जनगणना और गजेटियर के अंतराल में कई बार ऐसे प्रकाशन ही काम आते हैं। स्मारिका ‘जाज्वल्या‘, संभवतः छत्तीसगढ़ के किसी भी जिले से लंबे समय (2002) से प्रतिवर्ष प्रकाशित होने वाली एकमात्र स्मारिका है। ऐसी सामग्री को डिजिटाइज कर, वेब पर अपलोड किया जाना आवश्यक है। इस उद्देश्य की आंशिक पूर्ति की दृष्टि से यहां अर्थात इस ब्लॉग ‘सिंहावलोकन‘ पर, समय-समय पर ‘जाज्वल्या‘ के चयनित लेखों को प्रस्तुत करने की तैयारी है, इसी क्रम में मेरे पिता सत्येन्द्र कुमार सिंह जी पर रविन्द्र कुमार सिंह बैस का लेख।
लेखक रविन्द्र जी, स्थानीय विभूतियों के महत्व को पहचानने और उनके अभिलेखन के लिए सदैव प्रयासरत रहते हैं। बुजुर्गों की सोहबत की मानों धुन है, उन्हें। अभिलेखन का उद्यम उन्होंने विकसित किया है, मगर संस्मरण की अनमोल वाचिक परंपरा उन्हें अपने पिता भद्दर डाक्टर के नाम से ख्यात, बलभद्र सिंह जी से मिली है। मैं याद कर पाता हूं कि इस लेख की तैयारी में रवि, लंबे समय तक घंटों, पिताजी के साथ, उनकी बातें सुनते बैठा करते थे। तब शायद ही उनके मन में कभी संस्मरण लिखने की बात रही हो, क्योंकि बुजुर्गों की बातों में डूबे रहना, मानों उनका शगल है और उनके संस्मरण सुनकर मैंने जाना है कि बुजुर्ग, खुलकर अपने अंतरंग प्रसंग उनसे कह-बोल लेते हैं, जैसे अपने अभिन्न मित्रों के साथ। यह रवि गुरु जी की शालीन गंभीरता है कि वे इन संस्मरणों को सुनाते हुए कुछ प्रसंगों को हल्के-फुल्के ढंग से बता दिया करते हैं, लेकिन लिखते हुए किसी कठोर संपादक की तरह अनुशासित रहते, जानकारी और सूचनाओं का सजग-सावधान चयन मर्यादापूर्वक करते हैं। रविन्द्र जी की सहमति से छपाई की कुछ अशुद्धियों को ठीक करते, आगे यह लेख-
व्यक्तित्व
निष्काम कर्मयोगी स्व. सत्येन्द्र कुमार सिंह (संत बाबू)
दूर हजारों की भीड़ में अलग एवं विशेष दिखने वाले, जिनकी ऊँचाई 6 3, गौरवर्ण, जिनकी भव्य एवं आकर्षक शारीरिक बनावट जो एकदम सरल, सहज, एवं निर्विवाद ‘जीनियस‘ हो। हम बातें कर रहे हैं, अकलतरा के प्रतिष्ठित एवं सुशिक्षित सिसोदिया परिवार में 17 फरवरी 1927 को पिता डॉ. इन्द्रजीत सिंह (लाल साहब) एवं माता शांति देवी के कोख से अवतरित हुये सत्येन्द्र कुमार सिंह जी। जिन्हें घर में संत, बाहर में संत महाराज एवं मित्रों के बीच सत्येंद्र, नाम से पुकारने थे। उनके अग्रज राजेन्द्र कुमार सिंह, अनुज डॉ. बसंत कुमार सिंह, श्री धीरेन्द्र कुमार सिंह (पूर्व विधायक एवं साडा अध्यक्ष, कोरबा) एवं बहन श्रीमती बीना देवी हैं। उनके पिता डॉ. इन्द्रजीत सिंह सी.पी. एंड बरार के पहले डॉक्टरेट मानवशास्त्री हुये, जिन्होंने बीहड़ बस्तर, अबूझमाड़ एवं सरगुजा में जाकर जनजातियों के जीवन पर, लखनऊ विश्वविद्यालय से शोध कार्य ‘द गोंड एंड द गोड़वाना‘ की रचना कर समूचे छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया।
नागपुर स्कूल से रिटायर्ड मास्टर शेख सुल्तान एवं नूर मोहम्मद से घर में ही शिक्षा पाये, पं. गुनाराम एवं अयोध्या दीक्षित के सानिध्य में उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके जन्म स्थान अकलतरा में सम्पन्न होने के पश्चात् आगे अध्ययन के लिये बिलासपुर रेलवे कालोनी स्थित यूरोपियन स्कूल में दाखिला लिया, तब यूरोपियन स्कूल केवल एंग्लो इंडियन बच्चों की पढ़ाई के लिये खुला था। उसमें भारतीय बच्चों के लिये भर्ती होना आसाधारण घटना थी। वहॉं बालक सत्येन्द्र कुमार सिंह को पढ़ने का अवसर मिला।
जहाँ अंग्रेजी, विज्ञान में विशेष दक्षता हासिल कर क्रिश्चियन शिक्षक स्टीफन टीडू के प्रिय पात्र बने रहे। हालांकि उनके कथनानुसार बाल्यकाल में उन्हें पढ़ने-लिखने की रुचि बिल्कुल नहीं थी। यूरोपियन स्कूल के बाद बिलासपुर नगर की सुप्रसिद्ध ‘मल्टीपरपस गौरमेंट हाईस्कूल‘ में इन्होने सन् 1947 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। अध्ययन के दौरान बी.एन. डे एवं प्रख्यात शिक्षाविद् लाला दीनानाथ के कुशल एवं प्रभावी अध्यापन कौशल के वे कायल हो गये। सक्रिय खेलकूद गतिविधियों में हिस्सा लेकर वालीबाल के उदीयमान खिलाड़ी साबित हुये। गुजरे जमाने के बिलासपुर जिले में इनकी टीम का मुकाबला सिर्फ पुलिस टीम ही कर पाती थी। इनके बैच में प्रतिभाशाली सहपाठियों की भरमार थी। जबलपुर के ख्यातिप्राप्त अधिवक्ता श्री सतीशचंद्र दत्त, पूर्व कलेक्टर स्वरूपसिंह पोर्ते, पुरातत्वविद् डॉ. शंकर तिवारी, नेत्ररोग विशेषज्ञ, डॉ. आर.के. मिश्रा के अलावा अनेक विद्वान एवं बुद्धिजीवी इनके मित्र रहे हैं।
बिलासपुर से मेट्रिक उत्तीर्ण कर नागपुर के ख्यातिप्राप्त ‘विक्टोरिया कॉलेज आफ साइन्स‘ में प्रवेश लेकर, उच्च शिक्षा हेतु आगरा प्रस्थान हुए, जहाँ 1952 में बी. ए. और 1955 में अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. की डिग्री ‘हीवेट हॉस्टल‘ में रहकर हासिल की। यहाँ अकलतरा के प्रख्यात जनप्रिय चिकित्सक डॉ. सी. बी. सिंह का उन्हें मार्गदर्शन मिला, पारिवारिक पृष्ठभूमि, शारीरिक आकर्षण, खेल, व्यवहार एवं कार्यशैली से प्राध्यापकों एवं सहपाठियों में वे काफी लोकप्रिय हुये।
1952 में पिता डॉ. इन्द्रजीत सिंह के निधन के बाद उनका अकलतरा में स्थायी रूप से रहना हुआ। 1953 में आशा देवी से इनका विवाह बनारस में हुआ, जो शादी के बाद फाइन आर्टस् एवं पेंटिंग्स में स्नातक हुई। 1956 में प्रथम पुत्र रत्न राजेश एवं तीन वर्ष पश्चात् द्वितीय पुत्र रत्न राहुल का जन्म, मिशन अस्पताल बिलासपुर में ऑपरेशन के फलस्वरूप हुआ। श्री राजेश सिंह चिंतक, विचारक एवं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय हैं। श्री राहुल सिंह, छ.ग. शासन के संस्कृति विभाग में उपसंचालक (पुरातत्व) के पद पर रायपुर मुख्यालय में पदस्थ हैं।
सत्येन्द्र कुमार सिंह, अकलतरा एजुकेशन ट्रस्ट की रूपरेखा, सी.सी.आई. कारखाना के लिये पत्र व्यवहार एवं अन्य बौद्धिक विकास कार्य हेतु उनके हमउम्र राणा चितरंजन सिंह का मार्गदर्शन लेकर अनेक लोकहित के चुनौतीपूर्ण कार्य को अंजाम देकर आधुनिक अकलतरा की बुनियाद रखी। ट्रस्ट द्वारा स्थापित हाईस्कूल संयुक्त बिलासपुर जिले का ही नहीं वरन् समूचे छत्तीसगढ़ के अग्रणी शिक्षा केन्द्र के रूप में विख्यात हुआ।
वैसे तो वे सक्रिय राजनीति से दूर रहते थे, किन्तु जनता की मांग पर जरूरत पड़ने पर ग्राम पंचायत अकलतरा (1976) एवं जनपद पंचायत अकलतरा के अध्यक्ष (1978) निर्वाचित हुये। जिसे उन्होंने चुनौती के रूप में स्वीकार कर आदर्श स्थापित किये। उनके कार्यकाल का स्कूल भवन ग्राम अमलीपानी व कटघरी में देखने योग्य है। आज के पंचायत प्रतिनिधियों को उक्त दोनों ग्रामों क भवनों का अवलोकन कर उन्हें आत्मसात करने का प्रयत्न करना चाहिए।
अकलतरा में बंगलादेशी शरणार्थियों के लिये भोजन, कपड़ा, स्नान, साबुन, सिंदूर, कुमकुम, चूड़ी यहॉ तक की कफन के लिये कपड़े, बच्चों के लिये फल एवं दूध की व्यवस्था अकलतरा के संवेदनशील नागरिकों ने राजेन्द्र कुमार सिंह एवं सत्येन्द्र कुमार सिंह के सहयोग से यह अद्भुत एवं अपूर्व मानवीय कार्यों को अंजाम दिया।
मानव सेवा सुश्रुषा को स्थायित्व प्रदान करने के लिये सत्येन्द्र कुमार सिंह ने ‘मानव कल्याण समिति‘ की स्थापना की थी। इस संस्था के माध्यम से लगभग 500 नेत्ररोग निदान एवं महिला रोग निदान शिविर आयोजित किया गया था। वे लायंस क्लब अकलतरा के संस्थापक थे। उनकी रुचि भ्रमण, ललितकला, पुरातत्व, ऐतिहासिक स्थलों, छत्तीसगढ़ के लोकजीवन एवं संस्कृति से उनका निकट का जीवंत संपर्क रहा। मशीनों से उनका विशेष अनुराग जग-जाहिर था। मोटर, प्रोजेक्टर, ग्रामोफोन, रेड़ियो, सायकल, गैसबत्ती, कैमरा अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरणों में विशेष दक्षता हासिल थी। फोटोग्राफी एवं पत्रकरिता में उनकी दिलचस्पी सर्वविदित थी। सामयिकी ंएवं पशु-पक्षियों के बारे में उनकी लेखनी खूब धारदार थी जो जनजीवन को प्रभावित किये बिना नहीं रहती थी। उन्होंने बिलासपुर टाइम्स के स्थायी स्तंभ ‘तिराहे से‘ के लिये काफी कलम चलाई, वे दैनिक नवभारत एवं भास्कर में भी छपते रहे हैं।
सत्येन्द्र कुमार सिंह का निधन बिलासपुर में 13.07.1999 में हुआ था। अद्भुत स्मरणशक्ति के स्वामी महान चिंतक एवं विचारक सत्येन्द्र कुमार सिंह, गीता के निष्काम कर्मयोग के सिद्धांत को जिये, नेपथ्य में रहकर नींव का पत्थर बनकर कर्तव्य के पथ पर चलने वालों के लिये उनका सारा जीवन अनुकरणीय है।
रविन्द्र कुमार सिंह बैस
पोस्ट - अकलतरा (आजाद चौक)
जिला - जॉजगीर चांपा