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Saturday, March 5, 2022

खुसरा चिरई के बिहाव

छत्तीसगढ़ी साहित्य की विशिष्ट कृति ‘खुसरा चिरई के बिहाव‘ की रचना, खरौद निवासी कपिलनाथ मिश्र जी ने लगभग सन 1950 में की थी। जानकारी मिलती है कि पुस्तक का प्रकाशन, वर्ष 1954 में हुआ। शिवनाथ-महानदी संगम के उत्तर में स्थित खरौद, शिवरीनारायण के साथ जुड़ा, ऐतिहासिक महत्व का स्थान है। कपिलनाथ मिश्र, खरौद के प्राचीन लक्ष्मणेश्वर मंदिर के पुजारी थे और बड़े पुजेरी मिसिर जी के नाम से जाने जाते थे, खुशखत अर्जीनवीस भी। कपिलनाथ जी के पिता, भदोही, बनारस निवासी श्री रामलाल मिश्रा, शिवरीनारायण थाने में पदस्थ हुए। मगर भोले बाबा की लौ लग गई, लक्ष्मणेश्वर की पूजा करने लगे, नौकरी छोड़ दी, पुजारी बन गए और खरौद में ही विवाह कर, पक्का रिश्ता जोड़ लिया।

मिश्र जी के कथन का उल्लेख मिलता है कि- ‘मैं हर एक दिन बैसाख के महिना मा मंझनिया ज्वार हमर गांव के जुन्ना मदरसा के परछी मा जूड़-जूड़ बैहर पा के बइठे रहें। वोहिच् मेर दू ठन पीपर के पेंड़ रहीस। अउ ठउका पाके रहिन, तो वोकर खाये बर खुबिच्च चिरई जुरे रहीन अउ सब्बोच चिरई के मंध म खुसरा मन बइठे रहिन। तो सब चिरई अउ खुसरा मन के चरित्तर ल देख के मोर मन मा आइस के ये मन के कारबार ला लिख डारों।‘ (छत्तीसगढ़ी साहित्य दशा और दिशा- नन्दकिशोर तिवारी)
 
‘खुसरा चिरई के बिहाव‘ के कई संस्करण प्रकाशित होने की जानकारी मिलती है। यहां जिस संस्करण को आधार बनाया गया है, उसमें कपिलनाथ जी के नाम के साथ ‘शांत‘ उल्लेख है। उनका निधन सन 1953-54 में हुआ। यह पुस्तिका शिवरीनारायण मेले का आकर्षण होती थी, लेकिन मुखपृष्ठ का चित्र और तोता-मैना के संदर्भ के कारण, इसकी प्रतिष्ठा ‘केवल वयस्कों के लिए‘ वाली थी। यह कृति, चर्चित किंतु सहज उपलब्ध नहीं रही है, इसलिए यहां प्रस्तुत की जा रही है। प्रस्तुति में ‘- 1 -, - 2 - ... से - 32 -‘ तक, इस प्रकार दर्शाई संख्या, पेज नंबर हैं। मौलिकता को ध्यान में रखते, छपाई में प्रूफ की अशुद्धियों को यथावत रखने का प्रयास है।

- 1 - 
जय लखनेसर बाबा के 
खुसरा चिरई के बिहाव 

भर भर भर भर भरदा करैं। पाखन फोर चितरा संग लरैं।। 
तब पंड़का मन धाइन गोहार। मार पीट चलिगे तलवार।। 
लावा मूॅंड मुड़ाती है। तितुर कान छिदाती है। 
किसनाथी रोव गोड़ा तान। भरदा रोवैं झगरा जान।। 
पटइल बाबू संग संघाती। चढ़ बैठिन भरदा के छाती।। 
पीपर मां रैमुनिया बोलै। देखा पूत पिपरा झन डोलै।। 
कवका गिधवा धुनै निसान। लड़वैं गिद्ध समान।। 
- 2 - 
खुसरी बर सब लड़थैं। हमिच हमिच कहा थैं।। 
तेला सुनके निकरिस खुसरा। ठउका मोटहा अउ धम धुसरा।। 
जो तो बटेरिस आँखा ला। फट फट करके पॉंखी ला।। 
कचपच कचपच करे लगिस जब। सबो चिराई सटक गइन तब।। 
तब खुसरा के भईस बिहाव। कोन कोन का करिन उपाव।। 
तेला तूॅं मन सूना अब। सब नेव तरहा जूरिन जब।। 
गुंडरिया धान कुटाती है। सुहेलिया तेल चढ़ाती है। 
हरपुलिया हरदी पिसती है। रै मुनियां गारी गाती है।। 
मैना भात परोसती है। सब्बो लिटिया जेंवती है।। 
- 3 - 
घाघर दार परोस थें। हंसा हांस भकोसा थें। 
बकुला ढोल बजावा थे। कोकड़ा बरात जावा थें। 
अन्धरी कोकड़ा अउ बगरैला। घर मां रहि गइन माई पिल्ला।। 
ये मन घर ला देखा थें। रात के डिड़वा झड़का थे।। 
कौवा पतरी खीला थें। नौवा नेवता देवा थें।। 
सब नेव तरहा आवा थें। ओसरी पारा खाबा थें।। 
अटई खात अंचोवा थें। बटबई बरा बनावा थें। 
पन कोइला पानी लाना थें। बटेर पीठी साना थें।। 
छचान छाता ताना थे। हरील सब ला माना थे।। 
- 4 - 
ठेहूं गेहूं सुखावा थे। लेंधरा लाई ढोवा थे। 
कन्हैया साज सजावा थे। दहिगला दही जमावा थे। 
लमगोड़ी गोड़ ला ताना थे। पतरंगिया पतरी लाना थे।। 
धोवनिन ओढ़ना धोवा थे। कोकिला आरती गांवा थे। 
पपिहा पान प्यू करा थे। स्वाती बून्द अगोरा थे। 
राम चिरइया पत्रा वाला। गर मां पहिरे तुलसी माला।। 
पी पिया अगोरा थे। फां फॉं मार बटोरा थे। 
चकोर चकरी दारा थे। दपकुल दार निमारा थे।। 
अधरतिया रात के आवा थे। देवार मांग मांग खावा थे।
- 5 - 
सुरसा खिरमा नावा थे। कोढ़िया सूत के गावा थे।। 
छितकुल छेना जोरा थे। बटरेंगवा लकरी फोरा थे।। 
गुँरू गुरला बांटा थे। चांबा चोली छांटा थे। 
सारस साग परोसा थे। रौना खूब भकोसा थे।। 
गरूड़ आलू रांधा थे। सोना सींका बांधा थे। 
कोंच जलदी धावा थे। चील चीला खावा थे।। 
चकही चकहा चन्व चक। बाज कर लक्ब लक्व।। 
फररौबा झांपी जोरा थे। जुर्ग नरियर फोरा थे। 
चेंपा चटक बताब थे। श्याम सोहाग जोरावा थे।। 
- 6 - 
घुटनूँ सरबत घोंटा थे। पी पी लोटत पोटा थे। 
तिल खाई तील भकोसा थे। घिवरी घीव परोसा थे।। 
लीलकंठ हर राधा थे। घोघिया घोड़ा बांधा थे। 
पपई पापा बांटा थे। कट खेलावा कउवा काटा थे।। 
तोंदुल चाउर धोवा थे। भरही ले ले ढोवा थे।। 
टिटिही टीका देवाथे। तेल हर्रा तेल लगावा थे। 
किल कीला मउर परोंसा थे। बंदुआ बरा झकोसा थे। 
घुघुवा ताल मिलावा थे। गिदरी गारी गावा थे। 
कराकूल जोरत धारा थे। परेवा पापर जीरा थे। 
- 7 - 
बन्दक सून के लदका थे। कोइली बोली झड़का थे।। 
सल्हई सारी लाना थे। धन्नेस पूड़ी छाना थे।। 
सुआ नगला पड़ा थे। दच्छोना वर आड़ा थे।। 
केप केपी कप कप कारा थे। फुल चुवकी फूल धारा थे।। 
सइहा सिहरी टारे है। पोझा मां मुँह ला फार हैं। 
रम ढेकवा गठरी बांधा थे। कोनरीला कोनरी रांधा थे। 
बुल बुल सब ला बलाबा थे। सबके घर मां जाबा थे।। 
बड़का गिधवा बाहे डोला। तैं का देवे खुसरा मोला।। 
मटुक लगाके सारस बईठे। खुसरा के तब डेना अहंथे।। 
- 8 - 
कुकरी कांवर बोहे। कुल छुल कुरता लोहे।। 
अकारा अटक केचाला थे। गिरे गिरिाये संकेला थे।। 
पनखौली। खपरेला खैर ला नवा थे।। 
सारदुल सुपारी काटा थे। चिंबरी चूना बांटा थे।। 
चकहा चोंगी देवा थे। सबो बरतिया लेवा थे। 
फैम करी गारा थे। अयरी पपची जारा थे।। 
नकटायर नीसान धरे हे। चंडुल चल चल करे हे।। 
काका तू आ कांपा थे। बुल बुल चिउरा नापा थे।। 
रेखा सबलो रेरा रेरा थे। रेंडुली गूरला पेरा थे।। 
- 9 - 
फुदुबकुल फरा जोरवा थे। पनबूड़ी पकुवा ढोवा थें। 
गराज स भैइदूहा थे। अकोला मुंगुवा गूहाये थे। 
खम कुकरा मंडवा छावा थे। भुदुकुल भजिया नावा थे। 
कारंड काजर पारा थे। राय गीध दार निमारा थे।। 
खंजन काजर आंजा थे। कोक भॅंड़वा मांजा थे। 
बट कोहरी ईंटा ढोवा थे। रम्हई गोरस खोवा थे।। 
मजूर मकुट बनावा थे। सूई जामा सीवा थे।। 
पनसू पानी ढोवा थे। डुम डुम सबो अंचोवा थे।। 
टिहला टिंग टिग कारा थे। रंगे बर ललकारा थे। 
- 10 - 
सबो बजनियां आवा थे। वाजा कइसे बजावा थे। 
डोला बइठे खुसरा हर। ठउका मोटहा धुसरा हर।। 
सूना भाई वाजा। सब्बो ये मैर आजा।। 
।। निसान हर कैसे बांजे।। 
गुदुम गुम गुदगुद गुदरम गों ओं ओं ओं ओं 
पद्दा बुड़ मड़ ते तद्दा बुड़ मर थे। 
कुड़ कत्थे कुड़ कत्थे बुड़गा डिम।। 
कुड़ कत्थे कुड़ कत्थे बुड़गी डिम। 
देव्वे तभ्म लीहां कायां।। 
देब्वे तभरे लीहां कथा।।१।। 
।। ढोला हर कैसे बाजे।। 
गिड़ियांग गिड़ियांग गिड़ियांग। 
ददा जाहां नीतो बाबा जाही।। 
ददा जाही नीनो बाबा जाती।।२।। 
- 11 - 
।। मांदर हर कैसे।। 
येद्दे येद्दे लसरे लसर। येद्दे येद्दे लतर लतर।। 
थिन्दा थिन्दा थीन्दा टोटा मेर ला खून्दा।। 
घिन्दा घिन्दा घिन्दा। टोटा मेर ला खून्दा।।३।। 
।। तमूड़ा हर कैसे बाजे।। 
ढन ढना झुमें ढनढनी झुमें ढनढना झुमें ढन ढनी झुमें।।४।। 
।। करताल हर कैसे बाजे।। 
उड़दे मटमटी उड़दे मटमटी उड़दे मटमटी।।५।। 
।। खंरी हर कैसे बाजे।। 
डुमलान बासीला डुमलान बासीला।।६।। 
।। मोहरी हर कैसे बाजे।। 
यूँकरी पूँकरी पूँकरी पूँकरी। 
तोर बापनी बाँचे डोकरी डोकरी।। 
लेले लेले झोंकरी झोंकरी। 
कुकुर अइसन भोंकरी भोंकरी।।७।। 
।। डफड़ा हर कइसे वाजे थे।। 
- 12 - 
फद्द फदा फदफद्दा के। एकौझन पद्दके। 
हटर हटर हद्दके। चला जलदी झद्दके।।८।। 
।। टिमटिमी हर कइसे बाजे।। 
टनन टनन पैसा खनन। सब्बे च पाईन मोरेच। 
मरन दिन रात ला काटे हां। बैठि मये तो चाटे हां। 
लिर बिट लिरबिट लटर लटर। मोर थोथना चटर चटर।।६।। 
।। नफेरी हर कइसे वाजे।। 
धरबे धरबे धरबे धरबे धार धार धार धार परपरहा ला मार मार मार मार। 
धत्ता धत्ता धत्ता धत्ता। चीकडू धरबे पनही छत्ता। 
धात्तेरे की दहात्तेरे की। हत्तात्तेरे की जहा त्तेरे कि चहा त्तेरे की 
लेइहौं लइहौं तीस वीस। टाँय टाँय फिस फीस।। १०।। 
‘‘शिखिरिणि छन्द‘‘ 
( १ ) 
अब होम होवाथे। 
आँड़ारू के हाँडी हम दुनों चाटेन एकमां। 
- 13 - 
पछाड़ी जो चाटै तब झपट भागे चटकमां। 
कहाँ आये बाई अब भयेन भैटा झट इहां।। 
बसातो मोला तै अस सपट बइठे चुप कहां। 
सरूपा बिलरी होमा थे मुँह ला फार के।। 
दांत ला निकार के सुआहा ! हा ! हा !! हा !! 
चोकडू बिलरा पढ़ा थे। 
( २ ) 
चला जल्दी जाई धर झपट गांड़ा घरगियां। 
बने कारी खैरी ठन दशक ठउका हय चियां। 
उहां ले जो आवो झट उत्तर दमले भितरमां। 
सबै लइका मारै तब टरका भौंड़ी उपर माँ। 
( ३ ) 
विदारे लै लूठी कहि जुटहि रांडी मरमुखी। 
चला भागा भाई अस कहत जाबो घर दुखी। 
कहां जावो कोती अउ कहत माऊँ सुन सबो। 
सवै मारैं ढेला पिउ उपर दमले हपटबो। 
- 14 - 
सबौ दौड़ैं छेकैं धरहु आसब घर घरन मां। 
कई बरजैं बोलैं यहि रहैं सब दिन सरनमां। 
कहै ननकी बच्चा हय ज्ञान दसवा धरनमॉं। 
नही आवें सुसुवा झट झपट लटकत गरनमां। 
( ५ ) 
(अब आहुती धर के पूरा कराथ, 
सरूपा बाई तैं अब घिव सुपारी धर लेवा। 
सुना ठउका मंत्रा बस पुरिस जल्ली धर देवा। 
कहैं ‘सांता नंदा‘ अब जबड़ फदा फद फदा। 
आहा हा ! हा ! हा ! कर दुइ झपट्टा कुदकुदा।
 
‘अब विदा होवा थे‘ 
आंवर परिगे भांवर परिगे आउ पर गे टक्का 
खुसरीके मुंहला खुसरा देखके मारत लेगे धक्का। 
दस प्रकारके बाजा बाजे पढ़वैया मन भाये हे। 
भाग भैगे खुसर के रट पटही खुसरी पाये हे। 
घाघर भांचा खुसर जाना तेकर भइसा विहाव। 
- 15 - 
कपिलनाथ हर जोरिस येला बठिके पापर छॉंव 
भूले चूके छीमा करिहा मैं तो निचट अनारी। 
तू हरे हांसे वर झपयायै झनि दइहा मोलागारी 
लइका मनवर वनगे भाई हांसा आउ हंसवा 
एक बात ला मनिहा भाई येला सबेच बिछावा 
।। जय लखनेसर बाबाके।। 
अब डोला उठा थे। 
बिदाई के गीत ला सूना। 
खुशरौवां राजकरैना। जेके ब्रह्माके रेख टरेना। 
आवा जाहीं में कागा निकलिगे कौर्रोवां कागद धरैनां।। हो।। 
आंजत माजत मजरूवा चेतसि, बनवां निरत करैना, 
आधा सरगले भरुतो बोलै, कुरीं के बजार भरैना। 
झूलवा ऊपर रेखा बोले, गडुली चूं चूं करैना। 
सारस के मूंड पां मटुक विराजे, रमढेकया थैली धरैना। 
चार बंद पानी मां बिन बिन, कोतरीला थैली धरैना। 
- 16 - 
ताला भीतर ले पन बूड़ी बोले, अयरी कसर करैना। 
सन तो गोरिया मन हर करिया, बकुला छगल धरैना। 
लील कंठ कारा भखत, राम राम बिसरैना।। 
करन मा कैसो वोकर, दरसन कौन तरैना। 
सुधर परेवा मुंड़ी डोलावै, जोड़ो छिन विछुरैना।। 
खुट खुट खुट दाना खाथे, कांदी घास चरैना। 
भूसी मजूरो के काम नइये, गल गल घान चरैना। 
घाम सीत बरसा सब सहथै, आन सङ्ग झगरैना।। 
रोज रोज माठा जल पीथै, मटकी मां पानी भरैना।। 
- 17 - 
मनमो कतको मौज उड़ावै बिन हर भजन तरैना। 
चकोर हर अङ्गारा ला खाथै, ओकर चोंच जरैना।। 
जैकर हरि रच्छा करवैया, कोनो के मारे मरैना।। 
दिन मां अँजोरी रात के अँजोरी, बो घर दिया बरैना।। 
बिन दाया सीना रघुबर के, कौनो काम सरैना। 
आधा सरग चील मडराये, छत्ता तान धरना।। 
चका चका की रैन बिछाहा, खुसरा मौज करैना। 
खुसरा खुसरी दोऊ नाच, मन मा मौज भरना।। 
मैना मीठी तान सुनावै, सुअना भजन करैना। 
- 18 - 
गये जवानी ढूँढ़े मिलैना, लाख जतन बहुरैना। 
सब पंछी मिलि हरिगुन गाइन, मगल चार करैना।। 
कपिलनाथ आसा चरनन के, बिन हरि कृपा तरैना। हो। 
बिदाई के बेरा समधी मन भेट करे लागिन, तौ एक झन सियान बरतिया कहीस महराज ये खुशी आनन्द के बेरा माँ मोरो भजन के एक दू पद ला र न ला तूॅं हर मरजी होय तौ कहौं तौ सब मन कहीन का हो हो गावाना हो येमा पूछे बर का काम है। तेकर पाछू वो ही सियान। बरतिहा हर झूल झूल के गाये लागीस।। 
।। जय लखनेसर बवा।। 
दुलहा डौकी ला सुनाय के गाथै, 
चम गेदरी भये वो रानी भाना।।वो।। 
वो तो गुरू के बचन नहि माना। वो। 
- 19 - 
मोती सिरा रानी ला छांड़ि के। भाना वर पंच रेंगना। 
चार कुटुम ला घर बइठांर के। घर के जमा लुटाना।।१।। 
मइके ले ससुरे मां आये, एँड़ा के दरस नइ पाये। 
दिन के तोला कैद करैहों, रात के पंथ चलाना।।२।। 
अस्ती ले तोर मस्ती आये, रंग में रंग मिलाना। 
भाव भजन के मरम म जाने, मनुख जनम नहिं पाना।।३।। 
बालापन मां खेल गंवाये, ज्वानी में रङ्ग नाना। 
बिरधापन अब आन तुलाना, हीरा अस जनम गंवाना।।४।। 
तैं भाना माया मोह मां भुलाये, काम क्रोध मन 
- 20 - 
बार बार तोला गुरु समझावै, हरि के भजन नहिं जाना।।५ 
घर के पुरुष पथाना बद मानैं, गुरु का काठ मसाना। 
गुरु के बचन पुरुख के कहना, एक्वोला नहिं माना।। ६।। 
कंचन के मोर देहिया बमे हैं, मन मां भरे गुमाना। 
कैसे के तोरे चरन पखारौं, जगिय मोला बताना।।७।। 
तोला देइहौं चम गेदरा के चोला, उलटा डार झुलाना। 
पिया के बचन ला माने नाहीं, परे नरक के खाना।।८।। 
दिन भर भान अंधरी रहिबे, दोउ नैना मां टोप लगाना 
रात रात भाना चारा चरबे, गिंजर भूल घर आना।६। 
- 21 - 
कहाँ के जोगी कहां के जिड़ा, कहां के हो बट पारा। 
पशु पंछी सब सोवन लागे, दुख मां रैन गवाना। १०। 
धन दौलत तोर माल खजाना, सबै छूट यह जाना।
कर सत सङ्ग गुरु चरनन के, तब ओही घर पाना।।११।। 
सत गुरु बचन सुनो भाई साधो, हरि के चरन चितलाना। 
हरि के चरन मां प्रान बसत हैं, छोड़ चरन कहं जाना।। १२।। 
(बरतिया ला सुनाय सुनाय के कथैं ) 
चिरई के नाव 
चीं चीं चीं चीं करती है, चार चिरिया आवत हैं। 
निवरा सुदिन बिचारता हैं, ठुमक ठुमुक मन 
- 22 - 
हरती हैं।। भर भर भरनी करे। पाथर फोर चितरा से लरे।। 
बप चितरा के औरे बात, ओकर कोई न पावैं घात।। 
तब मन सांकर टोर पराय। ढूँढ़े मिले न कोट उपाय।। 
बांझी के पीउ तरे तखार। ओला कांबर रचिस करतार।। 
दहिंगला दही जमाती है। पतरिलवा पानी डुहरती है।। 
कजरिलवा भात पसाती है। गौरेलिया पाठ पढ़ाता है। 
कठ खुलही कठवा खुलता है। मैना कैसे नचती है।। 
तीतुर तार मिलाया है। बकुला ढोल बजाया है। 
पहार ले बोल अखॅंडा, मोर पूँछा मां बांधा डंडा।। 
मै सब चिरइन का करिहौं बंडा, 
पहार ले बोले बावन वीर।। मोर पूँछी मां बांधा तीर। में लड़िहौं लिट्टी सों बीर।। 
बांस के पूत बसौंधा डोले। मोर बांह बल है अनमोले।। 
नौबाहाथे मूडमुंडाऊं। मोर असमंत्रीला कहँपाऊं।। 
मैं मारौ दहराके कोतरी। बिन बिन बोला डोरौं ओदरी।। 
सारस लमगोड़ी हर बैठे। जग थाला इक थाला ऐंठे।। बैठे बंदर बाह 
- 23 - 
डुलावे। खावे फल अउ गाल फुलावे।। 
ऊपर से उपरेल्हा रेंगे बांधे तीर कमान। जांवर खरदा लिटिया दाबे दल में बजे निशान।। 
सब चिरई जुर मिलि के नेवता करी विचार। अटैल नेवतै बटैल नेवते कुरौं के दल भारी।। 
हाथ गोड़ है सुरकुट मुरकुट, मूं ओकर बड़ भारी। लाख चिरैया माँ कुर्री के दलभारी।। 
सवा सवालाख चिरैया माँ कौन पियावै दूध। सवालाख चिरैया माँ चम गिदरी पियाइन दूध। 
बैंगा चिरई सगुन विचारै सबमिल होइन डेड़हा। माई पिल्ला नेवता जायें घर में दीहिन बेहड़ा।। 
कौने वर का लानी भाई, कुहरी बाज झनजानै। उनका सोरलगे ना पावे, नहिं तो झगरा ठानै। 
खुसरा चलिन बिहाये बर, तोरातीं भाजा खबाइन, भाग भैगे खूसर के छचान नइ पहुंचाइन।। 
खुसरा राते आवै राते जाय राते लगन सधावै। बैजनाथ चिरईला भेंटिस बनत बात बिगड़ावै।। 
मटुक बांध के सारस अम्बे, लम्बा गरदन खूब 
- 24 - 
हलावे, अड़वन्द दहिंगला साजे, सुहेलर के बड़ भाग। गौड़ चिरई रैमुनियां बोले तेरा सुनावै राग। 
हरहर मड़वा करे, खुसरा बर के दाइज परे अचहड़ पर गये पचहड़ परगे परगे दाइज टक्का। 
खुसरी के मुँहला खुसरा देखे मारन लये धक्का।। 

अन्न के नांव 
तिल कहै मैं कारो जात, मैं बरिहौं अंधियारी रात। 
बेई कहै मैं कटहा जात, छेरिया खात न गरुआ खात। 
मोहिं बेई का ठाढ़ धंसाव, मोहिं बेई के तेल पेराव। 
मसुरा कहै मोर पेड़ झिथरी, दरे छरे में दिखों सुन्दरी। 
राहेर कहै रहरटिया खास, बिन कौले ना लागौं मिठास। 
बटुरा कहै मैं ढुल २ जांव, रोवत लइका ला भुरियांव। 
कूट काट कोठरी में धरिन, काम परेलडुआ बर हेरिन। 
तिवरा कहै मैं भाभर भोर गुज 
- 25 - 
गुल भजिया होत है मोर। 
जौन बतर लुए किसान, तब अरुअन के बांचिस प्रान। 
तब तिवरा मैं हाथे आंव, नहिं तो चटक खेत रहि जांव। 
अंकरी कहै मोर नइये चाह, मोहू का नइये पर वाह। 
एक साल में परिस दुकाल माई पिल्ला भइन बिंहाल। 
ठाढ़े पीसैं रोटी बनावैं, बैठे माई पिल्ला खावैं। 
उरिद कहै मोर मेघई नांव, महीं बसावो गंवाई गाँव। 
मोरे चकरी मोरे पहीत, मै बेठारों समधी सहीत। 
ए देह जरी सहैना जाय, बेड़हा अरसी चले रिसाय। 
उरिद के पीठी अरसी के तेल, इन दूनों ताई में होय वह पेल। 
चुर चुर बरा गये उपलाय, समधिन के मन मां आय। 
उरिद कहै मोर पेंड़ झिथरी, मैं वइतौं समधिन भितरी। चना 
कहे चक्वे कहायों, डारा पाना सबे खवायों। 
वारे पन में मूड़ मूड़यों, भर जवानी में फूल खोचायों। 
बुढ़त काल में ठुन ठुन बाज्यों तवहूं छोडिन नही किसान। 
अब कैसे मोर बांचे प्रान 
- 26 - 
एक साल में परिस दुकाल, 
गेहूं चना भइन विहाल गेहूं गोसैयाँ मर गये, चना गोसैयां जी गये। 
तब गेहू के छाती फाट, चटक चना के नाक उचाट। 
कुटकीं कहैं में तालम तूल, मोर भात कंबल कस फूल। 
गोंड़ गिराहीं नुनियां खांय, बड़े आदमी बहुत न खायं। 
काँग, मुडिला ज्वार बाजरा, हम चारों के भैयाचारा। 
कोंहडा कहैं मोर पेंड दुरिदा, मोलां देइन छानी कुरिया। 
जोंथरी कहै मैं सबल हीन, कोला पिछौता मोका दिहीन। 
माथे फूलों पांजर फरों बहुते जाय तो कुतरक धरौं। थोरे खाय तो मन ना माढो, 
अंडी कहै मोर तेल गढ़ार, मोर बिन गाड़ा पैर गोहार। 
कोदों कहैं मैं सब ले बसे, मोर बिना न रइ है देस। 
धान कहै मैं एकइ धना, सोन के डाड़ी रूप के फना। 
सरसों कहै सरसोंवाँ कहायो, रोग राग सब दूर बहायों। 
धनियाँ मिरचा लेहौं मिलाय मैं आमा का देहाँ खवाय।। 
- 27 - 
रूख के नांव, 
ओक धतूरा अन्डा भइन चन्दन औ वग रंडा भईन। 
कुम्ही अमेरा करन भइन, मेंहदी ग्वालिन दहिमन भईन। 
कैथ अमुरी गिंदोलन भईन, लाल साय बिजरा के भईन। 
चुहरा पेड़ तिवरैया भईन, कटहा झाड़ मकोइया भईन। 
धंवई और अरैला भईन, बिही लिमाऊ पतुवन भईन। 
सेम्हर सिरको कुरु भईन, डोकर बेला मेलन गईन। 
बिकट बिकट सूख घनेर, दुरिहा ले देखै वो धन बहेर। 
शोभित मौहा तेंदू चार लीम वकायन और वोहार हरी। 
औरा धौरंग बढ़ी, कसही कोलम साल्हो खड़ी। 
और रूख के करौं बखान, तेका सुनला धरके ध्यान। 
करी कोरिया बोइर के झाड़, येना छाड़े जंगल पहाड़। 
पेड़ घडोली फेर बमूर, फर फर बेल उन्हंू रहें मूल। 
घोट घांट खैर खरहार, ये हू बनमां करे बिहार। 
आमा अमली मुनमा मिलिन, पियरी फूल सिर हुट के फुलिन। 
ताल छींद में और सुपात, तब 
- 28 - 
नरियरकेबारी सुहात। 
कलमीमलिया माचिन, तिन पर बैठ चिरैया नाचिनि। 
कटंग मचोलन लागिन झूल, तब देखा तिलई के फूल। 
सरई, साजा, परस, परार राजकाज में लग्यों अपार। 
सीताफल, कदली अउ जाम, डुमर आवे सबके काम। 
दहिमन सुनसुन पांडर भईन, कदम झाड़ का मिलिन। 
गइन जरहा पो तेंदुके भईन, थूहा में डर और अकोल, बेदुल बांस रहे घने घोल। 
अमटी रोहिना लाले लाल, फरैं मैन फल और सुताल। 
नरंग बिजारी दरमी तूल दिखै बगीचा फूल।। 

अब समधी के फजीता ला छेवर मां सूना। 
दुलहा हर तो दुलहीं पाइस, बाम्हन, पाइस टक्बा। 
सवबैं बराती बरा सोहारी समधी धक्कम धक्वा। 
नाऊ बजनियां दोऊ झगरैं, नेग चुकादा पक्वा। 
पास मां एको कौड़ी नइये, समधी हक्वा बक्वा।। 
काढ़ मूसके ब्याह करायों, गांठी सुक्वम सुक्वा। 
सादी नई बरवादी भइगे, घर मां फुक्वम
- 29 - 
फुक्का। पूँजीहर तो सबे गाव, अब काकर मूतक्का। 
दुटहा गोड़ा एक बचेहें, वोकरो नइये चक्का। लागा दिन दिन बाढ़त जाथे, साव लगावे धक्का।। 
दिन दुकाल ऐसन लागे हे, खेत परे है सुक्का। लोटिया थारीं सबो बेचागे माई पिल्ला भुक्का।। 
छितकी कुरिया कैसन बचि है, अब तो छूटिस छक्का।। आगा नगाथैं पागा नगाथैं, और नगाथैं पटका। 
जो भगवान करें सो होहो लल्दा इहं ले सटका।।

ले भाई भइगे। राम राम जोहार जाथन दया मया धरे रइहा। कहें सुनेला छीमा करिहा भगवान के मरजी होही तब फेर मिल बो। अब थोरकन लखनेसर वावा के अस्तुती कर ला 
जेमा तूंहर दुख दरिद्र हर छुटही 
( १ ) 
जयति शंभु स्वरूप मुनिवरं, चन्द्रशीश जटा धरम्। 
रुंड माल विशाल लोचन, वाहनम् वृषभ ध्वजम्। 
नाग चम त्रिशूल डमरू भस्म 
- 30 - 
अंग विहंग मम्। 
श्री लक्ष लिंग समेत शोभिम विपति हर लखनेश्वरम्।। 
( २ ) 
गंग संग प्रसंग सरिता, कामदेव सेवितम्। 
नाद बिंदु संयोग साधन, पंच वक्र त्रिलोचनम्। 
इन्दु शशि धर शुभ्र मस्तक, सेवितं सुर वंदितम्। 
श्रीलक्ष लिंग समेत शोभित, विपति हर लखनेश्वरम्। 
( ३ ) 
लक्ष लिंग सुलिंग फणि मणि, दिव्य देव सु सेवितम्। 
सुमन बहु विधि हृदय माला, धूप दीप नैवेदितम्।। 
अनिल कुंभशुकुंभ झले कत कलश कंचन शोभितम्। 
श्री लक्ष लिंग समेत विपति हर लखनेश्वरम्। 
(४) 
मुकुट क्रीटक कर्ण कुण्डल, मंडितं मुनि वेषितम्। 
भंगहार भुजङ्ग, लंकृत कनक रेख विशेषितम्।। 
लक्षलिंग समेत शोभित विपति हरलखनेश्वरम्। 
- 31 - 
मेघ डमरू छत्र धारन चरन कमल रिशालितम्। 
पुष्परथ पर बदन मूरत गौरी संग सदाशिवम्।। 
क्षेत्रपाल सुपाल भैरव कुसुम नवग्रहमूषितम्। 
श्री लक्ष लिंग समेतशोभित विपतिहर लखनेश्वरम्, 
(६) 
त्रिपुर दैत्य सु दैत्य दानव प्रात्यते फलदायकम्। 
रावण दशकमल मस्तक अङ्ग जल शायकम्।। 
श्रीरामचन्द्रसुचन्द्र रघुपति सेतुबन्ध निवासितम्। 
श्रीलक्ष लिंग समेत शोभित बिपतिहरलखनेश्वरम्। 
(७) 
मथित दधि चल शेष विगलित भ्रमत मेरु सुमेरुकम्। 
स्नयत विख जल दीयत् प्रनवत पुमत नेत्र सुयोरकम्।। 
महादेव सुरपति सर्व देव सदा शिवम् श्रीलक्ष लिंग समेत शोभित विपति हर लखनेश्वरम्।। 
(८) 
 रुद्ररूपसुतेजमक्रित, भक्षमानहलाहलम्। 
गगन विघतन अखिल धारा, आदि अन्त समाहितम्।। 
- 32 - 
कामकंजर मानकेशव महाकाल सदाशिवम्। 
श्री लक्षलिंग समेत शोभित, विपतिहरलखनेश्वरम्।। 
(९) 
ऋतु वसन्त चक्र चहुं दिशि, प्राप्यते फल दायकम्। 
नग्र खर उद दिशा पश्चिम बास मंगल दायकम्।। 
सन्मुखे कर्बदे लिंग नन्दि भैरव शोभितम्। 
श्री लक्ष लिंग समेत शोभित विपति हर लखनेश्वरम्।। 
( १० ) 
दिशा पश्चिम कुण्ड लक्षमण, नैऋते रघुनन्दनम्। 
ईश दिशि गोपाल रंजित, साक्षि ईश्वर उत्तरम्। 
गर्भ ऋतु मुख श्री गजानन, गंग जमुन सुवाहनम्। 
नन्दी गण युत मध्य सुन्दर, जयति जय लखनेश्वरम्।। 
अब समापत होंये - 
लिखवइया -
कपिलनाथ मिसिर पुजेरी शांत, लखनेसर 
महादेव गाँव - खरऊद, डाकघर - सौरी नरायन
जिला - बिलासपुर (मध्य प्रदेश)
पुस्तिका का पहला और अंतिम पृष्ठ
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Sunday, February 27, 2022

एक चिड़िया अनेक चिड़िया

पक्षी, हमारे देश के साहित्य और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। हंस के नीर-क्षीर विवेकी होने का मूल शुक्ल यजुर्वेद है, जिसमें उसे पानी से सोम अलग कर सकने की क्षमता वाला बताया गया है। चक्रवाक यानि चकवा-चकवी जोड़े के दाम्पत्य प्रेम का आधार भी वैदिक साहित्य से आया है। ‘उल्लू‘ के लिए वक्र दृष्टि वैदिक काल से रही है, संभवतः उसकी बोली के कारण। वैदिक संहिता, ब्राह्मण और आरण्यक, उपनिषदों में एक तैत्तिरीय है, जो तीतर पक्षी के नाम पर है और इस तरह वैदिक साहित्य में तित्तिर, तित्तिरि (कपिंजल) अर्थात तीतर के नाम का महत्व सबसे अधिक है। उपनिषद में एक डाल पर बैठे, कर्ता और भोक्ता रूप वाले दो पक्षियों का उल्लेख आता है, इसी प्रकार शिकारी के बाण से बिंधे पक्षी को देख, व्यथा से महाकाव्य का जन्म होता है। मार्कण्डेय पुराण में पक्षियों को प्रवचन का अधिकारी बनाकर उनके द्वारा धर्म-निरूपण किया गया है। गीता में कृष्ण स्वयं को पक्षियों में वैनतेय- विनतानंदन गरुड़ बताते हैं। इसी गरुड़ का वामपक्ष, बायां डेना, वृहत्साम-लोक है और दायां दक्षिणपक्ष रथन्तर-शास्त्र। यों भी, शुक और काकभुशुंडी के बिना कौन सी कथा संभव है!

रामचरित मानस, अरण्यकाण्ड में राम की विरह-व्यथा के चित्रण में कहा गया है कि ‘कोयलें कूज रही हैं। वही मानों मतवाले हाथी हैं। ढेक और महोख पक्षी मानों ऊँट और खच्चर हैं। मोर, चकोर, तोते, कबूतर और हंस मानों सब सुंदर अरबी घोड़े हैं। तीतर और बटेर पैदल सिपाहियों के झुंड हैं। पपीहे भाट हैं, जो विरुद गान करते हैं। जलमुर्गे और राजहंस बोल रहे हैं। चक्रवाक, बगुले आदि पक्षियों का समुदाय देखते ही बनता है। सुंदर पक्षियों की बोली बड़ी सुहावनी लगती है, मानों राहगीरों को बुला रही हों। कोयलों की कुहू कुहू रसीली बोली सुनकर मुनियों का भी ध्यान टूट जाता है। इसी तरह किष्किन्धाकाण्ड में चक्रवाक, चकवा, चातक, चकोर जैसे पक्षियों के साथ ऋतु, मनोभाव और पक्षियों के व्यवहार-लक्षणों का रोचक उल्लेख- 'जानि सरद ऋतु खंजन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए।।' आया है।

जातक कथा में तीसरे परिच्छेद के अंतर्गत द्वितीय-कोसिय वर्ग का अंतिम जातक, उलूक जातक है, जिसमें उल्लू और कौवों के बैर की कहानी बताई गई है। उल्लू को पक्षियों का राजा चुने जाते हुए एक कौवा टोक कर कहता है-
न मे रुच्चति भद्दं वो उलुकस्साभिसेचनं, अकुद्धस्स मुखं पस्स, कथ कुद्धो करिस्सति।। अर्थात, हे भद्रों! उल्लू का अभिषेक मुझे अच्छा नहीं लगता। अभी क्रुद्ध नहीं है तब इसका मुख देखिए, क्रुद्ध होने पर क्या करेगा?, इस आपत्ति से उल्लू के बजाय हंस पक्षियों का राजा बनता है और उल्लू, कौवों से बैर ठान लेते हैं।

वाराहमिहिर ने शकुनसूचक पक्षियों में श्यामा, श्येन, शशहन, वंजुल, मयूर, श्री कर्ण, चक्रवाक, चाष, भण्डरीक, खंजन, शुक, काक, कबूतर, कुलाल, कुक्कुट, भारद्वाज, हारीत, खर, गृद्ध, पर्ण कुट, और चटक के नाम गिनाये हैं। बाणभट्ट के हर्षचरित में लोक और वन्य-जीवन की झांकी है। सप्तम उच्छ्वास में आया है कि ‘कुछ दूसरी तरह के बहेलिए चिड़िया फंसाने वाले शाकुनिक विचर रहे थे, जो कंधे पर वीतंसक जाल या डला लटकाए थे ... उनके हाथों में बाज, तीतर और भुजंगा आदि के पिंजड़े थे। चिड़िमारों के लड़के बेलों पर लासा लगाकर गौरेैया पकड़ने के इरादे में इधर से उधर फुदक रहे थे। चिड़ियों के शिकार के शौकीन नवयुवक लोग शिकारी कुत्तों को जो बीच बीच में झाड़ी में उड़ते हुए तीतरों की फड़फड़ाहट से बेचैन हो उठते थे, पुचकार रहे थे।

छायावाद के प्रवर्तक पद्मश्री सम्मानित छत्तीसगढ़ के कवि मुकुटधर पांडेय ने यहां आने वाले प्रवासी पक्षी ‘डेमाइजल क्रेन‘ पर ‘कुररी के प्रति‘ शीर्षक से कविता रची थी- ‘बता मुझे ऐ विहग विदेशी अपने जी की बात, पिछड़ा था तू कहां, आ रहा जो इतनी रात।‘

खरौद के पं. कपिलनाथ मिश्र द्वारा छत्तीसगढ़ी कविता ‘खुसरा चिरई के बिहाव‘ रची गई थी, जो मानों पूरा पक्षीकोश ही नहीं, उनके व्यवहार-स्वभावगत आचरण का मानवीकरण भी है। खुसरा गीत अन्य कई तरह से भी गाया-सुनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में पंडकी के साथ कलां, खुर्द, डीह, पाली, पारा, डीपा, भाट, पहरी जुड़कर, इसी तरह कुकरा के साथ झार, पानी, चुंदा जुड़कर और परेवा के साथ पाली, डोल, डीह जुड़कर ग्राम नाम बने हैं। गरुड़डोल, चिड़ियाखोह, चिरई, चिरईपानी, चिरईखार, सोन चिरइया, रनचिरई, हंसपुर, लवा, गुंडरू, घुघुवा, मंजूर पहरी, चिरहुलडीह, लिटिया, गिधवा, छछान पैरी जैसे पक्षियों पर आधारित नाम वाले अनेक ग्राम हैं ही, महासमुंद जिले में मुख्य राजमार्ग पर नवागांव में पहाड़ी पर छछान माता का मंदिर है। धमतरी-बालोद मार्ग के प्रसिद्ध महाश्मीय स्मारक क्षेत्र में बहादुर कलारिन और उसके पुत्र छछान छाड़ू की कथा प्रचलित है तथा उन दोनों का मंदिर भी हैै। छत्तीसगढ़ में पक्षियों की लगभग 450 प्रजातियां और उनकी बड़ी संख्या है।
सभी तस्वीरें रायपुर-बिलासपुर के आसपास,
कैनन-पावर शाट या निकान-प्वाइंट एंड शूट से, ली गई हैं।
कैमरे का उपयोग मेरे लिए
फोटोग्राफी से कहीं अधिक डाक्यूमेंटेशन के लिए
और बॉयनाकुलर जैसा है।

राज्य के विभिन्न स्थानों में इस क्षेत्र में स्वैच्छिक रुचि से कार्य कर रहे लोगों, शासकीय, अशासकीय संस्थाओं, संगठनों, समूहों जैसे वन विभाग, संग्रहालयों के साथ साथ प्रकाशित साहित्य आदि स्रोतों में उपलब्ध जानकारियों का लगातार संकलन अपेक्षित है। इसके तहत पक्षियों के विभिन्न आवासीय क्षेत्र, जैसे वन, दलदली भूमि, जलाशयों, बंजर मैदान, घास के मैदान, उद्यान, खेत आदि जगहों से पक्षियों की उपस्थिति और उनकी जानकारी, स्थानीय स्वैच्छिक रुचि वाले लोगों की मदद से संभव है। पंछी-निहारन, सर्वेक्षण का समय बरसात, ठंड और गरमी, तीनों ऋतुओं को ध्यान में रखा जाता है, ताकि स्थानीय पक्षियों के साथ साथ ऋतुओं के अनुरूप प्रवास पर आने वाले सभी पक्षियों की जानकारी भी एकत्र हो।

पक्षी, हमारे पर्यावरण के अभिन्न आवश्यक अंग हैं साथ ही कृषि-वनस्पति को नुकसान पहुंचाने वाले कीट-पतंगे, पक्षियों के भोजन हैं, जिससे ये हमारे लिए अत्यंत उपयोगी हैं। वनस्पतियों में फूलों के परागण, निषेचन तथा बीजों को फैलाने में भी पक्षियों की भूमिका होती है। पक्षियों में रुचि का आम जन समुदाय तक विस्तार होने से पक्षियों की तथ्यात्मक स्थिति के साथ साथ उनके संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में भी मदद होती है और यह पर्यावरण की ओर जागरूकता के लिए बड़ा योगदान साबित होता है, इस दृष्टि से इसमें समाज के सभी वर्गों का जुड़ाव अपेक्षित है।

कुछ वर्ष पूर्व मेरे द्वारा तैयार किया गया नोट
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छत्तीसगढ़ में पक्षी-प्रवास और नवा रायपुर 

‘बता मुझे ऐ विहग विदेशी अपने जी की बात, पिछड़ा था तू कहां, आ रहा जो इतनी रात।‘ मुकुटधर पांडेय की, छत्तीसगढ़ आने वाले प्रवासी पक्षी पर रची छायावाद की आरंभिक कविता ‘कुररी के प्रति‘ जुलाई 1920 में हिन्दी की प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुई थी। कवि फिर से कहता है- ‘ विहग विदेशी मिला आज तू बहुत दिनो के बाद, तुझे देखकर फिर अतीत की आई मुझको याद।‘ खरौद के पं. कपिलनाथ मिश्र की छत्तीसगढ़ी कविता ‘खुसरा चिरई के बिहाव‘ एक दौर में लोगों की जबान पर चढ़ी कविता थी। शीतकाल में प्रवासी, खासकर जलीय पक्षियों की विभिन्न प्रजाति राज्य के जलाशयों में डेरा डाले होते है, इस समय नवा रायपुर के पुराने अड्डों में भी ये रंग-बिरंगे प्रवासी मेहमान देखे जा सकते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में राज्य के राजधानी क्षेत्र के बदलते नक्शे के साथ जैव-विविधता और खास कर पक्षियों की दृष्टि से रोचक और समृद्ध इस क्षेत्र पर दृष्टिपात प्रासंगिक है।

छत्तीसगढ़ में गिधवा और रायपुर के परसदा तथा मांढर के इलाके को पक्षी संरक्षण क्षेत्र घोषित करने पर विचार होता रहा है। यह भी विचार होता रहा है कि पक्षी संरक्षण क्षेत्रों सहित नवा रायपुर में भी ऐसी प्रजातियों के वृक्ष लगाए जाएं, जिनके फलों और फूलों की ओर पक्षी आकर्षित होकर बसेरा बना सकें। नया रायपुर सुनियोजित, हरित एवं आधुनिक शहर कहा जाता है। यहां 55 से अधिक तालाबों के गहरीकरण और सौंदर्यीकरण की योजना है। नवा रायपुर के ग्राम झांझ (नवागांव) में लगभग 270 एकड़ जलाशय के मध्य में पक्षियों के लिए छोटे-छोटे नेस्टिंग आइलैण्ड बनाने पर विचार किया गया है। झांझ और सेंध जलाशय का क्षेत्र लगभग 100 हेक्टेयर का है।

नवा रायपुर के सेंध जलाशय और किनारा, पक्षियों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, साथ ही खडुआ तालाब तथा आसपास के क्षेत्र में विभिन्न पक्षियों का डेरा रहता है। राजधानी सरोवर और कया बांधा भी पक्षियों के निर्वाह केंद्र हैं। 230 हेक्टेयर क्षेत्र में विकसित जंगल सफारी के 18 हेक्टेयर क्षेत्र में जलीय पक्षी विहार का है। जंगल सफारी के पास केन्द्री गांव का मैदान-भांठा और तेंदुआ भी पक्षियों के लिए उपयुक्त है, जहां मौसम अनुकूल पक्षी देखे जा सकते हैं। सामान्यतः न दिखने वाली कुछ पक्षी प्रजातियां स्टार्क, आइबिस, प्रेटिनकोल, सैंडग्राउज, कोर्सर आदि नवा रायपुर में आसानी से दिख जाती हैं, इसी प्रकार शीतकालीन प्रवासी पक्षी भी यहां जलाशयों में आते हैं। अन्य पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां, बड़ी संख्या में यहां हैं और आसानी से दिखती हैं। 

नवा रायपुर पर्यावरण अनुकूल शहर के रूप में विकसित किया जा रहा है, आधारभूत संरचनाओं और अन्य विकास कार्यों के साथ पर्यावरणीय स्थितियों को सहेजना, बनाए रखना, एक चुनौती है। ध्यान रखना होगा कि यहां विकास-निर्माण के बावजूद खुले मैदान, जलराशि और हरियाली बनी रहे। यह इस क्षेत्र की जैव-विविधता को बचाए रखने के साथ इसे एक आदर्श आधुनिक बसाहट के रूप में विकसित और स्थापित करने में सहायक-आवश्यक होगा। 

कुछ वर्ष पूर्व मेरे द्वारा तैयार किया गया यह एक अन्य नोट, आंशिक संशोधन सहित 
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छत्तीसगढ़ में पक्षियों के साथ बीता साल-2015 

फेसबुक पेज BIRDS & WILDLIFE OF CHHATTISGARH के सदस्यों की संख्या इस साल 2015 में तेजी से बढ़ कर 1350 पार कर गई है और इसके सार्थक और उत्साहवर्धक परिणाम भी आए हैं। छत्तीसगढ़ के पक्षियों पर केएनएस चौहान और इला फाउंडेशन की पुस्तकों का जिक्र होता रहा, लेकिन पक्षी-प्रेमियों को ये आसानी से उपलब्ध नहीं हुई, यही स्थिति डा. एससी जेना की पुस्तक के साथ रही।

सत्तर पार कर चुके अरुण एम के भरोस और भरोस परिवार की सक्रियता हमेशा उल्लेखनीय रही है, वह वैसी ही बनी हुई है और छत्तीसगढ़ के पक्षी जगत की शोध स्तरीय अधिकृत जानकारियां, उनके माध्यम से गंभीर प्रकाशनों में शामिल हो रही हैं। ‘छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ सोसाइटी’ के सौरभ अग्रवाल की गतिविधियों की जानकारी सोशल मीडिया पर कम रही, लेकिन मोहित साहू और अमित खेर के साथ मयूर रायपुरे भी जुड़े और उनकी पक्षी-तस्वीरों की प्रविष्टियां आती रहीं।

रायपुर में सोनू अरोरा तस्वीरों, जानकारियों और फेसबुक जिम्मेदारियों में पहले की तरह महत्वपूर्ण भूमिका में रहे। युवा अविजीत जब्बल के बाद पहल करते दसवीं कक्षा के छात्र सिफत अरोरा ने डबलूआरएस से यूरेशियन रोलर की तस्वीर ला कर सब को चौंकाया और आठवीं कक्षा के आर्यन प्रधान ने भी आशाजनक दस्तक दी।

इसी तरह बस्तर से सुशील दत्ता ने हिल मैना के झुंड की फोटो ला कर नई और ठोस उम्मीद जगाई, उनके साथ पीआरएस नेगी का भी उल्लेेखनीय योगदान रहा और छत्तीसगढ़ में पक्षियों की कई अल्पज्ञात प्रजातियों की प्रामाणिक उपस्थिति दर्ज कराई। डेमोसिल क्रेन यानि कुररी, मलाबार पाइड हार्नबिल, डेजर्ट व्हीटियर, ब्लैक/ब्राउन हेडेड गल की उपस्थिति और अपमार्जक यानि स्केवेन्जर इजिप्शियन वल्चर की बढ़ती संख्या ने नई उम्मीदें जगाई हैं। बेलमुंडी के रोजी स्टर्लिंग का एयर शो इस साल भी आकर्षण का केन्द्र बना।

उधर जांजगीर के कुमार सिंह लगभग पूरे साल कम दिखने वाली पक्षियों की तस्वीरें ले कर आते रहे। नबारुण साध्य के छत्तीसगढ़ में होने से अधिकृत और महत्वपूर्ण जानकारियां आती रहीं। पिथौरा के जोगीलाल श्रीवास्तव, टीकमचंद पटेल, विजय पटेल, चरनदीप आजमानी, गौरव श्रीवास्तव के माध्यम से भी अच्छी सचित्र जानकारियां आईं और भागवत टावरी के पक्षी कैलेंडर के अलावा भी बेहतरीन तस्वीरें आती रहीं। 

बिलासपुर के राम सोमावार, डॉ. चंद्रशेखर रहालकर, डॉ श्रुतिदेव मिश्रा, विवेक-शुभदा जोगलेकर की गतिविधियों की नियमित जानकारियां नहीं मिलीं, लेकिन प्राण चड्डा सक्रिय रहे और अनिल पांडेय, शशि चौबे, सौरभ तिवारी, मजीद सिद्दिकी, शिरीष दामरे, सत्यप्रकाश पांडेय, अपूर्व सिसौदिया, नवीन वाहिनीपति, जितेन्द्र रात्रे सक्रिय रहे और श्याम कोरी ने अपनी देखी और ली गई तस्वीरों के साथ पक्षियों को सूचीबद्ध किया। 

साथ ही समय-समय पर डा. राहुल कुलकर्णी, विकास अग्रवाल, रिशी सेन, जगदेवराम भगत, रूपेश यादव, मनीष यादव, प्रदीप जनवदे, कुंवरदीप सिंह अरोरा, पंकज बाजपेयी, रवीश गोवर्धन, दिव्येन्दु मुखर्जी, विवेक शुक्ला, यश शुक्ला, कमलेश वर्मा, संजीव तिवारी, ललित शर्मा, डा. विजय आनंद बघेल, डा. सुरेश जेना, प्रदीप गुप्ता, वी एस मनियन, मत सूरज, रवीन्दर सिंह सैंडो, राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता, शिशिर दास, बाला सुब्रमण्यम, विशाल त्रेहन, अनुभव शर्मा, शैलेन्द्र सदानी, डा जयेश कावड़िया, निकष परमार आदि की ली हुई पक्षी-तस्वीरों से सामने आने वाली जानकारियों की लंबी सूची है।

मैंने पक्षियों और पक्षियों पर नजर रखने वालों पर पूरे साल नजर रखने की कोशिश की है. यहां प्रत्येक सुझाव का हार्दिक स्वागत रहेगा। 

‘बर्ड्स एंड वाइल्ड लाइफ आफ छत्तीसगढ़’ समूह के लिए  02 जनवरी 2016 की फेसबुक पोस्ट  

पुनश्च- अब इस समूह के सदस्यों की संख्या 9600 पार कर गई है। 2021 तक इस ओर कई पक्षी-प्रेमी सक्रिय हुए हैं, जिनमें रवि नायडू, सौरभ सिंह, डॉ. दिलीप वर्मा, सौमित्र शेष आर्य, डॉ. हिमांशु गुप्ता, हैप्पी सिंह, अविनाश भोई, फर्गुस मार्क एन्थनी जैसे कुछ सदस्यों से कई विशिष्ट जानकारियां आईं। साथ ही डॉ. मधुकर टिकास, डॉ. कपिल मिश्रा, अविरल जाधव, अशोक अग्रवाल, अनिल अग्रवाल, विकास अग्रवाल, हकीमुद्दीन सैफी, आलोक सिंह, महेश कुमार, संदीपन अधिकारी, पारुल परमार, चंदन त्रिपाठी, गोपा सान्याल, मंजीत कौर बल, हर्षजीत सिंह बल, अभिनंदन तिवारी, प्रसेनजित मजुमदार, राहुल गुप्ता, रत्नेश गुप्ता, देव रथ, श्रेयांस जैन, संतोष गुप्ता, गौरव उपाध्याय, दिनेश कुमार पाण्डेय, राजू वर्मा, आनंद करांबे, राधाकृष्ण, दानेश सिन्हा, प्रतीक ठाकुर, रवि ठाकुर, नरेन्द्र वर्मा, विजय जादवानी, जागरूक दावड़ा जैसे कई सदस्य सक्रिय रहे। (यहां नाम बतौर सूची नहीं, बल्कि उदाहरण के लिए आए हैं।)
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अपने लिखे उपरोक्त के अलावा पक्षियों पर एक अलग नजरिया, पुस्तक ‘शिकार के पक्षी‘ से, जिससे वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम-1972 के पहले की स्थिति और दृष्टिकोण को समझने में मदद होगी। लेखक श्री सुरेश सिंह की पुस्तक ‘शिकार के पक्षी‘, हिन्दी समिति, सूचना विभाग, उत्तर प्रदेश शासन, लखनऊ द्वारा 1971 में प्रकाशित की गई थी। इस पुस्तक की ‘भूमिका‘ ध्यान देने योग्य, इस प्रकार है- 

शिकार के पक्षियों को अन्य पक्षियों से अलग कर के एक पुस्तक के रूप में देने का तात्पर्य यही है कि हम अपने देश के उन पक्षियों से भली भांति परिचित हो जायें जो शिकार के पक्षी कहे जाते हैं और जिनके मांस के लिए लोग उनका शिकार करते हैं। 

शिकार के पक्षियों का सबसे बड़ा गुण, उनका स्वादिष्ठ मांस है और सबसे बड़ी विशेषता उनकी तुरन्त छिपने की आदत और तेज उड़ान मानी जाती है। दूसरे शब्दों में शिकार के पक्षियों की श्रेणी में वे स्वादिष्ठ मांस वाले पक्षी आते हैं जिनका शिकार आसान नहीं होता और जिसमें शिकारी को काफी परिश्रम करना पड़ता है। लेकिन इस परिभाषा को आधार मान लेने से शिकार के पक्षियों की संख्या बहुत सीमित रह जाती है और इस पुस्तक के लिखने का उद्देश्य पूरा नहीं होता। इस पुस्तक में तो उन सभी पक्षियों को एकत्र किया गया है जिनका शिकार किया जाता है और जिनका मांस खाने के काम आता है, जिससे हम सब उन पक्षियों से भली भांति परिचित हो जायें और यह जान जाये कि किस पक्षी का मांस खाद्य है और किसका अखाद्य है।

इतना ही नहीं, इस पुस्तक में हमें शिकार के प्रत्येक पक्षी के शिकार के बारे में भी थोड़ी-बहुत जानकारी हो जायेगी जो साधारणतया पक्षियों का परिचय देने वाली पुस्तकों से नहीं प्राप्त हो सकती, क्योंकि पक्षियों के बारे में जो पुस्तकें लिखी जाती है वे प्रायः इस दृष्टिकोण से नहीं लिखी जाती कि उनका शिकार कैसे किया जाता है बल्कि उनके लिखने का तात्पर्य यही रहता है कि उन पक्षियों के स्वभाव, बोली, निवास, रंग रूप, रहन-सहन, तथा अंडे और घोंसले के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें। इसी कारण शिकार के प्रेमी पाठक उनसे लाभ नहीं उठा पाते। प्रस्तुत पुस्तक उसी कमी को पूरा करने के लिए लिखी गयी है जिससे साधारण पाठकों का मनोरंजन तो होगा ही, साथ ही साथ शिकार से प्रेम करने वाले सज्जनों को इसमें बहुत-सी ऐसी बातें मिलेंगी जो उनके शिकार को सफल बनाने में सहायक सिद्ध होंगी। 
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और एक खबर, जो 29 अगस्त 1995 को दैनिक भास्कर, बिलासपुर में ‘अज्ञेय नगर में पक्षियों का जलविहार‘ शीर्षक से प्रकाशित, इस तरह- 

बिलासपुर। पक्षियों की प्रजातियां नगरीकरण के साथ-साथ मानव से दूर हो रही हैं। वहीं बिलासपुर के अज्ञेयनगर में एक पांच-सात एकड़ के जलकुम्भी वाले तालाब में अनेक प्रजातियों की पक्षी जल किलोल कर अपने वंश की वृद्धि कर रहे हैं। यदि इस स्थल को संरक्षित किया गया तो शहर के मध्य प्रवासी पक्षियों का डेरा इसी शीतकाल में जम सकता है।

अज्ञेय नगर के मध्य और तालापारा से जुड़े इस गंदले से तालाब में निस्तारी के पानी का ठहराव है जिस वजह पूरे साल पानी भरा रहता है। लगभग पांच एकड़ के इस भराव के चारों तरफ मकान भरे हैं। नागरिकों का कहना है कि यह उद्यान स्थली थी परंतु शायद गड्ढे के कारण यहां उद्यान बनाना संभव नहीं हो पाया और निस्तार का पानी एकत्र होते गया। ग्रीष्म ऋतु में भी यहां भराव बना रहता है। जलकुम्भी से यह स्थल लगभग भर चुका है। जलकुम्भी को समुंदर सोख माना जाता है। ऐसी अवधारणा है कि यदि जलकुंभी फैले तो समुद्र को भी अपने आगोश में ले सकती है। ये जल वनस्पति मानव के लिए कोई खास लाभदायक नहीं लेकिन अज्ञेय नगर में जलीय पक्षियों के लिए यह जलस्थल और जलीय वनस्पति तथा बेशरम की झाड़ियों से सुन्दर रैन बसेरा बन गया है।

जलीय पक्षियों के इस बसेरे को महाविद्यालय की एक छात्रा शाहिन सिद्दकी ने खोजा है। उसने पहली बार यहां विभिन्न प्रजातियों के पक्षी देखें और अपने परिचित विवेक जोगलेकर को इसकी जानकारी दी। बस फिर क्या था शाहिन, श्री जोगलेकर, राहुल सिंह ने पक्षियों की शिनाख्त शुरू कर दी। अब तक इस क्षेत्र में लाल बगुला, अंधा बगुला, कांना बगुला, पाइड किंग फिशर, स्माल ब्ल्यू किंग फिशर, व्हाइट ब्रेस्टेड किंग फिशर, राबिन इण्डियन, राबिन मैग पाई, खंजन, ऐशी रेन वार्बलर, बया, फीजेन्ट टेल जकाना, ब्रांज विंग्ड जकाना, कूट, कैम, मूरहेन, टील, लिटिल कारमोरेन्ट, पतरिंगा एवं रेड वेन्टेड बुलबुल हैं।

शरद ऋतु अभी आई नहीं परंतु खंजन पक्षी यहां पहुंच गये हैं। काले रंग के पक्षियों ने तो यहां अपने वंश की वृद्धि भी कर ली है। किलकिला (किंगफिशर) यहां हवा से सीधी गोताखोरी कर मछलियां पकड़ते दिखाई देते हैं। लंबी पूंछ वाली जकाना पक्षी (जलमोर) के यहां जोड़े हैं। जलीय पक्षियों के मध्य मानसून के साथ प्रवास में पहुंचने वाला चातक पक्षी भी यहां जोड़े में दिखाई देता है।

पक्षियों ने तो नगर के मध्य एक सुरक्षित परिवेश मान अपना बसेरा बना लिया। इस बात की आशंका है कि इस क्षेत्र में बढ़ती हुई पक्षियों की संख्या पर चिड़ीमारों की नजर न लग जाए अन्यथा अपने आप विस्तृत हो रहा एक उद्यान अपने पूर्ण विकास के पूर्व ही समाप्त हो जाएगा।
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