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Thursday, June 10, 2010

सास गारी देवे

दिल्ली-6 पर मिली टिप्पणियों के बाद 'सास गारी ... ' पारंपरिक छत्तीसगढ़ी लोक गीत का मूलतः रिकार्डेड 'ऑडियो' और 'टेक्स्ट' देना जरूरी लगा, इसी दौरान एक छत्तीसगढ़ी फिल्म में फिर से यह गीत आया है। हबीब तनवीर जी की टीम द्वारा गाये इस गीत के बोल हैं -

सास गारी देवे, ननंद मुंह लेवे, देवर बाबू मोर।
संइया गारी देवे, परोसी गम लेवे, करार गोंदा फूल।
केरा बारी में डेरा देबो चले के बेरा हो॥
आए बेपारी गाड़ी म चढ़िके।
तो ल आरती उतारव थारी म धरिके हो॥ करार...
टिकली रे पइसा ल बीनी लेइतेंव।
मोर सइकिल के चढ़इया ल चिन्ही लेइतेंव ग॥ करार...
राम धरे बरछी लखन धरे बान।
सीता माई के खोजन बर निकलगे हनुमान ग॥ करार...
पहिरे ल पनही खाये ल बीरा पान।
मोर रइपुर के रहइया चल दिस पाकिस्तान ग॥ करार...

इस सिलसिले में बात करते हुए सर्वश्री लाल रामकुमार सिंह, मिर्जा मसूद, दीपक हटवार, महेश वर्मा, अनूप रंजन पांडे, राकेश तिवारी, अनुज शर्मा, अनुमोद राजवैद्य आदि ने और भी कई जानकारियां दीं। जैसे - आज से लगभग 50 साल पहले छत्तीसगढ़ी का पहला 78 आरपीएम (तवा) रिकार्ड बना, जिसके 'ए' साइड में श्री अमृतलाल परमार का गाया गीत 'हाय रे डुमर खोला, छतिया ल बान मारय, तरसत हे चोला' तथा 'बी' साइड में 'नरवा तीर म मोर कारी संवरेंगी संवर पंडरी, टोरथे भाजी नरवा तीर म' गीत था।

लगभग 40 साल पुराने रिकार्ड के 'ए' साइड में 'तो ल जोगी जानेंव रे भाई, तो ल साधु जानेंव ग' था, जिसके 'बी' साइड में यह गीत 'सास गारी देवे' था, इस गीत के समूह स्वर में हबीब जी की आवाज साफ पहचानी जा सकती है।

पूरे क्रम में इस गीत के गीतकार रूप में श्री गंगाराम शिवारे अथवा गायिकाओं के रूप में जोशी बहनों का एकदम सीधा कोई ताल्लुक नहीं जुड़ सका। श्री शिवारे के गीतों और जोशी बहनों की गायकी, विशेषकर सुश्री रमादत्त, जो गायकी के साथ लोक कलाकार कल्याण में भी अत्यंत सक्रिय हैं, की सराहना आमतौर पर सभी ने की।

फौरी जरूरत नहीं हुई इसलिए व्यक्तिगत तौर पर किसी जानकारी की मैंने स्वयं पुष्टि नहीं की है। बहरहाल अब, जब कम से कम 50 छत्तीसगढ़ी फिल्में बन चुकी हैं और छत्तीसगढ़ी गीतों के रिकार्ड बनने का 50 साल का इतिहास है तब जरूरत बनने लगी है कि इस पर कोई गंभीर, अधिकृत अध्ययन हो।

Tuesday, April 27, 2010

दिल्ली-6


छत्तीसगढ़ी लोक अस्मिता और उसकी पहचान को लेकर जितने सवाल और विचार 'दिल्ली-6' के इस गीत सिलसिले में उठे, उनमें स्मृति की गहराई तो थी, व्यापक संदर्भों की चर्चा भी हुई लेकिन पूरे मामले में उल्लेख का इकहरापन ही नजर आया, यानि ज्यादातर हवाले और संदर्भ खुद को जोड़कर देखे जाते रहे। इस पूरे दौर में नये पुराने-नाम आते रहे, लेकिन वह नदारद रहा, जो अधिक जरूरी था, वह यह कि इस बहाने हम शोध का गंभीर नजरिया अपनाते हुए, अपने लोकगीतों की परम्परा में उनकी याद दुहराते, जो इस और इस तरह के अन्य गीतों के माध्यम से छत्तीसगढ़ी लोक सुर संसार के संवाहक रहे।

दिल्ली-6 के गीत 'सास गारी देवै' की बात की जाए तो इस संदर्भ में हबीब तनवीर को तो याद किया ही जाएगा, लेकिन पूरे महत्व के साथ भुलवाराम यादव, बृजलाल लेंझवार, लालूराम और बरसन बाई, चम्पा जैसे नामों का बार-बार उल्लेख जरूरी है। इन दोनों समूहों की अलग-अलग जानकारी मिल रही है, जिनके स्वर में यह गीत रिकार्ड हुआ है, तो यह वक्त है, इस गीत और उसके गायकों के बहाने अपनी परम्परा को खंगालने-टटोलने का।

ददरिया गीत की यह पारंपरिक कृति, लोक की थाती है। ददरिया में सवाल-जवाब किस्म की आशु तुकबंदियां होती है, और इसलिए गायक के साथ जोड़-घटाव और परिवर्तन आसानी से संभव होता है और परम्परा में यह हर गाने वाले के साथ अपना हो जाता है। ददरिया, श्रम-श्रृंगार गीत कहा जा सकता है, जिसका श्रम 'मैन पावर' का 'लेबर' नहीं, बल्कि जीवन में समाहित सुर-ताल है। ऐसा श्रम, जिसका पसीना सौंदर्य का रस है।

इस ददरिया गीत 'सास गारी देवै' का एक सिलसिला हबीब तनवीर तक पहुंचा और कोई 40 साल पहले रिकार्ड बनकर आकाशवाणी से गूंजता रहा और दूसरा रघुवीर यादव से होकर ए आर रहमान तक गया, भूले जा चुके से इस गीत की प्रासंगिकता फिर से बनी। जब निजता और मौलिकता की सीमा लांघते हुए इस गीत को अलग पहचान मिली है तो यह मौका, अपनी इकहरी होती याद को संदर्भ के साथ व्यापक करने का, आत्म सम्मान को परम्परा के सम्मान में समाहित करने का और लोक-संगीत में जीवन का लय पाकर संकीर्ण स्व से निकलकर अपनी समष्टि की ओर दृष्टिपात का है, जो लोक-परम्परा बनकर संस्कृति को संबल देता है।