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Tuesday, July 12, 2016

बलौदा और डीह


o बलौदा बाजार-भाटापारा जिले के अधिकृत पेज पर उल्लेख है कि बलौदा बाजार नामकरण के संबंध में प्रचलित किवदंती अनुसार पूर्व में यहां गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बरार आदि प्रांतों के व्यापारी बैल, भैंसा (बोदा) का क्रय विक्रय करने नगर के भैंसा पसरा में एकत्र होते थे जिसके फलस्वरूप इसका नाम बैलबोदा बाजार तथा कालांतर में बलौदा बाजार के रूप में प्रचलित हुआ। रायबहादुर हीरालाल ने इसे 'कदाचित् बलि+उद = बल्-युद से इसका नाम बलौदा हो गया हो', कहते हुए पानी न निकलने पर नरबलि का संकेत लिया था। इसी तरह उन्होंने बालोद को बाल बच्चा और उद पानी से बना मानते हुए तालाब बनाते समय बालक की बलि का अनुमान किया है।

छत्तीसगढ़ के विभिन्न मवेशी बाजारों में बलौदा बाजार महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है, इस तरह उपर्युक्त अंश के पहले हिस्से में कोई संदेह नहीं, किन्तु किंवदंती (या मान्य‍ता), कि फलस्वरूप नाम बैलबोदा बाजार फिर बलौदा बाजार हुआ, सामान्यतः और उच्चारण की दृष्टि से भी उपयुक्त प्रतीत नहीं होता। वैसे बोदा का अर्थ मूर्ख, गावदी या सुस्त होता है और कमअक्ल को बैल कह दिया जाता है। अनपढ़-नासमझ के लिए 'काला अक्षर भैंस बराबर' प्रचलित है। इस तरह बैल और भैंस-बोदा दोनों शब्द आम रूप से मवेशी की तरह मठ्ठर-ठस बुद्धि वाले व्यक्ति के लिए भी इस्तेमाल होता है। उल्लेखनीय यह भी कि ठस के निकट का शब्द शठ है, जिसका अर्थ मूढ़, बुद्धू, सुस्त या आलसी है, लेकिन अन्य अर्थ चालाक, धूर्त और मक्कार भी है।

बोदा शब्द भैंसा के अर्थ में यहां अपरिचित तो नहीं लेकिन प्रचलन में आम भी नहीं है। साथ ही बोदा शब्द‍ मवेशी बाजार और उसमें आए भैंस के लिए खास तौर पर प्रयुक्त होने की जानकारी मिलती है। यह ध्यान देना होगा कि छत्तीसगढ़ में एकाधिक बलौदा हैं साथ ही बलौदी, बालोद, संजारी बालोद, बालोदगहन, बेलोंदा, बेलोंदी, बोदा, बोंदा और समानार्थी ग्राम नाम भैंसा भी है। क्या इन सभी मिलते-जुलते नामों की व्युत्पत्ति समान है? यह भी विचारणीय है कि छत्तीसगढ़ में जल सूचक उद, उदा, दा जुड़कर बने ग्राम नाम बहुतायत में हैं, जैसे- बछौद, मरौद, लाहौद, चरौदा, कोहरौदा, मालखरौदा, चिखलदा, रिस्दा, परसदा। क्या बलौदा भी 'उदा' जुड़कर बना शब्द है?

इस संयोग का उल्लेख प्रासंगिक और संधान-सहायक हो सकता है कि यहां ग्राम की बसाहट और तालाब खुदवाने के साथ मवेशी व्यापारी नायक-बंजारों की कहानियां जुड़ी हैं। बलौदा को ऐसे संदर्भों के साथ जोड़ कर देखना निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए मददगार हो सकता है। मवेशी व्यापारी बंजारों ने देश को पैदल नापा है, विभिन्न स्थानों पर भरने वाले मवेशी बाजार का क्रम, साप्ताहिक कैलेंडर तथा प्रयुक्त रास्ते पुराने व्यापारिक पथ के अन्वेषण में सहायक हो सकते हैं और बोदा शब्द ने इन बंजारों के साथ चलते हुए लंबा सफर तय किया होगा इसलिए मत-भिन्नता के साथ बलौदा बाजार नाम, इस यात्रा का पड़ाव तथा नाम-व्युत्पत्ति पर विचार का भी ठौर जरूर है।

o 'डीह' का तात्पर्य 'लोगों के बसने का ठौर-ठिकाना' जैसा कुछ होना चाहिए, लेकिन कुछ प्रयोगों में थोड़ी उत्तल (खास कर पुरानी बस्ती के उजड़ जाने के कारण) भूमि, देवस्थान, पुरानी बसाहट का स्थान जैसा भी अर्थ ध्वनित होता है। डीह से डिहरी (ऑन सोन) - डेहरी (छत्तीसगढ़ी सीढ़ी) - देहरी मिलते-जुलते शब्द हैं, जिन्हें खींचतान कर पास लाया जा सकता है, लेकिन अर्थ एक-सा नहीं। सरगुजा में कोरवा जनजाति के दो वर्ग कहे जाते हैं- डिहरिया (गांववासी) और पहाड़िया (पहाड़वासी)। सरगुजा के प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थल डीपाडीह में डीह के साथ डीपा, संस्कृत के डीप्र (छत्तीसगढ़ी 'डिपरा') यानि ऊंचाई का समानार्थी हो सकता है। सरगुजा अंचल तथा झारखंड-उड़ीसा संलग्न क्षेत्र में भी कई ग्राम डीपा शब्दयुक्त हैं। छत्तीसगढ़ में एक अन्य प्रयोग है- डहरिया (ठाकुर), जिसका तात्पर्य संभवतः प्राचीन डाहल मंडल, गंगा और नर्मदा के बीच के क्षेत्र का अथवा कलचुरि राजवंश शासित त्रिपुरी (जबलपुर) के मैदानी प्रदेश, के निवासी है। छत्तीसगढ़ में कलचुरियों के प्रवेश का ऐतिहासिक क्रम भी तुमान होते हुए रतनपुर-रायपुर अर्थात् पहाडि़यों के रास्ते मैदान रहा है।