Tuesday, May 29, 2012

सरगुजा के देवनारायण सिंह

सरगुजा आए और यहीं आत्‍मसात हो गए, विद्वता, सादगी, ईमानदारी की प्रतिमूर्ति देवनारायण सिंह जी और उनके साथ जुड़ी अंचल की साहित्यिक परम्‍परा की झलक।

      जीवन दैनन्दिनी

जुलाई 1909 -     स्कूल में कागजी जन्मतिथि
अगस्त 1910 -     वास्तविक जन्मतिथि तदनुसार हिन्दी तिथि भाद्रपद सुदी तीज सम्वत्‌ 1967 विक्रमी, सिंह राशि मघा नक्षत्र का प्रथम चरण। उरैनी नामक ग्राम में, बलिया जिला, उत्तर प्रदेश
1915 -       पिता जी (श्री नन्द किशोर सिंह) दादा वो असरफा कुवरि के तीन केस में डिग्री पाये
1917 -       प्रथम विद्यारम्भ
1921 -       प्राथमिक शाला उत्तीर्ण
1925 -       प्रथम विवाह। बलिया के निकट बनरही नामक ग्राम में।
1927 -       प्रथम पत्नी (शिवपूजनी) की मृत्यु
1930 -       संस्कृत व्याकरण प्रथमा उत्तीर्ण
1932 -       प्रथमा परीक्षा (गोरखपुर) उत्तीर्ण।
1933 -       माध्यमिक शाला उत्तीर्ण
1934 -       उर्दू की माध्यमिक शाला एवं हिन्दी विशेष योग्यता उत्तीर्ण
      (2)

1935 -       पिताजी की मृत्यु
1936 -       पत्नी के संपूर्ण जेवर बेच कर ऋण की अदायगी।
1937 -       भगवद्‌ गीता का हिन्दी पद्यानुवाद।
1938 -       ऐतिहासिक गन्ने की फसल की असफलता, जिसे दादावो ने, नम्बरदार का पक्ष लेते हुए, मुझे कठोर कहा था।
1939 -       खेत, खेती का अंतिम प्रबंध कर के, माँ को अकेला छोड़ कर, और सूचित नाई को खेती देखने तथा प्रति दिन, घर पर सोने, रहने के लिए कह कर सरगुजा के लिए प्रस्थान।
देवनारायण सिंह जी, अस्‍पताल मार्ग पर स्थित निवास और प्रकाशन केन्‍द्र 'देव कुटीर' 

1939 से राजस्व निरीक्षक पद पर शासकीय सेवा आरंभ की, 1965 में नायब तहसीलदार पद से सेवानिवृत्त हुए। डायरी और लेखन में नियमित रहे, लेकिन बहुत सी ऐसी सामग्री दीमक लगने से खराब हो गई तो नष्‍टप्राय डायरी को संक्षेप में फिर से संजोया, उसी ''जीवन दैनन्दिनी'' के प्रथम दो पृष्‍ठ यहां प्रकाशित हैं। उनके करीबी कहते हैं कि दीमक लगने से हुए इस नुकसान ने उन्‍हें खोखला कर दिया। वे बुझे-बुझे से रहने लगे और कुछ समय बाद 10 जनवरी 1994 को उनका निधन हो गया।

सन 1984 में शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अम्बिकापुर के श्री देवेन्द्र सिंह ने ''सरगुजा अंचल के मूर्धन्य साहित्यकार बाबू देवनारायण सिंह के काव्य में राष्ट्रीय चेतना का अनुशीलन'' शीर्षक से लघु शोध प्रबंध तैयार किया, जिसमें उनकी जन्‍मतिथि 1 जुलाई 1909 तथा उनकी 16 पुस्तकों में 9 प्रकाशित, 3 प्रकाशनाधीन, शेष अप्रकाशित बताई गई है।

माध्यमिक शाला पुस्तक के अंतिम कवर पृष्ठ पर कुल 15 ''पुस्तकों की सूची'' संक्षिप्‍त विवरण सहित छपी है- 01 रस की गंगा, 02 माध्यमिक शाला- प्रकाशन वर्ष-1974), 03 सरगुजा हिन्दी साहित्य परिषद का इतिहास, 04 प्रेम पाथोद, 05 अमर सन्देश- अक्‍टूबर, वि.सं.2010, 06 ब्रह्म विद्या- 1964, 07 मानवी, 08 गुरु की झांकी- 1967, 09 गुरु अर्जुनदेव- 1979, 10 रामगढ़ महाकाव्य- 1976, 11 राष्ट्र-भारती- 1971, 12 राष्ट्र-गान- 1973, 13 चयनिका, 14 जीवन के उद्यान में, 15 दो किलो आटा, का नाम है।
साथ ही 16 'मेरे राम'- 1982 शीर्षक से श्‍वेताश्‍वतर उपनषिद का पद्यानुवाद और 17 'सौन्दर्य'- 1985 शीर्षक वाली, आध्‍यात्मिक चिंतनयुक्‍त दार्शनिक कृति भी प्रकाशित है, इसके अतिरिक्‍त, संभवतः अप्रकाशित रचना 18 सतोगुण है। सन 1967 में प्रकाशित पुस्तिका 'गुरु की झांकी' में ''कवि की अन्‍य कृतियां'' में छपे आठ शीर्षक में अध्‍यात्‍म-विद्या, रहस्‍य की बातें और रंजनी, तीन ऐसे हैं, जो ऊपर की सूची में नहीं है।

छत्‍तीसगढ़ में सरगुजा अंचल की साहित्यिक परम्‍परा, देवनारायण सिंह जी जैसी विभूतियों, उनकी कृतियों और स्‍मरण के साथ अक्षुण्‍ण है।

चित्रों संबंधी सामग्री और जानकारियों के लिए देवनारायण सिंह जी की ज्‍येष्‍ठ सुपुत्री श्रीमती विजय सिंह जी और कनिष्‍ठ सुपुत्री देवलक्ष्‍मी जी के प्रति आभार।

Saturday, May 19, 2012

देंवता-धामी

टांगीनाथ

जैसे लोगों ने टांगीनाथ-टांगीनाथ कहते है, उसमें एक जन्दगनी मुनी का आसरम था, उसका एक लड़का परशुराम था। जन्‍दगनी मुनी ने पूरे बिस्‍वा का राजा लोगों को या प्रजा तन्त्र को पार्टी में बुलाया और राजा महाराजा लोग एवं प्रजा तन्त्र को भोजन खिलाया पिलाया। उस समय राजा महाराजा लोग सोचने लगे कि इस छोटी सी कुटिया में कहां से इतना भोजन पानी की बेओस्था कि इतना आदमी को कहां से खिलाया पिलाया। हम लोगों से नहीं होने पाता। ऐसा सोचने लगे। उसके बाद जन्दगनी मुनी से पूछने लगे। मुनी ने बताया कि मेरे पास एक यही साधन है कि मेरे पास एक कामधेनु गाय है। उसी के जरिये से ए सब बेओस्था हुआ है, ऐसा कहा। उस समय राजा महाराजा लोग जन्दगनी मुनी से उस गाय को मांगने लगे तो जन्दगनी मुनी ने उस गाय को देने में इन्कार कर दिया। उस समय राजा महाराजा लोग जन्दगनी मुनी से युद्ध करके गाय को ले गये। लेकिन राजाओं के पास गाय नहीं रहा। गाय सिधे स्वर्ग चला गया। इस के पश्चात मुनी ने गाय के शोक से 21 बार जमीन और छाती को छु कर अपना प्राण को त्याग दिया। इसके पश्चात उनके पुत्र परशुराम जी ने तपस्या से घर लौट कर आया। घर आकर अपनी मां से पूछा कि मां पिता जी कहां है। मां बोली- पुत्र, पिताजी स्वर्ग सिधार गये, तो फिर से दुबारा पूछा तो मां बोली 21 बार जमीन एवं छाती को छूकर प्रणाम किया, उसके बाद प्राण त्याग दिया, ऐसा उत्तर दी। उस समय परशुराम जी ने सोचने लगा की ए छत्रियों का काम है। तब परशुराम जी ने अपना फरसा द्वारा राजाओं का संघार किया। जिसमें सामंत राजा भी सम्मलित था। सामंत राजा का छती ग्रस्त हो गया। उस समय उनके रानियां बावड़ी में डूब कर प्राण त्याग कर दिये।
प्राचीन रानी बावड़ी, डीपाडीह, सरगुजा 

गुरूमंत्र

1. सात मोर, मैं धरती, ग्रबधारी, परस पखारी। शेष नाग, बासु नाग। दियारानी, भुकू रानी। जलईर फुलइर, जलयांजइन, जल चितावइर, परस्साआंजइन। भले भूकूर मान। गुरू के दोहाई। अकाश पताल, नौ खण्ड, नौ दिन। पावन पानी, ब्रम्हा बिशनु, मुड़ महेशर। भाभी भगवान, हलुमान सिंग के हलके लागे, भिमसिंग के बल लागे, तन जागे, मन जागे। गुरू के दोहाई ।
2. डेगन गुरू, माधो मंत्री, भंइफर गुरू, सोखा गुरू, ढिंठा गुरू, भोजा गुरू, बाप गुरू, बाघु गुरू, धन्नु गुरू, मंगरा गुरू, डेगन गुरू, डेगन गुरूवाईन। पंडा गुरू, नउंरा गुरू, कोतका गुरू, लाउर गुरू, भाउर गुरू, जगत गुरू, भगत गुरू। तन जागे, मन जागे, गुरू जागे, गुरूवाइन जागे, जल जागे, थल जागे, जागे जागे, चेला का पिड़ जागे।
3. गुरू-गुरू, कोन गुरू। गुंगा गुरू, करेरा, घुमेरा, दस गुरू बाजल गुरू। मनोझा, भुत लंडी के मनाइदे, सिखाइदे, पढाई दे। दिन के घोंख, राईत के सापन दे।

हाकनी मंत्र

1. सामंत राजा, सामंत रानी। गढ़ राजा, गढ़ रानी। कोठी मंजगांव, टांगीनाथ, कारू सुन्दर, गाजीसींग करिया, दानो दइता। मरगा के भइसासुर, खटंगा के खटांगी दरहा, सिरकोट के भलवारी चंडी, रांची के रंजीत दरहा, मायन पाठ के जोड़ा दरहा, ससरवा के गेन्दा दरहा, जमुरा के जमदरहा, कुसमी के जोंजों दरहा। भुलसी के जन्ता पाठ, बकसपुर के गढ़वा पाठ, हर्री के गर्दन पाठ। चैनपुर के अंधारी देवता, मंगाजी के चांवर चंडी, सिधमा चंडी, पाठ चंडी, पलयारिन चंडी। केंवटा गुरू, सिता बंदुरवा, डिल्ली गोरया। लंका के हलुमाबिर, कोठली के दुवरिया देंवता, छोटे पवई के सतबहीनी, बोड़ो के घोड़ा देंवता, करासी के सुपढाका, भलुत के कोही खोह। सराइडीह के घिरयालता, साधु सनयासी, गम्हारडीह के बेनवाआरख, बेनवा देवता।
2. उदरापुर, जनकपुर, रामगढ़ के बहियां ठेंगाबन, बिजलीबन, लोहेकबान चक्रे मारे, खपरे डाले। लागे बन, भागे भुत। हमर बान ना लागे। राजा दशरथ का बान, संख बाजे काल भागे, लोहे के तारी बाजे।
3. मना गड़ा, मनाजित हिरी, तोरा बीरी, तोरा पितरमा, सुरमख चंडी। सेसे टुटे, भंइसी फुटे, टुइट परबा, गोहाइर परबा। छांई देबा, छत्र देबा, बल देबा, सहाय देबा।
4. महरी के तातापानी, मुरघुट्टा कांटू के मचंगा। बिरदांचल भवानी। आई तोला, काईला कोरवा। अनमाझी, धाइनमाझी, उसंगमाझी, हाटी माझी। धावलागढ़ के नौमन का टंगा भंजइया, सोरोमन के पृथवी छुवइया, देवतन के हंकार होथय।
5. पलामु के इराईचंडी, बादनचंडी, शेंसचंडी, पाइल झाईल, ईजंलचंडी। कुइलीसारी, कुइली माता, घांट चंडी, घुमर चंडी, रोस्दाग चंडी, डोल चंडी, दिल्ली चंडी, पटना के चोरहा चंडी। जैसे गुन बान चोराले, तइसे गुन बान चोराई के, भंजाइके लानले, तइसे चेला के, चौरीया के, पढ़ाई ले, सिखाइ ले।
6. बरवे के छोरी पाठ, भोज पाठ, छत्तर पाठ। डामे-डमुवा, लोहाडा पियांगुर। दस भौजी, महामाई, पांउरा पंवरी, पंउरा दरहा। गांगपुर गंगलाही, रतनपुर रतनाही, केसलपुर केसलाही, हेगलाजमुती, फुलमुती, सदा भवानी के जोहाइर।
7. सुरगुजा के नाथलदेवी, परतापपुर के गादे गिरदा, पाटनपुर के पाटन देवी, रूसदाग के बाउरा, टिम्पु के बछड़ा।
8. उचमोर, चान्द माई, गोवालीन, उगेडाइन, छपित होय। चलेराम के बेरा, धरम के घेरा। बाग छला, डासल है, आसन माई बईठल है। धरी धरा, लगन धरा, लगन बछा। आइज-बाइज लागल है। तावन के लाई निकास करा।
9. सांगिन धरा। सिंगितोरा, गांव साजा, बनफोरा। दिल्लीसाजा, परवत साजा। अनरानी धनरानी, हिरारानी, काजररानी, बाजरानी, काजररानी, अनराजा, धनराजा, हिराराजा।
10. पईलकोट, पाईलपानी, कोड़ाहाक, डांड़राजा। छतिसो, राम लक्ष्मण के छड़ीधर, धरती को सेवकदार, सेवा बरदारी, कईर के, ठोंईक ठठाई के, निकास करा। बापा धारा, पुतर न छोड़ाबे।
11. चलगली के लोंगा पोखईर, घांठ दरदा, घुम्मर दरहा, रोको दरहा, पोको दरहा, झांपी दरहा, पिटी दरहा, गुंगा बीर, डोंगा दरहा, अंधाइर सिकर दरहा। सन्मुट के जोड़ा दरहा, बोखा तला के हिरा दरहा, कवांई के जमदरहा, चलिमां के मना दरहा, कुसमी के जोंजो दरहा, जमुरा के जाम दरहा।
12. चलगली के बेसरा पाठ, रानी छोड़ी जनता पाठ, अयारी के धनुक पाठ। बिरया के सालो भवानी, सरिमा के सागर, पटना के जादो बिर, काउडूमाकड़। जोरी के जारंग पाठ, अनाबिरी, हर्रइया पाठ, भिंजपुर के छत्र पाठ, लोहाडांक, पियांगुर। दस भावजी, महामाई। पांउरा-पांउरी, पांउरा दरहा। गांगपुर गंगलाही, निर पांगुर, परियादेव। नेयाय करे, पत्थल फारे, करा पत्थर। बहींया केसरगढ़ बहींया, भंइसी नागपुर, पांचो बीर, पांचो बहान। कल्यक के राकस पाठ, मैनी के अरगर पाठ, डेमसुला मुटकी के धोवा पाईन। झगराखण्ड, खंड़ो के भलुवारी। देवड़ी के जोड़ा सराई, जशपुर के गाजीसिंग करिया, दिल्ली के गोरया, लंका के हलिमानबिर, मदगुरी के गोरेया। महादानी, छोटे महादान, बडे़ महादान। चेंग-बेंग, डमगोड़ी, डंगाही, नपरगढ़ चन्दागढ़, झिली-मिली। डोंगा दरहा, डोंगादाई, चौंराभांवरा, टुइट परबा। छांई देबा, छत्तरदेबा, बलदेबा, सहायदेबा।
13. कोरम के माछिन्दर नाग। तेज नाग, भोज नाग, कमल नाग, बिशेसर नाग, टांगी नाग। जय-जय भवानी, सिंग सवारी। धानी मुण्डा, जागरित करो, अन्याय। आईद भवानी, करस कलयानी, तीनोंमाता, दुखा डन्डा, काटाहीं, जबकी फन्दा बैठाहीं। गढ़हे राजा, जोपरानी। गढ़हे परी, सुमरते सुमरते, सकल छकल पड़ी। पोक सारती, बिजकपुरी, रमाईन, पहालाद गुरू के सुमरते सुमरते, अपर भवानी, जापर भवानी। टकटकी मलमली, बथाबाई, पिराबाई, लंगड़ी देवी, ठोठी देवी, चपका माता, खुरहा माता।
14. पुर्ब के शोखा, पछिम के भगत, नौलक देवी, नौलक भवानी, अबरी भवानी, छबरी भवानी, चान्द भवानी, सुरज भवानी, हस्सामुखी भवानी, पंड़वा भवानी। सियादम्मा, खिखी माता, लोकखण्डी, जगती भवानी। कलकत्ता के काली मांई, बनारस के बुढ़ी भवानी, उदरगढ़ के उदरगढ़नी माता, सारंगगढ़ के सारंगगढ़नी माता, चलगली के महामइया, डिपाडीह के समलाई देवी, चम्मुण्डा देवी।

गुरूवट

1. गुरू गुरू हंकारालो। गुरू नाहीं सुने रे। गुरू मोरे कहां चली गेल। माये गुरवाईन मोर, गुरू मोरे कहां चाली गेल।
2. तोय नाहीं जानले। चेला ना बेटा मोर। तोरे गुरू बन्खंडा सेवे के गेल। चेला ना बेटा मोर तोरे गुरू बन्खंडा सेवे के गेल।
3. बारो बारिसा गुरू बन्खंडा सेवाय रे। तेरो बारिसा गुरू घर फिरी आय। गुरू गोसाइया मोर तेरो बारिसा गुरू, घर फिरी आय।
4. धरमा का बिदिया के हेरदय समाय रे। पापी का बिदिया के गंगा धंसाय। चेला ना बेटा मोर, पापी का बिदिया के गंगा धंसाय।
5. गुना कारणने बेटा गेलो हरादीपुर, तबो बेटा गुन नाहीं पालो। चेला ना बेटा मोर। ताबो बेटा गुन नाहीं पालो।

टीप

टांगीनाथ, किस्‍सा सरगुजा के कुसमी-झारखंड सीमा में प्रचलित, यहां यथासंभव उन्हीं शब्दों में प्रस्तुत है।
गुरू मंत्र और हांकनी मंत्र, ओझाई काम के लिए मन में पढ़े-दुहराए जाते हैं।
गुरूवट, गीत हैं, जिसे सूप में चावल लेकर, उससे ताल देते हुए गुरू गाता है और शिष्‍य दुहराते हैं, इसका प्रभाव रोमांचक, सम्‍मोहक होता है।

सन 1988 से 1990 के बीच मेरा काफी समय सरगुजा में बीता, इसी से जुड़ी मेरी पिछली तीन पोस्‍ट डीपाडीह, टांगीनाथ और देवारी मंत्र की यह एक और कड़ी है इसलिए वहां आ चुके संदर्भों को यहां नहीं दुहरा रहा हूं। इसमें कुछ याद से, कुछ नोट्स से और कुछ फिर से पुष्टि करते हुए दुरुस्‍त किया है। वर्तनी और भाषा, यथासंभव वैसा ही रखने का प्रयास है, जिस तरह यहां प्रयोग में आती है। इस क्रम में सब देवों, गुरुओं के साथ कुछ अन्‍य स्‍मृति-उल्‍लेख आवश्‍यक हैं- डीपाडीह के पड़ोसी गांव करमी के सुखनराम भगत, पिता श्री सरदारराम, दादा श्री ठाकुरराम की व्‍यापक युग-दृष्टि से मुझे प्रेरणा मिलती रही, तब उनकी आयु 100 वर्ष से अधिक बताई जाती थी और वे विधान सभा के प्रथम आम चुनाव के अपने चिह्न के कारण सीढ़ी छाप वाले के रूप में भी जाने जाते थे। यहां आई सामग्री का अधिकांश, उरांव टोली, डीपाडीह के मनीजर राम से प्राप्‍त हुआ। यहीं के निरमल, पल्टन, कलमसाय जैसे कई सहयोगी मेरी इस रुचि के पोषक बने। तेजूराम और जगदीश ने इसे दुरुस्‍त करने में मदद की है। सभी के प्रति आदर-सम्‍मान।

Thursday, May 10, 2012

टाइटेनिक

10 अप्रैल 1912, इंग्लैंड से अमरीका के लिए करीब 2200 यात्रियों के साथ अपनी पहली यात्रा पर रवाना जहाज टाइटेनिक पांचवें दिन, 15 अप्रैल को अटलांटिक महासागर में दुर्घटनाग्रस्त हुआ। बचा लिए गए 700 यात्रियों का यह नया जन्मदिन था, तो बाकी के निधन की तारीख दर्ज हुआ। न जाने कितनी कहानियां बनी-बिगड़ीं। एक सदी से डूबती-तिरती स्मृतियां। टिकट नं. 237671 ले कर यात्रा कर रही जांजगीर, छत्तीसगढ़ की मिस एनी क्लेमर फंक ने 12 अप्रैल को इसी जहाज पर अपना अड़तीसवां, आखिरी जन्मदिन मनाया।
छत्तीसगढ़ में इसाई मिशनरियों का इतिहास सन 1868 से पता लगता है, जब रेवरेन्ड लोर (Oscar T. Lohr) ने बिश्रामपुर मिशन की स्थापना की। तब से बीसवीं सदी के आरंभ तक रायपुर, चन्दखुरी, मुंगेली, पेन्ड्रा रोड, चांपा, धमतरी और जशपुर अंचल में मेथोडिस्ट एपिस्कॉपल मिशन, इवेन्जेलिकल मिशन, लुथेरन चर्च के संस्थापकों रेवरेन्ड एम डी एडम्स, रेवरेन्ड जी डब्ल्यू जैक्सन, रेवरेन्ड एन मैड्‌सन आदि का नाम मिलता है।
सन 1926 में निर्मित मेनोनाइट चर्च, जांजगीर
इसी क्रम में 1900-01 में मेनोनाइट चर्च के जान एफ. क्रोएकर ने जांजगीर के इस केन्द्र की स्थापना की, सन 1906 में 32 वर्ष की आयु में मिस फंक यहां आईं और लड़कियों का स्कूल खोला।
स्‍कूल परिसर में संस्‍थापक रेवरेन्‍ड क्रोएकर की स्‍मारक शिला और प्रिंसिपल मिस सरोजनी सिंह, जिनमें मिस फंक के त्‍याग, समर्पण, करुणा और ममता का संस्‍कार महसूस होता है.
अपनी बीमार मां की खबर पा कर बंबई हो कर इंग्लैण्ड पहुंचीं। हड़ताल के कारण अपनी निर्धारित यात्रा-साधन बदल कर, अतिरिक्त रकम चुका कर, वे टाइटेनिक की मुसाफिर बनीं। दुर्घटना होने पर राहत-बचाव में, जीवन रक्षक नौका के लिए मिस फंक का नंबर आ गया, लेकिन एक महिला जिसके बच्चे को नौका में प्रवेश मिला था और वह खुद जहाज पर छूट कर बच्चों से बिछड़ रही थी। अंतिम सांसें गिन रही अपनी मां से मिलने जा रही मिस फंक ने यहां बच्चों से बिछड़ रही उस मां को जीवन रक्षक नौका में अपने नंबर की सीट दे दी। विधि के विधान के आगे कहानियों की नाटकीयता और रोमांच की क्या बिसात।

सन 1915 में उनकी स्मृति में मिशन परिसर, जांजगीर में दोमंजिला भवन बना, जिसके लिए प्रसिद्ध ''फ्राडिघम आयरन एंड स्टील कं.'' के गर्डर इंग्लैंड से मंगवाए गए। यहां ''फंक मेमोरियल स्कूल, जांजगीर'' की स्थापना हुई। परिसर में इस भवन के अवशेष के साथ टाइटेनिक हादसे एवं मिस एनी क्लेमर फंक के जिक्र वाला स्मारक पत्थर मौजूद है।
गत माह 15 तारीख को टाइटेनिक दुर्घटना की पूरी सदी बीत गई, इस दिन जांजगीर मिशन स्कूल परिसर में मिस फंक सहित हादसे के शिकार लोगों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की गई।
इस संबंध में मुझे विस्‍तृत जानकारी सुश्री सरोजनी सिंह, प्राचार्य, श्री राजेश पीटर, अध्यक्ष, अनुग्रह शिक्षण सेवा समिति, जांजगीर और पास्टर डी कुमार से मिली। टाइटेनिक और हादसे से संबंधित जानकारियां पर्याप्त विस्तार से इन्साक्लोपीडिया टाइटेनिका में है।

इसाई मिशनरी, चर्च के साथ जुड़े और वहां उपलब्‍ध लेखे तथा छत्‍तीसगढ़ में आ बसे मराठा परिवारों की जानकारियां, इन दोनों स्रोतों में तथ्‍यात्‍मक और तटस्‍थ लेखन का चलन रहा है, महत्‍व की हैं, अभी तक शोध-खोज में इन स्रोतों का उपयोग अच्‍छी तरह नहीं हुआ है। छत्‍तीसगढ़ के करीब ढाई सौ साल के सामाजिक-सांस्‍कृतिक इतिहास के लिए यह उपयोगी साबित होगा।

Sunday, May 6, 2012

सिनेमा सिनेमा

आशीष कुमार दास
सिनेमा के 100 वर्षों के सफर को भिलाई के आशीष कुमार दास जी ने छत्तीसगढ़ रेडियो श्रोता संघ, रायपुर और मोहम्मद नईम तथा अपने अन्‍य सहयोगियों की मदद से आज रायपुर में प्रदर्शित किया। आशीष जी के पास पुराने दस्‍तावेजों, प्राचीन सिक्‍कों के अतिरिक्‍त महात्‍मा गांधी, नेहरू जी, नेताजी बोस, गुरुदेव रवीन्‍द्र, स्‍वतंत्रता संग्राम संबंधी सामग्री का भी संकलन है। भारतीय सिनेमा की इस प्रदर्शनी में फिल्मों के लगभग 100 बुकलेट-पुस्तिकाओं का संकलन रखा गया है। चलचित्रों की इस प्रदर्शनी की झलक, चित्रों में-
फिल्‍म पुस्तिकाएं
सिनेमा हाल के टिकट
द राजपूताना टाकीज लिमिटेड, जयपुर का शेयर सर्टिफिकेट
बाम्‍बे टाकीज के फिल्‍मों की सूची यहां दर्ज है.
रियासती पोस्‍ट कार्ड पर फिल्‍मी विज्ञापन
इस फिल्‍म के छत्‍तीसगढ़ से रिश्‍ते की बात होती है
और दर्शाया कलाकार, अन्‍य राजकुमार (छोटे) हैं. 
फीयरलेस नाडिया और जान कवास के साथ पेश
बकरा कल्‍लू उस्‍ताद
स्‍वयं के हस्‍ताक्षर युक्‍त देविका रानी का दीवाली ग्रीटिंग कार्ड

छत्‍तीसगढ़ के एक और खोजी शिवानंद कामड़े जी और 'आलम आरा' की बातें अगली किसी पोस्‍ट के लिए।