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Tuesday, February 20, 2024

निगम सर को पत्र-1986

1986 का साल। तब न मेल, न मोबाइल। पत्र माध्यम होता था, अब लगता है कि ‘वे दिन भी क्या दिन थे‘ आदरणीय डॉ. लक्ष्मीशंकर निगम (पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर में विभागाध्यक्ष रहे, श्री शंकराचार्य व्यावसायिक विश्वविद्यालय, भिलाई के संस्थापक कुलपति), जिन्हें संबोधित यह पत्र है, बस इतना ही कहना है कि उनसे जितना पाठ-मार्गदर्शन कक्षा में मिलता था, शासकीय सेवा के दौरान मिलता रहा और अब भी मिलता रहता है। और खास कि यह पुर्जानुमा यह कागज उनके पास सुरक्षित था, उन्होंने मुझे वापस सौंप दिया। आगे पत्र का मजमून, जो अपना बयान खुद है-

आदरणीय गुरुदेव,

व्यग्रता के फलस्वरूप इस कागज पर पत्र लिख रहा हूँ, प्रथम समाचार ताला से प्रतापमल्ल का ताम्बे का एक सिक्का मिला है, ऐसे सिक्के बालपुर और संभव है अन्य sites से भी मिले हों.
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दूसरा यह कि पीछे मुण्डेश्वरी मंदिर का plan है जिसमें नीली स्याही से regular lines वाला हिस्सा वास्तविक plan है, पेन्सिल से भरा हिस्सा, एक तरफ मात्र दिखाई गई दीवाल है, जबकि काली स्याही से बनाई गई टूटी रेखाएँ extension हैं, जिनके द्वारा इस मंदिर को भी ताराकृति भू-योजना बनाने के इरादे में हूँ, निःसंदेह आपकी स्वीकृति एवं अनुमति के बाद, मंदिर का काल भी इधर के ‘कोसली‘ के कालों का ही है, अंतर यह है कि इनमें बाहिरी भाग पर plan है, मुण्डेश्वरी में भीतरी भाग पर, जैसा नीचे चित्र से स्पष्ट है। जोना विलियम्स ने कुछ अन्य प्रकार से इसे अष्टकोणीय, ताराकृति, पंचरथ, आदि कहते हुए एक अन्य नाम कश्मीर के ‘शंकराचार्य‘ का दिया है. 

कोसली → मुंडेश्वरी 

मेरे extension हेतु सचिवालय की विशेष सहृदयता देखने को मिली, और उन्होंने बहुत सामान्य से प्रयास के फलस्वरूप स्वतः ही 8.10.86 से अर्थात् लगभग 15 दिनों पूर्व extension order भेज दिया वह मुझे मिला, पिछले दिनों ही. इसमें आगे के लिए सुरक्षित मार्ग क्या हो सकता है, इसकी राय के लिए में स्वयं रायपुर उपस्थित होऊंगा, आपका मार्गदर्शन मूल्यवान होगा. 

इसी बीच आपका पत्र मिला, इसके लिए किसी टिप्पणी की स्थिति में मैं स्वयं को नहीं समझता, इतनी अतिरिक्त सूचना और देना चाहता हूँ कि इन सिक्कों पर जिस प्रकार का चक्र बनाया गया है ठीक वैसा ही, उतना ही सुन्दर colour polished terracotta चक्र हमलोगों को ताला से प्राप्त हुआ है, मैं उसके फोटोग्राफ व आकार आदि आपको लिख भेजूंगा, paper पढ़ने के समय आप वह भी प्रदर्शित कर सकते हैं या जिस तरह से आप उपयोगी मानें. 

श्री नगायच जी व आपको संयुक्त दीपावली शुभकामना नगायच जी के पते पर ही भेज चुका हूँ मिला होगा, सूचनाएं एवं अभिवादन से नगायच जी को भी अवगत कराइयेगा. हमारी नयी findings (ताला की) संबंधी समाचार chronical में प्रकाशित होगा, cuttings नगायच जी को भेज दूंगा. 

सपरिवार कुशलता की कामना सहित रायकवार जी का अभिवादन भी ग्रहण करेंगे। 

राहुल 

पुनश्चः बस्तर में (जगदलपुर) हो रहे परिषद के seminar के लिए मेरी कोई आवश्यकता समझें तो सेवा हेतु याद कीजिएगा. 

पत्र कार्यालय के पते पर भी भेज सकते हैं- 
Office of the Registering Officer (Arch.) 
Rajendra Nagar 
Bilaspur (M.P.)

Tuesday, July 26, 2022

नदी गोठ

‘जीवन देवइया छत्तीसगढ़ के नदिया‘ शीर्षक वार्ता, ‘मोर भुंइया‘ आकाशवाणी, रायपुर का कार्यक्रम, जिसकी प्रस्तुति श्याम वर्मा जी की तथा भाग लिया डॉ. विष्णु सिंह ठाकुर, डॉ. लक्ष्मी शंकर निगम और राहुल कुमार सिंह ने। प्रथम प्रसारण तिथि- 17 जनवरी 2012.
डॉ. विष्णुसिंह ठाकुर,राहुल कुमार सिंह और डॉ. लक्ष्मीशंकर निगम
यह वार्ता आकाशवाणी से समय-समय पर दुहरा कर प्रसारित होती रही है और जब भी प्रसारित होती है, पसंद करते किसी परिचित का फोन आता है। ठाकुर सर और निगम सर के साथ बैठना और बात करना, मेरे लिए तो तीर्थ-लाभ जैसा ही है। व्यापक विषय ‘समय-सीमा‘ में, इसलिए आधी-अधूरी सी लग सकती हैं। यह ध्वन्यांकित वार्ता मामूली सुधार कर बातचीत की ही तरह यहां प्रस्तुत-

सिंह- गोठ-बात बर हमन इहां जुरे हन, डॉ. विष्णु सिंह ठाकुर साहब हें, पुरातत्व क्षेत्र के अउ छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ अध्येता आयं, काफी इन सर्वेक्षण करे हावयं, चप्पा चप्पा छत्तीसगढ़ के देखे हुए हे आपके और डॉ. लक्ष्मी शंकर निगम साहब हें, आप पुरातत्व अउ विशेषकर पुरातत्व के ऐतिहासिक भूगोल के क्षेत्र म, दक्षिण कोसल के ऐतिहासिक भूगोल हे, ते कर संबंध म आप शोध करे हें। छत्तीसगढ़ कई क्षेत्र म जाए के आपो ल काफी मौका मिले हे अउ मैं राहुल कुमार सिंह, महूं पुरातत्व के विद्यार्थी रहें और ओ कर बाद अपन काम काज के दौरान मो ल बस्तर से ले के सरगुजा तक पूरा उत्तर-दक्षिण, रायगढ़ से ले के राजनांदगांव तक, अलग अलग काम से क्षेत्र म जाए आए बर मिलिस, नदिया नाहकन, नंदिया के संग-संग चलत रहेन, नदिया के उद्गम संगम ल देखत रहेन, ओइ सब चर्चा बर हमन बइठे हन। ठाकुर साहब लगातार ए क्षेत्र ल देखत रहे हें, जीवन देवइया नदिया मन के बारे म ठाकुर साहब से हम कुुछ सुनना चाहबो, जानना चाहबो

श्री ठाकुर- राहुल जी, आजकल एक ठक कहावत निकले हे ‘जल ही जीवन है‘ और ए हर प्रशासकीय स्तर से प्रचारित करे जात हे। जल देथे कोन हर, आसमान हर देथे, फेर हम पाथन कहां, बोहावत-बोहावत जउन नदिया नरवा म पानी आवत रथे तउने ल हम हर पाथन, देखथन, अउ तइहा जुग में आदमी हर अपन बसेरा नदिया के तीर में, पानी के तीर में बनावय, एकरे सेतिर पूरा भारत में हम देखबो त का बर, देखथन हमर सभ्यता हर एक साल, दू साल, तीन साल, दस साल, हजार साल, नदिया के तीर म बसे हे। परंपरा हमार जीवित हे उहां, नदिया में, तओ छत्तीसगढ़ के घलो हमर ओइ हालत हे ओइसनहे, यहां के सबले बड़े नदिया जउन ह सब नदिया मन ल बटोरत बटोरत बोहावत आथे अउ समुद्र म जा के मिल जाथे ओ महानदी ए। कांकेर से सिहावा तक एक पहाड़ी ए जउन ल राजीवनयन महातम्य जे प्रकाशित होए हे ते म कंक कहे हे अउ श्रीमदभागवत म भी ए नाम हे कंक, कंक पर्वत से निकले के सेती ए कर नाम हे कंकनंदिनी

सिंह- ए ल चित्रोत्पला गंगा के भी नाम दिए जाथे, महानदी ल

श्री ठाकुर- हं, महानदी ल चित्रोत्पला गंगा भी कहे जाथे, बिलकुल आप सही कहत हौ, चित्रोत्पला, नीलोत्पला, उत्पल याने कमल। तओ जउन राजिम नयन हे, राजिम हे वो कमल क्षेत्र में हे, कमल क्षेत्र कहलाथे, का बर, ओही मेर महानदी हर चित्रोत्पला हे, सिरपुर म आ के बिचारी हर महानदी ए।

सिंह- निगम सर से चर्चा करत हन के हमर चित्रोत्पला गंगा तो हमर महानदी ए, जे समुद्र म जाथे अउ गंगा नदी, एक मैदानी भाग म जे ग्लेशियर के नदी होथे, पहाड़ी नदी, बरफ पिघले के नदी, ते मन के स्थिति अउ हमर इहां के छत्तीसगढ़ के स्थिति कइसे रथे

श्री निगम- वइसे छत्तीसगढ़ के जे मैदान हे, ओ मैदान ह उत्तर भारत के दोआब के बाद सबसे बड़े ए, ओतका बड़ मैदान देखे बर नइ मिलय। ओ ल तैं नक्सा म देखबे त अइसे लगिही कि बिलकुल प्लेन चलत हे कहूं उंच-नीच नइ दिखत हे। दोआब जे गंगा यमुना के हे ओ म जतका पानी आथे ओ म से जादा पानी हिमालय पहाड़ से आथे, ओ बर्फीला ए, बर्फीला होए के कारण, बाद में तो बरसाती पानी आथे, अउ ठंड में, गरमी में, ठंड में तो जम जाथे, लेकिन गरमी में बरफ पिघल के फेर पानी आथे। छत्तीसगढ़ म ओ स्थिति नइए, इहां के अधिकांश नदी मन बरसात म तो बहुत बोहाथे, गरमी म कइ ठन सूख जाथे, ओ कर कारण ए हे कि ओ कर जल संग्रहण क्षेत्र हे ओ म बारों महीना पानी नइ मिलय, लेकिन ए नदी म जइसे ठाकुर साहब बताइस, सब ले बड़े नदी महानदी ए, अउ जो हर समुद्र म जाथे, त समुद्र म जाथे त बाद में जइसे जइसे बढ़त जाथे ओ कर रूप ह विकराल होत जाथे, बड़े होत जाथे अउ खासकर के सिवनाथ नदी, जो ओ कर सब ले बड़े सहायक नदी ए छत्तीसगढ़ में वहां जाए के बाद ओ कर रूप ह एकदम बदल जाथे। त महानदी के जल संग्रहण क्षेत्र काफी बड़े हे, लेकिन शिवरीनारायण, जिहां सिवनाथ हर मिलथे, ओ मेर एक ठन अउ नदी मिलथे, जोंक नदी, जोंक घलो बड़े नदी ए, उड़ीसा के माड़ागुड़ा से निकले हे, पुरातात्विक स्थल ए, अउ बोहात-बोहात शिवरीनारायण म आ के मिलथे, जोंक भी मिलथे, सिवनाथ भी मिलथे। तो जइसे राजिम एक बड़े संगम ए वइसे एक बड़े संगम बनथे ओकरे पाए के राजिम असन बड़े तीर्थ सिवरीनारायण ल घलो माने जाथे। एक बात अउ बता दंव राहुल जी, हमर इहां नदी के उद्गम, ओ कर संगम, अउ जउन मेर ओ समुद्र म मिलथे, तीनों स्थान ल बड़ा पवित्र माने जाथे,

सिंह- सब तीरथ ए

श्री निगम- सब तीरथ ए, अउ हम देखथन कि तीरथ होए के कारण ए कर धार्मिक महत्ता तो हइ हे, ए कर पुरातात्विक महत्ता भी बहुत अधिक आ गए हे अउ सब स्थान में बड़ा पुरातत्व के धार्मिक नगरी अउ तीरथ सब मिलथे। जइसे कि राजिम हे, सिवरीनारायण हे, सोमनाथ हे, मनियारी अउ सिवनाथ के संगम म ताला हे अउ आगे जइसे जइसे बढ़त जाबो वइसे वइसे संगम मिलत जाही, अउ ओ संगम के बड़ा महत्व हे।

सिंह- नदिया मन सब बांध बनिन, बांध ले नहर बनिन एहू मन तो एक तरह से पहिली जे पुराना सभ्यता के आधार रहिसे अउ अब ओ कर आधार म जे बांध बन के, नहर बन के अलग-अलग पानी पलोये के इंतिजाम होइस, सिंचाई के इंतिजाम होइस ओहू ह एक नया तरह से जीवनदायिनी स्वरूप ए नदिया मन के

श्री ठाकुर- हां, बिलकुल ठीक कहत हव। गंगरेल बांध हे अउ गंगरेल बांध से विशाल नहर निकलथे। ओ नहर हर आधा ले जादा, पूरा रायपुर जिला अउ दुर्ग के बहुत बड़े हिस्सा ए मन ल पलोथे, गंगरेल हर। मगर पूरा छत्तीसगढ़ ल पलो सकय अतका छमता ओ म नइए। संगे संग एक विशेष बात बतावत हंव, जउन चारों कोती के पानी इकट्ठा होथे, एक स्थान में, ते ठेलका बांधा, बांध नो हय, मैदान हर अइसे ढालू हो गे चारों तरफ से अउ ढलुआ में आ के केंद्र म ओ हर जल हर भरा जाथे, ढेलका गांव में ओ बोहाथे अउ उहां से जेन नरवा निकलथे ओ गंगरेल के धारा ल ठेलका बांध म डालथें अउ ठेलका बांधा के नहर में, गांव के नहर में, जइसे गरमी के फसल बर जइसे हमार इहां नहर छोड़थें त नहर म नइ आवय, ठेलका बांधा म आथे अउ ठेलका बांधा, सब नरवा मन में जाथे चांपारन में चम्पारण जेन कथें ए मन हर तो शासकीय ए में भले बोल देथंव, मगर ओ ल मैं चंपारण नइ मानव, चांपाझर ल, वहां नरवा बोहात आथे, ओ नरवा मोर गांव से गए हे

सिंह- नदिया मन के साथ, हम जे बात करथन तओ नदी मन जइसे बरसात के दिन म जब नदी बढ़ जाथे, पूरा आथे, त ओ कर से काफी नुकसान भी होथे और ए मन ल सब ल नियंत्रित करे बर, काबू करे बर, अउ ओ कर जे जीवनदायी स्वरूप ए, जीवन देवइया ओ कर रूप ए, तइ ल एक प्रकार से बनाए रखे बर बांध, अलग-अलग बांध, देश म बड़े बड़े बांध बनिस, अउ निगम सर ओ कर बारे म कुछ जे बड़े बांध हमर इहां बने हे

श्री निगम- हमर इहां जे सब से बड़े बांध, जेन हिंदुस्तान म हे ओ तो भाखरा नंगल ए। पुराना छत्तीसगढ़ के हिस्सा रहिस संबलपुर, ते म हीराकुड म घलो बांध बने हे बहुत बड़े अउ छत्तीसगढ़ म देखबे त एक ठन बांध हे धमतरी तीर में माडम सिल्ली, ओ कर सबसे बड़े बात ए ओ समय के बने हे, जब सीमेंट के अविस्कार नइ होए रहिसे, चूना म जोड़े हे ओ ल। अउ दूसर का करे हे ओ ल साइफन तकनीक के प्रयोग करे हे ओ म पानी हर जइसे जादा होथे, खिड़की खोले के जरूरत नइ होवय साइफन से निकल जाथे। ए लगभग सौ साल होवत हे। भाखरा नंगल, हीराकुंड तो हइ हे, बाणसागर घलो नवा जीवन देहे हे ओ क्षेत्र ल। हमर इहां के जउन बांध मन हें, वइसे कहि सकत हस कि पहिली नदिया नाला के सब पानी समुद्र में जाथे, फेर बांध ल हमन बना के वापस ओ ल खेत म भेज देहेन। त ए बांध हर फेर जीवनदायिनी बन गे। पहिली तो नदी के किनारे बसना जरूरी रहिसे, अब तो जरूरत नइए, अब तैं कहूं बस जा, बांध बन गे त पानी तोर इहां पहुंच जाही। अउ जीवनदायिनी नहर घलो बन गे ओ कर शाखा।

सिंह- एक प्रकार के नहर घलउ हर नदिया के ही रूप ए, ओकरे निकास ए। तओ नदिया मन तो जीवनदायिनी हें फेर बांध के रूप म बंधिन अउ फेर नहर के रूप म बन के जीवनदायिनी एक अलग रूप म नदिया मन ही निकलिन। त ए तरह के हमर जीवन बर चाहे ओ हर फसल के रूप म होवय, हमर रोजमर्रा के जिंदगी बर होवय, हमर पूरा सभ्यता बर होवय, ए हर प्रकार से नदिया मन हमर जीवनदायिनी ए अउ कहे गए हे सप्तगंगा कहे गए हे देश के हमर जेन बड़े नदिया, अउ सिर्फ हमर देश म नहीं पूरा दुनिया म चाहे ओ नील नदी होवय या यांगटी सिक्यांग होवय, तओ ए सब नदी ह्वांग-हो नदी होवय,

श्री निगम- मिसिसिपी

सिंह- मिसिसिपी हे। हमर गंगा यमुना सरस्वती तो हइ हावयं, त ए सब मन हमर जीवनदायिनी नदी एं। ए सब नदी मन के स्मरण हर ही अपन आप म एक तीर्थ के लाभ देथे, का बर ए सब मन जीवनदायिनी एं। एकर बारे म जे बड़े बड़े पुण्य तीर्थ बनथें नदी मन धार्मिक रूप से भी ए कर बड़ा महत्व हो जाथे।

श्री ठाकुर- राष्ट्रीय स्तर पर पुराण परंपरा म जउन नदी मन के उल्लेख आए हे अउ जउन ल हम ह सामान्य परंपरा हे कि नहाए के पहिली, चाहे हम गांव के तरिया म नहावत हों, नरवा म नहावत हों, ओ पानी ल धर लेथन ओ म हम ह ओ ल अभिषिक्त करथन, गंगा यमुना याने ओ ए पानी में विराजमान हे, अउ हम फेर ओ पानी ल अपन सिर म लेथन, शरीर म लेथन नहाथन। ये गौरव परंपरा में धर्म के क्षेत्र में महानदी ल कहां तक नइ मिलिस, शिवरीनारायण के आगे तक। मगर ए स्थान में, याने मैं आपसी चर्चा में कह चुके हंव, छत्तीसगढ़ हर हमर पांचरात्र धर्म के सबसे बड़े केंद्र ए और महानदी ओ कर संवाहिका ए, शिवरीनारायण कहथन, ओ शबरी के नो हय ओ बिचारी नासिक के ए शबरी हर ओ सौरी नारायण, विष्णु के एक नाम सौरी हे, चतुर्विंशति रूप, अभी मैं श्रीमदभागवत पढ़त हंव, चतुर्विंशति रूप जउन हे ओ में आदि नारायण, ये कोन ए, जउन विग्रह ए, ओ राजिम में हे, ओही रूप सौरी में हे, शिवरीनारायण में, बिल्कुल अलग-अलग नारायण के रूप ए एमन, अउ जांजगीर तो एकमात्र अइसे जगह ए, जिहां मंदिर में चौबीस विष्णु के चौबीसो स्वरूप के चतुर्विंशति स्वरूप के अंकन हे, ठीक...

सिंह- ए मन ल कई प्रकार के नया नया रूप देथे नदिया हर तओ कइसे ढंग से दिखथे हम ल

श्री निगम- अभी ठाकुर साहब जे बात करिस ओ म एक बात अउ ख्याल आत हे, महानदी जो हमर हे, ओ जगन्नाथ जी के यात्रा के भी नदी ए। आज जगन्नाथ पुरी ल कहिथें, कि जगन्नाथ जी के बड़े केंद्र ए, लेकिन जगन्नाथ जी के मंदिर हे ओ कर पहिली हमर इहां शिवरीनारायण म जगन्नाथ जी के दर्शन हो जाथे। अउ मो ल तो अइसे लगथे कि जगन्नाथ जी हे न, ते छत्तीसगढ़ से ही होत होत जगन्नाथ पुरी पहुंचे हे।

श्री ठाकुर- राय ब्रह्मदेव के समय में राजिम में जगन्नाथ मंदिर दाउजी हर बनाए हे, ए कर अभिलेख हे, बालचंद जैन ओ ल प्रकाशित करे हे, अभी भी दीवाल म ओ लिखे हुए रखे हे ओ कर इहां अउ ओ कर बाद शिवरीनारायण में भी होए हे। तओ दोनों क्षेत्र, जिहां तीन नदिया के संगम मानथन हम परंपरागत रूप से, जिहां भी महानदी के तीन नदिया मन के बीच संगम होए हे ओ पांचरात्र धर्म के केंद्र रहे हे।

सिंह- ए तो नस-नाड़ी भी ए, एक प्रकार के जीवन के प्रवाह हे, जे नस-नाड़ी कहे जाथे नदिया मन ल, कभू अइसनहा जमाना भी रहिस हे कि जब शायद सड़क के अतका इंतिजाम नइ रहिस तओ

श्री ठाकुर- नइ राहुल, सुरता होही आप जानत हौ, जांजगीर के आगे चांपा के रास्ता में हसदो

सिंह- हसदो नहाकथे, जी, जी हां 

श्री ठाकुर- हंस दो, दो हंस, द्वि हंस के कथा अउ ए हसदो कतेक ...

सिंह- ए सब मन तो नदी मन जे प्रकार से जीवन संचार ए, रक्त प्रवाह ए, तइ प्रकार से ए हावयं, ए मन के बताहीं निगम सर

श्री निगम- छत्तीसगढ़ में जो नदी हे, हमन नदी के तो सुरता बहुत करेन, ओ कर वैभव ल गाथा ल, लेकिन यहां कोन कोन नदी हे ओकरो बारे म थोरकन बता देतेव आप।

सिंह- एक सोन ल, सोन के नांव सब ले पहिली मैं लेना चाहिहंव। ओ ए नांव से कि सोन के बारे म अक्सर कहे जाथे कि ए हर अमरकंटक ले निकले हे, अइसनहा लेकिन मान्यता ए, ए हर। सच्चाई ए हे कि ए हर पुराना पेंड्रा जमींदारी के गांव रहिस सोन बचरवार, ए सोन बचरवार हर आज भी छत्तीसगढ़ के हिस्सा ए, जिहां से ए सोन नदी के उद्गम हावय और कुछ हिस्सा ही ए कर छत्तीसगढ़ म होवय लेकिन एकर उद्गम सोन के, छत्तीसगढ़ म हे ओइ नांव से ए कर नांव लेना जरूरी हे सोन के नांव कि जइसे देश म हम ब्रह्मपुत्र के नांव लेथन, तओ ब्रह्मपुत्र ल पुल्लिंग नदी माने जाथे, नदी आमतौर से स्त्रीलिंग ए, लेकिन कुछ नदी अइसनहा हे जे मन ल नदी नहीं, नदी के बदला म नद कहे जाथे त ओ म ब्रह्मपुत्र एक हावय बड़े नद ए, अउ ओ रूप म देखन अगर हम अपन क्षेत्र म, छत्तीसगढ़ म त दूसर शायद सब ले महत्वपूर्ण अउ बड़े नद ए, जे हर सोन ए और अइसनहे हमर इहां शिवनाथ जे हर महानदी के प्रमुख सहायक जलधारा ए ओहू ल पुल्लिंग माने गए हे नद माने गए हे, एक सरगुजा के जल प्रवाह हे कन्हर, कन्हर घलौ ल कहे जाथे ओ कर बारे म मान्यता हे। जशपुर म नदी मन ल ले के बहुत, जशपुर के नदी के कहानी हे, जशपुर से लगे हुए पांच-सात किलोमीटर दूर नदी निकलथे, एक नदी हे सिरी अउ दूसर नदी हे बांकी, दुनों छोट छोट नदी ए, सिरी ल पुल्लिंग माने जाथे, पुरुष नद माने जाथे, ओ कर बहाव के दिशा सीधा हे और बांकी के नाम शायद अइ नांव से बांकी पड़े हे का बर एकर बड़ा सरपीला, टेढ़ा-मेढ़ा एकर बहाव हावय और दुनों के उद्गम एके जगह ले हे एके पहाड़ी ले हे, दुनों ल माने जाथे कि दुनों के चूंकि उद्गम एक ही ए, ते नांव से दुनों ल भाई-बहिनी माने जाथे। त हमर इहां ए नदी मन के स्वरूप ल आमतौर से और नदी मन के पवित्रता हे, मंदिर मन म बहुत महत्वपूर्ण ओ कर एक चित्रण होथे सर, ओ कर बारे म कुछ, नदी मन ल जे स्थान दिए गए हे मंदिर म जेन प्रकार से

श्री निगम- ए हर अइसे लगथे, गुप्त काल म चालू होए रहिस हे। कालिदास अपन कुमारसंभव म लिखे हे कि मंदिर के द्वार में गंगा-यमुना के अंकन करना चाहिए। त ओ परंपरा फेर अइसे चलिस कि हर मंदिर में गंगा-यमुना के अंकन द्वार में हो जाथे अउ अइसे कह सकत हस कि अगर तोर तिर पानी नइए, अउ तैं पवित्र हो के नइ आए, त ओ कर दर्शन मात्र से तैं पवित्र हो गएस, मंदिर म घुसे के पहिली, नदी के दर्शन हो जाथे, ओ कर पूजन हो जाथे त आदमी पवित्र हो जाथे,

सिंह- प्रतीक रूप म हो जाथे। 

श्री निगम- प्रतीक रूप म हो जाथे। त इही सब बात ए अब पुराना सियान मन काए सोच सोच के लिखे हें, बनाए हें ओ तो शास्त्र भी जानथे अउ पुरातत्व भी जानथे, लेकिन आम आदमी ओ ल नइ समझत हे, ओ कर वजह से थोड़ा समस्या हो जाथे त ओ ल जानना भी चाहिए अउ हमर मन के काम बताए के घलो आय।

सिंह- जीवन, नदी मन, पवित्रता के परिचायक ए, हमर धार्मिक विश्वास, सभ्यता के लेकिन निश्चित रूप से अलग अलग ढंग से देखे जाए त मनुष्य के जीवन बर कतका जरूरी ए और कोन प्रकार से ओ मन जीवनदायिनी स्वरूप देथें, ते कर हम ल हमेशा प्रत्यक्ष उदाहरण देखे बर मिलत रथे, चाहे हमर सभ्यता होवय, संस्कृति होवय, हमर खान-पान होवय, हमर यातायात परिवहन ए और जल के आवश्यकता तो हइ हे ओ कर तो पूर्ति करते हावयं, सिंचाई म, खेती बाड़ी म सब जगह तओ ए जीवनदायिनी नदी मन ल हम आज याद करत हन। नदिया मन हमर तो जइसे महानदी हे, राजिम हे, आरंग हे सिरपुर हे, शिवरीनारायण हे, नारायणपुर हे। अइसनहा बहुत अकन स्थान हे जे सिर्फ धार्मिक स्थान नो हय, ए कर संग म व्यापारिक स्थान भी ए, राजधानी भी ए, तओ ओ कर बारे म आपके साथ देखे हुए निगम साहब के

श्री निगम- राजधानी बर अइसे ए कि बहुत जरूरत हे, बहुत पानी लगथे, बिन पानी के राजधानी नइ चल सकय, घर-मकान बनाबे, सेना रइही, घोड़ा रइही, हाथी रइही, ओ कर नहाए धोए बर, खाए पिए बर लगिही, त ए बड़ा अइसे स्थान होना चाहिए, जहां पानी के साधन रहय। और नदिया से बढ़िया साधन तो कुछ हो नइ सकय। जब नदिया नइ रहय त तरिया बना लेथें, लेकिन तरिया म तो इकट्ठा करबे, ए म तो प्रवाहित होत हे। त छत्तीसगढ़ म जब राजधानी के बात चलिस त मोर ख्याल से सबसे जुन्ना राजधानी महानदी के तीर में सिरपुर ह मिलथे। सिरपुर के राजधानी आप देखो ईंटा के मंदिर बने हे उहां। ईंटा के मंदिर का बिना पानी के बना सकिहीं,

सिंह- बहुत जरूरी हे

श्री निगम- बहुत जरूरी हे, भट्ठा लगाए बर, ईंटा बनाए बर, त पूरा राजधानी हर वहां से बने हे, ईंट के मकान भी बने हे वहां, कई ठन मंदिर बने हे अउ अइसे कहे जाथे कि सिरपुर में पहिली अतका खजाना छुपे हे कि पूरा पृथ्वी हर दू दिन तक खा सकत हे, त ए हर महानदी के समृद्धि ए। महानदी के तीर म बस गे, सबे प्रकार के उहां व्यापार भी होत रहिस हे, हम ल जानकारी मिले हे कि वहां अनाज के भंडार रहिस हे। गंध के व्यापारी रहयं वहां, ओकरे नांव से गंधेश्वर महादेव नाम पड़े हे, तओ व्यापारी रहिन हें उहां, चीनी यात्री ह्वेनसांग आए रहिस हे, यात्रा पथ घलो ए। मगध के राजकुमारी के शादी होए रहिस हे इहां के राजा संग, वासटा आए रहिस हे। मगध तक रस्ता रहिस होही तभे तो।

सिंह- चीनी सिक्का, रोमन सिक्का

श्री निगम- चीनी सिक्का, रोमन सिक्का मिलथे, त ए हर व्यापार के बहुत बड़े केंद्र रहिस हे, धर्म के बड़े केंद्र रहिस हे और राजनीति के तो सत्ता रहिबे करिस हे ए म राजवंश के जे भूमिका हे ते तो हइ हे लेकिन ए म बहुत बड़े भूमिका नदी मन के घलो हे अउ ओकरे पाए के आप देखो जहां भी होही राजधानी नगर के नदी के तीर में बसथे।

सिंह- सिरकट्टी ल भी माने जाथे कि बंदरगाह ए, प्राकृतिक रूप से सिरकट्टी म ...

श्री ठाकुर- सिरकट्टी में बंदरगाह डॉ. चन्द्रौल सिद्ध करे हे। फिंगेस्वर करा,

श्री निगम- पांडुका तीर हे। 

श्री ठाकुर- पांडुका के उपर म और वहां नौकायन, नौका से अउ हम जे भुवनेश्वर के संबंध म जे इतिहास हे महानदी के मार्ग से नौका म आदमी आवय, व्यापारी अपन व्यापारिक माल ल ले के आवय, और सरकट्टी म बकायदा बने हुए हे सीधा जा के नाव ह खड़ा होवय अउ अइसे तट के तीर में गड्ढा सीधा, तओ नौका हर अइसे तट के तीर म आ गे, माल उतार चढ़ा, अउ ओकर बाद, ओ हर अइसे गिंजर के अइसे दूसर लाइन म आवय

सिंह- पथरा हावय, संयोग से तट मिल गए हे पत्थर के

श्री निगम- बहुत बढ़िया हे अइसे कि नदिया के तट म पथरा हे पथरा ह घुस गए हे, अइसे लेगबे त तो जमीन मिल जाही नदी के भीतर पथरा मिल गे त ओ ल काट दिन ओ मन, अउ चेनल बना देहे हे, कई ठन डोंगा ल उहां रख सकत हस।

सिंह- धमतरी के पास म लीलर म भी ए प्रकार के माने जाथे कि अइसे व्यवस्था हे

श्री निगम- अइसे लगथे कि पुराना जमाना म ए सब नदी बंदरगाह रहिन हें

सिंह- एक मल्हार के भी नाम मिलथे, मल्लालपत्तन

श्री ठाकुर- मल्लालपत्तन नाम ही सूचक हे कि यहां नदिया के, नौकायन के केंद्र रहे हे, व्यापारिक

सिंह- रोमन सिक्का उहों ले मिले हे, पुराना रोमन सिक्का मिले हे और अलग-अलग तरह के बीड मिलथे, मनका मिलथे

श्री ठाकुर- पुरातात्विक सामग्री के तो भंडार आय

श्री निगम- एक चीज अउ राहुल जी बतावं मैं, छत्तीसगढ़ के नदिया मन के बारे में। पुराण म बड़ा कथा मिलथे, कथा तो नइ, जानकारी बहुत मिलथे। ए बात थोड़ा सा गड़बड़ जरूर रथे कि पुराणकार हर बोलथे कि कोई भी नदिया हर झील से निकलथे, अउ झील हर पहाड़ के तलहटी म बसिही, वहीं से निकलही ओइ पा के जतका नदिया हम पढ़त रहेन स्कूल के जमाना म महानदी, सिहावा पर्वत से निकल के बंगाल की खाड़ी में जाती है, अइसे पढ़त रहेन

सिंह- पुराण मन म अइसनहे नाम मिलथे

श्री निगम- पुराण में तो येही नाम तो नइ मिलय मगर हमर छत्तीसगढ़ के बहुत सारा नदी के नाम मिलथे, मिलान हो जाथे अउ काफी कोसिस करे हें विद्वान मन, जे म चित्रोत्पला, महानदी हो जाथे, शुनि शिवनाथ नदी ए, अरपा हे ओकरो नाम मिलथे कृपा के नाम से, खारुन ल क्रमु बोलथें, त अइसे बहुत सारा नदी मन हें, अभी ठाकुर साहब हरिशंकरी के नाम बताइस, त ए सब हर पुराण म मिलथे, त ए बात से स्पष्ट होथे कि छत्तीसगढ़ के नदिया मन के बारे में पुराणकार जानत रहिस हे, अउ न केवल जानत रहिस, बल्कि बताए हे कि कोन सा नदिया कोन से पर्वत से निकले हे, ओ म थोड़ा से गड़बड़ हो गए हे शायद हमर पुरातत्ववेत्ता अउ भूगोल वाला मन नइ जानत रहिन कोन नदिया कहां से निकलथे, का पाए के जब नदिया पहाड़ से निकलथे त कई ठन धारा आथे, त धारा के कारण भ्रम हो जात रहिस ओ मन ल लेकिन नदिया मन के बारे म जानकारी मिलथे।

श्री ठाकुर- राहुल जी, निगम जी मन जइसे बताइन न कि जइसे पुराण साहित्य में छत्तीसगढ़ के नदिया मन के बारे म उल्लेख मिलथे, बिलकुल मिलथे, ओ कर बारे म कोई कथा नइ मिलय

सिंह- लोक जीवन म खूब कथा हे 

श्री ठाकुर- त ए बिलकुल आप सही कहत हौ, लोकजीवन से जुड़े हे ए हर नदी मन, लोक संस्कृति, नागरक संस्कृति उभय संस्कृति एक साथ 

श्री निगम- छत्तीसगढ़ म दिखथे 

श्री ठाकुर- नदिया मन के माध्यम से मिलथे। 

सिंह- लीलागर बर, सिवनाथ बर, सब बर कहानी हावय, कुछ न कुछ कहानी मिल जाथे, ओ मन ल बड़ा जीवन स्वरूप, ओ मन के मानवीकरण कर के कहानी ओ मन के बहुत प्रचलित हावय।

श्री ठाकुर- लोक संस्कृति में अधिकांश नदी मन के बारे म कहानी मिलथे

श्री निगम- लेकिन ओ ल ठीक से व्यवस्थित करे के आवश्यकता हे। जे म पुराणकार अउ जउन लोक संस्कृति हे, दुनों के जब सम्मिश्रण होही, तब छत्तीसगढ़ के नदिया उपर बहुत सुंदर प्रकास पड़ सकत हे। 

श्री ठाकुर- बिल्कुल सही कहथौ, नागरक संस्कृति अउ लोक संस्कृति दुनों के हम ल दर्शन करे बर, हम ल मिलही

सिंह- दुनों ल शायद मिला के देखे के जरूरत हे, मतलब हमर एक ज्ञान के परंपरा हे, अध्ययन के परंपरा हे, हमर लोक जीवन, हमर अनुभव के परंपरा हावय, अउ ज्ञान के अउ अनुभव के दुनों के एक साथ मिलन जे प्रकृति के रूप म नदी हर हे, सभ्यता के रूप म मानव जीवन हे तओ ए कर सम्मिलन, लेकिन ए सब चीज हर, कहीं न कहीं ए देखे बर मिलथे कि नदी के संग संग होत हावय, नदी के किनारे किनारे म होत हे अउ नदी के पूरा एक अपन संस्कृति हो जाथे, सभ्यता हो जाथे अउ जे कर से सिर्फ न राजनैतिक स्थिति ल, व्यापारिक स्थिति ल भी, आर्थिक स्थिति ल भी अउ जीवन के सांस्कृतिक पक्ष ल हर दृष्टि से नदी के संग जोड़ के देखे जा सकत हे अइसनहा सब हमर नदिया मन हें, हमर जीवनदायिनी नदी मन हें, ठाकुर साहब आप बात म हिस्सा लेय, निगम साहब आपके भी धन्यवाद, बड़ा एक आनंददायक चर्चा रहिस, धन्यवाद।