Sunday, November 24, 2019

राज्‍य-गीत

साहित्यकार एवं भाषाशास्त्री आचार्य डॉ. नरेन्‍द्र देव वर्मा लिखित छत्तीसगढ़ी गीत 'अरपा पैरी के धार...' को मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा राज्योत्सव के मंच से 3 नवम्बर 2019 को छत्तीसगढ़ का राज्य-गीत घोषित किया गया। इस दिन डॉ. वर्मा पूरे 80 वर्ष के होते। यह राज्य-गीत सोमवार, 18 नवम्बर 2019 को राजपत्र में प्रकाशित हो कर, अधिसूचना जारी दिनांक से प्रभावशील हो गया। राज्य-गीत का गायन सभी शासकीय कार्यक्रमों के प्रारंभ में सुनिश्चित किए जाने के निर्देश जारी हुए हैं। राज्य-गीत का अधिसूचित स्वरूप आगे है-

अरपा पइरी के धार महानदी हे अपार,
इन्द्राबती ह पखारय तोर पइँया।
महूँ पाँव परँव तोर भुइँया,
जय हो जय हो छत्तिसगढ़ मइया॥
सोहय बिन्दिया सही घाते डोंगरी, पहार
चन्दा सुरूज बने तोर नयना,
सोनहा धाने के संग, लुगरा के हरियर रंग
तोर बोली जइसे सुघर मइना।
अँचरा तोरे डोलावय पुरवइया।।
(महूँ पाँव परँव तोर भुइँया, जय हो जय हो छत्तिसगढ़ मइया।।)
रइगढ़ हाबय सुघर तोरे मँउरे मुकुट
सरगुजा (अऊ) बेलासपुर हे बहियाँ,
रइपुर कनिहा सही घाते सुग्घर फभय
दुरुग, बस्तर सोहय पयजनियाँ,
नाँदगाँवे नवा करधनियाँ
(महूँ पाँव परँव तोर भुइँया, जय हो जय हो छत्तिसगढ़ मइया।।)

इस गीत का अंग्रेजी अनुवाद स्‍वयं डॉ. नरेन्‍द्र देव वर्मा ने इस प्रकार किया था-

Arpa and Pairi, the streams
And the great Mahanadi flow,
Indravati washes your feet,
I salute thee, O my land,
My Mother Chhattisgarh

Hills and mountains are
A 'bindiya' on your forehead
The sun and the moon, your eyes
You are enriched with golden paddy
Your 'sari' is green
The wind flutters the full of your 'sari'
I salute thee, O my land,
My Mother Chhattisgarh.

Raigarh your crown, ceremonious and beautiful,
Sarguja and Bilaspur are your hands
Raipur is your waist
Durg and Bastar are your feet
Rajnandgaon in your new belt
I salute thee, O my land,
My Mother Chhattisgarh.

राज्य गीत गायन के संबंध में निर्देश
अवधि- 1 मिनट 15 सेकंड
यह गीत सन 1973 में लिखा गया, डाॅ. वर्मा के पारिवारिक सदस्यों ने बताया कि यह गीत डायरी में उनकी लिखावट में दर्ज सुरक्षित है। गीत के पांच अंतरा में से पहले दो अंतरा राज्य-गीत के रूप में आए हैं। गीत में रइगढ़ को मँउरे मुकुट और बेलासपुर के साथ सरगुजा को बहियाँ कहा जाना, ऐसी काव्यात्मक अभिव्यक्ति है, जो मेरे लिए जिज्ञासा का विषय है अर्थात् लगता है कि सरगुजा को मुकुट और रायगढ़ को बांह, क्यों नहीं कहा गया है? बहरहाल ...

इस गीत की रचना, संगीत और गायन डाॅ. वर्मा ने किया था। डाॅ. बिहारीलाल साहू और सुरेश देशमुख इसके प्रथम चरण का स्मरण करते हैं। रायपुर, जोरापारा के सुकतेल भवन में तब संगीत बैठकें होती थीं। इस गीत के साथ रामेश्वर वैष्णव, धनीराम पटेल, पद्मलोचन जायसवाल, ललिता शर्मा को भी याद किया जाता है। आगे चलकर यह गीत दाऊ महासिंग चंद्राकर के ‘सोनहा बिहान‘ के साथ जुड़ा। ‘सोनहा बिहान‘ डाॅ. वर्मा के हिन्दी उपन्यास ‘सुबह की तलाश‘ का नाट्य रूपांतर था। मुकुंद कौशल और विवेक वासनिक सोनहा बिहान के दौर और इस गीत की संगीत रचना के साथ गोपाल दास वैष्णव, सत्यमूर्ति देवांगन (बुद्धू गुरूजी), मुरली चंद्राकर, जगन्नाथ भट्ट, दुर्गा प्रसाद भट्ट, मदन शर्मा, श्रवण कुमार दास को याद करते हैं। यह सर्वविदित है कि इस गीत की रचना के बाद अब तक उस दौर के केदार यादव, साधना यादव, ममता चंद्राकर, लक्ष्मण मस्तुरिया, कविता वासनिक, गणेश यादव, जयंती यादव, कुलेश्वर ताम्रकार से आज की बाल प्रतिभा आरु साहू जैसे सभी प्रमुख गायकों ने अपना स्वर दे कर इसे राज्य के जन-गीत की प्रतिष्ठा दी है।

डॉ. नरेन्‍द्र देव वर्मा की डायरी में
उनकी हस्तलिपि में दर्ज गीत की पंक्तियां