेड़ के भरदा नेवतेंव, अऊ नेंवतेंव मैं चाई
     टाटी बांधय तबल के बरछी, दल में मजा बताई
18 आमाडार ले कोयली बोलय, लीम डार ले कौंवा
     कर्री बाज के देखे ले मोर, जीव खेले डुब कइंया
19 भुइंया के भुई लपटी नेवतेंव, अऊ नेव तेंव मैं चुक्का
     खुसरा के बिहाव में सब, भरभर पीवे हुक्का
20 खुसरा दीखय दुसरा 2, मूढ़ हवय ढेबर्रा
     वोकर पांव है थावक थइया, चोच हवय रन कर्रा
21 अटेर नेवतेव बटेर नेवतेंव, अऊ नेवतेन नटेर
     बड़े बड़े ल मुढ़ पटका पटकेंव, तुम्हरे कौन सनेर
22 ओती ले आवय लावा लशगर, ओती ले आवय बाजा
     बनत काम ल मत बिगारव, तोला बनाहू राजा
23 सब चिड़िया ला नेवता बलाके, खुसरा बनगे राजा
     चेंपा नांव के चिरई ला लानय, तेला धरावय बाजा
24 पानी के पनडुबी ल नेवतेंव, घर के दूठन पोई
     धन्य भाग वो खुसरा के, मन चुरनी के घर होई
25 हरिल चिरैया हरदी कूटय, गोड़रिया कूटय धान
     खुसरा के बिहाव में सब, हार दिंग मताइन
26 इधर काम ले फुरसत पाके, भरदा बैठय तेलाई
     लडु़वा पपची बनन लागे, तब मेछा ल टेंवय बिलाई
27 कौन कमावे रनबन 2, कौन कमावे मन चीते
     कौन बैठगे भरे सभा में, झड़े भड़ौनी गीदे
28 पड़की कमावे रनबन 2, परेवना कमावे मन चीते
     बलही बैठगे भरा सभा में, झड़े भड़ौनी गीदे
29 अपन नगर से चले बराता, गढ़ अम्बा में जाइन
     धूमधाम परघौनी होवय, गीत मनोहर गाइन
30 दार होगे थोरे थोरे, बरा होगे बोरे
     आधा रात के आये बरतिया, दांत ल खिसोरे
31 गांव निकट परघौनी होवय, दुरभत्‍ता खाये ल आइन
     लड़ुवा पपची पोरसन लागय, चोंच भर भर पाइन
32 सबो चिरई समधी घर जाके, खुसरा ल खड़ा करावय
     वैशाख शुक्ल अऊ सत्पमी, बुधवार के भांवर परावय
33 एक भांवर दुसर तीसर, छटवें भांवर पारिन
     सात भांवर परन लागिस, तब खुसरा मन में हांसिन
34 खुसरा हा खुसरी ला पाइस, बाम्‍हन पाइस टक्का
     सबो बरातिया बरा सोहारी, समधी धक्का धक्का

35 सोन चांदी गहना गुठ्‌ठा, अऊ पाइन एक छल्ला
     रूपिया पैसा बहुत से पाइन, नौ खाड़ी के गल्ला
36 सूपा टुकना चुरकी सुपली, खुसरा दाईज पाईन
     गढ़ अम्बा से बिदा कराके, अपन नगर में आईन
37 गांव के बाहिर डोला आवय, तब गिधवा डोला उतारय
     बेटा ले बहुरिया बड़े, कइसे दीन निकारय
38 सबो चिरई खुसरा घर आके, नेवता खायेला बैठिन
     गरूड़ चिरैया पूछी मरोड़य, कर्रा मेछा ऐठिन
39 कोने ल देवय सोन चांदी, कोनो ल देवय लुगरा
     कोनो ल देवय लहंगा साया, कोनो ल देवय फुंदरा

आरंभ वाले संजीव तिवारी और बस्‍तर बैंड वाले अनूप रंजन, तीर्थ-लाभ हम तीनों ने साथ-साथ लिया, लेकिन प्रसाद वितरण का जिम्‍मा मैंने ले लिया।

यहां आए सभी नामों के प्रति आदर-सम्‍मान।