यहां प्रस्तुत लेख इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ की शोध पत्रिका ‘कला-वैभव’ के अंक-17 (2007-08) में पृष्ठ 92-95 पर प्रकाशित हुआ है। डॉ के.पी. वर्मा के इस लेख का टेक्स्ट इस प्रकार है-बजरंगबली मंदिर, सहसपुर में अंकित विशिष्ट शिल्पांकन
-डॉ. के. पी. वर्मा*
*रसायनज्ञ-संचालनालय, पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग, रायपुर (छ.ग.)
ग्राम सहसपुर, दुर्ग जिले (छ.ग.) का साजा तहसील के दक्षिणी सीमांत में 21° 33' उत्तरी अक्षांश तथा 81° 17' दक्षिणी देशांतर स्थित है। ग्राम-सहसपुर, दुर्ग जिला मुख्यालय से दुर्ग-बेमेतरा रोड़ पर धमधा से आगे मुख्य सड़क पर स्थित ग्राम देवकर से बायें तरफ लगभग 3 कि. मी. की दूरी पर पक्के सड़क मार्ग पर स्थित है। रायपुर से भी धमधा होकर सहसपुर पहुंचा जा सकता है, जिसकी कुल दूरी लगभग 58 कि. मी. है। इस ग्राम में बस्ती के पूर्वी किनारे पर दो प्राचीन मंदिरों का समूह विद्यमान है, जिसमें से बड़ा, शिव मंदिर तथा छोटा बजरंगबली मंदिर कहलाता है। दोनों ही मंदिर पूर्वाभिमुखी हैं तथा इन दोनों मंदिरों को वर्ष 1973 में ग्रामीण बाल समिति द्वारा चंदा एकत्रित करके सीमेंट प्लास्टर से पूर्णरूपेण ढक दिया गया था। छत्तीसगढ़ शासन संस्कृति विभाग द्वारा वर्ष 2007-08 में बजरंगबली मंदिर, सहसपुर का संरक्षण कार्य सम्पन्न कराया गया है, जिससे मंदिर में उत्कीर्ण विशिष्ट प्रतिमायें प्रकाश में आई। इनमें से शेषशायी विष्णु, अष्टभुजी नटराज, रतियुगल के साथ मृदंगवादक, बालि-सुग्रीव युद्ध, हनुमान, राम-सुग्रीव एवं तारा का अंकन, सरस्वती, नर्तकियों द्वारा शैल नृत्य, मण्डप के वितान में नर्तक दल, मृदंगवादक, मिथुन दृश्य तथा द्वारशाखा में नवग्रह का अनियमित अंकन प्रमुख है। इनमें से प्रमुख तथा महत्त्वपूर्ण प्रतिमाओं का विवरण निम्नानुसार है-
शेषशायी विष्णु- यह प्रतिमा मंदिर के शिखर भाग में सामने तरफ मण्डप तथा शिखर के संधि भाग के तथा गवाक्ष के ऊपर स्थित है। इस प्रतिमा में विष्णु के सिर पर सप्तफण शेषनाग, चतुर्भुजी, गदा और शंख है। विष्णु शेषशैया में लेटे हुए प्रदर्शित हैं, जिनके नीचे बैठे हुये गरुड़ तथा दायें पैर के बगल में लक्ष्मी विराजमान हैं। छत्तीसगढ़ में शेषशायी विष्णु की कुल चार प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं जिनमें से एक लक्ष्मण मंदिर, सिरपुर की द्वारशाखा के सिरदल में, दूसरी प्रतिमा राजीवलोचन मंदिर राजिम की द्वारशाखा के सिरदल में, तीसरी प्रतिमा जिला पुरातत्त्व संग्रहालय, राजनांदगांव तथा चौथी प्रतिमा महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय, रायपुर में प्रदर्शित है। इनमें से लक्ष्मण मंदिर तथा राजीवलोचन मंदिर को छोड़कर शेष दोनों विलग प्रतिमाये हैं जो काले प्रस्तर से निर्मित हैं।
अष्टभुजी नटराज - यह प्रतिमा मंदिर के शिखर भाग में सुकनासिका के दायें पार्श्व में सबसे ऊपर की पंक्ति में मध्य में स्थित है। शिव नृत्य मुद्रा में हैं तथा ऊपरी दोनों हाथ से सर्प को पकड़े हैं। दायें निचले हाथ में डमरू तथा दायें तरफ मुंडमाल धारण किये हैं। शिव के दायें तरफ नीचे कोने में एक मृदंगवादक तथा बाये कोने में नंदी का अंकन है।
रतियुगल - यह प्रतिमा मंदिर के शिखर में दायें तरफ सुकनासिका के पार्श्व में नटराज शिव के नीचे एक पंक्ति में मृदंगवादक के साथ दाहिने किनारे पर प्रदर्शित है जिसमें बायें किनारे पर मल्लयुद्ध उसके बाद तीन मृदंगवादक तथा दायें कोने में रतियुगल का अंकन है जिसमें से निचले भाग में अंकित नारी का उदर भाग खण्डित है। छत्तीसगढ़ में रतियुगल की कुल 3 प्रतिमायें ज्ञात हैं जिसमें से एक प्रतिमा जिला पुरातत्व संग्रहालय, जगदलपुर में प्रदर्शित है तथा दूसरी प्रतिमा अभी हाल में ही फणिकेश्वर नाथ महादेव फिंगेश्वर, जिला रायपुर के दक्षिणी भित्ती के जंघा भाग में उत्कीर्ण है तथा तीसरी यह प्रतिमा है।
बालि-सुग्रीव युद्ध - मंदिर के शिखर भाग में सुकनासिका के बायें पार्श्व में एक पंक्ति में दायें से बायें की तरफ क्रमशः हनुमान, हनुमान का लघु रूप दण्डवत करते हुये, सुग्रीव तथा राम के साथ एवं एक नारी का अंकन है, जिसके पीछे वानरमुखी नारी प्रतिमा संभवतः बालि की पत्नि तारा बालि को सुग्रीव से युद्ध न करने के लिये मना करने पर बालि द्वारा नहीं माना गया जिससे चिन्तन मुद्रा में तारा दोनों हाथ गालों में रखे हुये स्थित है जिसके पीछे एक वानर प्रतिमा का अंकन है।
यह प्रसंग रामचरित मानस के किष्किंधाकाण्ड1 में स्पष्ट रूप से वर्णित है। इस प्रकार का प्रसंग छत्तीसगढ़ में शिवमंदिर चंदखुरी, जिला-रायपुर की द्वार शाखा के सिरदल में उत्कीर्ण है, जिसमें बालि-सुग्रीव युद्ध का अंकन है। इसी प्रकार देऊर मंदिर, मल्हार2, जिला बिलासपुर परिसर में रखे हुये प्रस्तुत स्तंभ में, लक्ष्मणेश्वर मंदिर खरौद3 जिला-जांजगीर चांपा के अंतराल भाग में स्थापित स्तंभों में चारों तरफ रामायण से संबंधित दृश्य में अशोक वाटिका में सीता तथा हनुमान, बालि-सुग्रीव युद्ध का दृश्य अंकित है। इनके अलावा छत्तीसगढ़ में विष्णु मंदिर, जांजगीर4 की जंघा की बाह्य भित्ति में, शिवमंदिर देवबलोदा5, जिला-दुर्ग, शिव मंदिर गंडई6, जिला राजनांदगांव की बाह्य भित्ति में, शिव मंदिर घटियारी7, जिला राजनांदगांव से प्राप्त अशोक वाटिका में सीता तथा हनुमान का दृश्य एवं राम तथा हनुमान का अंकन मिलता है। इसके अलावा डीपाडीह8 जिला सरगुजा स्थित सामतसरना मंदिर के मण्डप में प्रदर्शित प्रतिमा के पादपीठ में बालि तथा सुग्रीव के युद्ध का अंकन मिलता है।
सरस्वती - यह प्रतिमा शिखर भाग के शुकनासिका में बायें पार्श्व में सबसे नीचे की पंक्ति में मध्य में उत्कीर्ण है। द्विभुजी सरस्वती खड़ी हुई दोनों हाथों से वीणा धारण किये हुये प्रदर्शित हैं जिनके बायें तरफ निचले कोने में सरस्वती का वाहन हंस अंकित है। प्रतिमा गले में माला, पैरों में कड़ा, कटिसूत्र आदि आभूषण धारण किये हुये है। छत्तीसगढ़ के मंदिर स्थापत्य में शिव मंदिर गनियारी9 जिला बिलासपुर, विष्णु मंदिर, नारायणपाल10, जिला बस्तर, छेरकी महल, जिला कवर्धा11 आदि मंदिरों में प्राप्त हुई है।
महाभारत12 में सरस्वती श्वेतवर्ण वाली, श्वेत कमल पर आसीन, अक्षमाला, पुस्तक तथा वीणा लिये हुये प्रदर्शित की गई हैं। सरस्वती विद्या तथा संस्कृत की देवी कही गई हैं। बौद्ध तथा जैन धर्म वाले भी उसकी पूजा करते हैं। बौद्ध इन्हें मंजुश्री की आत्मा स्वीकार करते हैं लेकिन ब्राह्मण धर्म में कभी इनका संबंध ब्रह्म से तो कभी विष्णु से बतलाया गया है। साधारणतः ये कमल के पुष्प पर बैठी हुई तथा वीणा बजाती हुई दिखाई जाती हैं। हंस इनका वाहन है जो पैरों के समीप स्थित रहता है। विष्णुधर्मोत्तर13 सरस्वती को चार भुजा युक्त एवं सभी आभूषणों से सुशोभित बतलाया है। चारों भुजाओं में से दाहिने दोनों हाथों में पुस्तक तथा अक्षमाला एवं बायें दोनों हाथों में वीणा तथा कमण्डल धारण किये हुये बतलाया है। सहसपुर स्थित सरस्वती प्रतिमा चतुर्भुजी है जिसके बायें तरफ नीचे पैर के समीप बैठा हुआ हंस ऊपर को मुख किये हुए प्रदर्शित है। सरस्वती अपने दायें ऊपरी हाथ में अक्षमाला तथा निचले हाथ से वीणा को पकड़े हुये एवं बायें ऊपरी हाथ में पुस्तक तथा निचले हाथ से वीणा धारण किये हुये प्रदर्शित हैं। प्रतिमा के गले में उत्तरीय, सिर में मुकुट, कर्णकुण्डल, हाथों तथा पैरों में कंगन आभूषण हैं।
मण्डप के वितान में नर्तक दल - मण्डप का आकार गुम्बजाकार है जिसके वितान में कुल आठ परते हैं जिनमें से निचली कुल 5 परतें सादी हैं। इसके ऊपर छठवें परत में एक उभारदार तथा गड्ढ़ों के मध्य पान के पत्ते की आकृति निर्मित है। सातवें परत में मात्र एक पंक्ति में लता वल्लरी का अंकन है। इसके ऊपर आठवें परत में चारों तरफ वलयाकार आकृति में मिथुन दृश्य अंकित हैं तथा सबसे ऊपरी एवं मध्य भाग में गोलाकार आकृति में चतुर्भुजी कृष्ण (बांसुरी वादक) का अंकन है जिसके चारों किनारे पर 5 सखियों का अंकन है। कृष्ण के वाह्य परत में एक प्रतिमा लेटी हुई प्रदर्शित है जो मृदंग बजा रहा है। इसके सिरों भाग तरफ नौ नर्तक दल, क्रमशः एक पुरुष तथा एक नारी, नृत्य करते हुये दृष्टव्य हैं तथा पैर की तरफ 5 पुरुष, मृदंग तथा अन्य वाद्य बजा रहे हैं तथा उनके बायें तरफ चार मिथुन आकृतियां निर्मित हैं। इस प्रकार का मण्डप के वितान में मिथुन दृश्य तथा कृष्ण का सखियों सहित अलंकरण छत्तीसगढ़ का एक मात्र उदाहरण है।
नवग्रह - इस मंदिर में द्वारशाखा के ऊपर सिरदल में एक पंक्ति में त्रिदेव, ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का अंकन है। इस द्वारशाखा की प्रमुख विशेषता है कि विष्णु के दायें तरफ एक अलग खण्ड में सोम तथा महेश के बायें तरफ सूर्य, ब्रहमा तथा शिव के मध्य बायें तरफ के खण्ड में तीन ग्रह एवं शिव तथा विष्णु के मध्य के खण्ड में कुल 4 ग्रहों का अंकन है जिसमें से मध्य में राहु एवं केतु का अंकन है तथा दोनों किनारे पर एक-एक और ग्रह प्रदर्शित हैं। सामान्यता कलचुरि कालीन मंदिरों की द्वारशाखा में नवग्रह का सीधा अंकन सोम से प्रारंभ होकर राहु केतु तक मिलता है लेकिन सहसपुर स्थित इन दोनों ही मंदिरों में नवग्रह का अंकन विपरीत क्रम में है। शिव मंदिर, सहसपुर14 में राहु-केतु से प्रारंभ होकर सोम-सूर्य में समाप्त होता है जबकि बजरंगबली मंदिर में नवग्रहों का क्रम अनियमित है।
योद्धा प्रतिमा - यह प्रतिमा शिखर में शुकनासिका के दायें तरफ सम्मुख भाग में ऊपरी पंक्ति में अलिंद में द्विभुजी योद्धा प्रतिमा अंकित है जो अपने दोनों हाथों से चार आयुध चलाते हुये दृष्टव्य हैं। वह अपने दायें हाथ से धनुष तथा तरकस पकड़े हुये हैं एवं तलवार चलाते हुये दृष्टव्य है। प्रतिमा कमर से वस्त्र कसे हुये, वीर वेश में उग्ररूप में प्रदर्शित है। जैसा कि इस क्षेत्र में सहसपुर-लोहारा विकासखण्ड में एक उत्कीर्ण लेख युक्त प्रतिमा प्राप्त हुई है जो यशोराज सहस्त्रार्जुन की है। चूंकि उस समय फणिनागवंशी शासकों का राज्य था। अतः उसी की स्मृति में इस प्रतिमा को उत्कीर्ण किया गया हो जो वीर सहस्त्रार्जुन की हो सकती है। क्योंकि यह मंदिर परवर्तीकाल के फणिनाग शासकों के काल में लगभग 13 वीं शती ई. में निर्मित प्रतीत होता है।
इस प्रकार इस शोधपत्र के माध्यम से यह प्रमाणित होता है कि छत्तीसगढ़ क्षेत्र में रामायण तथा महाभारत काल की घटनाओं को स्थापत्य कला में प्रमाण स्वरूप अंकित किया गया है जो उस काल से लेकर आधुनिक काल तक के स्थापत्य एवं कला में विद्यमान हैं तथा बजरंग बली मंदिर सहसपुर, जिला दुर्ग जो कि कलचुरि शासकों के अधीनस्थ शासन कर रहे फणिनागवंशी शासकों के काल में 13-14 वीं शती ई. में निर्मित है, इससे भी स्पष्ट प्रमाण के रूप में विद्यमान है।
संदर्भ सूची -
1.बाजपेयी, शिवाकांत सिरपुर, पुरातत्व एवं पर्यटन, 2005 पृ.18
2. शर्मा, सीताराम, भोरमदेव क्षेत्र, पश्चिम-दक्षिण कोसल की कला 1990, पृ. 108
3.राम चरित मानस, किष्किंधाकाण्ड
4.कला-वैभव, अंक 16, (2006-07) मंदिरों की नगरी, खरोद : स्थापत्य व काला पर प्रकाश, डॉ. के. पी. वर्मा, पृ.114
5 जाज्वल्या, 2003, जांजगीर का विष्णु मंदिर, श्री राहुल कुमार सिंह, पृ.15
6. शर्मा, सीताराम, भोरमदेव क्षेत्र, पश्चिम-दक्षिण कोसल की कला 1990, पृ. 89
7. पुरातन अंक 9, घटियारी और कटंगी क्षेत्र की प्रतिनिधि प्रतिमाओं का शिल्प शास्त्रीय विवेचन, सीताराम दुबे, पृ.100
8. कला-वैभव, अंक 15 (2005-06), डीपाडीह का मूर्ति शिल्प वैभव, जी. एल. रायकवार, पृ.172
9. कला-वैभव, संयुक्तांक 13-14 (2003-04) शिव मंदिर, गनियारी, डॉ. के. पी. वर्मा, पृ.95
10. बस्तर की स्थापत्य कला, डॉ. के. पी. वर्मा पु. 114, शताक्षी प्रकाशन, रायपुर, वर्ष 2009
11. लेखक द्वारा वर्ष 2008 में किए गए रसायनिक संरक्षण कार्य के दौरान ज्ञात।
12. महा. शांति 122, 25-27
13. स्मिथ बी. ए. जैन, स्तूपजा ऑफ मथुरा, पृ. 56
14. इंदुमती मिश्रा, प्रतिमा विज्ञान, 169-171 द्वितीय संस्करण, 1987