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Sunday, September 25, 2022

छत्तीसगढ़ में प्रकाशित कृतियां

रायपुर से प्रकाशित समाचार पत्र ‘राष्ट्रबंधु‘ में श्री हेमनाथ यदु के दो लेख प्रकाशित हुए थे। इन लेखों की प्रकाशन तिथि में व्यतिक्रम जान पड़ता है। ‘छत्तीसगढ़ में प्रकाशित कृतियां‘ 16-12-1976 में प्रकाशित हुआ, जिसके आरंभ में चौदहवीं शताब्दी और स्व. श्री गोपाल मिश्र का उल्लेख आया है। इस लेख के अंत में ‘(शेष आगामी अंक में)‘, उल्लिखित है, जबकि इसी शीर्षक का लेख इसके पहले 21-28/12/1976, दीपावली अंक में प्रकाशित हुआ था, इस लेख का आरंभ 1956 से ‘सहयोगी प्रकाशन‘ के माध्यम से होने वाले प्रकाशन से होता है। पत्रिका के संपादक यशस्वी हरि ठाकुर जी के योग्य उत्तराधिकारी-पुत्र श्री आशीष सिंह ने, न सिर्फ यह सब संभाल कर रखा है, बल्कि अपने पिता की तरह ही उदारतापूर्वक मुझ जैसे जिज्ञासुओं के लिए पूरी तहकीकात सहित सामग्री-जानकारी उपलब्ध कराते हैं। 

श्री हेमनाथ यदु (01.04.1928-05.04.1979) स्वयं छत्तीसगढ़ी के महत्वपूर्ण रचनाकार हैं। लोक निर्माण विभाग की शासकीय सेवा में रहे। उनकी रचनाएं ‘सोन चिररइया‘, छत्तीसगढ़ के गउ तिहार‘, ‘छत्तीसगढ़ी रामायण‘, ‘नवा सुरुज के अगवानी‘, ‘मन के कलपना‘ आदि हैं। 

लेख के आरंभ में ‘चौदहवीं शताब्दी‘ आया है, मगर इस काल के साथ किसी का नाम नहीं है, संभवतः यह धर्मदास के लिए है। इसके बाद गोपाल मिश्र का नाम आता है, जिनका जीवन काल संवत 1706-1781 (1649-1724) तथा उनकी कृति ‘खूब तमाशा‘ का रचनाकाल सन 1689 के आसपास माना जाता है। लेख में कृतियों के रचनाकाल, प्रकाशन वर्ष का उल्लेख नहीं है, साथ ही जान पड़ता है कि सूची कालक्रम अनुसार नहीं है। लेख में कुछ मुद्रण-प्रूफ त्रुटियां भी हैं, वह सुधिजनों के लिए अड़चन नहीं करेगा, मगर शोध आदि प्रयोजन हेतु इस ओर ध्यान रखना आवश्यक होगा। 

छत्तीसगढ़ में प्रकाशित कृतियां (16.12.1976) 

छत्तीसगढ़ में प्रकाशित कृतियां चौदहवीं शताब्दी से मिलती हैं। प्रकाशन में स्व० श्री गोपाल मिश्र का नाम प्रथम पंक्ति में लिखा जा सकता है। भक्त चिन्तामणि, खूब तमाशा, सुदामा चरित्र, रामप्रताप, जैमिनी अश्वमेध इनकी कृति है। स्व० माखनचंद्र मिश्र का छंदविलास, जगमोहन सिंह का श्यामास्वप्न, पं. मालिक त्रिवेदी द्वारा रचित रामराज्य वियोग एवं प्रबोधचन्द्रिका उल्लेखनीय है। छन्द रत्नमाला, रामलीला, मित्रकाव्य, रामविनोद, रामस्तव के रचयिता रघुबरदयाल है। उमराव बख्शी द्वारा रामायण नाटक रचित है। कुछ अन्य लेखकों की कृतियां इस प्रकार हैः- 

अज्ञातवास, सीता अन्वेषण, मधुकर सीकर - सरयू प्रसाद त्रिपाठी ‘मधुकर‘
सावित्री. गीतवल्लरी - विद्याभूषण मिश्र
अपराधी - यदुनन्दन प्रसाद श्रीवास्तव
ज्योति निर्झर- रूपनारायण ‘वेणु‘ 
अग्नि परीक्षा, लहर ओर चांद - देवीसिंह चौहान 
निशा - बृजभूषणलाल पाण्डे 
बिहारी सतसई को सतलरी, ज्ञानेश्वरी का अनुवाद, गीत गोविन्द का अनुवाद - वृजराज सिंह ठाकुर, माधो प्रसाद तिवारी 
चांपा दर्शन- हरिहर प्रसाद तिवारी
कवर्धा दर्पण - सम्पादक पं० गिरधर शर्मा
इस्पात के स्वर-सम्पादित डा० सच्चिदानन्द पाण्डेय एण्ड डा० मनराखन लाल साहू
समकालीन कविता सार्थकता और समझ-राजेन्द्र मिश्रा
रम्य रास, कल्पना कानन, जोशे फरहद, बैगडिया का राजकुमार - राजा चक्रधर सिंह
भूल भुलैया, छत्तीसगढ़ गौरव - सुरलाल पाण्डेय 
छन्द प्रभाकर - जगन्नाथ प्रसाद भानु
कृष्णायन, सत्य की खोज - बिसाहूराम 
छत्तीसगढ़ी हल्बी ओर भतरी का तुलनात्मक अध्ययन - भालचन्द्रराव तैलंग 
अन्तिम अध्याय - पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी 
वाह री ससुराल - घनश्याम प्रसाद ‘श्याम‘
भूख - स्वराज प्रसाद त्रिवेदी
शराबी - मुकुन्द केशव पाध्ये 
चन्द्रशेखर आजाद को जीवनी - विश्वनाथ वैशम्पायन
कामायनी एक अध्ययन, साहित्यकार की डायरी, चांद का मुंह टेढ़ा - गजानन्द माधव मुक्तिबोध
दुर्ग दर्पण- गोकुल प्रसाद
माया दर्पन - श्रीकांत
हरिना संवरी - मनहर चौहान
जानौ अतका बात - गयाराम साहू 
बलिदान - तुलाराम गोपाल

छत्तीसगढ़ से प्रकाशित कृतियां (21-28.12.1976)

छत्तीसगढ़ में प्रकाशन के अभाव में अनेकों कृतियां अप्रकाशित है। इस समस्या को हल करने के लिए सन् १९५६ में सहयोगी प्रकाशन का जन्म होता है। सहयोगी प्रकाशन के माध्यम से इस अंचल के कवि प्रथम बार पुस्तकाकार में प्रकाशित हुए। उनके द्वारा प्रकाशित निम्नलिखित कृतियां है। पता है सहयोगी प्रकाशन कंकाली पारा रायपुर। 

प्रकाशित कृतियों की सूची:-

१. नये स्वर १ सम्पादक हरि ठाकुर 
२. नये स्वर २ सम्पादक हरि ठाकुर 
३. नये स्वर ३ सम्पादक नन्दकिशोर तिवारी
४. गीतों के शिलालेख - हरि ठाकुर
५. नये विश्वास के बादल हरि ठाकुर 
६. लोहे का नगर - हरि ठाकुर 
७. कुंजबिहारी चौबे के गीत (छत्तीसगढ़ी)
८. सुआ गीत (संलकन - हेमनाथ यदु 
९. सुन्दर कांड (छत्तीसगढ़ी) हेमनाथ यदु
१०. किष्किंधा कांड (छत्तीसगढ़ी) हेमनाथ यदु 
११. रंहचुली (छत्तीसगढ़ी) भगतसिंह सोनी 
१२. छत्तीसगढ़ के रत्न- हरि ठाकुर
१३. संझौती के बेरा ( छत्तीसगढ़ी) - लखनलाल गुप्त 
१४. छत्तीसगढ़ी साहित्य का ऐतिहासिक अध्ययन - नन्दकिशोर तिवारी

ज्योति प्रकाशन के द्वारा निम्नांकित पुस्तकों का प्रकाशन किया गया। पता - सत्तीबाजार रायपुर है।

१. डोकरी के कहनी शिवशंकर शुक्ल
२. रधिया के कहनी - शिवशंकर शुक्ल
३. राजकुमारी नयना - शिवशंकर शुक्ल 
४. अक्कल हे फेर पइसा नइये - शिवशंकर शुक्ल
५. मोंगरा - शिवशंकर शुक्ल 
६. दियना के अंजोर - शिवशंकर शुक्ल 
७. छत्तीसगढ़ी लोकसाहित्य का सामाजिक अध्ययन डा. दयाशंकर शुक्ल 
८. भाभी का मन्दिर - शिवशंकर शुक्ल 

प्रकाशन के क्षेत्र में प्रयास प्रकाशन बिलासपुर का नाम भुलाया नहीं जा सकता। प्रयास प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की सूची निम्नानुसार है। 

१. प्रयास (काव्य संग्रह) सम्पादक डा. विनयकुमार पाठक 
२. नये गीत थिरकते बोल - काव्य संग्रह - सम्पादक डा. विनयकुमार पाठक
३. सुघ्धर गीत (छत्तीसगढ़ी) सम्पादक डा. विनयकुमार पाठक 
४. नवा सुरुज नवा अंजोर (छत्तीसगढ़ी) सम्पादक स्व. अखेचंद क्लांत
५. भोजली गीत छत्तीसगढ़ी) स्व. अखेचन्द क्लांत 
६. खौलता खून - सम्पादक डा. विनयकुमार पाठक
७. मैं भारत हू - सम्पादक डा. विनयकुमार पाठक 
८. जागिस छत्तीसगढ़ के माटी - गयाराम साहू 
९. चंदा उए अकास म (छत्तीसगढ़ी) - बृजलाल शुक्ला
१०. नव जागृति हो सबके मन में - श्याम कार्तिक चतुर्वेदी
११. जीवन मधु - श्याम कातिक चतुर्वेदी
१२. घरती के भगवान - सीताराम शर्मा
१३. चन्दा के छांव म - शकुन्तला शर्मा ‘रश्मि‘ 
१४. अब तो जागौ रे - गयाराम साहू 
१५. जला हुआ आदमी - कृष्ण नागपाल बूंद
१६. जंगल में भटकते यात्री - कृष्ण नागपाल बूंद
१७. फुटहा करम - ठा. हृदयसिंह चौहान
१८. छत्तीसगढ़ी लोक कथा - डा. विनयकुमार पाठक
१९. प्रबंध पाटल - डा. पालेश्वर शर्मा
२०. सुसक झन कुररी! सुरता ले - डा. पालेश्वर शर्मा
२१. वैदेही विछोह - कपिलनाथ कश्यप 
२२. नवा बिहान (छत्तीसगढ़ी) - भरतलाल तिवारी 
२३ छत्तीसगढ़ी साहित्य अऊ साहित्यकार - डा. विनयकुमार पाठक 
२४. भुइयां के पाकिस चूंदी - राजेन्द्रप्रसाद तिवारी 
२५. राम विवाह - टीकाराम स्वर्णकार 
२६. बेलपान (छत्तीसगढ़ी) - देवधर दास महन्त 
२७. कलस करवा - सतीश कुमार प्रजापति एवं संगमसागर 

छत्तीसगढ़ सहयोगी प्रकाशन के माध्यम से मात्र एक पुस्तक सोन चिरइया (छत्तीसगढ़ी) रचयिता हेमनाथ यदु का ही प्रकाशन हो पाया। इसी तरह साहित्य समागम जोरा रायपुर द्वारा सुमन संचय का ही प्रकाशन किया गया है। इसके सम्पादक है उदयकुमार साहू। 

कुछ अन्य फुटकर प्रकाशन का विवरण नीचे लिखे अनुसार है। 

दानलीला - सुन्दरलाल शर्मा 
दानलीला - बैजनाथ प्रसाद 
दानलीला - नर्मदाप्रसाद दुबे 
नागलीला - गोविन्दराव विट्ठल 
कांग्रेस आल्हा - पुरुषोत्तमलाल 
श्री मातेश्वरी गुटका - जगन्नाथ भानु 
लड़ाई के गीत - किशनलाल ढोटे 
राम केवट संवाद - द्वारिका प्रसाद तिवारी 
कुछु काही -‘‘- 
सुराज गीत -‘‘- 
फागुन गीत -‘‘- 
राम बनवास - श्यामलाल चतुर्वेदी 
सोन के माली - नारायणलाल परमार 
सुदामा चरित्र - फूलचन्द श्रीवास्तव 
ग्राम संगीत - -‘‘- 
गंवई के गीत - विमलकुमार पाठक 
सियान गोठ - स्व. कोदूराम दलित 
हीरू के कहनी - बंशीधर पांडेय 
महादेव के बिहाव - गयाप्रसाद बसोढ़िया 
छत्तीसगढ़ी लोक कहानियां - नारायणलाल परमार 
श्याम सन्देश- स्व. जमनाप्रसाद यादव 
छत्तीसगढ़ी सुराज - गिरधरदास वैष्णव 
गंवई में अंजोर - रामकृष्ण अग्रवाल 
चन्दा अमरित बरसाइस - लखनलाल गुप्त 
सरग ले डोला आइस - 
अपूर्वा - डा. नरेन्द्र देव वर्मा 
छत्तीसगढ़ी रामचरित नाटक - उदयराम 
साहूकार से छुटकारा - टिकेन्द्र टिकरिहा 
जले रक्त से दीप- रघुवीर पथिक 
बिन भांडी के अंगना - प्रभंजन शास्त्री 
सब के दिन बहुरे - दाऊ निरंजनसिंह 
बेटी ेचई - मनोहरदास नृसिंह 
छत्तीसगढ़ी के लोक गीत - दानेश्वर शर्मा 
बहराम चोट्टा - विश्वेन्द्र ठाकुर 
मैथली मंगल - सुकलाल प्रसाद पांडेय 
विजय गीत - मावलीप्रसाद श्रीवास्तव 
चन्द्रहास - गेन्दराम सागर 
धान के देश में - हरिप्रसाद अवधिया 
पर्वत शिला पर - हरिप्रसाद अवधिया 
मोक्ष द्वारा - सीताराम शर्मा 
उल्लू के पंख - लतीफ घोंघी 
शतरंज की चाल - लक्ष्मण शाकद्विपीय 
शिव सरोज गोविन्द रोदन - गोविन्दराव बिट्ठल .. 
खुसरा चिराई के बिहाव - कपिल नाथ 
युग मेला - कृष्णकुमार भट्ट 
मन के कलपना - हेमनाथ यदु 
स्वराज्य प्रश्नोत्तरी हमारे नेता - स्व. रामदयाल तिवारी 
गियां - सुकलालप्रमाद पडिय 

प्रकाशन के संकल्प में छत्तीसगढ़ साहित्य संगम दुर्ग का योगदान प्रशंसनीय है। पसर भर अंजोर कृति का प्रकाशन कर छत्तीसगढ़ी साहित्य में एक और कड़ी जोड़ दिया। इस कृति के सम्पादक है हेमनाथ यदु। हिन्दी साहित्य समिति कुरूद द्वारा डा. महेन्द्र कश्यप राही कृत चन्दा (छत्तीसगढ़ी) का प्रकाशन किया गया है। छत्तीसगढ़ विभागीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन रायपुर द्वारा भी कुछ पुस्तकें प्रकाशित हैं। 

१. लोचनप्रसाद पांडेय की जीवनी - स्व० प्यारेलाल गुप्त 
२. समवाय - प्रधान सम्पादक शारदाप्रसाद तिवारी 
३. मिटती रेखाएं - शारदाप्रसाद तिवारी 
४. छत्तीसगढ़ी गीत अऊ कविता - हरि ठाकुर 
५. मड़इया के गीत - देवीप्रसाद वर्मा 
६. कांवर भर धूप - नारायणलाल परमार 
७. रामकथा - कपिलनाथ कश्यप 
८. रोशन हाथों का दस्तकें - स्व० सतीश चौबे 
९. सत्रह कहानियां - स्व० पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी तथा देवीप्रसाद वर्मा 

रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा प्रकाशित कृति प्राचीन छत्तीसगढ़ है। इसके लेखक हैं स्व० प्यारेलाल गुप्त। बुनकर सहकारी समिति द्वारा प्रकाशित कृति ठाकुर प्यारेलाल सिंह की जीवनी इस क्षेत्र के लिए अमूल्य निधि है। इस कृति के लेखक है हरि ठाकुर। सुरुज मरे नइय कृति के कृतिकार है नारायणलाल परमार। अभिनन्दन ग्रन्थ में विप्र अभिनन्दन ग्रन्थ एंड जतर अभिनन्दन ग्रंथ उल्लेखनीय है। गौरहा कृत छत्तीसगढ़ी काव्य संकलन रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर की पाठ्य पुस्तक (वैकल्पिक विषय में) स्वीकृत किया गया है। 

छत्तीसगढ़ के कुछ लेखक और कवियों को कृति अन्य स्थानों से प्रकाशित है जिसमें स्व. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का नाम विशेष उल्लेखनीय है। इसी तरह स्व० बल्देव प्रसाद मिश्र काी कृति भी अन्य प्रकाशकों के द्वारा प्रकाशित को गई है। श्री लक्ष्मण शाकद्विपीय द्वारा सत्य के अवशेष बोर नन्दकिशोर तिवारी द्वारा मुकुटधर पांडेय व्यक्तित्व एवं कृतित्व अन्य प्रकाशको द्वारा की गई है। कुछ अन्य पठनीय पुस्तकों में गोकुलप्रसाद द्वारा रचित रायपुर रश्मि, और दुर्ग दर्पण है। खण्डहरों का वैभव में मुनि कान्तिसागर के विद्वता का परिचय है। छत्तीसगढ़ परिचय स्व० बल्देव प्रसाद मिश्र की अनमोल कृति है। सन् १८९० में प्रकाशित हीरालाल काव्योपाध्याय द्वारा रचित छत्तीसगढ़ी व्याकरण छत्तीसगढ़ी साहित्य में प्रथम प्रकाशित कृति है।
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Saturday, October 9, 2021

सुराजी

आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर हरि ठाकुर स्मारक संस्थान से ‘हमर सुराजी‘ का प्रकाशन पिछले दिनों हुआ है। इसमें छत्तीसगढ़ के नौ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों- गैंद सिंह, वीर नारायण सिंह, हनुमान सिंह, गुण्डा धूर पं. सुंदरलाल शर्मा, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, डा. खूबचंद बघेल, क्रांति कुमार भारतीय और परसराम सोनी का जीवन-वृत्तांत है। पुस्तक में हरि ठाकुर जी के लेखों का अंगरेजी भावानुवाद अशोक तिवारी जी द्वारा किया गया है और आशीष सिंह ने उनका छत्तीसगढ़ी नाट्य रूपांतरण किया है। भाई आशीष से इस पुस्तक की पाण्डुलिपि देखने का अवसर मुझे मिला तब इस पर मेरी प्रतिक्रिया को उन्होंने लिख कर देने का कहा, वह अब इस पुस्तक में शामिल है, इस तरह-

पहला भी, अनूठा भी

पराधीन सपनेहु सुख नाहीं, करि विचार देखहु मन माहीं।।

गोस्वामी तुलसीदास की ये पंक्तियां मानों अग्निमंत्र हैं। पं. माधवराव सप्रे ने ‘जीवन-संग्राम में विजय-प्राप्ति के उपाय‘ में स्वावलंबन शीर्षक में बात आरंभ करने के लिए इन्हीं पंक्तियों को आधार बनाया है। सन 1908 में परिस्थितिवश उन्होंने सरकार से क्षमा मांगी और पश्चातापग्रस्त रहे। किंतु इससे उबरने के लिए उन्होंने श्रीसमर्थरामदासस्वामी कृत मराठी ‘दासबोध‘ का हिन्दी अनुवाद किया। दासबोध के कुछ शीर्षक ध्यान देने योग्य हैं- राजनैतिक दांवपेंच, अभागी के लक्षण, भाग्यवान के लक्षण, राजनीति का व्यवहार आदि। सप्रे जी ने भूमिका में लिखा कि ‘इसमें ऐसी अनेक बातें बताई गई हैं जो आत्मा, व्यक्ति, समाज और देश के हित की दृष्टि से विचार करने तथा कार्य में परिणत करने योग्य हैं।‘ यह आसानी से देखा जा सकता है कि रामकथा हो या दासबोध, संतवाणी हो या राजनय संहिता, हमारी परंपरा में ऐसी रचनाओं, उनकी टीका-व्याख्या का उद्देश्य सदैव सुराज रहा है।

ऐसा ही एक प्रसंग सन 1934 का है, जब क्रांतिकुमार भारतीय ने बेमेतरा में गणेशोत्सव के अवसर पर रामायण के भरत मिलाप प्रसंग को सही मायने में सुराज, संदर्भ लिया था। उन्होंने कहा कि मातृभूमि की सेवा और स्वाधीनता के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए। इस मौके पर उन्होंने सिविल नाफरमानी, सेना के लिए किए जाने वाले गौ-वध, स्वदेशी, छुआ-छूत और नशा-मुक्ति की बातें भी कहीं। उल्लेखनीय है कि अप्रैल 1934 में ’नेशनल वीक’ के दौरान नागपुर में क्रांतिकुमार भारतीय के प्रवचन-भाषणों को राजद्रोह प्रकृति का मान कर उन्हें चालान किया गया। उनका लिखित बयान दाखिल कराया गया, जिसमें उन्होंने (चतुराईपूर्वक) कहा था कि वे रामायण प्रवचन करते रहेंगे, लेकिन भविष्य में शासन विरोधी अथवा राजद्रोह के भाषण नहीं करेंगे।

बैरिस्टर साहब, ठाकुर छेदीलाल ने अकलतरा में सन 1919 में रामलीला मंडली की स्थापना की, 1924 से 1929 तक व्यवधान रहा इसके बाद 1933 तक अकलतरा रामलीला की पूरे इलाके में धूम होती थी। अकलतरा के रंगमंच में पारम्परिकता से अधिक व्यापक लोक सम्पर्क तथा अंग्रेजी हुकूमत के विरूद्ध अभिव्यक्ति उद्देश्य था। इसका एक दस्तावेजी प्रमाण, लाल साहब डा. इन्द्रजीत सिंह की निजी डायरी से मिलता है कि सन 1931 में 23 से 26 अप्रैल यानि वैशाख शुक्ल पंचमी से अष्टमी तक क्रमशः लंकादहन, शक्तीलीला, वधलीला और राजगद्दी नाटकों का यहां मंचन हुआ। कहना न होगा कि इन सभी नाटकों का चयन संवाद और प्रस्तुति शैली सोद्देश्य सुराजी होती थी।

छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने सुराज में स्व-राज और सु-राज, दोनों को लगभग समान आवश्यक माना। हमारे ये पुरखे, एक ओर ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती देते रहे वहीं सुशासन के प्रति भी सजग रहे। ब्रिटिश हुकूमत, राज्य-व्यवस्था का ढोंग करते हुए हमें गुलाम बनाए रखना चाहती थी, उसकी मानसिकता उपनिवेशवादी थी और प्राथमिक उद्देश्य भारत जैसे ‘सोने की चिड़िया‘ को गुलाम बनाए रखते शोषण, दोहन करते रहना। इसके लिए बर्बरता और क्रूरता का सहारा लेने में उन्हें तनिक भी देर न लगती थी।

हमारे पुरखे स्व-राजियों ने हमारी परंपरा के सु-राज के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। इस भावना की मुखर अभिव्यक्ति गांधी में हुई। हमारी स्वाधीनता के रास्ते में रोड़े पैदा करने वाले तत्वों- धर्म, जाति-वर्ग, भाषा, प्रांत के भेद और सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वास को दूर करने के लिए सदैव उद्यत रहे। अंग्रेजी हुकूमत द्वारा देशी रियासतों को दिए जा रहे महत्व के बावजूद, राष्ट्रवादी विचार और नेता प्रभावी होते गए। नेहरू, टैगोर, बोस, जिन्ना, अंबेडकर, राजगोपालाचारी जेसे नेताओं से मतभेदों के बावजूद समावेशी गांधी ने साध्य और साधन की पवित्रता और तात्कालिक स्व-राज के साथ सु-राज के वृहत्तर और दूरगामी लक्ष्य को कभी ओझल होने नहीं दिया। यही कारण था कि उन्होंने देश की आजादी के जश्न में स्वयं के शामिल होने को जरूरी नहीं समझा और उस मौके पर हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक हिंसा को रोकने में लगे रहे।

‘हमर सुराजी‘ शीर्षक इस पुस्तक में स्वाधीनता संग्राम के नौ सेनानियों के जीवन-पक्ष अनूठे स्वरूप में उद्घाटित हो रहे हैं। काल की दृष्टि से इनमें 1857 के बहुत पहले, पिछड़े समझे जाने वाले परलकोट-बस्तर क्षेत्र के गैंदसिंह हैं, जिन्होंने जनजातीय दमन और अत्याचार के विरोध का बिगुल फूंका था। दूसरी तरफ डॉ. खूबचंद बघेल, जिन्होंने आजादी के बाद भी स्वाधीनता को सुराज में बदलने के लिए कोई कसर न रखी। ये सभी सेनानी वास्तव में छत्तीसगढ़ी अस्मिता के नवरत्न हैं।

छत्तीसगढ़ की गौरव-गाथा के प्रखर स्वर हरि ठाकुर की कलम ने इन पुरखों और उनके जीवन-संग्राम को अमर बनाया है, जिनका संकलन इस पुस्तक में प्रकाशित किया जा रहा है। किन्तु खास बात यह है कि इन सेनानियों के जीवन-वृत्तांत को मूल के साथ सुगम और प्रवाहमयी अंग्रेजी में भी प्रस्तुत किया जा रहा है और हमारे इन अस्मिता पुरुषों के जीवन-पक्षों को जीवंत-प्रभावी बनाने के लिए नाट्य रूपांतर भी किया गया है। इस दृष्टि से यह प्रकाशन आपने आप में न सिर्फ अनूठा, बल्कि संभवतः पहला भी है। निसंदेह, इस विशिष्ट स्वरूप से इसकी उपयोगिता और इसका महत्व बहुगुणित है।

हमारे इन सुराजियों का स्मरण और उनकी इस गांधी-अभिव्यक्ति की सार्थक प्रासंगिकता, उनकी प्रेरणा में है कि स्व-राज का लक्ष्य पा लेने के साथ सु-राज के लिए हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। यही सुराज, जो दीर्धकालीन, बल्कि सतत प्रक्रिया है, वास्तविक रामराज्य है। इसके लिए हमें सजग और सक्रिय रखने की कड़ी में यह दस्तावेज, एक प्रकाश-स्तंभ, हमारा पथ-प्रदर्शक हो सकता है।