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Sunday, November 6, 2022

खजानों की खोज

पुरातत्व के साथ रहस्य, गुफा, सुरंग और चमत्कारों की कहानी, उसमें रंग भरती है। खुदाई, हनुमान छाप, राम दरबार सिक्के ठगी के साधन बनते हैं। अभिलेख और चित्रों-आकृतियों को बीजक, गुप्त खजाने का पता मान लिया जाता है। रमल, नजूमी, ज्योतिष, बैगा, आंख में खास तरह का काजल आंज कर जमीन में गड़ा धन देख लेने वालों की भी जाने-अनजाने हवा बनाई जाती है।

पुरातत्व में खजाना, चोरी, ठगी और इससे जुड़े अपराध से दो-चार होना पड़ता है। ऐसे कई प्रकरणों में से एक, 1997 में जबलपुर की घटना है, जिसमें भेड़ाघाट के रास्ते में बड़ी तादाद में गड़ा धन, सिक्के मिले थे। तत्कालीन विभागीय मुद्राशास्त्री जे.पी. जैन जी के द्वारा इस दफीने की सामग्री के परीक्षण में मैं साथ था। ‘कनक कनक ते सौ गुनी...‘ पता लगा कि जिन्हें भी यह सामग्री मिली, बंटवारा हुआ, उसमें से लगभग सभी के साथ कोई न कोई हादसा हुआ और इनमें से एक अनिष्ट आशंकाग्रस्त ने तो कुछ सोने की अशरफियां थाने ला कर खुद जमा कराईं।

ऐसी घटनाओं से पुरातत्व में लोगों की रुचि पैदा की जा सकती है, यह बिलासपुर के वरिष्ठ पत्रकार महेन्द्र दुबे जी ने रेखांकित किया। राजिम अंचल के निवासी दुबे जी, संत कवि पवन दीवान के सहयोगी रहे। छत्तीसगढ़ी अस्मिता के घोर-प्रबल हिमायती। दुबे जी, नवभारत समाचार पत्र से जुड़े रहे, बल्कि तब के संपादक गोविंदलाल वोरा जी से। समय बदल रहा था, बिलासपुर के नवभारत संवाददाता बी.आर. यादव जी विधायक और फिर मंत्री बने। मोतीलाल वोरा जी मुख्यमंत्री बने, तब उनके भाई गोविंदलाल वोरा जी ने अपना समाचार पत्र ‘अमृत संदेश‘ आरंभ किया। दुबे जी ‘अमृत संदेश‘ में आ गए। सामान्यतः कम बोलने वाले, मुस्कुराते दुबे जी की सजगता की चुगली उनकी चंचल आंखें कर देती थीं। मुलाकातों में समाचार, खबर-असर, न्यूज-व्यूज जैसी प्रेस-पत्रकारिता बातों-बातों में कह जाते। ऐसी ही बातों के दौरान कटघोरा में घटी घटना के समाचार एंगल से अलग, उन्हें इसमें एक्सक्लूसिव दिखा। लंबी बैठक की, नोट्स लिए और यह सामने आया-

बिलासपुर अंचल के ऐतिहासिक खजानों की चोरियां इस तरह हुयीं

भाजपा नेता श्री कृष्णकुमार पांडे को कटघोरा पुलिस ने उनके साथियों सहित कल्चुरी शासकों की प्रथम राजघानी तुमान से ५ कि.मी. दूर जटाशंकरी नदी एवं झाबर नाला के संगम पर स्थित नगोई ग्राम के ऐतिहासिक महत्व के टीले में खजाने की खोज में खुदाई करते हुये गिरफ्तार किया है। बताया जाता है कि तुमान में निवास कर रहे एक साधु ने श्री पांडे को उक्त टीले में खजाना होने की जानकारी दी थी। इसके पूर्व भी साधु ने तुमान गांव के एक कृषक को ऐतिहासिक स्थल सतखंडा महल के समीप खजाना होने का संकेत दिया था जहां कृषक को मात्र सूर्य की एक मूर्ति मिली।

ईसा पूर्व ७ वीं शताब्दी से लेकर आज तक की ऐतिहासिक किवदंतियों से भरपूर इस अंचल में खजाने की खोज कोई नयी बात नहीं है। बैगा गुनिया या तथा कथित ग्रामवासियों ने ऐतिहासिक स्थलों की खुदाई की परंतु खजाना उन्हें नहीं मिला। खजाना उन्हीं को मिला जिन्होंने इस के लिये हाथ पैर नहीं मारे। पुरातत्व विभाग के एक संदर्भ ग्रंथ के अनुसार आजादी पूर्व १९३० में सोनसरी ग्राम में सोने के ६०० सिक्के मिलने के प्रमाण मिलते हैं। ये सिक्के त्रिपुरी के कल्चुरी शासक गांगेयदेव, रतनपुर के कलचुरी शासक जाजल्लदेव, रत्नदेव, पृथ्वीदेव, बस्तर के नागवंशी शासक सोमेश्वर एवं गोविंद चंद्र के काल के हैं। तब सभी सिक्के नागपुर संग्रहालय में जमा करा दिये गये। राज्य शासन को चाहिये कि अंचल के सिक्के को नागपुर से यहां स्थानांतरित करे।

अंचल में खजाना मिलने और उसके गायब होने की एक दिलचस्प घटना जांजगीर के समीप पचेड़ा गांव की है जहां एक बैगा की सलाह पर मनहरण बसाइत, गिरजानंद, पंचराम, माखन, शिवनारायण, बुडगा, कौशल, गेंदराम चौहान आदि ९ व्यक्तियों ने घोर अंधेरी रात्रि में एक खेत की खुदाई की। खेत मालिक मनहरण ने पुलिस के समक्ष स्वीकार किया कि खेत की खुदाई में सोने के सिक्कों से भरा हुआ एक बटलोही मिला। रात में ही बटलोही घर लाया गया और बैगा के सामने सिक्कों की गिरजानंद के घर में गिनती प्रारंभ हुयी। अभी वे ४०० सिक्के गिन ही पाये थे कि माखन बैगा ने उसे प्रसाद दिया जिसके खाने से वह मूर्छित हो गया और सारे सिक्के गायब हो गये। पुलिस जांच के दौरान गिरजानंद ने भी स्वीकार किया कि बटलोही में ३६००० सिक्के थे। ये सिक्के कहां गये यह आज तक पता नहीं लग सका है। अलबत्ता पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि शिवनारायण, बुडगा, कौशल, गेंदराम नैला से गायब हैं। ये सभी अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं। पुलिस ने मनहरण के बड़े भाई गौकरण से भी पूछताछ की थी जिन्होंने स्वीकार किया कि उसकी मां ने खेत में खजाना होने की जानकारी दी थी परंतु हमने कभी खुदाई करने की आवश्यकता नहीं समझी। खेत बंटवारा के समय मनहरण और उसके बीच यह तय हुआ था कि जब कभी भी खजाने की खुदाई की जावेगी प्राप्त धन दोनों के बीच बराबर बंटवारा होगा। बटवारे में खेत मनहरण को मिला था। 

पचेडा गांव के इस रहस्यमय खजाना की प्रथम सूचना २६.१२.७७ को जांजगीर थाने में स्वयं मनहरण ने दर्ज कराई थी। पुलिस अधिकारियों के अतिरिक्त जांजगीर के तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी श्री मित्तल ने भी स्थल का निरीक्षण किया और जिला प्रशासन को प्रेषित रिपोर्ट में स्वीकार किया कि खेत में ७ फीट गड्ढा खोदा गया है। गड्ढे के आकार से आभास मिलता है कि यहां बटलोही रही होगी। परंतु सिक्के के बारे में उन्होंने भी चुप्पी साध ली। इसी तरह बैगा की सलाह पर कमरीद गांव के एक कृषक घसिया कुर्मी ने जमीन की खुदाई की जिसमें एक सोने की मूर्ति एवं सिक्के से भरा एक हंडा निकला। चर्चा रही कि उक्त कृषक ने मूर्ति के मात्र सिर भाग को ही नैला में १३००० रुपये में बेचा इस प्रकरण की भी पुलिस में रिपोर्ट हुयी परंतु खजाना हाथ नहीं लगा। अलबत्ता इस खजाने की एक अन्य जानकार उसी परिवार की एक महिला की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गयी।

कहते हैं कि किसी की तकदीर खुलती है कि अनायास खजाना उसके हाथों में आ जाता है। आठ वर्ष पूर्व ऐसे ही शिवरीनारायण के समीप केरा गांव के कुछ लोगों की तकदीर खुली और खजाना उनके हाथों में आ गया। गांव का एक कृषक मकालू पिता बुडगा गढ़ी जाने के रास्ते में स्थित एक झाड़ के नीचे पड़े एक पत्थर के ऊपर २१ अगस्त ७८ को प्रातः दस बजे बैठा हुआ था कि उसको विचार कौंधा कि क्यों न इस गड्ढे बने गोल पत्थर को ढेंकी का बाहना बनाने के लिये घर ले जावे। इस विचार के साथ ही जमीन से करीब ३ ऊपर उठे गोल पत्थर के मुंह में भरे हुये मिट्टी को निकालने के लिये हाथ चलाया तो उसके हाथों में अनायास मिट्टी से सने सोने के सिक्के लग गये। पहले तो उसकी समझ में नहीं आया और सिक्कों को पुनः रगड़ा तो सोने की चमक देख उसकी आंखें चौंधिया गयीं। फिर तो उसने जल्दी जल्दी मिट्टी हटाई और जितना उसकी जेब में आ सकता था खोल से सिक्का निकाला और घर चला गया। इस अनायास हाथ लगे खजाने की जानकारी गांव के अन्य लोगों को मिली तो वे भी तकदीर अजमाने के लिये उस ओर दौड़ पड़े। भय एवं आश्चर्य के वातावरण में जिससे जितना बन पड़ा पत्थर की खोल से सिक्का निकाला और घर की राह ली। इस बीच विद्यानंद ग्रामीण को समझाते रहा कि यह मकालू के भाग से मिला है उसे दे दो परंतु इसे सुनने का समय किसके पास था। सब अपनी जेब गरम करने में लगे हुये थे। मकालू पुनः घर से आया और जेब भरकर पुनः चला गया। इस भाग दौड़ के बीच खजाना मिलने की जानकारी जब गांव के कोटवार को लगी तो वह शिवरीनारायण थाने की ओर दौड़ा। रास्ते में ही उसे थानेदार मिल गया। 

जानकारी मिलते ही थानेदार भी बदहवास तकदीर अजमाने गांव की ओर दौड़ा और घटनास्थल पर १२ बड़े ४२ छोटे सोने के सिक्के जब्त किया। इसी तरह से जांजगीर के तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी श्री पी.सी. जैन को जब इस खजाने की भनक मिली तो वे भी गांव पहुंचे और ग्रामीणों को डांट डपट एवं जमीन देने का लालच देकर मकालू, विद्यानंद, लक्ष्मीप्रसाद, विजय, रमेश, चांदमल, झुमरु, मंगल बाई, जानकीदास, संतोष, मनहर, राजकुमार आदि से ४९ सिक्के बरामद किये। कहते हैं कि थानेदार एवं एस.डी.ओ. के हाथों इससे भी ज्यादा मात्रा में सोने के सिक्के हाथ लगे परंतु अधिकारियों ने इतनी ही बरामदगी बताई। गांव वालों के कथनानुसार एक फीट से अधिक गहरे पत्थर के खोल से करीब १० किलो वजन सोने के सिक्के निकले थे। बहरहाल यहां प्राप्त रतनपुर के कलचुरी शासकों जाजल्वदेव, रत्नदेव एवं पृथ्वीदेव कालीन ११ वीं एवं १२ वीं शताब्दी के २०० ग्राम वजन के १०३ सिक्के आज भी जबलपुर के संग्रहालय में छत्तीसगढ़ के वैभव पूर्ण अतीत को उजागर कर रहे हैं परंतु अतुल संपति को सदियों से अपने में समाहित किया खोल युक्त पत्थर के ढेंकी का बाहना तो नहीं बन सका अलबत्ता जिला कचहरी के नाजरात में पड़ा अपने अतीत पर अवश्य आंसू बहा रहा है।