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Monday, March 19, 2012

ताला और तुली

सन 2003, अप्रैल की पहली तारीख, बिलासपुर में अपनी पुस्तक ''इंडिया इन स्लो मोशन'' पर व्याख्‍यान में मार्क तुली ने मापी-तुली, लेकिन जरा मजाकिया ढंग से बातें कहीं, सवाल-जवाब भी हुए। कार्यक्रम के बाद चाय पर चर्चा के लिए कुलपति गिरिजेश पंत जी ने मुझे रोक लिया। बातचीत के दौरान अपने शहर आए मेहमान के लिए मेजबान बनते हुए मैंने अगले दिन का कार्यक्रम जानना चाहा, पता चला कि दोपहर भोजन के बाद अमरकंटक के लिए रवानगी होगी। सुबह के खाली समय में 'ताला' देख लेना तय हुआ और यह जिम्मेदारी स्वाभाविक ही मुझ पर आई।

अगली सुबह बातें होती रहीं। आपरेशन ब्लू स्टार, अयोध्या विवाद, भोपाल गैस त्रासदी जैसे नाजुक मौकों पर और खास कर आपातकाल के दौरान बीबीसी ट्‌यून करने की याद अधिक आती। किस तरह हमारे लिए मार्क तुली का नाम बीबीसी का पर्याय रहा। 1977 के विधानसभा चुनावों में बिलासपुर जिले के 19 सीटों में से 13 पर कांग्रेस और 6 पर जनता पार्टी के प्रत्याशी विजयी हुए थे, इस पर बीबीसी की टिप्पणी थी- ''मध्यप्रदेश का बिलासपुर अनूठा जिला है जिसने पूरे देश से अलग फैसला दिया है। मैंने यह भी याद दिलाया कि इसी चुनाव में यहां एक ऐसे प्रत्याशी जीते, जो परचा भरने के पहले से परिणाम आने के बाद तक इलाज के लिए बंबई के अस्पताल में भरती रहे, अकलतरा क्षेत्र से राजेन्द्र कुमार सिंह जी।

आगे बातों में जेनकिन्‍स, एग्‍न्‍यू, टेम्‍पल, चीजम, नेलसन, डि-ब्रेट, कनिंघम, बेग्‍लर, वी बॉल और फॉरसिथ, रसेल आदि ब्रिटिश अधिकारियों की रिपोर्ट्‌स-पुस्‍तकें के साथ विलियम डेलरिम्पल के लेखन से उनके लिखे की तुलना होती रही, किसमें कितनी समझ, आत्मीयता और गहराई है। कौन तथ्यपूर्ण है, किसका विश्लेषण और किसकी व्याख्‍या कितनी सटीक मानी जा सकती है, आदि। इस दौरान उनकी सह-लेखिका मित्र जिलियन राइट भी साथ थीं, पता चला कि वे न सिर्फ हिन्दी बोल-लिख पाती हैं, बल्कि आंचलिक उपन्यासों का गहराई से अध्ययन और प्रसिद्ध 'राग दरबारी' का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया है। हम ताला पहुंच गए, रूद्र शिव प्रतिमा के सामने।
भारतीय कला के डेढ़ हजार साल पुराने इस अनूठे कला केन्‍द्र की रूद्रशिव कही जाने वाली रौद्रभाव की यह भारी-भरकम प्रतिमा ढाई मीटर से अधिक ऊंची है। इसे महाशिव, परमशिव या पशुपतिनाथ भी कहा गया है। सिर पर नागयुग्म की भारी पगड़ी है। जीव-जन्तुओं से रूपान्तरित चेहरे के विभिन्न अवयवों के साथ वक्ष पर दो, उदर पर एक तथा जांघ पर चार मानव मुखों के अतिरिक्त दोनों घुटनों पर सिंह मुख अंकित हैं। ठुड्‌ढी-दाढ़ी पर केकड़ा, मूंछ के स्थान पर दो मछलियां तथा नाक व भौंह का रूप गिरगिट का है। आंख की पलकें मेढक या सिंह का मुखविवर और नेत्र गोलक अंडे हैं। कान के स्थान पर मोर, कंधे मकर मुख, भुजाएं हाथी के सूंढ सदृश और हाथों की उंगलियों पर सर्पमुख हैं। शिव के स्वधिष्ठित संयमी पुरूष, पशुपति रूपांकन में कछुए के गर्दन और सिर को उर्द्धरेतस और अंडकोष को घंटी सदृश लटके हुए जोंक आकार दिया गया है।
मार्क तुली ने छत्‍तीसगढ़ डायरी शीर्षक से 21 अप्रैल 2003 के आउटलुक में लिखा।
ताला और इस मूर्ति पर जिलियन राइट ने अपनी टिप्पणी का आरंभ हिन्दी से किया और मार्क तुली ने लिखा-

We were delighted to be shown this unique image. Neither of us have ever seen anything similar to it. There is also so much else to see here. Being a remote site and on the banks of a perennial river Tala still retain a peacefulness a tranquility, denied to better known sites. It may be rather selfish to say this, I personally can't help hoping it never makes it to tourist map.
We were particularly privileged to be shown the site by Shri Rahul Kumar Singh who has such a deep knowledge of all that there is to see.
Mark Tully
2/4/2003

संयोग ही था कि कागजात खोजते हुए यह मिल गया। आखिरी वाक्य- 'पंच लाइन', पर ध्यान गया तो सहेजना और सार्वजनिक करना जरूरी लगा, वैसे भी सर मार्क तुली जैसे पत्रकार के लिखे को प्रकाशित करने का अवसर जो मिल रहा है।

इस एक प्रतिमा पर पूरी पुस्‍तक भी छपी है, ताला के कुछ अच्‍छे फोटोग्राफ्स और जानकारियां यहां हैं।