राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 78 पर जशपुर जिला मुख्यालय से रायगढ़ जाते हुए 45 किलोमीटर दूर बसा गांव, कुनकुरी। जशपुर क्षेत्र में ईसाई मिशनरी, उन्नीसवीं सदी से सक्रिय रहीं, तब यहां रोमन कैथोलिक और इवैंजेलिकल लुथेरन मिशन की गतिविधियां रांची केन्द्र से संचालित थी। इस अंचल का सबसे पुराना मिशन गिनाबहार (जशपुर, हॉकी की नर्सरी कहा जाता और ओलम्पियन हॉकी खिलाड़ी विंसेंट लकड़ा इसी गांव के थे।) का क्रिस्तोपाल आश्रम सन 1921 में स्थापित हुआ और दिसंबर 1951 में रायगढ़ अंबिकापुर कैथोलिक डायोसीज, कुनकुरी की स्थापना हुई। 1951 की जनगणना के अनुसार इस अंचल में ईसाई धर्मावलंबियों की संख्या 13873 थी जो 1961 में 90359 हो गई।
सन 2010 के क्रिसमस सप्ताह में कुनकुरी के रास्ते सफर तय करते हुए याद आया, समझ की उम्र तक पूरे हफ्ते की छुट्टी वाला यही एक मसीही पर्व हम जानते थे। इसके अलावा भी कोई ऐसा सप्ताह होता है, पता नहीं चलता था, क्योंकि खजूर पर्व और ईस्टर, दोनों छुट्टी के दिन रविवार को होते और गुड फ्राइडे से इस तरह परिचित थे कि इस फ्राइडे को छुट्टी होती है इसलिए यह गुड है। जैसे नासमझी की उम्र में किसी नेता, प्रतिष्ठित व्यक्ति के गुजर जाने का मतलब और महत्व, आकस्मिक छुट्टी होता। बाद में पता चला कि गुड फ्राइडे भी मृत्यु का ही अवकाश है।
17 अप्रैल 2011, खजूर का पर्व। चालीस दिवसीय उपवास काल के अंतिम दिन प्रभु यीशु के येरुशलम प्रवेश की स्मृति का पाम संडे। इसके बाद आरंभ होता है, पवित्र सप्ताह या पेशन वीक, जिसमें अंतिम भोज गुरुवार, सूली पर लटकाए जाने, क्रुसिफिकेशन का गुड फ्राइडे, मौन शनिवार और अगले रविवार, 24 अप्रैल को ईस्टर, मृतोत्थान या पुनरुत्थान दिवस है। 21 मार्च के पश्चात, पास्का की पूर्णिमा के बाद आने वाले 'वारों' पर तिथियां तय होती हैं। इस साल का अठवारा 17 से 24 अप्रैल, रविवार से रविवार तक है, ईस्टर अष्टक यानि ऑक्टेव ऑफ ईस्टर।
प्रत्येक समुदाय और संस्कृति में प्रकृति की इस रूप-दशा यानि वसंत और पूर्णिमा का खास महत्व है। इसी दौरान ज्यादातर मान्यताओं में नया साल आरंभ होता है। ईसाई विश्वास में यह प्रभु यीशु की मृत्यु और पुनः जीवित होने से जुड़ा है। वैसे ईस्टर, ईओस्तर या ओइस्तर उच्चारित किए जाने वाले शब्द से बना है, जो वसंत की यूरोपीय देवी का नाम है और जर्मन कैलेंडर का अप्रैल महीना इओस्तर मोनाथ कहलाता है।
कुनकुरी पहुंच गए। रोजरी की रानी महागिरजाघर का परिसर, क्रिसमस पर विशेष रूप से सजा-धजा (सजावट में ध्वज का विशेष महत्व होता है, शायद इसीलिए सजा के साथ युति है धजा)।
यह एशिया महाद्वीप के दूसरे सबसे बड़े गिरजाघर के रूप में प्रसिद्ध है, जहां 7 हजार से अधिक लोग (यह संख्या 10 हजार भी कही जाती है) एक साथ बैठ कर प्रार्थना कर सकते हैं। 1962 में बिशप स्टानिसलास तिग्गा ने इसकी नींव रखी लेकिन शुरुआती काम के बाद 1969 तक निर्माण स्थगित रहा, क्योंकि इस्तेमाल किए जा रहे स्थानीय सतपुड़िया और धूमाडांड पहाड़ के पत्थर में यूरेनियम होना बताया गया। इन पत्थरों का, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने की शंका निर्मूल मानी गई तब 1969 में फिर से काम आरंभ हुआ। 1971 में भीतरी भाग पूरा हो गया और यहां नियमित रविवारीय पूजा-प्रार्थना होने लगी।
1971 से 1978 तक दूसरी बार अर्थाभाव के कारण काम रुका रहा। 27 अक्टूबर 1979 को निर्माण पूरा हुआ। लगभग 3400 वर्गफुट में निर्मित इस अनूठी संरचना के वास्तुकार जे एन करसी हैं। यहां बिशप स्टानिसलास तिग्गा के अलावा तीन अन्य बिशप दफनाए गए हैं।
अब फिर से कहूं- भूत की नींव पर गगनचुम्बी भविष्य। गुड फ्राइडे, ईस्टर की जीवन संभावनायुक्त मृत्यु का पर्व। किसी एक संस्कृति का नहीं समूची प्रकृति का उत्सव। चंद्रकला के साथ ऋत् चक्र का, शिशिर के अवसान पर नये वसंत के जन्म-पर्व का अभिनंदन।
कुनकुरी के फादर सिकंदर किसपोट्टा द्वारा दी गई जानकारियों के लिए उनका आभार। चलते-चलते थोड़ा शब्द विलास। किस का अर्थ है वराह, पोट्टा यानि आंत-अंतड़ियां। सिकंदर शब्द गड्ड-मड्ड हो रहा है, लेकिन क्रम कुछ इस तरह याद आता है। हमारा चन्द्रगुप्त, यूनानी सेण्ड्रॉकोट्टस बनता है वैसे ही मूल यूनानी अलेक्जेंडर, भगवतशरण उपाध्याय का अलिकसुंदर, महामहोपाध्याय रामावतार शर्मा का अलीकचन्द्र फिर जयशंकर प्रसाद का अलक्षेन्द्र और तब यह फारसी उच्चारण सिकंदर। (महेन्द्र वर्मा जी ने टिप्पणी कर सिकंदर के लिए प्रयुक्त दो अन्य शब्द 'अलेक्सांद्र और इस्कंदर' जोड़े हैं, उनका आभार।)