सरगुजा आए और यहीं आत्मसात हो गए, विद्वता, सादगी, ईमानदारी की प्रतिमूर्ति देवनारायण सिंह जी और उनके साथ जुड़ी अंचल की साहित्यिक परम्परा की झलक।
जीवन दैनन्दिनी
जुलाई 1909 - स्कूल में कागजी जन्मतिथि
अगस्त 1910 - वास्तविक जन्मतिथि तदनुसार हिन्दी तिथि भाद्रपद सुदी तीज सम्वत् 1967 विक्रमी, सिंह राशि मघा नक्षत्र का प्रथम चरण। उरैनी नामक ग्राम में, बलिया जिला, उत्तर प्रदेश
1915 - पिता जी (श्री नन्द किशोर सिंह) दादा वो असरफा कुवरि के तीन केस में डिग्री पाये
1917 - प्रथम विद्यारम्भ
1921 - प्राथमिक शाला उत्तीर्ण
1925 - प्रथम विवाह। बलिया के निकट बनरही नामक ग्राम में।
1927 - प्रथम पत्नी (शिवपूजनी) की मृत्यु
1930 - संस्कृत व्याकरण प्रथमा उत्तीर्ण
1932 - प्रथमा परीक्षा (गोरखपुर) उत्तीर्ण।
1933 - माध्यमिक शाला उत्तीर्ण
1934 - उर्दू की माध्यमिक शाला एवं हिन्दी विशेष योग्यता उत्तीर्ण
(2)
1935 - पिताजी की मृत्यु
1936 - पत्नी के संपूर्ण जेवर बेच कर ऋण की अदायगी।
1937 - भगवद् गीता का हिन्दी पद्यानुवाद।
1938 - ऐतिहासिक गन्ने की फसल की असफलता, जिसे दादावो ने, नम्बरदार का पक्ष लेते हुए, मुझे कठोर कहा था।
1939 - खेत, खेती का अंतिम प्रबंध कर के, माँ को अकेला छोड़ कर, और सूचित नाई को खेती देखने तथा प्रति दिन, घर पर सोने, रहने के लिए कह कर सरगुजा के लिए प्रस्थान।
देवनारायण सिंह जी, अस्पताल मार्ग पर स्थित निवास और प्रकाशन केन्द्र 'देव कुटीर' |
1939 से राजस्व निरीक्षक पद पर शासकीय सेवा आरंभ की, 1965 में नायब तहसीलदार पद से सेवानिवृत्त हुए। डायरी और लेखन में नियमित रहे, लेकिन बहुत सी ऐसी सामग्री दीमक लगने से खराब हो गई तो नष्टप्राय डायरी को संक्षेप में फिर से संजोया, उसी ''जीवन दैनन्दिनी'' के प्रथम दो पृष्ठ यहां प्रकाशित हैं। उनके करीबी कहते हैं कि दीमक लगने से हुए इस नुकसान ने उन्हें खोखला कर दिया। वे बुझे-बुझे से रहने लगे और कुछ समय बाद 10 जनवरी 1994 को उनका निधन हो गया।
सन 1984 में शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अम्बिकापुर के श्री देवेन्द्र सिंह ने ''सरगुजा अंचल के मूर्धन्य साहित्यकार बाबू देवनारायण सिंह के काव्य में राष्ट्रीय चेतना का अनुशीलन'' शीर्षक से लघु शोध प्रबंध तैयार किया, जिसमें उनकी जन्मतिथि 1 जुलाई 1909 तथा उनकी 16 पुस्तकों में 9 प्रकाशित, 3 प्रकाशनाधीन, शेष अप्रकाशित बताई गई है।
माध्यमिक शाला पुस्तक के अंतिम कवर पृष्ठ पर कुल 15 ''पुस्तकों की सूची'' संक्षिप्त विवरण सहित छपी है- 01 रस की गंगा, 02 माध्यमिक शाला- प्रकाशन वर्ष-1974), 03 सरगुजा हिन्दी साहित्य परिषद का इतिहास, 04 प्रेम पाथोद, 05 अमर सन्देश- अक्टूबर, वि.सं.2010, 06 ब्रह्म विद्या- 1964, 07 मानवी, 08 गुरु की झांकी- 1967, 09 गुरु अर्जुनदेव- 1979, 10 रामगढ़ महाकाव्य- 1976, 11 राष्ट्र-भारती- 1971, 12 राष्ट्र-गान- 1973, 13 चयनिका, 14 जीवन के उद्यान में, 15 दो किलो आटा, का नाम है।
साथ ही 16 'मेरे राम'- 1982 शीर्षक से श्वेताश्वतर उपनषिद का पद्यानुवाद और 17 'सौन्दर्य'- 1985 शीर्षक वाली, आध्यात्मिक चिंतनयुक्त दार्शनिक कृति भी प्रकाशित है, इसके अतिरिक्त, संभवतः अप्रकाशित रचना 18 सतोगुण है। सन 1967 में प्रकाशित पुस्तिका 'गुरु की झांकी' में ''कवि की अन्य कृतियां'' में छपे आठ शीर्षक में अध्यात्म-विद्या, रहस्य की बातें और रंजनी, तीन ऐसे हैं, जो ऊपर की सूची में नहीं है।
छत्तीसगढ़ में सरगुजा अंचल की साहित्यिक परम्परा, देवनारायण सिंह जी जैसी विभूतियों, उनकी कृतियों और स्मरण के साथ अक्षुण्ण है।
चित्रों संबंधी सामग्री और जानकारियों के लिए देवनारायण सिंह जी की ज्येष्ठ सुपुत्री श्रीमती विजय सिंह जी और कनिष्ठ सुपुत्री देवलक्ष्मी जी के प्रति आभार।
हमारे देश के बुजुर्गों का 'सर्व जन हिताय' दृष्टिकोण और सादा जीवन अमूल्य धरोहर है जिसे सहेज कर रखने और उसे अगली पीढ़ी तक पहुँचाने की ज़िम्मेदारी हमारी पीढ़ी पर है। यह कार्य हम कितनी सजगता से कर पाएंगे यह महत्त्वपूर्ण है। चाचाजी, आपके द्वारा प्रस्तुत लेख 'सरगुजा के देवनारायण सिंह' समझने और संजोने योग्य है।
ReplyDeleteपरिचय पढ़कर अच्छा लगा ! उनके साहित्यिक अवदान को संरक्षित और पाठक सुलभ बनाया जा सके तो और भी बेहतर होगा !
ReplyDeleteIs amuly parichay ke liye dhanyawaad!
ReplyDeleteआपका जूनून, आपकी बानगी, आपका तेवर, और आपका साहित्य से जुड़े लोगों को खोजने का अंदाज़ ही मुझे आपका बहुत बड़ा प्रशंसक नहीं अनुयायी बना देता है .यह मेरा सौभाग्य होता है की एक आध यात्रा या प्रसंगों का मैं भी सहयात्री बन जाता हूँ , इश्वर आपकी इस साधना को निरंतर रखें और भुत के गर्भ में छिपे इन महान लोगों को प्रकाश में लाने का आपका संकल्प पूरा हो .आपके द्वारा श्री देवनारायण सिंह के लेख प्रकाशन के लिए कोटिश बधाई ......
ReplyDeleteआपकी साहित्य सेवा की निरंतरता के लिए जब कभी मेरी आवश्यकता हो आप सीधे आदेश करें ......
बहुत अच्छा काम कर रहे हैं आप.शुभकामनायें.
ReplyDeleteअच्छा किया जो इसे कलम बद्ध कर दिया, कम से कम उनकी यादें सुरक्षित रहेंगी !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
दिवंगत देवनारायण सिंह जी के बारे में जानकारी साझा करने के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteजीवन के प्रारम्भिक वर्षों में ही बदलाव के बीज छिपे रहते हैं।
ReplyDelete1965 में नायब तहसीलदार पद से सेवा निवृति के उपरान्त मिले जीवन का भरपूर सार्थक उपयोग किया साहब ने . माता जी का प्रसंग छूट गया लगता है ...विविध विषयों के कलमकार से परिचय कराने का शुक्रिया ...
ReplyDeleteअभी लोग समझ नहीं पऍंगे कि आप कितना बडा, कितना आधारभूत, कितना उपयोगी और कितना महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं।
ReplyDeleteआपके काम को देख कर, इन्दौर के स्वर्गीय कवि श्री रमेश महबूब की दो पंक्तियॉं याद आ गईं -
ReplyDeleteनहीं छपेगी खबर ये मेरी, कभी किसी अखबार में।
सारी रात नर्तकी नाची, अन्धों के दरबार में।।
बहुत अच्छी सामग्री आपने जुटाई है.
ReplyDeleteविद्वता, सादगी और ईमानदारी एक साथ, वो भी आज के युग में, बहुत बड़ी बात है|
ReplyDeleteदेव प्रकाशन का अद्यतन पता यही है? ईमेल पता अगर हो तो वो भी उपलब्ध करवाने का आग्रह करता हूँ|
विद्वता, सादगी और ईमानदारी एक साथ, वो भी आज के युग में, बहुत बड़ी बात है|
ReplyDeleteदेव प्रकाशन का अद्यतन पता यही है? ईमेल पता अगर हो तो वो भी उपलब्ध करवाने का आग्रह करता हूँ|
इतने समर्पित हो कर कार्य करनवाले आज प्रेरणा के स्रोत के समान याद किये जाते हैं .इनसे कितना-कुछ सीखा जा सकता है .इन चरित्रोंोके सामने लाने के लिये आपका आभार !
ReplyDeleteस्वर्गीय देवनारायण सिंह के बारे में जानलार अच्छा लगा. उन्हें नमन.
ReplyDeleteस्वर्गीय देवनारायण सिंह के बारे में जाना । सरगुजा के बारे में याद आया यहां लोह अयस्क बहुत हैं और पुराने जमाने में इसका शुध्दीकरण भी यहां होता था ।
ReplyDeleteये पुरखौती ब्लोगांगन है.....
ReplyDeleteधन्यवाद श्रद्धा, आपका आभार.
ReplyDeleteदेवनारायण सिंह जी पर शोध भी हुआ है, लेकिन लगा कि कुछ महत्वपूर्ण तथ्य छूटे-से रहे हैं, और उनका नाम छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों में तो शायद ही कभी शामिल हुआ हो.
सरगुजा और बस्तर से जुड़ कर, जोड़ कर, जुड़े रह कर छत्तीसगढ़ को महसूस करना-कराना, मेरे लिए तो अभियान जैसा है, यह भी उसी का एक हिस्सा है.
दुर्लभ को सुलभ बनाने का आपका अभियान स्तुत्य है।
ReplyDeleteSalute to Unsung Hero....
ReplyDelete- Bikash
सचमुच आभार ही व्यक्त कर सकता हूँ आपका।
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