कल एक और पर्यावरण दिवस हमने बिता लिया।
लगता है, बच्ची ने रट लिया है और सुबकते, पाठ अनचाहे दुहरा रही है-
मछली जल की रानी है
जीवन उसका पानी है
हाथ लगाओ डर जाती है
बाहर निकालो मर जाती है
आज तो यह पाठ झूठा हुआ।
खबर है इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस का विषय- ''हरित अर्थव्यवस्था: क्या आप इसमें शामिल हैं?'' (Green Economy: Does it include you?)। यह भी खबर है कि इस अवसर पर विशेष प्रदर्शनी रेलगाड़ी के 8 डिब्बों में जैव विविधता और आजीविका के बीच का संबंध भी प्रदर्शित होगा।
पर्यावरण दिवस की अगली सुबह, आज शुक्र पारगमन हो रहा है। यह वैसी उजली नहीं, सूरज पर एक धब्बा बनेगा। यह सुबह मेरी रोजाना की साथी मछलियों के लिए हुई ही नहीं। रायपुर के इस खम्हारडीह तालाब में मछलियां, मछुआरों की आजीविका बनती रहीं, आज देखा तालाब का कालिख हो रहा हरा पानी और मछलियां...-
लगता है, बच्ची ने रट लिया है और सुबकते, पाठ अनचाहे दुहरा रही है-
मछली जल की रानी है
जीवन उसका पानी है
हाथ लगाओ डर जाती है
बाहर निकालो मर जाती है
आज तो यह पाठ झूठा हुआ।
बचपन में कुछ समय तक अपने नाना नानी के यहां रायपुर में रहा था। शायद भाटापारा इलाका है। वहां के तालाब में किनारे पर बैठ मैं अपनी बांहें फैलाकर, दोनों पंजे फंसाकर पानी अपनी ओर खेंचता था और नन्हीं नन्हीं मछलियां खिंच आये पानी के साथ जमा हो जाती थी। उपर के एक चित्र में ठीक उसी आकार की नन्हीं नन्हीं मछलियां होती थीं। अब तो शायद वह तालाब ही नहीं बचा वहां :(
ReplyDeleteIT IS VERY VERY DIFFICULT TO COREALETE BETWEEN BEHAVIOUR AND PRINCIPLE..AS WELL AS LIFE AND SAYING SO IT IS THE PART OF LIFE ACCORDING TO ME.
ReplyDeleteमुझे पक्का तो पता नही पर शायद गर्मियो के अंत मे पानी मे आक्सीजन की मात्रा घट जाने से मछिलिया मर जाती है। वैसे आजकल तालाब के ठेकेदार से दुश्मनी निकालने के लिये भी लोग यूरिया आदी मिलाकर मछलियो को मार देते हैं। और पानी मे जहरीले कचरे के पहुंचने से भी ऐसा होता है। वो समय भी पता नही कितना दूर है जब इंसान इस प्रदूषण का शिकार हो इसी तरह मारे जायेंगे।
ReplyDeleteप्रदूषण की पराकाष्ठा है, जिस जल में मछलियाँ जीवन पाती है वही उनकी मृत्यु का कारण बन रहा है। जीएं तो जीएं कहाँ?
ReplyDeletebhasmaasur ban gaye hai ham
ReplyDeleteपर्यावरण प्रदूषण आज सर्वाधिक चिंता का विषय है.... जन जन से यही अपील है...
ReplyDeleteजागो मोहन प्यारे... पर्यावरण पुकारे...
सादर।
देखकर मन दुखी हो गया..
ReplyDeleteदुखद
ReplyDeleteये सब दिवस खानापूरी हैं... व्यथित और उद्वेलित कर देने वाला पोस्ट.. लेकिन कितने लोग एक दिन के लिए भी अपने कमरे का कूलर, ए सी एक दिन के लिए भी बंद करेंगे... हम तो त्यागे हुए हैं है व्यक्तिगत स्तर पर..
ReplyDeleteहमने इन जीवों के आश्रय स्थल में भी जहर मिला दिया !
ReplyDeleteदुखद स्थिति....
ReplyDeleteohhh....
ReplyDeleteइससे ज्यादा दर्दनाक दृश्य नहीं हो सकता...
ReplyDeletepoore paryavarn ko ek khilone kee tarah jo ham treat kar rahe hain.. vah din door nhi jab ham bhi khilone kee tarah toote bikhre pade honge..
ReplyDeleteThere must be fall in the biological oxygen demand.the cause should be detected to ensure it wil not be reapeted before its too delay and irrevocable.its realy pathetic.
ReplyDeleteदुखद है ... सिवाए लापरवाही के और क्या है यह सब !
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - रुपये की औकात बता दी योजना आयोग ने - ब्लॉग बुलेटिन
कथनी करनी का अंतर पर्यावरण सहेजने के प्रयासों में खूबा दिखता है.... मन व्यथित हुआ देखकर
ReplyDelete:(
ReplyDeleteशनै: शनै: सब पाठ झूठे सिद्ध होने हैं.
ReplyDeletejis samay wah kavita likhi gai sayad us samay kavi ne aaj ki isthiti ki kalpana nahi ki thi...aaj hote to kavita ki laine badalane me nahi hichakate....
ReplyDeleteyahi khabar aaj akhabar me pada...lekin apake post se phika.......
समय संदर्भित और सारगर्भित ...
ReplyDeleteतस्वीरें बोलती हैं .
पर्यावरण पर आपका सारगर्भित आलेख पढ़कर जितना अच्छा लगा, उससे कहीं ज़्यादा दुख हुआ, अपने आसपास को लेकर. मैं कुछ वक्त रायपुर में रह चुकी हूं. वहां प्रदूषण के प्रति लोगों की बेखबरी क्षोभ से भर दने वाली है. शायद आपके लेखन के ज़रिए लोग महसूस कर सकें.
ReplyDeleteशुभेच्छु,
मृदुलिका
हम कब सचेत होंगे ? दुखद
ReplyDeleteदुखद स्थिति है यह ...
ReplyDeleteमेरा ख्याल है कि तालाब नगर निगम का होगा , मछलियां फिशरीज विभाग की ,पर्यावरण दिवस के नाम पर अंगुली कटा के शहीदी दिवस पर्यावरण विभाग के जिम्मे होगा और पानी में आक्सीजन कम करने वाली तमाम गंदगी आजू बाजू रहने वाले सुयोग्य नागरिकों की !
ReplyDeleteये देश बस ऐसे ही जिये जा रहा है , अपनी ढपली अपना राग ! बहरहाल सम्यक प्रविष्टि !
सच का आइना दिखाती पोस्ट . हम कहाँ हैं?
ReplyDeleteअपने थोड़े से सुख के लिये इंसान और जीवों पर क्या-क्या अत्यचार कर रहा है- इस कुबुद्धि के परिणाम देख कर भी चेतता नहीं. बड़ी निराशा होती है कभी-कभी तो !
ReplyDeleteदर्दनाक - यही है, पर्यावरण चिंता की वास्तविक स्थिति।
ReplyDeleteकौशलेन्द्र जी की टिप्पणी इ-मेल परः
ReplyDeleteप्रदूषण से इतनी ज़ल्दी... सारी मछलियाँ मर गयीं? लगता है किसी ने तालाब में विष डाला था। पर मछलियों को इससे क्या फ़र्क पड़ना ..उन्हें तो मरना ही था आदमी के पेट की जगह अपने घर को ही इस बार बना लिया कब्रिस्तान। जो भी हो दुःखद है।
जो जल होता है जीवन
ReplyDeleteआज बना मृत्यु का कारण ।
क्यूं, कैसे ?
दर्दनाक।
ReplyDeleteयह तो तालाब की मछलियाँ हैं वह दिन दूर नहीं जब नदियों का जल भी ठहर जायेगा।
मछलियाँ यहाँ भी ठीक पांच को ही लक्ष्मी कुंड में मरी हैं -यह खराब प्लानिंग है और कुछ नहीं...बढ़ती संख्या,आर्गेनिक लोड और आक्सीजन की कमी ....
ReplyDeleteहम्म :(
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