महानदी, सोढ़ुर और पैरी संगम पर स्थित राजिम, छत्तीसगढ़ की प्राचीन नगरी है। नदी के बीच स्थापित कुलेश्वर महादेव और दाहिने तट पर राजीव लोचन मंदिर है। राजिम अंचल की पारम्परिक पंचक्रोशी के साथ मेला, अब राजिम कुंभ के नाम से प्रसिद्ध है। त्रिवेणी संगम पर माघी पुन्नी मेला वाले छत्तीसगढ़ के दो प्रमुख वैष्णव केन्द्र राजिम और शिवरीनारायण क्रमशः राजिम तेलिन और जूठे बेर वाली शबरी की कथा के साथ लोक समर्थित हैं।
इस वर्ष अर्द्धमहाकुंभ के पहले दिन मेले की शायद सबसे छोटी उम्र, इनसेट चित्र वाली इस दुकानदार के सबसे कम लागत वाली दुकान पर चना बूट की कीमत पूछने पर वह यकायक जवाब न दे सकी। चेहरे पर भाव आए मानों सारा माल बिक गया तो दुकान लगाए बैठे रहने और साथ-साथ सामने मंच पर कार्यक्रम देखने की उसकी योजना पर पानी फिर जाएगा। संभव है घर की उपज दी गई हो बेचने के लिए, बिका तो मेला घूमने का जेब-खर्च निकला नहीं तो वही खुद खा कर मेले का आनंद लेना, छोटे भाई की जिम्मेदारी सहित।
साथ थे ललित शर्मा जी। पूर्णमासी का चन्द्र दर्शन और पद्म क्षेत्र में नदी की रेत पर इस दुकान की सजावट बना रेखांकन देखा हमने। 'राजिम' नाम की व्युत्पत्ति, लोक में राजिम तेलिन और शास्त्र में राजीव लोचन से मानी जाती है। लगा कि राजिम तेलिन के किसी अवतार ने रेखांकन कर यहां उत्फुल्ल पद्म, राजीव लोचन को अर्पित किया है।
राज्य गठन के दस साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन अब भी ऐसे अवसर आते हैं, जब छत्तीसगढ़ की पहचान के लिए भिलाई का सहारा लेना पड़ता है, खासकर सफर और प्रवास में। मिनी मेट्रो भिलाई में इस्पात संयंत्र के साथ प्रतिभाएं भी हैं, पद्मभूषण तीजनबाई जैसी प्रसिद्ध तो कुछ-एक अनजानी सी। भिलाई की चित्रकार मनीषा खुरसवार (फोन-9617661223) की रायपुर में लगाई गई प्रदर्शनी में संयोगवश पहुंचा। कविता और संगीत की तरह चित्रकारी में भी मेरी रुचि सीमित और समझ अल्प है, लेकिन ललक कम नहीं। प्रदर्शनी के एक पैनल में बच्चों के बनाए ऐसे चित्र लगे थे जो मनीषा से चित्रकारी सीख रहे हैं। इन चित्रों में नकल, सीख और मौलिक कल्पना का अनुपात पता नहीं, लेकिन छः साल की अदिति और साढ़े तीन साल के शिवम् के बनाए चित्र दंग कर देने वाले हैं।
अर्द्धपर्यंकासन या सुखासन में गणेश और फूल-पौधों, चिडि़या और तितली से इस तरह पूरा गया चित्र।
तरह-तरह के गुब्बारों में खीस निपोरते, चौंके, खिसियाए, हंसते-रोते चेहरे वाले कोई हवाई जहाज, कोई हेलिकॉप्टर, कोई रॉकेट के आकार का, कोई पंछी, तितली और हॉट बैलून जैसा भी।
बगीचे में कोई झूला, फिसलपट्टी, सी-सॉ या राइड खाली नहीं। दो सहेलियों ने छोटी बच्ची को झुलाने का इंतजाम किया अपनी चोटियां जोड़कर और उस पर साथ झूला झूलने लगी चिडि़या। अपने इस कौतुक का आनंद ले रही हैं दोनों सहेलियां। फूल-पौधा, तितली, खरगोश, चूहा और चिडि़या यहां भी नहीं छूटे हैं।
अब कुछ लोक-प्रचलित अभिप्राय, जिनके साथ मैं आसानी से, सहज ही समष्टि होने लगता हूं। इनकी कम्प्यूटर प्रति तैयार की है आगत शुक्ल जी ने, जो लोक अध्येता हैं ही, कलम और की-बोर्ड/माउस पर एक समान अधिकार रखते हैं।
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इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ से कला की पढ़ाई किए संघर्ष गौतम भी भिलाईवासी हैं, पिछले दिनों मुलाकात के दौरान उन्होंने अपने बनाए कुछ सुंदर चित्र दिखाए, जिनमें अनूठा यह चित्र था। संघर्ष ने स्पष्ट किया कि चित्र का आइडिया उनका मौलिक नहीं है, मुझे उनकी साफगोई के कारण चित्र अधिक भाया।
शास्त्रों में कहा गया है कि दृष्टि-मल के कारण हम जीवों में भेद देखते हैं, वरना सभी एकाकार हो कर पशुपतिनाथ शिव हैं।
आज महाशिवरात्रि है, राजिम अर्द्धमहाकुंभ संपन्न हो रहा है।
माघ मेले के पुण्यार्थी और भोले बाबा के हम मनसा बाराती की यह स्पेशल पोस्ट सुधिजन को बहकी सी लगे तो हमारा ब्लॉगर पर्व सेलिब्रेशन सफल सम्पन्न हुआ।
(चित्रों के सर्वाधिकार सुरक्षित)