Saturday, May 19, 2012

देंवता-धामी

टांगीनाथ

जैसे लोगों ने टांगीनाथ-टांगीनाथ कहते है, उसमें एक जन्दगनी मुनी का आसरम था, उसका एक लड़का परशुराम था। जन्‍दगनी मुनी ने पूरे बिस्‍वा का राजा लोगों को या प्रजा तन्त्र को पार्टी में बुलाया और राजा महाराजा लोग एवं प्रजा तन्त्र को भोजन खिलाया पिलाया। उस समय राजा महाराजा लोग सोचने लगे कि इस छोटी सी कुटिया में कहां से इतना भोजन पानी की बेओस्था कि इतना आदमी को कहां से खिलाया पिलाया। हम लोगों से नहीं होने पाता। ऐसा सोचने लगे। उसके बाद जन्दगनी मुनी से पूछने लगे। मुनी ने बताया कि मेरे पास एक यही साधन है कि मेरे पास एक कामधेनु गाय है। उसी के जरिये से ए सब बेओस्था हुआ है, ऐसा कहा। उस समय राजा महाराजा लोग जन्दगनी मुनी से उस गाय को मांगने लगे तो जन्दगनी मुनी ने उस गाय को देने में इन्कार कर दिया। उस समय राजा महाराजा लोग जन्दगनी मुनी से युद्ध करके गाय को ले गये। लेकिन राजाओं के पास गाय नहीं रहा। गाय सिधे स्वर्ग चला गया। इस के पश्चात मुनी ने गाय के शोक से 21 बार जमीन और छाती को छु कर अपना प्राण को त्याग दिया। इसके पश्चात उनके पुत्र परशुराम जी ने तपस्या से घर लौट कर आया। घर आकर अपनी मां से पूछा कि मां पिता जी कहां है। मां बोली- पुत्र, पिताजी स्वर्ग सिधार गये, तो फिर से दुबारा पूछा तो मां बोली 21 बार जमीन एवं छाती को छूकर प्रणाम किया, उसके बाद प्राण त्याग दिया, ऐसा उत्तर दी। उस समय परशुराम जी ने सोचने लगा की ए छत्रियों का काम है। तब परशुराम जी ने अपना फरसा द्वारा राजाओं का संघार किया। जिसमें सामंत राजा भी सम्मलित था। सामंत राजा का छती ग्रस्त हो गया। उस समय उनके रानियां बावड़ी में डूब कर प्राण त्याग कर दिये।
प्राचीन रानी बावड़ी, डीपाडीह, सरगुजा 

गुरूमंत्र

1. सात मोर, मैं धरती, ग्रबधारी, परस पखारी। शेष नाग, बासु नाग। दियारानी, भुकू रानी। जलईर फुलइर, जलयांजइन, जल चितावइर, परस्साआंजइन। भले भूकूर मान। गुरू के दोहाई। अकाश पताल, नौ खण्ड, नौ दिन। पावन पानी, ब्रम्हा बिशनु, मुड़ महेशर। भाभी भगवान, हलुमान सिंग के हलके लागे, भिमसिंग के बल लागे, तन जागे, मन जागे। गुरू के दोहाई ।
2. डेगन गुरू, माधो मंत्री, भंइफर गुरू, सोखा गुरू, ढिंठा गुरू, भोजा गुरू, बाप गुरू, बाघु गुरू, धन्नु गुरू, मंगरा गुरू, डेगन गुरू, डेगन गुरूवाईन। पंडा गुरू, नउंरा गुरू, कोतका गुरू, लाउर गुरू, भाउर गुरू, जगत गुरू, भगत गुरू। तन जागे, मन जागे, गुरू जागे, गुरूवाइन जागे, जल जागे, थल जागे, जागे जागे, चेला का पिड़ जागे।
3. गुरू-गुरू, कोन गुरू। गुंगा गुरू, करेरा, घुमेरा, दस गुरू बाजल गुरू। मनोझा, भुत लंडी के मनाइदे, सिखाइदे, पढाई दे। दिन के घोंख, राईत के सापन दे।

हाकनी मंत्र

1. सामंत राजा, सामंत रानी। गढ़ राजा, गढ़ रानी। कोठी मंजगांव, टांगीनाथ, कारू सुन्दर, गाजीसींग करिया, दानो दइता। मरगा के भइसासुर, खटंगा के खटांगी दरहा, सिरकोट के भलवारी चंडी, रांची के रंजीत दरहा, मायन पाठ के जोड़ा दरहा, ससरवा के गेन्दा दरहा, जमुरा के जमदरहा, कुसमी के जोंजों दरहा। भुलसी के जन्ता पाठ, बकसपुर के गढ़वा पाठ, हर्री के गर्दन पाठ। चैनपुर के अंधारी देवता, मंगाजी के चांवर चंडी, सिधमा चंडी, पाठ चंडी, पलयारिन चंडी। केंवटा गुरू, सिता बंदुरवा, डिल्ली गोरया। लंका के हलुमाबिर, कोठली के दुवरिया देंवता, छोटे पवई के सतबहीनी, बोड़ो के घोड़ा देंवता, करासी के सुपढाका, भलुत के कोही खोह। सराइडीह के घिरयालता, साधु सनयासी, गम्हारडीह के बेनवाआरख, बेनवा देवता।
2. उदरापुर, जनकपुर, रामगढ़ के बहियां ठेंगाबन, बिजलीबन, लोहेकबान चक्रे मारे, खपरे डाले। लागे बन, भागे भुत। हमर बान ना लागे। राजा दशरथ का बान, संख बाजे काल भागे, लोहे के तारी बाजे।
3. मना गड़ा, मनाजित हिरी, तोरा बीरी, तोरा पितरमा, सुरमख चंडी। सेसे टुटे, भंइसी फुटे, टुइट परबा, गोहाइर परबा। छांई देबा, छत्र देबा, बल देबा, सहाय देबा।
4. महरी के तातापानी, मुरघुट्टा कांटू के मचंगा। बिरदांचल भवानी। आई तोला, काईला कोरवा। अनमाझी, धाइनमाझी, उसंगमाझी, हाटी माझी। धावलागढ़ के नौमन का टंगा भंजइया, सोरोमन के पृथवी छुवइया, देवतन के हंकार होथय।
5. पलामु के इराईचंडी, बादनचंडी, शेंसचंडी, पाइल झाईल, ईजंलचंडी। कुइलीसारी, कुइली माता, घांट चंडी, घुमर चंडी, रोस्दाग चंडी, डोल चंडी, दिल्ली चंडी, पटना के चोरहा चंडी। जैसे गुन बान चोराले, तइसे गुन बान चोराई के, भंजाइके लानले, तइसे चेला के, चौरीया के, पढ़ाई ले, सिखाइ ले।
6. बरवे के छोरी पाठ, भोज पाठ, छत्तर पाठ। डामे-डमुवा, लोहाडा पियांगुर। दस भौजी, महामाई, पांउरा पंवरी, पंउरा दरहा। गांगपुर गंगलाही, रतनपुर रतनाही, केसलपुर केसलाही, हेगलाजमुती, फुलमुती, सदा भवानी के जोहाइर।
7. सुरगुजा के नाथलदेवी, परतापपुर के गादे गिरदा, पाटनपुर के पाटन देवी, रूसदाग के बाउरा, टिम्पु के बछड़ा।
8. उचमोर, चान्द माई, गोवालीन, उगेडाइन, छपित होय। चलेराम के बेरा, धरम के घेरा। बाग छला, डासल है, आसन माई बईठल है। धरी धरा, लगन धरा, लगन बछा। आइज-बाइज लागल है। तावन के लाई निकास करा।
9. सांगिन धरा। सिंगितोरा, गांव साजा, बनफोरा। दिल्लीसाजा, परवत साजा। अनरानी धनरानी, हिरारानी, काजररानी, बाजरानी, काजररानी, अनराजा, धनराजा, हिराराजा।
10. पईलकोट, पाईलपानी, कोड़ाहाक, डांड़राजा। छतिसो, राम लक्ष्मण के छड़ीधर, धरती को सेवकदार, सेवा बरदारी, कईर के, ठोंईक ठठाई के, निकास करा। बापा धारा, पुतर न छोड़ाबे।
11. चलगली के लोंगा पोखईर, घांठ दरदा, घुम्मर दरहा, रोको दरहा, पोको दरहा, झांपी दरहा, पिटी दरहा, गुंगा बीर, डोंगा दरहा, अंधाइर सिकर दरहा। सन्मुट के जोड़ा दरहा, बोखा तला के हिरा दरहा, कवांई के जमदरहा, चलिमां के मना दरहा, कुसमी के जोंजो दरहा, जमुरा के जाम दरहा।
12. चलगली के बेसरा पाठ, रानी छोड़ी जनता पाठ, अयारी के धनुक पाठ। बिरया के सालो भवानी, सरिमा के सागर, पटना के जादो बिर, काउडूमाकड़। जोरी के जारंग पाठ, अनाबिरी, हर्रइया पाठ, भिंजपुर के छत्र पाठ, लोहाडांक, पियांगुर। दस भावजी, महामाई। पांउरा-पांउरी, पांउरा दरहा। गांगपुर गंगलाही, निर पांगुर, परियादेव। नेयाय करे, पत्थल फारे, करा पत्थर। बहींया केसरगढ़ बहींया, भंइसी नागपुर, पांचो बीर, पांचो बहान। कल्यक के राकस पाठ, मैनी के अरगर पाठ, डेमसुला मुटकी के धोवा पाईन। झगराखण्ड, खंड़ो के भलुवारी। देवड़ी के जोड़ा सराई, जशपुर के गाजीसिंग करिया, दिल्ली के गोरया, लंका के हलिमानबिर, मदगुरी के गोरेया। महादानी, छोटे महादान, बडे़ महादान। चेंग-बेंग, डमगोड़ी, डंगाही, नपरगढ़ चन्दागढ़, झिली-मिली। डोंगा दरहा, डोंगादाई, चौंराभांवरा, टुइट परबा। छांई देबा, छत्तरदेबा, बलदेबा, सहायदेबा।
13. कोरम के माछिन्दर नाग। तेज नाग, भोज नाग, कमल नाग, बिशेसर नाग, टांगी नाग। जय-जय भवानी, सिंग सवारी। धानी मुण्डा, जागरित करो, अन्याय। आईद भवानी, करस कलयानी, तीनोंमाता, दुखा डन्डा, काटाहीं, जबकी फन्दा बैठाहीं। गढ़हे राजा, जोपरानी। गढ़हे परी, सुमरते सुमरते, सकल छकल पड़ी। पोक सारती, बिजकपुरी, रमाईन, पहालाद गुरू के सुमरते सुमरते, अपर भवानी, जापर भवानी। टकटकी मलमली, बथाबाई, पिराबाई, लंगड़ी देवी, ठोठी देवी, चपका माता, खुरहा माता।
14. पुर्ब के शोखा, पछिम के भगत, नौलक देवी, नौलक भवानी, अबरी भवानी, छबरी भवानी, चान्द भवानी, सुरज भवानी, हस्सामुखी भवानी, पंड़वा भवानी। सियादम्मा, खिखी माता, लोकखण्डी, जगती भवानी। कलकत्ता के काली मांई, बनारस के बुढ़ी भवानी, उदरगढ़ के उदरगढ़नी माता, सारंगगढ़ के सारंगगढ़नी माता, चलगली के महामइया, डिपाडीह के समलाई देवी, चम्मुण्डा देवी।

गुरूवट

1. गुरू गुरू हंकारालो। गुरू नाहीं सुने रे। गुरू मोरे कहां चली गेल। माये गुरवाईन मोर, गुरू मोरे कहां चाली गेल।
2. तोय नाहीं जानले। चेला ना बेटा मोर। तोरे गुरू बन्खंडा सेवे के गेल। चेला ना बेटा मोर तोरे गुरू बन्खंडा सेवे के गेल।
3. बारो बारिसा गुरू बन्खंडा सेवाय रे। तेरो बारिसा गुरू घर फिरी आय। गुरू गोसाइया मोर तेरो बारिसा गुरू, घर फिरी आय।
4. धरमा का बिदिया के हेरदय समाय रे। पापी का बिदिया के गंगा धंसाय। चेला ना बेटा मोर, पापी का बिदिया के गंगा धंसाय।
5. गुना कारणने बेटा गेलो हरादीपुर, तबो बेटा गुन नाहीं पालो। चेला ना बेटा मोर। ताबो बेटा गुन नाहीं पालो।

टीप

टांगीनाथ, किस्‍सा सरगुजा के कुसमी-झारखंड सीमा में प्रचलित, यहां यथासंभव उन्हीं शब्दों में प्रस्तुत है।
गुरू मंत्र और हांकनी मंत्र, ओझाई काम के लिए मन में पढ़े-दुहराए जाते हैं।
गुरूवट, गीत हैं, जिसे सूप में चावल लेकर, उससे ताल देते हुए गुरू गाता है और शिष्‍य दुहराते हैं, इसका प्रभाव रोमांचक, सम्‍मोहक होता है।

सन 1988 से 1990 के बीच मेरा काफी समय सरगुजा में बीता, इसी से जुड़ी मेरी पिछली तीन पोस्‍ट डीपाडीह, टांगीनाथ और देवारी मंत्र की यह एक और कड़ी है इसलिए वहां आ चुके संदर्भों को यहां नहीं दुहरा रहा हूं। इसमें कुछ याद से, कुछ नोट्स से और कुछ फिर से पुष्टि करते हुए दुरुस्‍त किया है। वर्तनी और भाषा, यथासंभव वैसा ही रखने का प्रयास है, जिस तरह यहां प्रयोग में आती है। इस क्रम में सब देवों, गुरुओं के साथ कुछ अन्‍य स्‍मृति-उल्‍लेख आवश्‍यक हैं- डीपाडीह के पड़ोसी गांव करमी के सुखनराम भगत, पिता श्री सरदारराम, दादा श्री ठाकुरराम की व्‍यापक युग-दृष्टि से मुझे प्रेरणा मिलती रही, तब उनकी आयु 100 वर्ष से अधिक बताई जाती थी और वे विधान सभा के प्रथम आम चुनाव के अपने चिह्न के कारण सीढ़ी छाप वाले के रूप में भी जाने जाते थे। यहां आई सामग्री का अधिकांश, उरांव टोली, डीपाडीह के मनीजर राम से प्राप्‍त हुआ। यहीं के निरमल, पल्टन, कलमसाय जैसे कई सहयोगी मेरी इस रुचि के पोषक बने। तेजूराम और जगदीश ने इसे दुरुस्‍त करने में मदद की है। सभी के प्रति आदर-सम्‍मान।

32 comments:

  1. मंत्रो की सलिला में दुबकी लगाने का पुनः अवसर दिया धन्यवाद् .डीपाडीह यात्रा स्मरण करवाने हेतु भी शुक्रिया .
    खुबसूरत और संग्रहणीय पोस्ट के लिए आभार कैसा? सादर नमन मंत्र महिमा हेतु

    ReplyDelete
  2. साधरणत: ये मंत्र किसी के सामने प्रकट नहीं करते, ऐसा गुरुओं का कथन है। पर आपने कमाल कर दिया, जो उनसे इन मंत्रों को ले लिया और संग्रहित करलिया। गुरु शिष्य श्रुति परम्परा से पीढी दर पीढी मिलने वाले मंत्र आपके प्रयास से संग्रहित हो गए।

    ReplyDelete
  3. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
    Replies
    1. दिमाग में कुछ कौंधा था , सो आलेख पर प्रतिक्रिया टंकित करने भी बैठ गया ! फिर लगा कि अगर स्वयं राहुल सिंह जी इस पर टिप्पणी करते तो क्या करते ?

      फिलहाल मित्रों की प्रतिक्रियाओं से आनंदित हो रहा हूं ! आज दिन भर व्यस्त रहूंगा ! संभव हुआ तो देर शाम / या फिर रात को वापस आता हूं !

      Delete
  4. इनकी सत्यता और असर पर भी एक लेख अपेक्षित है , आशा है इस दुर्लभ विषय पर प्रकाश डालेंगे !

    ReplyDelete
  5. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  6. कथा और मन्त्र दोनों का आस्वादन -इसमें तो जैसे इधर की भौगोलिक सीमारेखायें मिट गयीं है -यही बोली भाषा इधर भी है //
    बगल के नौआन में भूत भागने के भी यही मन्त्र कहे जा रहे हैं !

    ReplyDelete
  7. मैंने परशुराम जी के पिता का नाम जमदग्नि पढ़ा है !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. संभवतः यह आपकी नजर से चूक गया है- ''वर्तनी और भाषा, यथासंभव वैसा ही रखने का प्रयास है, जिस तरह यहां प्रयोग में आती है।''

      Delete
    2. पहले मैं भी कन्फ्यूज हो गया था.. लेकिन पढ़ते जाने पर समझ आ गया था की वह की बोली में लिखा गया है....

      Delete
  8. इन मन्त्रों की महत्ता पर भी पोस्ट अपेक्षित है..

    ReplyDelete
  9. ्देव सुमिरन से मन को शांति मिलती है।

    ReplyDelete
  10. सिद्ध करने की तो बात दूर , इन मंत्रों को रट पाना ही मुश्किल काम है। जहाँ तक महत्ता की बात है तो "जाकी रही भावना जैसी, प्रभुमूरत देखी तिन तैसी"

    ReplyDelete
  11. परशुराम जी को फरसा सिद्ध था . माता पर भी तो चलाया था .उनका अंत महेंद्रगिरी की पहाडियों में और सुरक्षा कारणों से रात्रिकाल को आकाश शयन के वरदान से हुआ था . ...

    ReplyDelete
  12. रसदार और रोचक प्रस्तुतीकरण...

    ReplyDelete
  13. लोक-वार्ता और लोक-मंत्र!! रोचक और ज्ञानवर्धक

    ReplyDelete
  14. Bahut badhiya jaankaaree mili.....aap kahan se ye sab prapt karte hain?

    ReplyDelete
  15. एक अलग सी जानकारी पढने को मिली जो अबसे पहले मैने तो देखी नही थी ....आज पहली बार आपके ब्लाग पर आया और इसे सब्सक्राइब कर लिया है ...धन्यवाद

    ReplyDelete
  16. 'लोक का जीवन्‍त स्‍पर्श' आपकी पोस्‍टों का बहुत बडा लालच रहता है मेरे लिए। इसमें भी उसकी पूर्ति हुई।

    'गुरु मन्‍त्र' वाले मन्‍9 आकी किसी पूर्व पोस्‍ट में अधिक संख्‍या में पहले कहीं पढ चुका हूँ, ऐसा स्‍मरण आ रहा है जिसमें आपने ओझाओं पर विस्‍तर से लिखा था।

    ReplyDelete
    Replies
    1. 'मन9' को 'मन्‍त्र' पढिएगा।

      Delete
  17. बहुत ही रोचक...रोमांचक...रहस्य से भरपूर ...और ऐसा विषय जिसे जानने कि जिज्ञासा हर किसी के मन में घर क़र लेती है .....
    धुन भी सबको सम्मोहित करने वाली होगी इन मंत्रो कि .......

    ReplyDelete
  18. ब्लाग पर आना सार्थक हुआ । काबिलेतारीफ़ है प्रस्तुति । बहुत सुन्दर बहुत खूब...बेहतरीन प्रस्‍तुति
    हम आपका स्वागत करते है..vpsrajput.in..
    क्रांतिवीर क्यों पथ में सोया?

    ReplyDelete
  19. सचमुच बहुत रोचक!

    ReplyDelete
  20. रोचक प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  21. सुन्दर...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  22. Bahut hi mushkil mantar hain kaise yaad rakh pate honge ye log.

    ReplyDelete
  23. सचमुच-सचमुच, सुंदर पोस्ट.बधाई.

    ReplyDelete
  24. मूल रूप में बहुत अच्छा लगा. पूरे भारत में परशु का आतंक रहा माना जाता है.

    ReplyDelete