2/C कुलसुम टेरेस, 7 वाल्टन रोड,
बंबई 39
4 अक्तूबर 1980
प्रिय श्री राहुल कुमार जी,
आपका २६/९ का कृपापत्र नवनीत से भेजा जाकर मुझे आज मिला। आपने मुझे स्मरण किया और मेरे बारे में जानना चाहा, इसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूं।
नवनीत मैंने यथामति-यथाशक्ति सेवा की थी। आपको और अन्य कई स्नेही पाठकों मेरे परिश्रम के पीछे कोई दृष्टि नजर आती थी, यह मेरे लिए बड़े परितोष की बात है। नवनीत से आप सब पाठकों का स्नेह पूर्ववत् बना रहे, यह मेरी हार्दिक कामना है।
पिछले दिनों महीनों में मुझे आंखों के चार बड़े आपरेशन कराने पड़े। सो थोड़ा-बहुत अर्थोपार्जन करते हुए ज्यादातर समय स्वाध्याय और आराम में व्यतीत कर रहा हूं। हां, उम्र अभी निवृत्त होने योग्य नहीं हुई है। लेखन में मुझे शुरू से बहुत आसक्ति नहीं रही है। यों भी मैं सिर्फ अपने काम से मतलब रखने और जरा अलग-थलग रहने वाला जीव हूं। लिहाज़ा मेरी चर्चा आप कहीं नहीं सुनेगे। चर्चा हो इसकी मुझे चाह भी नहीं।
आपका स्वाध्याय फले-फूले, जीवन में आप सुखी हों। आपने पत्र लिखने का कष्ट किया इसके लिए पुनः धन्यवाद।
आपका
नारायण दत्त
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वाराणसी
दिनांक २३।९।१९८०
महोदय,
नमस्कार।
आपका कृपा पत्र दिनांक १८।९।८० प्राप्त हुआ अनेक धन्यवाद। मुझे बड़ा हर्ष हुआ कि किसी ने मेरी पुस्तक ‘हनुमान के देवत्व‘ का अध्ययन तो किया। जो सामग्री मुझे प्राप्त होगी उसको दुसरे संस्करण में सधन्यवाद प्रकाशित करूॅंगा। यदि आप हनुमान का चित्र भेज सके तो बड़ी कृपा होगी।
आपका
(डा. राय गोविन्द चन्द्र)
सेवा में,
राहुल सिंह,
शासकीय संस्कृत महाविद्यालय,
रायपुर (म.प्र.)