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Wednesday, April 25, 2012

बेरोजगारी

तब जो कुछ करता था, वह 'क्‍या करते हो?' के जवाब में पूरा नहीं पड़ता था, इसलिए 'बेरोजगार' शब्‍द टालने के लिए ही नहीं, तब उसकी तासीर समझने में भी काम आया था। लगभग बिना प्रयोजन तब लिखा अपना यह नोट 'कोरबा' के साथ मिल गया, ब्‍लागरी होती तो तभी लग जाता, अब सही...

बिलासपुर जिले के कोरबा-गेवरा की खुली कोयला खदान, दुनिया की अपने तरह की सबसे बड़ी खदानें हैं, जिनमें कभी न बुझने वाली आग धधकती रहती है, और कोयले के आग की तासीर भी कुछ खास होती है। राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम, एनटीपीसी, कोरबा के छंटनीशुदा कर्मचारी, 33 वर्षीय कामेश्वर सिंह ने नियमित सेवा में लिये जाने की मांग पूरी न होने के कारण 26 फरवरी को शाम 6 बजे आत्मदाह की घोषणा की थी।

समय से पहले लोग वहां जमा होने लगे और उत्तेजना बढ़ने लगी थी। उधर कामेश्‍वर एनटीपीसी कार्यालय के पास नाले पर किनारे-किनारे लुकता-छिपता आगे बढ़ रहा था। उसने मैले-कुचैले कपड़े पहन रखे थे, उसकी ओर किसी का ध्यान नहीं था। 6 बजे के कुछ ही मिनटों बाद वह गेट नं. 2 पर प्रकट हुआ और माचिस की तीली से पेट्रोल बुझे अपने कपड़ो में आग लगा ली। लोगों का ध्यान इस भभकते शोले की ओर गया। कुछ ने रेत और धूल से आग बुझाने की कोशिश भी की किन्तु देखते-देखते वह 80 प्रतिशत झुलस चुका था, उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया। 22 घंटे की उसकी इस जद्दोजहद ने दम तोड़ा, 27 फरवरी को शाम 4 बजे और उसने अपनी धमकी को इस तरह कारगर कर दिखाया।

इस दुर्घटना की पृष्ठभूमि समझने के लिये कुछ दिन पीछे जाना होगा। कामेश्वर सिंह ग्राम रेवा, थाना सरैया, जिला मुजफ्फरनगर, बिहार का निवासी था। सन 1975 में मुजफ्फरपुर से बीए किया। 1978 तक बी.टी.ट्रेनिंग की। नवंबर 1978 में किसी रिश्तेदार के कहने-सुनने पर उसे एनटीपीसी में काम मिल जाने की बात बनी। 80 वर्षीया विधवा मां व 18 वर्षीय अपाहिज भाई का सहारा यह युवक कोरबा चला आया।

तब से 1 जनवरी 81 तक उसे समय-समय पर दैनिक भुगतान पर काम में रखा जाता रहा। कुछ अन्य सहकर्मियों की भांति उसे काम पर नियमित नहीं किया गया तो उसने इस आशय का एक पत्र एनटीपीसी के महाप्रबंधक को लिखा। पत्र पर कोई आशतीत प्रतिक्रिया न देखकर 16 जनवरी को आमरण अनशन पर बैठ गया। 2 दिन पश्चात ही पुलिस ने उस पर दफा 309, आत्महत्या का मामला बना दिया। इसके बाद उसका धैर्य जवाब देने लगा और अंततः उसने आत्मदाह की घोषणा कर डाली, किन्तु 2 फरवरी को महाप्रबंधक को एक पत्र में उसने लिखा कि आपके मौखिक आश्वासन पर अपने आत्मदाह की घोषणा वापस लेता हूं लेकिन आत्मदाह की तारीख 26 फरवरी निकट आते-आते उसने पुनः आत्मदाह की घोषणा कर दी।

इस घटना के बाद आत्मदाह के विभिन्न मसले इतने विवादग्रस्त हो गए कि कुछ मूल तथ्यों को छोड़ किसी भी बात पर दो मत एक जैसे नहीं है। कामेश्वर किस अमानवीयता का शिकार हुआ कि उसने अपना सहेजा-संभाला धैर्य पुनः खो डाला, कहना जरा मुश्किल है। किन्तु उसके आत्मदाह के पश्चात एनटीपीसी की ओर से दिये गये ब्यौरे के कुछ वाक्यों से स्थिति का काफी कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है। जैसे- (एनटीपीसी की) ''फिर मानसिकता यह भी थी कि कोई क्यों आत्मदाह करेगा।'' ''प्रबंध तंत्र द्वारा काम पर वापस लेने के आश्वासन के उत्तर में वे कहते रहे कि अब वे एनटीपीसी में नौकरी करने में रूचि नहीं रखते। अंततः वे कतिपय तत्वों के बहकावे में आकर प्रशासन की आंखों में धूल झोंककर आत्मदाह करने में सफल रहे'' आदि। यह भी उल्लेखनीय है कि आयुक्त, जिलाधीश और पुलिस उपमहानिरीक्षक उस दिन कोरबा में ही मौजूद थे।

अब इस घटना पर विभिन्न तरह की चर्चाएं हो रही हैं। एक नेता ने तो इस कांड की न्यायिक जांच की मांग करते हुए स्वयं भी आत्मदाह करने की घोषणा कर दी है। न जाने और किन-किन स्वार्थों की रोटी इस आग में सेंकी जायेगी। हो सकता है सरकार की ओर से मृतक के परिवार को कुछ सहायता दे दी जाय और एनटीपीसी प्रशासन को कुछ कड़े निर्देश दे दिये जाएं। किन्तु अब कामेश्वर नहीं हैं, लेकिन उनके पीछे उठने वाले सवाल जरूर हैं। आत्मदाह की स्थितियां पैदा करने के कारण और तात्‍कालिक परिस्थितियां, इसे रोका क्‍यों नहीं जा सका और सवाल यह भी कि एक बेरोजगार को अपनी स्थिति से ज्यादा सुखद जलकर मर जाना लगे तो बेरोजगारी के आग की तासीर क्या होगी।