पंडुक, पंडुक से पंडुक-अंडा फिर पंडुक-बच्चा और फिर पंडुक-पंडुक। पिछली पोस्ट पंडुक का वाक्य है- ''अंडों में सांस ले रहे पंडुकों की करवट, का हाल परिशिष्ट बनाकर बाद में जोड़ा जा सकता है।'' उस पोस्ट पर उत्साहवर्धक टिप्पणियां भी मिलीं, जिनमें से एक, संजय जी की थी- ''गुडलक टु पेंडुकी परिवार।'' सुब्रह्मनियन जी ने लिखा- ''अण्डों को सेने के बाद वाली स्थितियां अनुकूल रहें''। अभिषेक जी ने कहा- ''नये पंडुक आयें तो फिर तस्वीर पोस्ट कीजियेगा।'' आशा जोगलेकर जी ने भी इसी तरह की बात कही। अब अच्छी खबर है तो लगा, परिशिष्ट के बजाय पोस्ट क्यूं नहीं।
18 मई की अलस्सुबह जच्चा एकदम सजग-सक्रिय दिखी और अंडे के इस बाइसवें दिन सुबह साढ़े छः बजे पहला चूजा निकला। जच्चा, खोज-खबर ले कर, आश्वस्त दाना-चारा के लिए निकल गई। हमने एक कटोरी में उसके चारे का इंतजाम किया। वह बस हमारा मन रखने को ही मनुहार करती लेकिन चारा चुगने फिर निकल जाती और कटोरी के चारे का जश्न मनातीं गौरैया। गौरैया की इतनी चहल-पहल से पंडुक अनमनी होने लगती और कभी पंख भी फड़फड़ाती।
चूजे की हलचल बढ़ गई, वह गमले के किनार तक आ जाता, एक बार तो बाहर गिरते-गिरते बचा। जच्चे की अनियतता देख कर लगा कि दखल जरूरी है, सो सावधानी से चूजे को अंडों व पूरे घोंसले सहित उसी जगह पर एक ऊंचे किनार वाले चौड़े गमले में रख दिया।
लगभग तीन घंटे बाद जच्चा आई, आधे घंटे थोड़ी विचलित रही, लेकिन जल्दी ही एक-दो परिक्रमा कर इस नई व्यवस्था को अपना लिया। पहले से चार घंटे बाद दूसरा चूजा निकला। दोनों चूजे कभी अलग तो कभी लट-पट होते। जच्चा, कभी अंडों के साथ चूजों को भी ढक लेती तो कभी दोनों पर अपनी चोंच आजमाती दिखती।
गमले में चींटियां दिखीं और एक बार फिर व्यवस्था बदलनी पड़ी। चूजा, यूं दुबका बैठा रहता, लेकिन जच्चा, जो सुबह-दोपहर-शाम दिन में तीन बार आती, के आते ही जो दृश्य बनता, वह कुछ इस तरह होता।
मई की तारीख पूरी होते-होते चूजे के सिर पर रोएं घने होने लगे, बॉडी लैंग्वेज पंडुक की होने लगी और 1 जून को यानि 26 अप्रैल से छठां हफ्ता पूरा होने पर और यह चूजा, अपना तीसरा हफ्ता पूरा होते-होते गमले के बार-लांचिंग पैड पर आ बैठा।
लगभग आधे दिन यहीं डोलता-खुद को तोलता रहा और फिर उड़ान भर ली। हम सबको कुछ और समय लगेगा, पंडुक के साथ की आदत बदलने में, अभी तो वह मन में घर किया बैठा ही है।
मजा आया पढ़ने मे बालसुलभ प्रसन्नता भी हुयी अभी तक चेहरे मे मुस्कुराहट है रही बात गौरैया की तो मै उनसे बड़ा परेशान हूं आफ़िस मे आकर बैठा नही कि बिस्कुट की फ़रमाईश चालू एक साथ पूरा भी नही दे सकता चीटीयो को भी मालूम पड़ गया है कि यहां एक अहमक चिड़ियो के द्वारा ब्लैक मेल किया जाता है एक मिनट के अंदर पहुंच जाती है टुकड़ो मे डालो तो जिस की चोंच समाया वह भाग निकली दिन भर यही कुछ चलता है
ReplyDeleteउनका जीवन तो सहज सरल होता है, इन्सान उससे सम्वेदनाएँ जोड लेता है।
ReplyDeleteशानदार रही उनके जन्म से कर्म पर जाने की यह कथा!!
बिल्कुल सहज पोस्ट। लगता है हम ही पाल-देख रहे हों पंडुक को।
ReplyDeleteआज गंगा किनारे एक बाज को टिटिहरी ने भगाया। टिटिहरी के अण्डे ले जाने की फिराक में था बाज। एक अकेली टिटिहरी ने जो कर्तब दिखाया, हम दंग रह गये!
इस तरह की गतिविधियां कलम बद्ध करना और शेयर करना - ब्लॉगिंग की बड़ी उपलब्धि मानता हूं इस समय में!
bahut hi sahaj, sundar our maarmik post.sajeev chitran.
ReplyDeletewah...close reading kar rahe hain aap unke wikas ki aur ham bhi aap ke jariye. thanx.
ReplyDeleteचित्र और बयानगी, अद्भुत दृश्य प्रकट कर रहे हैं.
ReplyDeleteजितना मधुर पंडुक है उतना ही मधुर लेखन . यही जिजीविषा है जीवन की .
ReplyDeleteराहुल जी,
ReplyDeleteमन प्रसन्न हो जाता है. प्रकृति की गोद के इन मासूम जीवों को देखकर... इनके होने से ही प्रकृति सम्पूर्ण होती है..
आजकल मैं भी एक गोरैया के नवजात बच्चे को चुग्गा खिला रहा हूँ... एक्जोस फेन के घेरे में बने 'घौंसले' से टपककर हर बार एक बच्चा वाशबेसिन में आ गिरता है. फिर उसकी परवरिश शुरू हो जाती है... प्रायः मेरी माँ ही करती हैं लेकिन कुछ दिन से ये काम मुझे ही करना पड़ रहा है.
एक बात पूछनी थी. ..
कोई भी चिड़िया अपने बच्चे के पास क्यों नहीं आ रही... पहले भी नहीं आती थी... जब वह बच्चा उड़ने लायक हो जाता था तब माँ चिड़िया का मातृत्व जागता था. शायद इस बार भी ऐसा ही होगा. क्या बच्चे के जीवित बच जाने पर माँ द्वारा वात्सल्य इसलिये दिया जाता है कि वह भविष्य में कहीं उससे सवाल न कर दे.."माँ, तुमने मेरा त्याग क्यों कर दिया?"
आप का लिखा पढ़ कर ऐसा लगा जैसे सब कुछ आँखों के सामने ही हो रहा है | पंडुक के बच्चो को बाहरी शिकारियों ओए अपने भोजन के लिए संघर्स करना होगा |
ReplyDeleteएक बार तो लगा था कि बहुत पहले पढ़ी कहानी की तरह पक्षी-माँ कहीं अपने चूजे का त्याग ही न कर दे, लेकिन इत्मीनान हुआ कि नई व्यवस्था स्वीकृत हुई।
ReplyDeleteयह पोस्ट बहुत सुखकर लगी। हर कोई सालिम अली नहीं हो सकता, लेकिन मौका मिलने पर इतना भी करना सबके वश की नहीं।
हमारे कुमाऊं में इसे घुघूती कहते हैं और यह बहुत भोली होती है|
ReplyDeleteखूबसूरत और मन-मोहक
ReplyDeleteदेखिये उनसे ज्यादा प्रीति मत कीजियेगा. बाद में दुःख होता है.
ReplyDeleteज्ञानदत्त जी से सौ फीसदी सहमत.
एक बार ज्ञान दत्त जी की पोस्ट पर मैंने उत्तरदायित्वपूर्ण ब्लागिंग का जिक्र छेड़ा था -सो वह यहाँ दिख रही है -पूरी जिम्मेदारी से लेखक ने पंडुक संतति कथा को स्टेप्वायिज ऐसा नैरेट किया है कि यह एक खूबसूरत वैज्ञानिक पेपर सा बन गया है ...
ReplyDeleteअंडे से चूजे निकलने की समयावधि ,एक अंडे के बाद दुसरे अंडे से हैचिंग का समयांतराल .....माँ पंडुक का प्रसूति/वात्सल्य व्यवहार सभी कुछ कितना ही वस्तुनिष्ठ होकर वर्णित हुआ है ....
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट -क्या सभी अण्डों से बच्चे निकले ?
पंडुक के अंडो से चूजे निकलने एवं उसके लांचिग पैड तक पहुचने को आपने बड़े ही अच्छे ढंग से चित्रित किया है। यह पोस्ट आपके एक माह के श्रम का परिणाम है।
ReplyDeleteयह ब्लॉगिंग चरमसीमा है, जब ब्लॉगर पूरा समय देकर निष्ठा से अनदेखे एवं अनछुए पहलुओं को सामने लाता है। यह पोस्ट ब्लॉग जगत में हमेशा याद रखी जाएगी।
आभार
ब्लॉगिंग चरमसीमा = ब्लॉगिंग की चरमसीमा पढा जावे ।
ReplyDeleteजबरदस्त मेहनत व इंतजार
ReplyDeleteसुन्दर और सुखद.
ReplyDeleteशायद उन्हें अपना घर याद आये तो कभी-कभार आ जाया करे. लेकिन परिंदे है भगवान् ने पंख दिए हैं तो उड़ना तो था ही एकदिन.
सुंदर पोस्ट.... मन प्रसन्न हो गया यह सुंदर चित्र देखकर .....
ReplyDeleteमेरे यहां एक गिलहरी का बच्चा गिरा मिला. उठाकर अन्दर रखा. दूध दिया रुई से. शाम तक ठीक ठाक रहा. रात में भी दो तीन बार दूध दिया. सुबह होते होते उसके प्राण पखेरू उड़ गये. अपराध बोध सा भी लगता रहा कि कहीं उसे ठंड तो नहीं लग गयी. कूलर से इतनी ठंड की उम्मीद तो नहीं होती. लेकिन उस बच्चे के लिये पता नहीं वही तो काल नहीं बनी. उसे जमीन में दफन कर दिया उसके रुई के फाहे और उसके बिस्तर के साथ.
ReplyDeleteजब बेटे ने पूछा उस गिलहरी के बच्चे के बारे में, तो मेरे पास कोई जबाव नहीं था.
बिछडना दुखदाई होता ही है फिर वह पंडुक हो या गिलहरी का बच्चा. (और अपवाद तो विज्ञान के नियमों के भी होते हैं).
पहली बार पंडुक नाम सुना,पेडुकी तो सुना हुआ था.सचित्र जानकारी के लिए आभार !
ReplyDeleteमन खुश हो गया पढ़कर और चित्र देखकर....
ReplyDeleteकमाल का पोस्ट है। बहुत सुंदर तास्वीरें भी। आप तो उनके साथ थे।
ReplyDeleteहम तो आपकी पोस्ट पढ़कर ही उनसे आत्मीय हो गए थे। वे तो चले गए, पर मुझे लगता है दुबारा ज़रूर आएंगे।
दिल को छू गयी यह प्रविष्टि, आभार!
ReplyDeleteईमेल पर-
ReplyDeleteवाह भाई जी,
धैर्य और समर्पण से एक रोज की घटना एक शोध बन गयी/सुंदर और प्रसंशनीय
सादर,
Dr.Bhoopendra Singh
T.R.S.College,REWA 486001
Madhya Pradesh INDIA
पंड़क को अंडे से फुदकते और उड़ते देखना कितना रोमांचक रहा होगा यह महसूस कर रहा हूँ.
ReplyDeleteअंडे से बच्चे तक का जन्म चित्रमय प्रस्तुत करना एक श्रम साध्य कार्य है ..इस जानकारी को पाठकों तक पहुंचाने के लिए आभार
ReplyDeleteमेहनत साफ नज़र आ रही है।
ReplyDeleteसाधूवाद।
बढि़या पोस्ट। इसे पढ़कर मशहूर पक्षी वैज्ञानिक सलीम अली जी का गौरैया पक्षी का वर्णन याद आ गया।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया पोस्ट....ऐसा लगा हामारे आँखों के सामने हो रहा है...
ReplyDeleteपर पंडुक... तुरंत जन्मे चूजों को छोड़कर बाहर चली जाती थी ??...मेरी बालकनी में अक्सर कबूतर अंडे दे देते हैं...पर काफी दिन तक वो चूजों को एक पल के लिए भी नहीं छोड़ती...मैं भी चावल वगैरह डालती रहती हूँ...उसके लिए.
शायद बारी-बारी से दोनों देख-रेख को रहते हों...क्यूंकि दाना चुगने तो जाता ही होगा,.एक.
पक्षियों की अद्भुत मनोविज्ञान एवं विकास चक्र का वर्णन
ReplyDeleteमगर उससे भी ज्यादा प्रसंशा आप के धैर्यपूर्वक उकेरी गयी विकास चक्र की तस्वीरों और गतिविधियों को कलमबद्ध करने को ..
सुन्दर पोस्ट
Sir,mujhe to laga main Discovery Channel dekh raha hun.Excellent.No words to comment.
ReplyDeleteअब ऐसी पोस्ट पर क्या कहें ... HATS OFF TO YOU ... SIR !!
ReplyDeleteजीवन सृजन होने की प्रक्रिया मन मोह लेती है, प्रकृति का सम्मोहन।
ReplyDeleteसुन्दर,मनमोहक और दिल को सुकून देने वाली पोस्ट और तस्वीरें..इस तरह की पोस्ट लिख पाना सब के बस की बात नहीं,...अद्दुत पोस्ट..
ReplyDeleteगागर में सागर....
ReplyDeleteसहपरिवार आनन्दित हुए....
ज्यादा आनन्दित बेटा।
लीजिए जी नेशनल ज्योग्राफी चेनल सा आनंद दे दिया इस आर्टिकल ने.अंडे में से बच्चे का निकलना और उसे अपने कमरे में कैद करना...बहुत धैर्य वाला काम है.आपने कितनी महंत की एक आर्टिकल के लिए और वो व्यर्थ नही गई हम सब आपके इस काम की मुक्त कंठ से सराहना करते हैं.हर फोटो बहुत सुन्दर एक सांस में पढ़ गई पूरा.यूँ हमारे यहाँ स्थानीय बोली में इस पक्षी को 'डेकड़' कहा जाता है और यूँ हिंदी में शायद फाख्ता इसी पक्षी को कहते हैं.किसी को पता हो तो बताए.
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह पोस्ट*****
ReplyDeleteअनूठी और मनोरंजक पोस्ट , जो आखिर तक बच्चों की कहानी की तरह जोड़े रही ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteइतनी कोमल पोस्ट है कि बस आज सो स्वीट कहने को जी चाहता है!!
ReplyDeleteईमेल पर इंदु पुरी गोस्वामी जी
ReplyDeleteआदरणीय सर!
'पंदुकी' भी पढ़ लिया.कमेन्ट पोस्ट नही हो रहा.शेल ज्यादा बड़ा हो जाने के कारन एरर बता रहा है.इसलिए यहाँ लिख रही हूँ.पोस्ट पर लगा दीजियेगा.
' ढूंढते ढूंढते इस पोस्ट तक पहुँच ही गई.यानि मेरी जानकारी सही निकली.इसे फाख्ता भी कहते हैं अंगेजी में डव.हम बचपन में इसे कबूतर की गुलाबी बहन बोलते थे क्योंकि चेहरे से ये कुछ कुछ कबूतर जैसी दिखती है.यहं जब भी आती हूँ ,न्य पाती हूँ.मन में संतुष्टि होती है कि कुछ नया सीखा.थेंक्स.
पशु पक्षियों से मुझे भी बहित प्यार है और मेरे परिवार को भी.कुत्ते,बिल्ली,खरगोश सब पाले.'इन्हें' जानवरों को पालना पसंद नही.इसलिए...
किन्तु जब भी कोई जानवर मुसीबत में होता है या बीमार... जाने कहाँ से घर ढूढता चला आता है.बगुला,उल्लू,गिलहरी के बच्चे कबूतर,कुत्ते,गर्भिणी गाये सब ने सेवा करवाई है हमसे.हा हा हा बिना बुलाये मेहमान चले आते हैं स्वस्थ हो कर चले जाते हैं.ईश्वर की मर्जी मान कर हम उनकी सेवा कर लेते हैं.
जब हम बिरला सीमेंट की कोलोनी में रहते थे तब तो आस पास के गांवों में ये बात फेल गई थी कि ग्याब्हीं गाय खो गई है,'उस' कोलोनी में 'उस' क्वार्टर पर जाओ वहाँ बच्चा डे दिया होगा.वहाँ गाय मिल जायेगी.यकीन मानेंगे शीतला के दिनों में तीन साल तक लगातार दूज,पंचमी और सप्तमी के दिन मेरे ही घर के बाहर आ कर गाये बच्चे को जन्म देती थी......और अगले दिन उनके मालिक उन्हें ढूंढते हुए आते और ले जाते.एक साल घर के बाहर गाय ने बच्चे को जन्म दिया.मुझे 'सब' संभालना आ गया था.गोस्वामीजी की नाराजगी झेलते हुए भी मैंने बच्चे के जन्म में मदद की.गुड का पानी बना कर गाय को दिया.घास की व्यवस्था करी.खूब डपट सूनी.लेट हो गई थी स्कूल के लिए.फिर भी स्कूल गई.गाडी खड़ी की ही थी कि बच्चों ने आवाज लगाई -'मेडम! स्कूल के पीछे एक बकरी के बच्चा .....'
हा हा हा
जन्म किसी का भी हो इंसान के बच्चे का या किसी जीव का वो क्षण अद्भुत होता है. ईश्वर की एक नई रचना जन्म ...... '
इतने धैर्य और दिलचस्पी से इस घटना का साक्षात्कार सचित्र पोस्ट करने हेतु साधुवाद |
ReplyDeleteराहुल जी सुंदर..बहुत सुंदर..वाकई आनंद आ गया. क्या प्रस्तुति है और गौरेया और आपका क्या संबंध है एक दम भाव विभोर कर दिया. उम्मीद है पंडुक को खुला आसमान पसंद आ रहा होगा. लेकिन एक बात हमें समझनी होगी कि आज हमारी युवा पीढ़ी भी कुछ ऐसा ही जीवन जी रही है हम सब भी अपने घरों को छोड़ कर दूर दो वक्त की रोटी की तलाश में रात दिन एक कर रहे हैं. लेकिन यकीन मानिए वो लौट कर आएगा... उम्मीदें हमेशा जिंदा रखनी चाहिए..
ReplyDeleteमन खुश एकदम-पंडुक-पंडुक...
ReplyDeletehats off to you .. great ..
ReplyDelete- dr jsb naidu ( raipur )
पंडुक! क्या विषय है! अजब-गजब विषय पर लिखते हैं आप! पक्षियों से तो अपना निकट का रिश्ता नहीं रहा कभी।
ReplyDeleteआदरणीय राहुल जी, "सर्जना" नामक इस सरस ,सुन्दर नाटिका के सभी पात्र अच्छे लगे ।
ReplyDeleteनिर्देशन गज़ब का था । निर्देशक की संवेदन-शीलता काबिले-तारीफ है । हमारे गुरुदेव आचार्य
श्रीराम शर्मा कहा करते थे कि यदि किसी पुरुष में स्त्री के गुण आ जाते हैं तो वह मानव से
महामानव बन जाता है । यद्यपि इस संसार रुपी रंगमंच का एकमात्र सूत्रधार तो " वही" है
पर यहां सूत्रधार जैसे आप लग रहे हैं । ग्राह्य पोस्ट , अनुकरणीय पोस्ट ।
इस "सर्जना" नामक लघुनाटिका के सभी पात्र अच्छे लगे । निर्देशन गज़ब का था । निर्देशक की
ReplyDeleteसृजन-शीलता को सलाम । हमारे गुरुदेव आचार्य श्रीराम शर्मा कहा करते थे कि जब किसी पुरुष
मे स्त्री के गुण आ जाते हैं तो वह , मानव से महामानव बन जाता है । अभूतपूर्व पोस्ट ।
अद्वितीय , अनुकरणीय, स्तुत्य है तथापि मेरी स्त्री-सुलभ जिज्ञासा यह मानने को राज़ी नहीं है
कि मातृ-शक्ति के स्पर्श बिना ही यह सम्भव हुआ होगा ।