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Thursday, December 15, 2022

पुरानी खड़ी बोली

हरि ठाकुर जी ने छत्तीसगढ़ की गौरव-गाथा को कण-कण समेटा, उसका एक नमूना यह लेख, जिसकी हस्तलिखित प्रति आशीष सिंह जी ने उपलब्ध कराई, उनका आभार। लेख के प्रकाशन की जानकारी नहीं मिली है। यहां प्रस्तुत-


दक्षिण कोसल में सोलहवीं शताब्दी की खड़ी बोली का नमूना 

कितने आश्चर्य की बात है कि पन्द्रहवीं शताब्दी की खड़ी बोली के गद्य का नमूना हमें उस क्षेत्र प्राप्त हुआ है जहां अब पूर्णरूप से उडिया भाषा बोली जाती है। छत्तीसगढ़ से लगा हुआ उड़ीसा प्रदेश का एक जिला है सुन्दरगढ़। इस जिले के बड़गाँव थाने के अन्तर्गत बरपाली नामक गाँव में एक ताम्रपत्र प्राप्त हुआ है जिसकी भाषा प्रारंभिक खड़ी बोली है। सम्पूर्ण लेख नागरी लिपि तथा गद्य में है। वह ताम्रपत्र लेख ‘एन्सियेंट इंडियन हिस्टारिकल ट्रैडिशन्स‘ नामक शोध पत्रिका में श्री के.एस. बेहरा ने प्रकाशित किया है। 

अठारहवीं शताब्दी तक यह क्षेत्र कोसल या दक्षिण कोसल कहलाता था। इस दक्षिण कोसल की भौगोलिक सीमा का वर्णन करते हुए श्री एस.सी. बेहरा ने अपने शोध निबंध में लिखा है- रायपुर, बिलासपुर, सम्बलपुर, सुन्दरगढ़, बोलांगीर, कालाहांडी, बौद-फूलबनी और कोरापुट- ये क्षेत्र दक्षिण कोसल में थे। रायपुर और बिलासपुर छत्तीसगढ़ में हैं ही। शेष जिले उड़ीसा में हैं। उक्त निबंध के लेखक ने रायगढ़, सरगुजा, दुर्ग और राजनांदगाँव जिलो को भूलवश छोड़ दिया है। वस्तुतः ये जिले प्राचीन दक्षिण कोसल में ही थे। बस्तर का कुछ हिस्सा दक्षिण कोसल में था। शेष दण्डकारण्य कहलाता था।

सन् १७५० में छत्तीसगढ़ पर मराठों का अधिकार हो गया। लगभग उसी समय यह सम्पूर्ण क्षेत्र छत्तीसगढ़ कहलाने लगा। उस समय भी उड़ीसा के उपर्युक्त जिले छत्तीसगढ़ के तत्कालीन राजा बिम्बाजी के अधीन थे और छत्तीसगढ़ के ही परगना माने जाते थे। सन् १९०५ में बंग-भंग के समय छत्तीसगढ़ के ये उड़ियाभाषी जिले उड़ीसा में मिला दिए गये। इस प्रकार यदि देखा जाये तो इस ताम्रपत्र को दक्षिण कोसल या छत्तीसगढ़ का माना जा सकता है। किन्तु, तथ्य यह है कि वर्तमान में बरपाली उड़ीसा में है। 

इस ताम्रपत्र के प्रदाता थे हम्मीर देव जो सुन्दरगढ़ राज्य के शासक थे। वे परमार शेखर राजवंशके प्रारंभिक राजा थे। यह ताम्रपत्र लेख वस्तुतः एक दानपत्र है। यह दानपत्र राजा हमीरदेव ने अपने स्वर्गीय पिता के आदेश का पालन करने हेतु राजगुरु श्री नारायण बीसी को प्रदान किया था। दानपत्र में राजगुरु को बरपाली गांव दान में देने का उल्लेख है। दान पत्र पर विक्रम तिथि अंकित है तदनुसार २४ जनवरी १५४४ ई. की तारीख पड़ती है। उस दिन सूर्य ग्रहण पड़ा था। 

हमीरदेव का ताम्रपत्र लेख

(१) 
‘‘ सोस्ती श्री माहाराजा धीराज माहाराज
श्रीश्री हंमीर देव के राजगुरु श्री
नारायण वीसीई को परनाम पूर्व
सो पीता स्यामी का हुक्म था
के एक गांव कुसोदक दे देना सो
बमौजी व हुकुम पीता जी के
वो अपने घुसी में मौजे बरपाली

(२)
गांव आसीन्त करके सुर्ज्य ग्रहन
में कुसोदक कर दिआ पुत्र पौत्र
भादीक भोग किया करो जावत
चन्द्र दीवाकर रहेगे तावत भोग
करोगे वौ गार्गवंस वीन्द होगा
औवर जो कोहि होय सो जगह
को ग्राश्चन्ही करेगा तारीफ १५
पुस समत १६०० साल सही ‘‘

भाषा की दृष्टि से दान-पत्र का यह लेख ऐतिहासिक महत्व रखता है। उड़िया भाषी क्षेत्र में इस दान पत्र का प्राप्त होना इस बात का संकेत करता है कि सोलहवीं शताब्दी में इस क्षेत्र की भाषा वही थी जो इस दानपत्र में है। कम से कम राज-काज की भाषा तो यह निश्चित रूप से ही थी, यह ताम्रपत्र लेख से स्वयं प्रमाणित है। निश्चय ही इस भाषा को उस समय की जनता समझ सकती थी। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि सुन्दगढ़ राज्य छतीसगढ़ की सीमा से सटा हुआ है। छत्तीसगढ़ के राजाओं के कामकाज की भाषा भी लगभग यही थी।

इस लेख की दूसरी विशेषता है कि वह शुद्ध गद्य में है और खड़ी बोली में है। इसकी भाषा पर हमें ब्रज या अवधी का कोई प्रभाव दिखाई नहीं पड़ता। खड़ी बोली के व्याकरण के अनुसार इस प्रकार की भाषा का इस क्षेत्र में प्राप्त यह प्रथम और दुर्लभ लेख है।

लेख में हिज्जे की अनेक त्रुटियां हैं। ये त्रुटियां ताम्रपत्र पर लेख को उत्कीर्ण करने वाले की भी हो सकती हैं। स्वस्ति को सास्ति, महाराजा का माहाराजा, वीसी को बीसीई, पूर्वक को पुर्व पिता को पीता, स्वामी को स्यामी, एक को येक, कुशोदक को कुसोदक, खुशी को घुसी, गांव को गाव, आसीमांत को आसीन्त, सूर्य को सुर्ज्य, दिशा को दिआ, पौत्रादिक को पौत्रादीक, यावच्चंद्र को जावतचन्द्र, दिवाकर को दीवाकर, व या औ को वौ, वृन्द को वीन्द और को अवर, कोई को कोहि, ‘ग्रहण नहीं‘ को ग्राश्चन्हीं, तारीख को तारीक, पूस को पुस, संवत् को समत लिखा गया है। ये त्राुटियाँ दान-पत्र को लिपिबद्ध करने वाले की भी हो सकती हैं।

लेख की अन्य विशेषता है- संस्कृत तथा अरबी-फारसी के शब्दों का एक साथ प्रयोग। संस्कृत के शब्द स्वस्ति, कुशोदक, आसीमान्त, यावच्चन्द्र दिवाकर आदि प्रयोग इस बात का घोतक है कि दान पत्र लिखने वाला संस्कृत का पंडित था। साथ ही वह उर्दू के शब्दों से भी परिचित था जैसे बमौजी, हुकुम, खुशी, मौजा, तारीख, साल आदि। उर्दू शब्दों के प्रयोग से यह भी सिद्ध होता है कि इस क्षेत्र की राज-काज की भाषा पर उर्दू का प्रभाव पड़ चुका था।

लेख में १५ पंक्तियां हैं। ताम्रपत्र के प्रथम पृष्ठ पर ७ पंक्तियां हैं। द्वितीय पृष्ठ पर ८ पंक्तियां हैं। खड़ी बोली के गद्य के विकास का अध्ययन करने वालों के लिए यह लेख पर्याप्त रुचिपूर्ण हो सकता है।

उपर्युक्त लेख में की पंक्ति क्रमांक १२ में बीन्द शब्द आया है। इस शब्द का अर्थ स्पष्ट नहीं है। संभवतः यह वृन्द के अर्थ में आया हो। वस्तुतः यहाँ पर ‘‘गोत्र‘‘ शब्द होना चाहिए था। इस लेख को आज की भाषा में इस प्रकार लिखा जायेगा-

‘‘स्वस्ति श्री महाराजा धिराज महाराज श्री श्री हम्मीर देव के राजगुरु श्री नारायण वीसी को प्रणाम पूर्वक सो पिता स्वामी का हुक्म था कि एक गांव कुशोदक दे देना सो बमौजी (स्वेच्छा से) व हुक्म पिताजी के व अपनी खुशी से मौजा बरपाली गाँव आसीमांत सूर्यग्रहण में कुशोदक कर दिया (कि) पुत्र पौत्रादिक भोग किया करो यावच्चन्द्र दिवाकर रहेंगे तब तक भोग करोगे और गर्ग वंश गोत्र में रहेगा और जो कोई भी हो इस जगह (गाँव) को अधिग्रहण नहीं करेगा तारीख १५ पूस संवत् १६०० साल सही।‘‘

सोलहवीं शताब्दी के पूर्व की खड़ी बोली के कुछ नमूने उपलब्ध हैं जैसे पृथ्वीराज, मेवाड़ के राजा रावल समर सिंह, महात्मा गोरखनाथ, तथा स्वामी विट्ठलनाथ जी को पत्र। किन्तु इन पत्रों की भाषा को खड़ी बोली का गद्य कहना न्यायोचित नहीं कहा सकता। खड़ी बोली का उत्कृष्ट प्रारंभिक उदाहरण अमीर खुसरो का है किन्तु उसकी भाषा पर भी ब्रज भाषा का गहरा प्रभाव है। दूसरी बात, उनकी रचनाएं पद्य में हैं।

प्रस्तुत ताम्रपत्र लेख की खड़ी बोली के गद्य के समकक्ष स्वामी विट्ठल नाथ जी का यह गद्यांश रखा जा सकता है-

‘‘स्वामी तुम्हैं तो सतगुरु अम्हे तो लिष सबद एक पूछिवा दया करि कहिबा, मन न करिबा रोस। पराधीन उपरांति बन्धन नाहीं, सो आधीन उपरांति मुकुति नाई। यह भी १६००वीं शताब्दी का गद्य है। अब इसी के समकक्ष समकालीन दक्षिण कोसल के ताम्रपत्र लेख के लेख को गद्य की भाषा से तुलना कीजिए-
 
‘‘ सो पीता स्वामी का हुक्म था के येक गाँव कुसोदक दे देना सो बमौजी व हुकुम पीताजी के वो अपने घुसी में मौजे बरपाली गाँव आसीन्त करके सुर्ज्य ग्रहन में कुसोदक कर दिआ।‘‘

यदि इस गद्य को लिपिबद्ध करने वाले ने हिज्जे के प्रति सावधानी रखी होती तो यह अपने समय के उत्कृष्ट गद्य का उदाहरण होता फिर भी मेरे विचार से इन दोनों उदाहरणों में से यह दूसरा उदाहरण खड़ी बोली का अधिक शुद्ध रूप है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि खड़ी बोली के गद्य का यह नमूना हमें अहिंदी क्षेत्र से प्राप्त हुआ है जो इस बात का भी प्रमाण है कि अहिन्दी क्षेत्र में भी सोलहवीं शताब्दी में हिन्दी प्रचलित थी और राजकाज की भाषा थी।
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Wednesday, November 24, 2021

समडील ताम्रपत्र

इस ताम्रपत्र की जानकारी समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, शोध-जर्नल तथा ‘उत्कीर्ण लेख‘ पुस्तक के परिवर्धित संस्करण, 2005 में प्रकाशित है।

जाजल्लदेव द्वितीय का समडील से प्राप्त ताम्रपत्र लेख कलचुरि संवत्: 913
- राहुल कुमार सिंह, बिलासपुर
तब कागज-पेन का अभ्यास था, अपने लिखे का,
टाइप से अधिक साफ और त्रुटिरहित का भरोसा होता था।

दो ताम्रपत्रों का यह सेट सन 1992 के जुलाई माह में जिला मुख्यालय बिलासपुर से 25 किलोमीटर दूर समडील नामक ग्राम (गनियारी के निकट) में स्थानीय कृषक श्री लखनलाल पटेल आत्मज श्री अमृतलाल पटेल को कृषि कार्य के दौरान प्राप्त हुआ था1 जिसे जिला पुरातत्त्व संग्रहालय, बिलासपुर के वरिष्ठ मार्गदर्शक श्री ए.एल. पैकरा ने 27 दिसम्बर 1994 को स्थल से संकलित किया2। ये ताम्रपत्र वर्तमान में जिला पुरातत्त्व संग्रहालय, बिलासपुर के संग्रह में सुरक्षित हैं, जिनका सम्पादन मूल ताम्रपत्रों के आधार पर प्रथमतः यहाँ किया जा रहा है3

उक्त दोनों ताम्रपत्रों का समानान्तर अधिकतम आकार 30.5X20.5 सेंटीमीटर तथा वजन कुल 3 किलोग्राम है। दोनों पत्रों को आपस में सम्बद्ध करने के लिए प्रथम पत्र के निचले एवं द्वितीय पत्र के ऊपरी हिस्से में छेद है, किन्तु ताम्रपत्रों के साथ राजमुद्रा-छल्ला प्राप्त नहीं हुआ है। दोनों पत्रों के अन्तःपृष्ठ उत्कीर्ण तथा वाह्य पृष्ठ सपाट हैं। प्रत्येक पत्र का किनारा, अक्षरों को घिसने से बचाने के लिए उठा हुआ है। ताम्रपत्र लेख संतोषजनक संरक्षित स्थिति में है। 

ताम्रपत्रलेख के प्रथम पत्र पर 18 पंक्तियाँ तथा द्वितीय पत्र पर 17 पंक्तियाँ, इस प्रकार कुल 35 पंक्तियाँ उत्कीर्ण हैं। लेख की लिपि नागरी तथा भाषा संस्कृत है। तत्कालीन अन्य कलचुरि लेखो4 की भांति इस लेख में भी ‘श‘ के स्थान पर ‘स‘ तथा ‘ब‘ के स्थान पर ‘व‘ जैसी भूलें हुई हैं। आरंभ व अंतिम भाग के अतिरिक्त पूरा लेख 22 श्लोकों में छन्दोबद्ध है। 

लेख के आरंभ में5 ब्रह्म का नमन है। प्रारंभिक 12 श्लोकों में, तत्कालीन अन्य कलचुरि लेखों की भाँति शिव स्तुति तथा रत्नपुर शाखा के कलचुरियों की वंशावली है। इसके पश्चात के 3 श्लोकों में लेख का उद्देश्य निहित है, जिसके अनुसार अत्रि कुल में उत्पन्न जास्त के पौत्र तथा राणि के पुत्र राजसिंह को सूर्यग्रहण के अवसर पर एवडी मंडल में स्थित खूडाघट नामक ग्राम, जाजल्लदेव (द्वितीय) द्वारा दान दिया गया। बाइसवें अंतिम श्लोक में लेख के रचयिता वास्तव्य वंश में उत्पन्न वत्सराज के पुत्र नयतत्त्ववेत्ता धर्मसिंह का नामोल्लेख है। अंत में तिथि, कलचुरि संवत् 913 के माघ मास का सूर्यग्रहण तथा लेख उत्कीर्ण करने वाले का नाम चंद्रक आया है।

पूर्व लेखों में6 रचयिता का नाम धर्मराज तथा जंडेर ग्राम का उल्लेख मिलता है। इस लेख में जंडेर ग्राम का उल्लेख नहीं है तथा लेख रचयिता का नाम धर्मसिंह आया है, उसे पूर्व लेखों के रचयिता से अभिन्न मानना चाहिए। इसी प्रकार इस लेख को उत्कीर्ण करने वाले का नाम चंद्रक को पूर्व लेखों7 के चंद्रक से अभिन्न माना जा सकता है। लेख में आये स्थान नामों में एवडी मंडल पूर्व ज्ञात है8 यह क्षेत्र बिलासपुर-मुंगेली तहसील का पूर्वाेत्तर हिस्सा होना चाहिए9। दान में दिए गए ग्राम खूडाघट नाम का समीकरण रतनपुर के पास स्थित बांध स्थल खुंटाघाट या ग्राम खुटाडीह से किया जा सकता है10

लेख का काल, कलचुरि संवत 913 (ईस्वी सन् 1161-62) विशेष महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके पूर्व अमोरा ताम्रपत्र11 से जाजल्लदेव द्वितीय की तिथि कलचुरि संवत 912 मानी गई थी, किन्तु बाद में ब्रह्मदेव के रत्नपुर शिलालेख12, कलचुरि संवत् 915 को जाजल्लदेव द्वितीय के पिता पृथ्वीदेव द्वितीय के राजत्वकाल का माना गया और मुख्यतः इसी आधार पर अमोदा ताम्रपत्र की तिथि कलचुरि संवत 919 मान ली गई13। पूर्व प्राप्त अभिलेखों से14 पृथ्वीदेव द्वितीय के राज्यकाल की अंतिम सुनिश्चित तिथि कलचुरि संवत 910 है। ब्रह्मदेव के रत्नपुर शिलालेख, कलचुरि संवत 915 का कुछ हिस्सा पूरी तरह घिसा हुआ है और इसके संपादन के अवसर पर भी मूल शिला के धैर्यपूर्वक परीक्षण से ही पूरे लेख का सामान्य अनुमान कर पाना संभव हो सका था15। इस लेख में पृथ्वीदेव (द्वितीय) का नामोल्लेख अवश्य है, इसीलिए अन्य प्रमाणों के अभाव में इसे, उसके काल का मान लिया गया होगा, किन्तु लेख के घिसे हिस्से में जाजल्लदेव द्वितीय के राजत्व काल होने का उल्लेख अवश्य रहा होगा।

इस प्रकार इस ताम्रपत्र लेख की प्राप्ति से कलचुरियों की रत्नपुर शाखा के इतिहास में जाजल्लदेव द्वितीय के राजत्वकाल की तिथि सुनिश्चित होती है, जिसके आधार पर अन्य उपरोल्लिखित अभिलेखों की तिथि व शासक-राजत्वकाल का निर्धारण सुगमतापूर्वक संशोधित हो जाता है।

टिप्पणियाँ
1. ग्राम के पूर्वी हिस्से में शिवसागर तालाब के किनारे आधुनिक मंदिर में कलचुरि कालीन शिवलिंग स्थापित व पूजित है तथा ग्राम से अन्य स्फुट पुरावशेष व ई. 3-4 सदी के ताँबे के चौकोर गज-देवी प्रकार के सिक्के भी प्राप्त हुए हैं, जो स्थल की प्राचीनता प्रमाणित करने में पर्याप्त हैं। 
2. संकलन में स्थानीय सरपंच श्री विष्णु जायसवाल एवं बिलासपुर के श्री रमेश प्रसाद जायसवाल का सहयोग प्राप्त हुआ था।
3. ताम्रपत्र संबंधी आरंभिक जानकारी स्थानीय समाचार पत्रों में तथा ‘कलचुरि राजवंश और उनका युग‘- 1998 में लक्ष्मीशंकर निगम के लेख ‘दक्षिण कोसल के कलचुरि‘ पृ.- 126 पर दी गई है।
4. कार्पस इन्सक्रिप्शनम इण्डिकेरम - 1955, खंड-IV , भाग-II के लेख।
5. यथोक्त - अन्य लेखों की भांति सिद्धि चिह्न नहीं है।
6. का.इ.इ. IV (II) लेख क्र.- 99 तथा प्राच्य प्रतिभा V (I) जनवरी ‘77 पृ. 105-111।
7. का.इ.इ. IV (II) लेख क्र.- 92 तथा 94।
8. का.इ.इ. IV (II) लेख क्र.- 89।
9. एवडी मंडल के ग्राम पंडरतलाई की पहचान, वर्तमान के मुंगेली अनुविभाग के ग्राम पांडातराई से होती है।
10. का.इ.इ. IV (II) लेख क्र.- 95 में पर्वत (तल) को बांधकर सरोवर निर्मित कराये जाने का उल्लेख है।
11. एपिग्राफिया इंडिका, भाग-XIX, पृष्ठ 209-214।
12. का.इ.इ. IV (II) लेख क्र.- 96।
13. का.इ.इ. IV (II) लेख क्र.- 99।
14. का.इ.इ. IV (II) लेख क्र.- 95।
15. का.इ.इ. IV (II) लेख क्र.- 96।
राइस पेपर पर बॉल पेन से
पांच प्रतियां बन जाती थीं, इस तरह।

• कलचुरियों की राजधानी रतनपुर के पास, खारंग नदी पर बांधा गया खारंग जलाशय, ‘खूंटाघाट बांध‘ नाम से जाना जाता है। बांध के बाद खारंग नदी, अपना नाम-पहचान खोई सी बिलासपुर की ओर बढ़ती है और लाल खदान के आगे अरपा नदी में मिल जाती है। दो धाराओं के इस संगम स्थल के गांव का नाम ही दुमुंहानी है। कहा जाता है इस जलाशय में कुछ गांव, डूब में आए और झाड़-झरोखे भी। पानी में डूबे पेड़ ठूंठ बन गए, खूंटों की तरह और नाम पड़ा खूंटाघाट। इससे लगता है कि यह नाम 'खूंटाघाट', बांध बनने के समय का, सिर्फ सौ साल पुराना है। जबकि इस ताम्रपत्र और अन्य अभिलेखों से यह स्पष्ट होता है कि रतनपुर में सात-आठ सौ साल पहले कोई बांध था, खूडाघट नामक गांव भी था और उसी की स्मृति-छाया, वर्तमान खूंटाघाट बांध और खूटाडीह ग्राम है। शासकीय अभिलेखों के अनुसार इस खारंग जलाशय (संजय गांधी) बहुउद्देशीय वृहद परियोजना का प्रारंभ 1920-21 और पूर्णता 1930-31 है। डुबान क्षेत्र के कुल 28 ग्रामों में 7 पूर्ण, 21 आंशिक प्रभावित हुए।

हकीकत का अफसाना- कोई 30 साल पहले किसी दिन बिलासपुर, गोंड़पारा यानि राजेंद्रनगर वाले अपने दफ्तर में मेज पर के कागज-पुरजों की छंटाई करते हुए एक परची मिली, जिस पर कुछ लिखा हुआ था, जिज्ञासा हुई कि अजनबी सी यह किसकी लिखावट है। पूछने पर बताया गया कि कुछ दिन पहले एक किशोर आया था, उसने यह छोड़ा था, बताना भूल गए थे। मेरी पूछताछ का कारण था कि पुरजे पर की लिखावट, पुरानी नागरी लिपि की नकल है, साफ तौर पर पहचानी जा सकती थी। तुरंत हरकत जरूरी हो गया। कार्यालय के सहयोगियों ने याद कर बताया कि रमेश जायसवाल नाम था, सिंधी कालोनी में कहीं रहता था। उसकी खोज में निकले, ज्यादा मशक्कत नहीं हुई, रमेश मिल गए। बताया कि मामा के यहां समडील गए थे, तांबे के स्लेट पर लिखावट की जानकारी मिली, देखने गए और कुछ हिस्से की नकल बना ली थी, वही पुरजा छोड़ कर आए थे।

अगले ही दिन सुबह रमेश को साथ ले कर समडील जा कर गांव के देव-स्थलों, खेत-खार देखते लखन पटेल के घर पहुंचे। लखन ने ताम्रपत्र सहजता से दिखा दिया, फोटो और नाप-जोख भी करने दिया। बातें होने लगी। इस पर उसने बताया कि उसके कोई आल-औलाद नहीं थी। कुछ बरस पहले खेत जोतते यह मिला, उसे वह घर ले आया, पूजा-पाठ की जगह पर रख दिया। इसके बाद संतान प्राप्ति हुई, तब से इस ताम्रपत्र की पूजा-प्रतिष्ठा और बढ़ गई। ताम्रपत्र को संग्रहालय के लिए प्राप्त करना था, लेकिन लगा कि मामला संवेदनशील है, नियम-कानून के लिए बेसब्री करना ठीक नहीं होगा और करना भी हो तो, अभी वह अवसर नहीं है।

वापस बिलासपुर लौटकर इस ताम्रपत्र के मजमून पर मशक्कत शुरू हुई। कार्यालय के वरिष्ठ मार्गदर्शक श्री पैकरा साथ नहीं जा पाए थे, अफसोस करने लगे और जा कर स्थल और ताम्रपत्र देखने की इच्छा व्यक्त की। लोक-व्यवहार वाले कामों में श्री पैकरा की कार्य-कुशलता को मैंने अधिकतर अपने से बेहतर पाया है। मैंने उन्हें काम सौपा कि वहां जाएं तो स्वयं भी ग्राम और स्थल निरीक्षण का एक नोट बनाएं (उद्देश्य था कि पहले गांव और लोगों से मिलते-जुलते स्वयं वहां से आत्मीयता महसूस करें) और लौटने के पहले ताम्रपत्र देखने लखनलाल से मिलने जाएं। साथ ही यों मुश्किल है, लेकिन प्रयास करें (ऐसी चुनौती से उनका उत्साहवर्धन होता है) कि बिना किसी दबाव के ताम्रपत्र संग्रहालय के लिए प्राप्त हो जाए।

पैकरा जी तालाब, डीह, खेत-खार करते गांव में घूम-फिर कर लखनलाल के पास पहुंचे। लखनलाल ने ताम्रपत्र दिखाया और उसके साथ का किस्सा पूरे विस्तार से सुनाया। ताम्रपत्र मिले हैं तब से जमीन खरीद ली, लंबे समय बाद संतान हुआ। कुछ गांव वाले भी आ गए। उन्हें लगा कि इस ‘बीजक‘ में जरूर किसी खजाने का पता है, जिसके चक्कर में आया कोई फरेबी है। उत्तेजित गांव वालों को श्री पैकरा ने समझाइश और थोड़ी अमलदारी का रुतबा बताया। बातचीत होने लगी। पैकरा जी ने अपना पूरा नाम बताया अमृतलाल, संयोग कि लखनलाल के पिता का नाम भी अमृतलाल ही था। लखनलाल को फैसला करते देर न लगी। पुरखों का आशीर्वाद, वंश चलाने अब बाल-बच्चे, लोग-लइका तो आ ही गए हैं और पिता-पुरखा के सहिनांव पिता-तुल्य अमृतलाल इस ताम-सिलेट को लेने आ गए हैं। सहर्ष ताम्रपत्र पैकरा जी को सौंप दिया।

ताम्रपत्र, बिलासपुर संग्रहालय के संग्रह में है। रमेश जायसवाल, बिलासपुर निगम के पार्षद बने, जन-सेवा में लगे हैं। श्री पैकरा अब मुख्यालय रायपुर में उपसंचालक पद का दायित्व निर्वाह कर रहे हैं। समडील के तत्कालीन सरपंच विष्णु जायसवाल जी के पुत्र हेमंत जी से पता लगा, लखनलाल जी घर-परिवार सहित राजी-खुशी हैं। मैंने ताम्रपत्र पर तब शोध-पत्र लिखा और अब आपके लिए ‘पेशे-खिदमत‘ यह किस्सा कह रहा हूं।

Monday, October 4, 2021

अभिलेख सूची

छत्तीसगढ़ के प्राचीन अभिलेखों- शिलालेख, ताम्रपत्र आदि की यह सूची, समय-समय पर अद्यतन की जा रही है।

• सुतनुका देवदासी का रामगढ़ (सरगुजा) जोगीमारा गुहालेख
• रामगढ़ (सरगुजा) सीताबेंगरा गुहालेख
• किरारी काष्ठ स्तंभलेख
• आरंग ब्राह्मी शिलालेख
• कुमारवरदत्तश्री का ऋषभतीर्थ गुंजी भित्तिलेख
• मल्हार से प्राप्त 'राधिकस' शिलालेख- बिलासपुर संग्रहालय
• बूढ़ीखार, मल्हार विष्णु प्रतिमालेख
• छातागढ़ का प्रथम शिलालेख- रायपुर संग्रहालय
• छातागढ़ का द्वितीय शिलालेख- रायपुर संग्रहालय
• आतुरगांव, कांकेर का शिलालेख
• मल्हार का 'सक अमचस' शिलालेख
• सेमरसल का खंडित शिलालेख
• मदकूदीप का प्रथम शिलालेख
• मदकूदीप का द्वितीय शिलालेख
• तरेंगा का शिलालेख
• पाण्डुका का शिलालेख
• राजर्षितुल्य कुल के भीमसेन द्वितीय का आरंग ताम्रलेख, गुप्त संवत 182?
• मेकल पाण्डुवंश के उदीर्ण्णवैर (शूरबल) का बम्हनी ताम्रलेख राज्यवर्ष 2
• सामंत इन्द्रराज का मलगा ताम्रपत्र राज्यवर्ष 1 या 11
• मल्हार का मेकल पाण्डुवंश का अधूरा ताम्रलेख
• शूरबल का मल्हार का ताम्रलेख राज्यवर्ष 8
• नरेन्द्र का पिपरदुला ताम्रलेख राज्यवर्ष 3
• नरेन्द्र का कुरूद ताम्रलेख राज्यवर्ष 24
• नरेन्द्र का रवांन (मल्हार) का अधूरा ताम्रलेख
• जयराज का अमगुड़ा ताम्रलेख राज्यवर्ष 3
• जयराज का मल्हार ताम्रलेख राज्यवर्ष 5
• जयराज का आरंग ताम्रलेख राज्यवर्ष 5
• जयराज का मल्हार ताम्रलेख राज्यवर्ष 9
• सुदेवराज का नहना ताम्रलेख राज्यवर्ष 2
• सुदेवराज का धमतरी ताम्रलेख राज्यवर्ष 3
• सुदेवराज का सिरपुर ताम्रलेख राज्यवर्ष 7
• सुदेवराज का आरंग ताम्रलेख राज्यवर्ष 7
• सुदेवराज का कौआताल ताम्रलेख राज्यवर्ष 7
• सुदेवराज का रायपुर ताम्रलेख राज्यवर्ष 10
• सुदेवराज का सारंगढ़ (चुल्लाण्डरक ग्रामदान) ताम्रलेख
• सुदेवराज का पोखरा ताम्रलेख (मध्य पृष्ठ)
• प्रवरराज का ठकुरदिया ताम्रलेख राज्यवर्ष 3
• प्रवरराज का मल्हार ताम्रलेख राज्यवर्ष 3
• रक्सा (पोखरा) ताम्रलेख
• अमरार्यकुल के व्याघ्रराज का मल्हार ताम्रलेख राज्यवर्ष 4
• कोसल पाण्डुवंश के ईशानदेव का लक्ष्मणेश्वर मंदिर, खरौद शिलालेख
• तीवरदेव का बोंडा ताम्रलेख राज्यवर्ष 5
• तीवरदेव का राजिम ताम्रलेख राज्यवर्ष 7
• तीवरदेव का बलौदा ताम्रलेख राज्यवर्ष 9
• तीवरदेव का सिरपुर ताम्रलेख राज्यवर्ष
• तीवरदेव का (तिरुवनंतपुरम) ताम्रलेख राज्यवर्ष
• नन्नराज का अड़भार (अधूरा)ताम्रलेख
• भवदेव रणकेसरी का आरंग या भांदक में प्राप्त शिलालेख
• वासटा का लक्ष्मण मंदिर (सिरपुर) से प्राप्त शिलालेख
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का बरदुला ताम्रलेख राज्यवर्ष 9
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का बोंडा ताम्रलेख राज्यवर्ष 22
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का मल्लार ताम्रलेख फाल्गुन वर्ष- 57
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का लोधिया ताम्रलेख राज्यवर्ष 57
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का मल्लार ताम्रलेख
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का सिरपुर ताम्रलेख राज्यवर्ष 25
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का सिरपुर ताम्रलेख राज्यवर्ष 37
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का सिरपुर ताम्रलेख राज्यवर्ष 38
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का सिरपुर ताम्रलेख राज्यवर्ष 46
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का सिरपुर ताम्रलेख राज्यवर्ष 48
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का सिरपुर ताम्रलेख राज्यवर्ष 55
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का सिरपुर ताम्रलेख तिथिरहित कतम्बपदूल्लक ग्रामदान लेख
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का सिरपुर ताम्रलेख तिथिरहित कोशम्ब्रक ग्रामदान लेख
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का सिरपुर ताम्रलेख तिथिरहित चोरपद्रक ग्रामदान लेख
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का सिरपुर ताम्रलेख
• महाशिवगुप्त बालार्जुन का सिरपुर ताम्रलेख
• मल्हार के रघुनंदन प्रसाद पाण्डेय और गुलाब सिंह ताम्रलेख
• सिरपुर गंधेश्वर मंदिर से प्राप्त जोर्ज्जराक शिलालेख व अन्य शिलालेख
• सेनकपाट, सिरपुर शिलालेख
• सिरपुर सुरंग टीले से प्राप्त शिलालेख
• बुद्धघोष का सिरपुर के निकट प्राप्त शिलालेख
• मल्हार का तिथिरहित कैलासपुर ग्रामदान ताम्रलेख
• तिथिरहित शुष्क सिरिल्लिका ग्रामदान ताम्रलेख,
• तिथिरहित पातिकारसीमक ग्रामदान का अधूरा ताम्रलेख
• मल्हार का बासिन डिपरा शिलालेख
• सिरपुर गंधेश्वर मंदिर के शिलालेख

• भवदत्तवर्मन का रिठापुर ताम्रपत्र, राज्यवर्ष-11
• स्कंदवर्मन? का पोड़ागढ़ शिलालेख, राज्यवर्ष-12
• अर्थपति भट्टारक का केसरीबेड़ा ताम्रपत्र, राज्यवर्ष-7
• विलासतुंग का राजिम शिलालेख

• बड़े डोंगर (बस्तर) का उभपार्श्वीय शिलालेख
• मोहला (दुर्ग) का वाकाटक अधूरा ताम्रलेख
• शिवदुर्ग का दुर्ग में प्राप्त शिलालेख
• मदकूदीप से प्राप्त दो शिलालेख

• त्रिपुरी कलचुरियों का महेशपुर शिलालेख
• डीपाडीह शिलालेख

• पृथ्वीदेव प्रथम का रायपुर ताम्रलेख कलचुरि संवत 821
• पृथ्वीदेव प्रथम का अमोदा ताम्रलेख कलचुरि संवत 831
• जाजल्लदेव प्रथम का रतनपुर शिलालेख कलचुरि संवत 866
• जाजल्लदेव प्रथम के पाली मंदिर के लघु लेख
• रत्नदेव द्वितीय का शिवरीनारायण ताम्रलेख कलचुरि संवत 880
• रत्नदेव द्वितीय का सरखों ताम्रलेख कलचुरि संवत 880
• रत्नदेव द्वितीय कालीन अकलतरा शिलालेख
• रत्नदेव द्वितीय का पारागांव ताम्रलेख कलचुरि संवत 885
• पृथ्वीदेव द्वितीय कालीन कोटगढ़ शिलालेख
• पृथ्वीदेव द्वितीय का दहकोनी ताम्रलेख कलचुरि संवत 890
• रत्नदेव द्वितीय कालीन कुगदा शिलालेख कलचुरि संवत् 893
• रत्नदेव द्वितीय का पासिद ताम्रलेख कलचुरि संवत 893
• पृथ्वीदेव द्वितीय का बिलाईगढ़ में प्राप्त ताम्रलेख कलचुरि) संवत् 896
• राजिम शिलालेख कलचुरि संवत 896
• पारागांव ताम्रपत्र कलचुरि संवत 897
• शिवरीनारायण मूर्तिलेख कलचुरि संवत् 898
• कोनी शिलालेख कलचुरि संवत 900
• अमोदा ताम्रलेख कलचुरि संवत 900?
• पृथ्वीदेव द्वितीय का घोटिया में प्राप्त ताम्रलेख कलचुरि संवत 1000? (900)
• गोपालदेव का पुजारीपाली शिलालेख
• पृथ्वीदेव द्वितीय का अमोदा में प्राप्त ताम्रलेख कलचुरि संवत् 905
• पृथ्वीदेव द्वितीय कालीन रतनपुर शिलालेख कलचुरि संवत 910
• पृथ्वीदेव द्वितीय कालीन रतनपुर शिलालेख कलचुरि संवत 915
• जाजल्लदेव द्वितीय का समडील शिलालेख क.सं. 913
• जाजल्लदेव द्वितीय का अमोदा ताम्रलेख कलचुरि संवत् 91(9)
• जाजल्लदेव द्वितीय कालीन मल्हार शिलालेख कलचुरि संवत 919
• अमरकंटक मूर्तिलेख कलचुरि संवत 922
• रत्नदेव तृतीय का खरौद शिलालेख कलचुरि संवत 933
• पासिद ताम्रलेख कलचुरि संवत 934
• प्रतापमल्ल का पेंडराबंध ताम्रलेख कलचुरि संवत 965
• प्रतापमल्ल का कोनारी ताम्रलेख कलचुरि संवत 968
• प्रतापमल्ल का बिलाईगढ़ ताम्रलेख कलचुरि संवत् 969
• वाहर के महामाया मंदिर, रतनपुर शिलालेख संवत 1552
• वाहर का कोसगई प्रथम शिलालेख
• वाहर का कोसगई द्वितीय शिलालेख विक्रम संवत 1570
• ब्रह्मदेव का रायपुर शिलालेख विक्रम संवत् 1458
• हरि ब्रह्मदेव का खल्लारी शिलालेख विक्रम संवत 1470
• भानुदेव का कांकेर शिलालेख शक संवत 1242
• अमरसिंह देव का आरंग ताम्रपत्र संवत 1792

• लखनी देवी मंदिर, रतनपुर शिलालेख
• लहंगाभाठा जबलपुर संग्रहालय शिलालेख

• मलुगिदेव का कोटेरा ताम्रलेख शक संवत 1106
• भोजदेव का कोटेरा ताम्रलेख शक संवत 1126 का ताम्रलेख
• भोरमदेव से प्राप्त सं. 1407 का सती शिलालेख
• देवकूट मंदिर शिलालेख

• बाघराज का तिथिरहित गुरुर स्तंभलेख
• कर्णराज का सिहावा लेख शक संवत 1114 (ईस्वी 1191-92)
• पम्पराज के दो ताम्रपत्र लेख कलचुरि संवत 965 और 966 (ईस्वी 1213 और 1214)
• भानुदेव का कांकेर शिलालेख शक संवत 1242 (ईस्वी 1320)


• रतनपुर कर्णार्जुनी मंदिर शिलालेख सं.1927
• शिवरीनारायण सिंदुरगिरी मंदिर शिलालेख

रत्नपुर भोंसलाकालीन उत्कीर्ण लेख
• रतनपुर कर्णार्जुनी मंदिर शिलालेख संवत 1927
• शिवरीनारायण सिंदुरगिरी मंदिर शिलालेख
• सरगुजा अंचल के अन्य उत्कीर्ण लेख
• महेशपुर से प्राप्त त्रिपुरी कलचुरियों का शिलालेख
• डीपाडीह शिलालेख

मेरे द्वारा तैयार यह सूची पूर्व में इस ब्लाग के पेज के रूप में थी, अब पोस्ट के रूप में प्रस्तुत की गई है। पोस्ट पर आई टिप्पणियों को भी यथावत रखा जा रहा है।

1. शकुन्तला शर्मा June 10, 2013 at 6:26 PM छत्तीसगढ की पावन धरा इतनी समृध्द है, ऐसा तो मैने कभी सोचा भी नहीं था, मुझे लगता है कि जिस तरह राहुल जी की गति बढ रही है, यह लिस्ट भी बढेगी। जितने भी शिलालेख, भित्तिलेख, गुहालेख, स्तम्भलेख, प्रतिमालेख एवम् ताम्रपत्रलेख उपलब्ध हैं, इन सबको शीघ्रातिशीघ्र, पढने की उत्कट इच्छा हो रही है। राहुल जी की साधना स्तुत्य है।
2. RAM SUMER July 16, 2013 at 6:18 PM Mati m mil jaahi re mati ke chola kaakhar karaun main gumaan. ... Sir! Ye abhilekh likhne-likhaane vaale raaje -mahaaraaje yaa unke vansh ke log smy ke pravaah me kahaan kho gaye sir.....! Aur chhattisgarh fir se matiyaet hone jaa rahaa hai power plant ke baadh me.... Jim kisaano ko kayi sau saal tk unke kheton ko pani ke liye trsna padaa.... ab apne purkhon ki thaati ko kaudiyon ke daam bechkr kin dhoolkno me gum ho jayenge. pta nhi ?
3. Unknown January 8, 2019 at 9:22 PM Excellent knowledge sir...
4. mspotapani April 25, 2020 at 8:27 PM दुर्लभ संकलन एवं शोध के लिए सादर-सादर नमन सरजी।
5. Anonymous July 1, 2020 at 2:49 PM सर इसमें धमधा के महामाया मंदिर का शिलालेख और दानी तालाब का ताम्रपत्र भी जोड़ सकते हैं।
6. Unknown July 8, 2021 at 11:10 PM Sbhi shilalekh k bare m detail jankari upload kre....