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Sunday, August 21, 2022

हमारे संविधान पुरुष और हिंदी

पिछली पोस्ट में ‘संविधान सभा में छत्तीसगढ़ के सदस्य‘ की जानकारी है। यहां संबंधित अन्य जानकारियां प्रस्तुत हैं।

संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भारत का संविधान पारित किए जाने के अवसर पर अपने भाषण में अनुवादकों का उल्लेख करते हुए, माननीय श्री जी.एस. गुप्त (घनश्याम सिंह गुप्त) की अध्यक्षता वाली अनुवाद समिति का विशेष रूप से उल्लेख किया था कि उनके द्वारा संविधान में प्रयुक्त अंग्रेजी के समानार्थी हिंदी शब्द तलाशने का कठिन कार्य किया गया है। जानकारी मिलती है कि 1947 में ही घनश्याम सिंह गुप्त की अध्यक्षता में संविधान के हिंदी अनुवाद के लिए समिति गठित की गई थी। पुनरीक्षण के लिए 15 मार्च 1949 को विशेषज्ञ समिति की नियुक्ति हुई थी, जिसमें श्री राहुल सांकृत्यायन, श्री सुनीति कुमार चटर्जी, श्री एम. सत्यनारायण, श्री जयचन्द्र विद्यालंकार तथा श्री दांते जैसे देश के विभिन्न प्रांतों के जानकार थे।

संविधान सभा की बैठकों के दौरान घनश्याम सिंह गुप्त ने 9 नवंबर 1948 को ‘हिंदुस्तानी‘ भाषा पर विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि सरल हिंदुस्तानी जैसी कोई चीज नहीं थी, उर्दू, उर्दू और हिंदी हिंदी थी। उन्होंने गणित से संबंधित उर्दू और हिंदी के शब्दों के उदाहरण भी दिए। भाषा पर उनके वक्तव्यों के अलावा एक अन्य उल्लेखनीय प्रसंग 24 मई 1949 का है, जिसमें गुप्तजी ने सभा की बैठक में 11 मिनट विलंब होने के कारण समयनिष्ठता पर सवाल किया था। इस सवाल पर अध्यक्ष महोदय ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बताया कि वे स्वयं पिछले बीस मिनट से अपने कक्ष में प्रतीक्षा कर रहे थे। और आशा व्यक्त की कि कल से हम सदैव ठीक समय पर यहां होंगे।

संविधान के उर्दू और हिंदुस्तानी अनुवाद के संबंध में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा घनश्याम सिंह गुप्त को, उनके 23-6-48 के पत्र के संदर्भ में 29 जून 1948 को लिखे गए पत्र की जानकारी मिलती है। इसी तरह घनश्याम सिंह गुप्त द्वारा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी को 25 अगस्त 1951 को लिखे पत्र की जानकारी मिलती है, जिसमें उन्होंने सरदारजी के चले जाने और पं. जवाहरलालजी और टंडनजी के विवाद का उल्लेख किया है। 

घनश्याम सिंह गुप्त द्वारा बहैसियत स्पीकर, सी.पी. एंड बरार लेजिसलेटिव असेंबली, नागपुर, (दिनांक, 7 अक्टूबर 1948) ‘कांस्टीट्यूशनल टर्म्स‘ की पुस्तिका प्रकाशित कराई गई थी। पुस्तिका के आरंभ में अंग्रेजी में ‘फोरवर्ड‘ है साथ ही हिंदी में ‘प्राक्कथन‘, जो यहां प्रस्तुत है।

जो माला हम प्रकाशित कर रहे हैं उसकी यह तीसरी कड़ी है. वास्तव में यह तो, हिन्दी संविधान के प्रारूप की, तथा कुछ अन्य संवैधानिक शब्दों की शब्दावली ही है. अंग्रेजी शब्दों के हिन्दी पर्याय बनाने के लिये हमारा मुख्य आधार संस्कृत है. संस्कृत को आधार बनाने का कारण मैंने पहिले पुष्ण के प्राक्कथन में दिया है और उसको मैं यहां दुहराना नहीं चाहता. परन्तु मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि सर्वोच्च राष्ट्रीयता की मांग यही है कि हमारे शब्द जिनकी कोई पारिभाषिक स्थिति है, संस्कृत के आधार से ही बनें. यही भारतीय भाषाओं की एकता का मार्ग है. यदि वाक्य रचना की नहीं तो कम से कम शब्द रचना की ही सही. और विशिष्ट विषयों में तो शब्दावली एक बहुत बड़ी चीज होती है. इससे विपरीत का मार्ग एकता का बाधक और अव्यवस्था लाने वाला है. कोई भी अनुमान कर सकता है कि यदि जिसे अंग्रेजी में ‘हारबरिंग‘ (यथा हारबरिंग एन अफेडर) कहते हैं उस विचार को व्यक्त करने के लिये बंगाल की विधान सभा के अधिनियम (एक्ट) में ‘आश्रय‘ और केन्द्र की विधान सभा (संसद्) अधिनियम में “पनाह” हो तो क्या अवस्था होगी. एक और उदाहरण लीजिये ‘ट्रान्सपोर्टेशन फार लाइफ‘ के भाव को सूचित करने के लिये यदि बंगाल अधिनियम में “यावज्जीवन द्वीपान्तर प्रेरण‘ हो और केन्द्रीय अधिनियम में ‘हब्स दवाम बउबूरे दर्याय शोर‘ हो तो कैसा गोलमाल होगा. हजारों शब्द की तरह ये दोनों शब्द हमारे दंडविधान के साधारण शब्द है. और दंडविधान संवर्ती सूची (कांकरंट लिस्ट) में होने के कारण, केन्द्र और प्रान्तों दोनों का विषय है. जब तक अंग्रेजी राज्य था या यों कहिये जब तक विधान की अधिकृत भाषा अंग्रेजी थी और बंगला या हिन्दी दंड संग्रह, अंग्रेजी दंड संग्रह का केवल साधारण अनुवाद था, तब तक तो बात दूसरी थी. क्योंकि कानूनी विवाद के प्रसंग में मूल अंग्रेजी ही प्रमाण मानी जाती रही. परंतु जब हमें अपने मूल अधिनियम ही हिन्दी व बंगला में बनाने होंगे तब तो यह अनिवार्य हो जाता है कि हमारी शब्दावली एक ही हो. विभिन्न शब्दावली का जो बुरा परिणाम होगा उसका अनुमान करना कठिन है. 

यदि हम अपनी ‘हिन्दुस्तानी‘ को ‘बंगाली‘, ‘मराठी‘ आदि के गले में जबरदस्ती उतारना नहीं चाहते हैं तब तो हमारी सब भाषाओं के लिये (अथवा अधिक से अधिक भाषाओं के लिये) समान शब्दावली का आधार संस्कृत ही हो सकता है. 

एक और बात हमें स्मरण रखना है. एक ही विचार को बताने के लिये संस्कृतजन्य शब्द भी एक से अधिक हो सकते हैं. कोई किसी एक शब्द को पसन्द करता है, कोई दूसरे को. कोई ‘मिनिस्टर‘ के लिये ‘मंत्री‘ और ‘सेक्रेटरी‘ के लिये ‘सचिव‘ कहना चाहेगा तो दूसरा ‘मिनिस्टर‘ के लिये ‘सचिव‘ और ‘सेक्रेटरी‘ के लिये ‘मंत्री‘ कहना चाहेगा. इससे भी अव्यवस्था हो सकती है. जिसे हमें हटाना होगा. वह समय शीघ्र आ रहा है जब कि हमें अपने सारे प्रयत्नों का, अखिल भारतीय आधार पर, समन्वय करना ही होगा.

इस शब्दावली के लिये डॉ. रघुवीर को कृतज्ञता प्रगट किये बिना मैं इस अपने प्राक्कथन को समाप्त नहीं कर सकता. उन्होंने अंग्रेजी में एक सुन्दर छोटी भूमिका लिखी है. उसके लिये भी वे धन्यवाद के पात्र हैं. मेरी विधान सभा के कार्य कर्ताओं ने भी, विशेषकर श्री बेनीमाधव जी कोकस ने इस कार्य में सहायता दी है. भारतीय संविधान के प्रारूप से और शब्द निर्माण में जो हमारे कई प्रकार के प्रयत्न हुए जिनके परिणामस्वरूप कई जगहों में हमने टिप्पणी की थी, उन सब से शब्दों की श्रृंखला बनाने का जो कार्य उनने किया उस के लिये धन्यवाद के पात्र हैं. 

इसी प्रकार एक महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय वक्तव्य पं. रविशंकर शुक्ल का है, जो 13 सितंबर 1949 को संविधान सभा में दिया गया था। पं. शुक्ल ने ‘हिंदी राजभाषा: उसका दायित्व‘ विषय पर विचार प्रकट करते हुए शिक्षा का माध्यम, प्रांत और भाषा का व्यवहार, न्यायालयों में अंग्रेजी, अंग्रेजी प्रावधान, आयरलैंड का उदाहरण, अंकों का प्रश्न, शब्दों का प्रयोग, राष्ट्रभाषा सबकी सहमति से, भाषा का निर्माण जनता द्वारा, जैसे बिंदुओं पर ध्यान आकृष्ट कराया था, जिसका आरंभिक और अंतिम अंश इस प्रकार है- 

अभी हमने, सदन के अनेक प्रमुख सम्माननीय सदस्यों के भाषण सुने। अपने देश के ऐसे प्रख्यात व्यक्तियों का विरोध करने में कभी कभी परेशानी होती है किंतु राष्ट्रों के इतिहास में ऐसे अवसर आते हैं जबकि अपनी बात कह देने के अतिरिक्त, हमारे पास अन्य कोई विकल्प नहीं बचता। मैं केवल विरोध के लिये विरोध नहीं कर रहा हूं। इस ऐतिहासिक अवसर पर मैं अपना मत प्रस्तुत करने के लिये उपस्थित हुआ हूं। 

इस प्रश्न के संबंध में दो दृष्टिकोण हैं। एक दृष्टि उनकी है जो यह चाहते हैं कि इस देश में अंग्रेजी भाषा, जितने अधिक समय और जितनी दूरी तक संभव हो, जारी रहे; और दूसरा दृष्टिकोण उनका है जो चाहते हैं कि जितनी जल्दी संभव हो अंग्रेजी के स्थान पर एक भारतीय भाषा का उपयोग हो। माननीय श्री गोपालस्वामी आयंगार द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव पर हम इन दो दृष्टिकोणों से विचार करते हैं। मेरे द्वारा प्रस्तुत समस्त संशोधन, द्वितीय दृष्टिकोण से ही प्रस्तुत किये गये हैं। यदि मैं यह पाता कि अध्याय १४-अ में समावेष्टित अनुच्छेद इस प्रकार के हैं जो हमारे उद्देश्य को क्षति नहीं पहुंचाते हैं, तो मैं यहां बोलने के लिये कभी नहीं आता। यह ठीक है कि हमने हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि को एक उच्चासन पर प्रतिष्ठित कर दिया है। अंकों के संबंध में, मैं बाद में बोलूंगा। इतना कहने के बाद मैं इस अध्याय के प्रवर्ती भाग पर आता हूं ... 
... ... ... 

इस सदन के हम सब सदस्य जो कांग्रेस के भी सदस्य हैं, कांग्रेस का ही अनुसरण करते आये हैं। कांग्रेस ने निर्णय किया है कि हमें १५ वर्ष की अवधि से आगे जाने की आवश्यकता नहीं है। अतः हमें यह नहीं सोचना चाहिये कि पन्द्रह वर्षों के बाद क्या होगा। हम अब पीढियों के लिये प्रावधान न करें और उन्हें किसी बन्धन में न बांधें। वर्षों बाद जब हमारे प्रतिनिधि मिलेंगे तब वे निर्णय करेंगे कि उन्हें क्या करना चाहिये। जहां तक हमारा सम्बन्ध है हम पन्द्रह वर्षों के लिये निर्णय करते हैं। कांग्रेस ने हिन्दी के अधिकाधिक प्रयोग का आदेश दिया है और मेरे द्वारा प्रस्तुत संशोधनों से इसे सम्भव बनाया जा सकता है तथा पन्द्रह वर्षों के अन्दर ही हम इसे कर सकते हैं। मेरा प्रस्ताव है कि दस वर्षों के अन्दर हम आयोगों और समितियों का सारा कार्य समाप्त कर दें। संसद इस बात का निर्णय करेगी कि पन्द्रह वर्षों की अवधि के अन्दर ही किन साधनों और उपायों से हिन्दी को अपनाया जा सकता है। कांग्रेस कार्य समिति के प्रस्ताव की भाषा के ठीक-ठीक अनुरूप ही मैंने अपने संशोधनों का निर्माण किया है तथा आशा है कि सदन उन्हें स्वीकार करेगा। जहां तक कांग्रेस कार्यकारिणी के प्रस्ताव का सम्बन्ध है मैं नहीं समझता कि ‘हिन्दुस्तानी‘ शब्द का उसमें प्रयोग किया गया है। उसमें कहा गया है कि देवनागरी लिपि में लिखी हुई हिन्दी भाषा ही हमारी शासकीय हो।’ 

पुनः दुहरा दूं कि संविधान और छत्तीसगढ़ संबंधी दोनों पोस्ट, मेरे स्वयं की जिज्ञासा-पूर्ति के दौरान गत वर्षों में प्राप्त जानकारियों का संयोजन है, जिसमें आए तथ्यों के प्रति यथासंभव सावधानी बरती गई है। इस संबंध में अन्य जानकारी किसी अधिकृत स्रोत से उपलब्ध होने पर, यहां प्रस्तुत जानकारी में संशोधन/परिवर्धन कर दिया जावेगा।

Saturday, August 20, 2022

संविधान सभा में छत्तीसगढ़ के सदस्य

यहां प्रस्तुत जानकारी, मुख्यतः इंटरनेट पर उपलब्ध अधिकृत या विश्वसनीय स्रोतों से ली गई है। साथ ही अल्पज्ञात प्रकाशित सामग्री तथा स्वयं द्वारा एकत्र जानकारियों का समन्वय किया गया है। यथासंभव तथ्यों का परीक्षण स्वयं किया गया है। भारत शासन द्वारा सन 2000 में पुनर्मुद्रित कराई गई भारतीय संविधान की प्रति, पं. रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर के पं. सुन्दरलाल शर्मा ग्रंथागार में उपलब्ध है, सदस्यों के हस्ताक्षर के लिए स्वयं अवलोकन कर इसे आधार बनाया गया है। अन्य जानकारी किसी अधिकृत स्रोत से उपलब्ध होने पर, यहां प्रस्तुत जानकारी में संशोधन/परिवर्धन कर दिया जावेगा।

इंटरनेट पर उपलब्ध कान्स्टीट्युएंट असेंबली ऑफ इंडिया - वाल्युम 1 में सोमवार, 9 दिसंबर 1946 की पहली बैठक में रजिस्टर में हस्ताक्षर के लिए नामों में मद्रास 43, बाम्बे से 19, बंगाल से 26, युनाइटेड प्राविंस से 42, पंजाब से 12, बिहार से 30, सी.पी. एंड बरार के 14, असम के 7, नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्राविंस से 2, उड़ीसा से 9, सिंध से 1, दिल्ली से 1, अजमेर-मेरवारा से 1, कुर्ग से 1, इस प्रकार कुल 208 नामों का उल्लेख है, जिसमें सी.पी. एंड बरार के 14 नामों में सरल क्रमांक 1 पर पं. रवि शंकर शुक्ल, 6 पर ठाकुर छेदीलाल, एम.एल.ए., 10 पर गुरु अगमदास अगरमनदास, एम.एल.ए. का नाम छत्तीसगढ़ के सदस्यों का आया है। कान्स्टीट्युएंट असेंबली ऑफ इंडिया - वाल्युम 4 में सोमवार, 14 जुलाई 1947 की बैठक में रजिस्टर में हस्ताक्षर के लिए नामों में इस्टर्न स्टेट्स से राय साहब रघुराज सिंह का नाम आया है।

विकिपीडिया के ‘भारतीय संविधान सभा‘ पेज पर मध्यप्रांत और बरार [संपादित करें] के अंतर्गत दर्ज सदस्य नामों में से छत्तीसगढ़ के नाम, गुरु अगमदास, बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल, पं किशोरी मोहन त्रिपाठी, घनश्याम सिंह गुप्ता, रविशंकर शुक्ल, रामप्रसाद पोटाई, इस प्रकार कुल छह नाम हैं।

विकिपीडिया के कान्स्टीट्युएंट असेंबली ऑफ इंडिया पेज पर सेंट्रल प्राविंसेस एंड बरार के 19 नाम हैं, जिनमें ठाकुर छेदीलाल, घनश्याम सिंह गुप्ता, रविशंकर शुक्ल के अतिरिक्त अंबिका चरण शुक्ल (क्रम 1 पर) तथा गनपतराव दानी (क्रम 19 पर) नाम मिलता है, जो छत्तीसगढ़ से संबंधित हैं, उक्त दोनों नामों की पुष्टि अन्य स्रोतों से नहीं हुई है।

जानकारी मिलती है कि पुनर्गठित संविधान सभा के 299 सदस्यों की बैठक 31 दिसंबर 1947 को हुई, जिन सदस्यों की 2 वर्ष 11 माह, 18 दिन में कुल 114 दिन बैठक के बाद 24 जनवरी 1950 को हस्ताक्षर कर संविधान को मान्यता दी गई। संविधान सभा के सदस्यों के हस्ताक्षर संविधान की प्रति में पेज 222 पर आठवीं अनुसूची के बाद पेज 231 तक दस पृष्ठों पर हैं। पेज 222 पर 17, 223 पर 30, 224 पर 34, 225 पर 34, 226 पर 34, 227 पर 32, 228 पर 30, 229 पर 34, 230 पर 34, 231 पर 5, इस प्रकार कुल 284? हस्ताक्षर हैं। हस्ताक्षरों के संबंध में ध्यान देने योग्य-

0 कुछ सदस्यों ने दो लिपियों में हस्ताक्षर किए हैं।
0 हस्ताक्षर के साथ कोष्ठक में नाम भी लिखा है।
0 मैसूर के एच.आर. गुरुवरेड्डी का हस्ताक्षर पेज 226 पर तथा पेज 229 पर, इस प्रकार एक ही व्यक्ति का एक जैसा ही दो हस्ताक्षर, कोष्ठक में नाम सहित आया है।
0 पेज 229 पर दो हस्ताक्षर के नीचे दिनांक 24.1.1950 भी अंकित है।
0 राजेन्द्र प्रसाद का हस्ताक्षर जिस स्थान पर है, उसे देख कर लगता है कि अंतिम प्रारूप हस्ताक्षर के लिए सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू को प्रस्तुत किया गया और जैसा कायदा है, लेख और हस्ताक्षर के बीच खाली स्थान न छोड़ते हुए, उन्होंने अपने हस्ताक्षर किए हैं। अतएव राजेन्द्र प्रसाद द्वारा जगह बनाते जवाहरलाल नेहरू के उपर तिरछे हस्ताक्षर किया गया।
0 संविधान सभा की बैठकों के प्रतिवेदन से जानकारी मिलती है कि 24 जनवरी 1950 को संविधान की प्रति पर हस्ताक्षर के लिए अध्यक्ष द्वारा सदस्यों से आग्रह किया जाता है कि वे एक-एक कर आएं और प्रतियों पर हस्ताक्षर करें। सदस्यगण जिस क्रम में बैठे हैं, उसी क्रम में उन्हें पुकारा जाएगा प्रधानमंत्री को पब्लिक ड्यूटी में जाना है इसलिए हस्ताक्षर के लिए उनसे पहले आग्रह किया गया।
0 ग्रंथागार वाली जिस प्रति का मैंने अवलोकन किया है उसमें कुल 231 पेज में, पेज 228 तथा पेज 229 दो-दो बार हैं, इससे संभव है कि इस संस्करण में मुद्रित किसी प्रति में उक्त दो पेज कम हों।

छत्तीसगढ़ के सदस्यों में, पेज 227 पर रविशंकर शुक्ल और ठाकुर छेदीलाल के हस्ताक्षर 228 पर घनश्याम सिंह गुप्त के हस्ताक्षर (नागरी में), 229 पर रामप्रसाद पोटाई और 230 पर के.एम. त्रिपाठी के हस्ताक्षर (रोमन में) हैं, इस प्रकार कुल पांच व्यक्तियों के हस्ताक्षर हैं। लोक सभा की साइट पर नवंबर 1949 की स्थिति में संविधान सभा के सदस्यों की प्रदेशवार सूची में सेंट्रल प्राविंसेस एंड बरार के 17 नामों में छत्तीसगढ़ के ठाकुर छेदीलाल (क्रम 5 पर), घनश्याम सिंह गुप्त (क्रम 10 पर), रवि शंकर शुक्ल (क्रम 13 पर) तथा सेंट्रल प्राविंसेस स्टेट्स के तीन नामों में छत्तीसगढ़ के किशोरीमोहन त्रिपाठी (क्रम 2 पर) तथा रामप्रसाद पोटई (क्रम 3 पर) हैं। इस प्रकार पुष्टि होती है कि उक्त पांच संविधान सभा के नियमित तथा हस्ताक्षर की तिथि तक सदस्य रहे।


उक्त संविधान पुरुषों के यों अन्य फोटो भी उपलब्ध होते हैं, किंतु यहां उनकी फोटो आगे आए समूह चित्र से निकाली गई है। उक्त समूह चित्र में घनश्याम सिंह गुप्त की पहचान मेरे द्वारा निश्चित नहीं कर पाने के कारण उनकी अन्य तस्वीर ली गई है। फोटो के नीचे हस्ताक्षर संविधान की प्रति में किए गए हस्ताक्षर से लिए गए हैं।

यहां आए छत्तीसगढ़ के नामों में मुख्यमंत्री रहे रविशंकर शुक्ल, अकलतरा के बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल, दुर्ग के घनश्याम सिंह गुप्त, कांकेर के रामप्रसाद पोटई, रायगढ़ के के.एम. त्रिपाठी यानि किशोरी मोहन त्रिपाठी और सतनामी गुरु अगमदास अगरमनदास, उनका परिवार सामान्यतः जाना जाता है। रघुराज सिंह (Ragho Raj Singh), सरगुजा स्टेट के दीवान रहे तथा बाद में राजकुमार कॉलेज, रायपुर में प्रिंसिपल रहे, उनका परिवार अब रायपुर निवासी है।

सामने से पहली की पंक्ति-59 सदस्य, दूसरी पंक्ति-59, तीसरी पंक्ति-58, चौथी पंक्ति-54 तथा सबसे पीछे पांचवीं पंक्ति में 48, इस प्रकार कुल 278 व्यक्ति हैं। चित्र में पं. रविशंकर शुक्ल पहली पंक्ति में बायें से दाएं गणना में क्रम 39 पर, इसी तरह ठाकुर छेदीलाल दूसरी पंक्ति में क्रम 40 पर, किशोरी मोहन त्रिपाठी तीसरी पंक्ति में क्रम 7 पर और रामप्रसाद पोटई इसी तीसरी पंक्ति में क्रम 34 पर हैं। जैसा कि उपर उल्लेख है इस तस्वीर में घनश्याम सिंह गुप्त की पहचान निश्चित नहीं हो सकी है।

संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भारत का संविधान पारित किए जाने के अवसर पर अपने भाषण में अनुवादकों का उल्लेख करते हुए कहा था माननीय श्री जी.एस. गुप्त की अध्यक्षता वाली अनुवाद समिति के द्वारा संविधान में प्रयुक्त अंग्रेजी के समानार्थी हिंदी शब्द तलाशने का कठिन कार्य किया गया है।

संबंधित अन्य जानकारी की प्रस्तुति ‘हमारे संविधान पुरुष और हिंदी‘ शीर्षक से अगली पोस्ट पर।

दैनिक सांध्य छत्तीसगढ़ में प्रकाशित


Monday, September 21, 2020

गांधीजी की तलाश

सदी बीत गई, सन् 1920, जब गांधीजी आए थे। इस साल 2 अक्टूबर के आगे-पीछे, गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रथम प्रवास के बताए जाने वाले माह, सितंबर-दिसंबर के बीच भटकते मन ने सत्य के प्रयोग करना चाहा, यहां उसका लेखा-जोखा है। विभिन्न स्रोतों से यहां एकत्र की गई जानकारियों का उद्देश्य यह कि गांधीजी के प्रथम छत्तीसगढ़ प्रवास की तथ्यात्मक, असंदिग्ध जानकारी स्पष्ट हो सके, ताकि ‘सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय‘ तथा ऐसे अन्य प्रामाणिक स्रोतों में जहां यह सूचना दर्ज नहीं है, प्रविष्टि के लिए ठोस प्रस्ताव प्रस्तुत किया जा सके।

‘‘श्री रविशंकर शुक्ल अभिनंदन ग्रंथ‘‘ का प्रकाशन उनकी 79 वीं जन्म-तिथि पर अगस्त 1955 में हुआ था। सन 1920 में गांधीजी के रायपुर आने का संभवतः पहले-पहल उल्लेख यहीं हुआ है। इस ग्रंथ के जीवनी खंड में श्री रविशंकर शुक्ल के ‘मेरे कुछ संस्मरण‘ शीर्षक लेख में पेज 44 पर उल्लेख आया है कि ‘‘सन् 1920 की कलकत्ता की विशेष कांग्रेस से पूर्व महात्मा गांधी रायपुर आये थे।‘‘ इस पंक्ति के अलावा गांधीजी के रायपुर आगमन-प्रवास का कोई विवरण यहां नहीं दिया गया है। इसके पश्चात् ‘‘सन् 1920 में दिसम्बर मास में कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में हुआ‘‘, उल्लेख आता है। आगे उनकी 1933 की यात्रा का विवरण पर्याप्त विस्तार से है। ध्यातव्य है कि सन 1920 में कलकत्ता में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का विशेष अधिवेशन, गांधीजी की उपस्थिति में 4 से 9 सितंबर तक हुआ था, जिसमें असहयोग, हंटर कमेटी की रिपोर्ट तथा पंजाब में हुए अत्याचारों के संबंध में ब्रिटिश मंत्रिमंडल के रुख पर प्रस्ताव पारित किये गये।

‘मध्यप्रदेश संदेश‘ के 30 जनवरी 1988 अंक में सितम्बर, 1920 की 20 एवं 21 तारीख को गांधीजी की छत्तीसगढ़ यात्रा, जिसमें रायपुर, धमतरी और जाने तथा यात्रा का कारण कंडेल नहर आंदोलन, उल्लेख आया है। इसी अंक में अन्य स्थान पर धमतरी से कुरुद और कन्डेल ग्राम जाने का भी लेख है। पुनः इस अंक में श्यामसुन्दर सुल्लेरे के लेख का उद्धरण है- ‘‘21 दिसंबर, 1920 को गांधी जी रायपुर से धमतरी होते हुए कुंडेल गांव भी गए और सत्याग्रहियों से मिलकर उनके साहस की सराहना की।

अक्टूबर 1969 में मध्यप्रदेश गांधी शताब्दी समारोह समिति के लिए सूचना तथा प्रकाशन संचालनालय द्वारा ‘मध्यप्रदेश और गांधीजी‘ पुस्तक प्रकाशित की गई। प्रस्तावना में बताया गया है कि पुस्तक की सामग्री का संकलन, लेखन, सम्पादन तथा मुद्रण का कार्य श्री श्यामसुन्दर शर्मा ने किया है। पुस्तक के आरंभ में ‘‘दस ऐतिहासिक यात्राएँ‘‘ शीर्षक लेख है, जिसमें बताया गया है कि ‘‘सन् 1920 में रायपुर तथा धमतरी की यात्रा में भी मौलाना शौकतअली गांधीजी के साथ थे।‘‘ तथा ‘‘गांधीजी की रायपुर तथा धमतरी की प्रथम यात्रा इस दृष्टि से महत्वपूर्ण कही जा सकती है कि धमतरी की जनता ने सत्याग्रह-युग के विधिवत् उद्घाटन के पहले ही असहयोग तथा बहिष्कार के मार्ग पर चलकर सफलता प्राप्त की थी। सन् 1920 में जब गांधीजी धमतरी गए तब तक वहां कण्डेल नहर सत्याग्रह द्वारा जनता विदेशी शासन से लोहा ले चुकी थी और उसे सफलता भी मिल चुकी थी।‘‘ यहां तिथि अथवा माह का उल्लेख नहीं है।

पुस्तक में ‘‘दूसरी यात्रा-1920 रायपुर तथा धमतरी में‘‘ लेख की उल्लेखनीय प्रासंगिक जानकारियां इस प्रकार है कि सितंबर 1920 कलकत्ता में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन और दिसंबर 1920 के नागपुर अधिवेशन, इन दो ऐतिहासिक अधिवेशनों के बीच (पं. रविशंकर शुक्ल के संस्मरण में दी गई जानकारी से यह अलग है।) रायपुर नामक स्थान को इस बात का गौरव प्राप्त है कि उसने गांधीजी का स्वागत किया औैर उनके राजनीतिक विचारों का श्रवण तथा मनन किया। ... जुलाई के महीने में धमतरी के निकट कंडैल नामक गांव में नहर-सत्याग्रह आरंभ हो गया। गांधीजी की रायपुर की यह यात्रा इसी सत्याग्रह की पृष्ठभूमि में हुई थी। कंडैल नहर-सत्याग्रह के प्रमुख संचालक, पं. सुन्दरलाल शर्मा को गांधीजी से परामर्श के लिए कलकत्ता भेजा गया। किन्तु कलकत्ता में उन की गांधी से भेंट न हो सकी और दक्षिण भारत के किसी स्थान पर ही यह भेंट हुई। श्री शर्मा ने उन्हें कण्डैल नहर-सत्याग्रह का परिचय दिया तथा उनसे धमतरी आने का अनुरोध किया। इस प्रकार वे पं. सुन्दरलाल शर्मा के साथ 20 अथवा 21 दिसम्बर 1920 को कलकत्ता से रायपुर पधारे। उनके साथ अली-बन्धुओं में मौलाना शौकत अली भी थे।

आज जो गांधी चौक है, उस स्थान पर एक विशाल सार्वजनिक सभा में उनका भाषण हुआ। इस समय गांधीजी ने अपने भाषण में असहयोग के महत्व पर प्रकाश डाला। ... रायपुर से गांधी जी मोटर द्वारा धमतरी और कुरुद गये। ... धमतरी पहुंचने पर गांधीजी का बड़े उत्साह से स्वागत हुआ। कंडैल सत्याग्रह अब तक समाप्त हो चुका था ... उनके भाषण का प्रबंध जामू हुसैन के बाड़े में किया गया था ... श्री उमर सिंह नामक एक कच्छी व्यापारी ने उन्हें कंधे पर बिठाया और मंच तक ले गया ... श्री बाजीराव कृदत्त ने नगर तथा ग्राम-निवासियों की ओर से गांधीजी को 501 रु. की थैली भेंट की। लगभग 15000 लोगों की उपस्थिति में गांधीजी और मौलाना शौकत अली के भाषण हुए। गांधीजी ने अपने भाषण में असहयोग और सत्याग्रह की बात लोगों को समझाई। श्री शौकतअली ने अपने भाषण में सदा की तरह मजाकिया अंदाज में कहा- मैं तो हाथी जैसा हूं और गांधीजी बकरी जैसे हैं ...

धमतरी से गांधीजी कंडैल ग्राम भी गये। इस अवसर पर वे कुरुद गांव भी गये ... धमतरी में गांधीजी के ठहरने की व्यवस्था श्री नारायणराव मेघावाले के निवास-स्थान पर की गई थी जहां उन्होंने रात्रि विश्राम किया। प्रातःकाल वे पुनः रायपुर के लिये रवाना हो गये। ... धमतरी से लौटने के बाद गांधीजी ने रायपुर में महिलाओं की एक सभा को भी संबोधित किया ... अनुमानतः दो हजार रुपयों के मूल्य के सोने चांदी के गहने और रुपये एकत्रित हो गये। ... इस सभा के पश्चात् बापू नागपुर की ऐतिहासिक-कांग्रेस के लिए रवाना हो गये।

रायपुर से प्रकाशित राष्ट्रबंधु साप्ताहिक के गांधी जन्म शताब्दी अंक 2-10-1969 में पेज-4 पर श्री रामानन्द दुबे का संस्मरण, ‘मुझे महिलाओं में देखकर बापू खिलाखिला कर हंस पड़े थे‘ शीर्षक प्रकाशित हुआ। यह शीर्षक सन 1945 मई के बंबई में आयोजित शिविर के प्रसंग से संबंधित है। मगर इस लेख का आरंभ होता है- ‘गांधीजी को निकट से निहारने की लालसा बचपन से थी। सन् 1920-21 में जब वे कलकत्ता जाते हुए रायपुर पधारे थे तब मैं नौ वर्ष का निरा नादान बालक था। आनन्द समाज पुस्तकालय के समीप ‘विनोबा‘ बालोद्याान के मैदान में टट्टों से बने विशाल पेंडाल में उनका कार्यक्रम था। टट्टों के छेद से घुसकर किसी प्रकार मैं मंच के पास पहुंच ही गया और गांधीजी को जी भरकर देखा। यह प्रथम दर्शन लाभ था। बाल मन पर उनका अमिट प्रभाव पड़ा जो जीवन पर्यन्त कायम रहेगा।‘ इस संस्मरण में तिथि रहित काल 1920-21 तथा ‘कलकत्ता जाते हुए‘ विशेष ध्यान देने योग्य है।

सन 1970 में ‘‘छत्तीसगढ़ में गाँधीजी‘‘ का प्रकाशन, रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर से गांधी शताब्दी समारोह समिति द्वारा डॉ. ठा. भा. नायक के सम्पादकत्व में हुआ। इस पुस्तक में श्री हरि ठाकुर ने अपने लेख में लिखा है कि ‘‘देश को गांधीजी ने सर्वप्रथम सत्याग्रह का मार्ग सुझाया। ... कन्डेल नामक ग्राम में नहर सत्याग्रह आरम्भ हुआ। इस सत्याग्रह के सूत्रधार थे पं. सुन्दरलाल शर्मा ... अन्त में इस सत्याग्रह के नेताओं ने गांधीजी से पत्र-व्यवहार किया। और गांधीजी ने इस सत्याग्रह का मार्गदर्शन करना स्वीकार किया। गांधीजी उस समय बंगाल का दौरा कर रहे थे। उन्हें बुलाने के लिये पं. सुन्दरलाल शर्मा गये। 20 दिसम्बर सन् 1920 को महात्मा गांधी का प्रथम बार रायपुर आगमन हुआ। उसी दिन उन्होंने गांधी चौक में अपार जनसमूह को संबोधित किया। रायपुर से गांधीजी मोटर द्वारा धमतरी और कुरुद गये।... गांधीजी के आगमन के साथ ही कंडेल सत्याग्रह स्थगित हो गया। ... इसलिये गांधीजी धमतरी से ही वापस लौट आये। धमतरी और कुरुद से वापस लौटने पर गांधीजी पुनः राययपुर में रुके और उन्होंने महिलाओं की एक विशाल सभा को संम्बोधित किया। महिलाओं से गांधीजी ने ‘तिलक स्वराज्य‘ फण्ड के लिए मांग की और उन्हें तुरन्त दो हजार रु. के मूल्य के गहने प्राप्त हुए।

इस पुस्तक में केयूर भूषण मिश्र ने अपने लेख में मात्र उल्लेख किया है कि ‘‘कन्डेल सत्याग्रह सन् 1917 में प्रारंभ हुआ और 1920 में इस सत्याग्रह ने सफलता प्राप्त की।‘‘ किंतु यहां सन् 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रवास की कोई चर्चा नहीं है। डॉ. शोभाराम देवांगन के लेख में ‘‘इस सत्याग्रह को व्यापक तथा सर्वदेशीय रूप प्रदान करने हेतु यहां से पं. सुन्दरलालजी शर्मा राजिम वाले को 2 दिसम्बर सन् 1920 ईं को महात्मा गांधीजी के पास कलकत्ता इस परिस्थिति का ज्ञान कराने तथा उन्हें धमतरी लाकर आशीर्वाद प्राप्त करने के अतिरिक्त इस सत्याग्रह का संचालन सूत्र उनके हाथ में देने की अपेक्षा कर रवाना किया।’’ ... इस तरह यह नहर सत्याग्रह, महात्मा गांधी के धमतरी आगमन के पूर्व ही पूर्ण सफलता के साथ सम्पन्न हुआ।‘‘(पेज-90) यहां सन् 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रवास की स्पष्ट चर्चा नहीं है।

हरिप्रसाद अवधिया ने लिखा है कि ‘‘अपने आन्दोलन के सर्व प्रथम चरण में ही सन् 1920 में मौलाना शौकत अली को साथ लिये गांधीजी का रायपुर में आगमन हुआ। इस पुस्तक में डॉ बलदेव प्रसाद मिश्र और घनश्याम सिंह गुप्त के संस्मरणों में सन 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ के प्रवास की चर्चा नहीं है।

अब्बास भाई का संस्मरण है कि सन् 1921 में महात्माजी और मौलाना शौकत अली का रायपुर में आगमन हुआ। उन्हें धमतरी जाना था परन्तु शासन और पुलिस के आतंक के कारण मोटर मिलना दुष्कर था। पं. शुक्लजी के आह्वान पर मैं महात्माजी, मौलाना शौकत अली और उनकी पार्टी को अपनी मोटर बस में ले जाने के लिए तैयार हुआ। समय पर पुलिस वालों ने मेरे मोटर ड्राइवर को वहीं रोक लिया। ... मैं महात्माजी और मौलाना सहित पं. शुक्लजी और दूसरे नेतागण को रायपुर ब्राह्मणपारा में जो लाइब्रेरी है, वहां सं बैठाकर धमतरी ले गया। ... रायपुर मोटर बस सर्विस, रायपुर के नामसे सर्विस चलती थी तथा प्रोप्रायटर वली भाई एण्ड ब्रदर्स। ... डिप्टी कमिश्नर श्री सी. ए. क्लार्क ने हमारी कंपनी का मोटर चलाने का लाइसेंस भी रद्द कर दिया।

प्रभूलाल काबरा ने लिखा है कि- राजनांदगांव में गांधीजी मौ. मोहम्मद अली, शौकत अली, जमनालाल बजाज, के साथ जब कलकत्ता जा रहे थे ... जिस समय वे कलकत्ता के खास अधिवेशन में जा रहे थे उसी ट्रेन में लोकमान्य तिलक, दादा साहब खापर्डे, डा. मुंजे भी प्रथम दर्जे के डब्बे में यात्रा कर रहे थे ... आखिर गांधीजी ने दरवाजा खोला। इसके पश्चात्, जब गांधीजी रायपुर आयेः- में बताया है कि ‘‘ज्योंही गाड़ी प्लेटफार्म पर लगी, श्री शुक्ल आदि नेतागण ... इस विवरण के साथ सन् नहीं दिया गया है, लेकिन अनुमान होता है कि यह सन् 1933 का विवरण है। कन्हैया लाल वर्मा का संस्मरण भी बिना सन् के उल्लेख के है। अद्वैतगिरी जी ने लिखा है कि सन् 1920 में गांधीजी रायपुर आये। स्वर्गीय श्री सुन्दरलालजी शर्मा के भांजे कन्हैयालाल जी अध्यापक के निवासगृह में उनके ठहरने की व्यवस्था की गई। संध्याकाल उन्होंने एक आमसभा को संबोधित किया। भाषण के मुख्य विषय देश की स्वतंत्रता, एकता और सत्याग्रह थे।

महंत लक्ष्मीनारायण दास जी ने लिखा है कि सन् 1921 की घटना है, जब महात्मा गांधी पहली बार रायपुर आये और उन्होंने जैतूसाव मठ को अपनी अविस्मरणीय भेंट दी। ... महात्मा गांधी के साथ उनके दो अनन्य मित्र और अनुयायी स्वर्गीय शौकत अली और स्वर्गीय मोहम्मद अली भी साथ थे।

इसी पुस्तक के अन्य लेख में डा. शोभाराम देवांगन ने लिखा है कि पं. सुन्दरलालजी शर्मा, राजिम वाले, महात्मा गांधी को धमतरी लाने के लिये 2 दिसम्बर, सन् 1920 को कलकत्ता गये थे किन्तु वहां उनसे भेंट न हो सकी। ... अंत में उनसे दक्षिण भारत के एक नगर में जहां महात्माजी का कार्यक्रम अधिक दिनों के निश्चित था, वहां भेंट होना संभव हुआ। वे गांधीजीको धमतरी तहसील के कंडेल गांव के नहर सत्याग्रह का पूर्ण परिचय कराकर धमतरी में लाने में सफल हुए (पेज-41)। 21 दिसंबर, 1920 ई. को ठीक 11 बजे महात्मा गांधी मौलाना शौकत अली के साथ, रायपुर होते हुए यहां पधारे। ... महात्मा गांधीजी के भाषण का प्रबन्ध यहां के एक प्रसिद्ध सेठ हुसेन के वृहत बाड़े में निश्चित हुआ था ... गुरुर निवासी श्री उमर सेठ नामक, एक कच्छी व्यापारी झट महात्माजी को उठाकर और अपने कंधों पर बिठाकर ... मालगुजार श्रीमन बाजीराव कृदत्त महोदय के हाथ से 501/ रुपये की थैली भेंट कर उनका हार्दिक स्वागत किया गया। लेख में बताया गया है कि लगभग 1 घंटे का भाषण हुआ इसके पश्चात् लगभग साढ़े बारह बजे सभा का कार्य समाप्त हुआ। श्री नत्थूजी जगताप के भवन पर फलाहार और लगभग दो बजे दिन को यहां से रायपुर के लिए प्रस्थान किए। इस तरह तीन चार घंटे के लिये यह नगर महात्माजी के आगमन पर आनंद विभोर में मग्न रहा।

श्रीमती प्रकाशवती मिश्र ने लिखा है कि महात्माजी के दर्शन 1920 के दिसम्बर माह में हुए जब रायपुर में उनका आगमन हुआ। कलकत्ते में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन हुआ। लाला लाजपतराय अध्यक्ष थे। उसके पश्चात अखिल भारतवर्षीय दौरे पर कांग्रेस का असहयोग आन्दोलन के प्रचारार्थ महात्माजी रायपुर पधारे। महात्माजी उस समय ठक्कर बैरिस्टर के बंगले में ठहरे थे। ... महात्माजी रायपुर के दौरे के समय कुरुद व धमतरी भी गये थे।

धमतरी नगरपालिका परिषद, शताब्दी वर्ष 1981 की स्मारिका में, त्रिभुवन पांडेय ने सम्पादकीय में गांधीजी का पहली बार धमतरी आगमन नहर सत्याग्रह से प्रभावित होने के कारण और प्रवास की तिथि 21 दिसंबर 1920 बताया है। स्मारिका के इतिहास खण्ड ‘महात्मा गांधी की धमतरी यात्रा‘ शीर्षक सहित है, जिसमें 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रवास संबंधी जानकारी ‘मध्यप्रदेश और गाांधीजी‘ से ली गई है।

इस स्मारिका में भोपालराव पवार का लेख है, जिसका प्रासंगिक अंश- ‘‘अगस्त 1920 में कलकत्ता अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के विशेष अधिवेशन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने असहयोग का प्रस्ताव खूब कश्मकश के बीच पास कराया और देश को तीन नये नारे दिये:- (1) सरकारी शिक्षालयों में पढ़ना पाप है। (2) सरकारी अदालतों में जाना पाप है। (3) विदेशी वस्त्रों का उपयोग करना पाप है। उन दिनों मैं भी श्री त्र्यंबकरावजी कृदत्त के साथ कलकत्ता में पढ़ता था। स्व. पं. सुन्दरलालजी शर्मा और स्व. नत्थूजीराव जगताप कलकत्ता अधिवेशन में आये थे और उसी मकान में ठहरे थे - जहां हम लोग रहते थे। ... स्व. शर्मा जी और स्व. जगताप साहेब ने महात्मा जी को धमतरी आने का निमंत्रण दिया, जिसे महात्मा जी ने स्वीकार किया। जिस दिन असहयोग का प्रस्ताव पास हुआ - उसी दिन रात में कलकत्ता के विल्गिंटन स्क्वेयर में गांधीजी की आमसभा हुई। जिसमें उन्होंने अपने तीन नारों को दुहराया। दूसरे दिन हमलोग भी पढ़ाई छोड़कर उसी गाड़ी से घर आये-जिससे महात्मा जी रायपुर आये। रायपुर से महात्माजी को कार द्वारा धमतरी लाया गया और हम लोग ट्रेन से धमतरी आये।’’ अन्य स्रोतों के तथ्य इससे मेल नहीं खाते, इसलिए यह विश्वसनीय नहीं रह जाता।

सन 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रवास के संबंध में 1973 में प्रकाशित रायपुर जिला गजेटियर में जानकारी दी गई है कि महात्मा गांधी, कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन के ठीक पहले 20 दिसंबर 1920 को अली बंधुओं के साथ तिलक कोष और स्वराज्य कोष के सिलसिले में रायपुर आए। गांधी जी धमतरी तथा कुरुद भी गए। गजेटियर में कंडेल नहर सत्याग्रह की घटना का विवरण गांधीजी के साथ नहीं, बल्कि पृथक से हुआ है। उल्लेखनीय है कि उक्त जानकारी के मूल स्रोत-संदर्भ का हवाला भी यहां नहीं दिया गया है।

यहां 1975 में प्रकाशित द्वारिका प्रसाद मिश्र के ‘लिविंग एन एरा‘ का उल्लेख आवश्यक है, 1998 में इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद ‘मेरा जिया हुआ युग‘ प्रकाशित हुआ, जिसके अध्याय-2 में 1920 के नागपुर अधिवेशन प्रसंग है। इसमें गांधी के छत्तीसगढ़-रायपुर प्रवास का उल्लेख नहीं है। यहां प्रासंगिक अंश मात्र इतना है- 
‘काँग्रेस के नागपुर अधिवेशन की तिथि ज्यों-ज्यों निकट आती गई त्यों-त्यों देश में उत्साह और आशा का संचार बढ़ता गया। रायपुर में भी उत्तेजना थी। दर्शक होकर इस महत्वपूर्ण अधिवेशन में उपस्थित रहने के लिए अनेक व्यक्ति बड़े उत्सुक थे। यह सुगम भी था क्योंकि रायपुर से नागपुर रेल और सड़क दोनों से जुड़ा था। सभी काँग्रेस कार्यकर्ताओं और उनके नेता रविशंकर शुक्ल से परिचित होने के कारण मैं सरलता से काँग्रेस का प्रतिनिधि बन गया।
१९२० से मैंने काँग्रेस के वार्षिक और लगभग सभी विशेष अधिवेशन देखे हैं लेकिन नागपुर के इस अधिवेशन की तुलना में कोई भी अन्य अधिवेशन नहीं ठहर सकता। कई कारणों से वह अनूठा था। १४००० से भी अधिक प्रतिनिधि इस अधिवेशन में उपस्थित थे।'

‘मध्यप्रदेश संदेश‘ का 15 अगस्त 1987 का अंक में स्वाधीनता आंदोलन विशेषांक था। इसमें सन्तोष कुमार शुक्ल के लेख में कंडेल नहर सत्याग्रह के संदर्भ में कहा गया है कि ‘‘पं. सुन्दरलाल शर्मा, श्री नारायणराव मेघावाले तथा छोटेलाल बाबू ने गांधी जी के सत्याग्रह से प्रेरणा पाकर ऐसा कदम उठाया था। जब नहर सत्याग्रह उग्र रूप से चल रहा था तभी पं. सुन्दरलाल ने सत्याग्रह के प्रणेता महात्मा गांधी से परामर्श लेकर इसे अखिल भारतीय रूप प्रदान करने का विचार किया। वे गांधीजी से मिलने कलकत्ता गये और उन्हीं के साथ 20 दिसम्बर, 1920 को कलकत्ता से रायपुर पधारे व उनके साथ मौलाना शौकतअली भी रायपुर आये थे। छत्तीसगढ़ में गांधीजी की यह प्रथम यात्रा थी। रायपुर में गांधी जी पं. रविशंकर शुक्ल के निवास-स्थान पर ठहरे। गांधीजी धमतरी और कुरूद भी गये। धमतरी में गांधीजी की ठहरने की व्यवस्था श्री नारायणराव मेघावाले के निवास-स्थान पर हुई थी। जब गांधीजी धमतरी पहुंचे तब कंडेल सत्याग्रह समाप्त हो चुका था। धमतरी की जनता विजयी सत्याग्रही के समान सत्याग्रह आंदोलन के जन्मदाता का स्वागत कर रही थी। धमतरी की सभा में श्री बजीराव कृदत्त ने ग्रामवासियों की ओर से 501 रुपये की थैली गांधीजी को भेंट दी। गांधीजी ने कंडेल ग्राम जाकर ग्रामवासियों को धन्यवाद दिया था, सत्याग्रह के मौलिक गुणों को समझाया भी था।‘‘

इस अंक में सुन्दर लाल त्रिपाठी के लेख के विवरण से सन 1921 तक बस्तर के लोग महात्मा गांधी से अनजान थे। वे स्वयं 1921 में उत्तरप्रदेश गए तब महात्मा गांधी के दर्शन का भी सौभाग्य मिला। उनके इस लेख में 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रवास की कोई चर्चा नहीं की है। स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी के लेख में कहा गया है- सन 1920 में तिलक निधि के संग्रह के सिलसिले में महात्मा गांधी के रायपुर आगमन ने राष्ट्रीयता की भावना को प्रस्फुटित करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। तब कांग्रेस में महात्मा गांधी का वर्चस्व स्थापित हो चुका था। उनके द्वारा प्रणीत सत्याग्रह के शस्त्र का सर्वप्रथम उपयोग हुआ रायपुर जिले के कण्डेल नहर सत्याग्रह के रूप में, जिसके सूत्रधार थे धमतरी के बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव। ... किसानों के इस अभूतपूर्व सत्याग्रह की सूचना महात्मा गांधी तक पहुंची। राजिम के लोकप्रिय नेता. पं. सुन्दरलाल शर्मा जो कि स्वयं उन दिनों हरिजन उद्धार के रचनात्मक अभियान के सूत्रधार थे, गांधी जी को लेकर रायपुर आये। गांधी जी के आगमन की सूचना से हुकुमत के शिविर में हड़कम्प मच गया। सरकारी कार्यवाही वापिस ली गई लेकिन इस सत्याग्रह को राष्ट्रव्यापी महत्व मिला। स्वयं गांधी जी धमतरी गये जहां उनका सार्वजनिक अभिनंदन, तत्कालीन नगरपालिका के द्वारा किया गया।‘‘

इसी अंक में सालिकराम अग्रवाल ‘शलभ‘ के लेख का उद्धरण है- ‘‘छत्तीसगढ़ के गांधी पंडित सुन्दरलाल शर्मा 3-12-1920 (तिथि छपाई के अक्षर के बजाय हाथ की लिखावट में है, जिससे अनुमान होता है कि यह अंतिम प्रूफ में संशोधित किया गया है।) को महात्मा गांधी से मिलने कलकत्ता गए और कंडेल ग्राम के नहर के सत्याग्रह और अंग्रेजों की दमन नीति से गांधी जी को अवगत कराया। अंग्रेजी सरकार से असहयोग करने की वृहत योजना लेकर जब श्री सुन्दरलाल शर्मा वापस आये तब धमतरी तहसील सहित समूचे रायपुर जिले में खलबली मच गई‘‘ इस लेख में तब गांधी जी के छत्तीसगढ़ प्रवास का कोई उल्लेख नहीं है। आगे इस अंक में राजेन्द्र कुमार मिश्र द्वारा प्रस्तुत पं. द्वारका प्रसाद मिश्र के संस्मरण में सन 1920 और गांधीजी की चर्चा में छत्तीसगढ़ प्रवास का उल्लेख नहीं है। इसी तरह श्यामलाल चतुर्वेदी द्वारा प्रस्तुत पंडित मुरलीधर मिश्र ने 1919 में जलियांवाला बाग के शहीदों की स्मृति में शोक दिवस मनाने और जुलूस निकाले जाने के बाद सीधे 1921 में नागपुर कांग्रेस के बाद जिला राजनीतिक सम्मेलन को याद किया है। इस बीच 1920 और गांधी जी के छत्तीसगढ़ प्रवास का उल्लेख नहीं किया है।

डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र एवं डॉ. शांता शुक्ला की पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ का इतिहास‘ द्वितीय संस्करणः 1990 में पेज 106 पर उल्लेख है- ‘1920 का वर्ष भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में नये युग का प्रतीक था। ... चूंकि महात्मा गाँधी इस वर्ष छत्तीसगढ़ आये थे और धमतरी तहसील के विभिन्न स्थानों व रायपुर नगर की यात्रा की थी,‘। पेज 108 पर- पं. सुन्दरलाल शर्मा (राजिम वाले) को 2 दिसंबर 1920 को, महात्मा गाँधी को धमतरी आमंत्रित करने हेतु कलकत्ता भेजा गया, सत्याग्रह की बागडोर उनके हाथों में सौंपकर सत्याग्रह को सफल बनाने का निर्णय लिया गया।‘ इसी पेज पर- ‘यह नहर सत्याग्रह महात्मा गाँधी के धमतरी आगमन के पूर्व ही सफलता के साथ खत्म हो गया। गाँधीजी के छत्तीसगढ़ आगमन पर धमतरीवासियों ने विजयी सत्याग्रहियों के रूप में गाँधीजी का हार्दिक स्वागत किया।‘ पेज 214 पर- ‘शर्माजी ने स्थिति का निरीक्षण करने के लिए महात्मा गाँधी को आमन्त्रित किया व उन्हें लाने के लिए स्वयं कलकत्ता गये और महात्मा गाँधी जी को लेकर 20 दिसम्बर, 1920 को रायपुर आये। गाँधीजी का यह प्रथम छत्तीसगढ़ आगमन था।‘ (प्रसंगवश, पुस्तक के इस संस्करण के अंत में ‘छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक स्रोत‘ सूची है, जिसमें 1979 तक के शोध-प्रबंध सम्मिलित हैं, अतएव पुस्तक का पहला संस्करण इसके पश्चात का होगा, किंतु पेज-2 पर उल्लेख है कि ‘वर्तमान छत्तीसगढ़ में रायपुर, सरगुजा, बिलासपुर, दुर्ग एवं बस्तर जिले हैं‘, यहां रायगढ़ और राजनांदगांव जिले का नामोल्लेख न होना, समझ से परे है।)

डाॅ. भगवान सिंह वर्मा की पुस्तक छत्तीसगढ़ का इतिहास राजनीतिक एवं सांस्कृतिक (प्रारंभ से 1947 ई. तक), संस्करणः तृतीय संशोधित 1995, मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल में पेज 153 पर उल्लेख इस प्रकार है- ‘कन्डेल का आन्दोलन - इन दिनों छत्तीसगढ़ में शासन के खि़लाफ़ आन्दोलन करने के लिए लोगों में ग़ज़ब का उत्साह था। 20 सितम्बर सन् 1920 ई. को कण्डेल नहर सत्याग्रह के संदर्भ में गाँधीजी का रायपुर आगमन हुआ। वे कुरुद और धमतरी भी गये।‘

इसी पुस्तक में पुनः पृष्ठ - 155-56 पर उल्लेख है- कंडेल ग्राम का यह आन्दोलन अनेक माह तक चलता रहा। सरकारी अत्याचार दिनों दिन बढ़ते गये, ऐसी स्थिति में आन्दोलन का नेतृत्व गाँधीजी को ही सौंपने का विचार किया गया। इस आशय की प्रार्थना गाँधीजी से की गयी, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस हेतु पं. सुन्दरलाल शर्मा गाँधीजी से भेंट करने कलकत्ता गये। इसकी सूचना पाकर सरकार की सक्रियता में वृद्धि हुई। आन्दोलन स्थल पर जाकर रायपुर के डिप्टी कमिश्नर ने वस्तुस्थिति का ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने यह सुझाव दिया कि ग्रामवासियों पर लगाया गया आरोप निराधार है। ऐसी स्थिति में उन्होंने जुर्माने की राशि को माफ करने की घोषणा की और प्रामीणों को जानवर वापस कर दिये गये। इस प्रकार गांधीजी के यहाँ आने के पूर्व यह सत्याग्रह आन्दोलन सफलतापूर्वक समाप्त हो गया, जो सम्पूर्ण क्षेत्र के लिए गौरव का प्रतीक था। गाँधीजी ने यहाँ आकर आन्दोलन को क्रियान्वित करने के सम्बन्ध में जनता का मार्गदर्शन किया।

गाँधीजी का छत्तीसगढ़ प्रवास - दिसम्बर सन् 1920 ई. में गांधीजी का छत्तीसगढ़ आगमन हुआ। वे सर्वप्रथम रायपुर आये। उनके आगमन से इस अंचल में राजनीतिक हलचल तीव्र हो उठी। रायपुर की जनता ने उनका हार्दिक स्वागत किया। गांधी चैक से उन्होंने लोगों को सम्बोधित किया। उन्होंने लोगों से यह आह्वान किया कि दासता से मुक्ति पाने के लिए वे असहयोग आन्दोलन में जुड़ें। 21 दिसम्बर सन् 1920 ई. को गांधीजी धमतरी पहुंचे। वहाँ भी उनका शानदार स्वागत किया गया। उन्होंने वहाँ लोगों को मंडई-बन्ध-चौक में सम्बोधित किया। धमतरी तहसील के प्रतिष्ठित जमींदार बाज़ीराव कृदत्त ने 501/- (पाँच सौ एक रुपये) की थैली भेंटकर उनका अभिनन्दन किया। उन्होंने अपने भाषण में कंडेल आन्दोलन की सफलता के लिए लोगों को बधाई दी और उनसे काँग्रेस के कार्यक्रम में सक्रियता से भाग लाने की अपील की। वहाँ से वे लगभग 3.00 बजे रायपुर के लिये रवाना हुये। मार्ग में उन्होंने कुरुद को जनता से भेंट की। रायपुर आने पर उन्होंने आनन्द समाज वाचनालय के समीप महिलाओं को एक सभा को सम्बोधित किया। सभा के दौरान महिलाओं ने तिलक स्वराज्य फंड के लिए 2,000/- (दो हजार रुपये) का दान दिया। इसके बाद वे वापस चले गये, पर उनका व्यक्तित्व यहाँ के युवकों और महिलाओं को प्रभावित करता रहा। उन्होंने महिलाओं को भी स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

यही उल्लेख डाॅ. भगवान सिंह वर्मा की पुस्तक छत्तीसगढ़ का इतिहास (राजनीतिक एवं सांस्कृतिक) (प्रारंभ से 2000 ई.) पंचम संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण 2007, मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल के पेज 220 तथा पेज 221-222 पर भी है।

2003 में प्रकाशित ‘छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर-20‘, पं. सुन्दरलाल शर्मा जयंती समारोह परिशिष्टांक तथा इस दौर के अन्य स्रोतों से भी इसी से मिलती-जुलती जानकारी सामने आती है, जिनमें से दो का उल्लेख यहां किया जा रहा है। 1992 में प्रकाशित ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर स्मृति ग्रंथ में महात्मा गांधी के 1926 में बिलासपुर आगमन पर बैरिस्टर का स्वागताध्यक्ष होना बताया गया है तथा कुलदीप सहाय ने 1917 से 1921 तक के अपने संस्मरण में गांधी जी के छत्तीसगढ़ आने का उल्लेख नहीं किया है। एक अन्य प्रकाशन, अखिल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकार परिषद द्वारा 11 सिंतबर 1995 तिथि पर महात्मा गांधी 125 वां जन्म वर्ष समारोह आयोजन कर स्मारिका निकाली गई। स्मारिका समिति में राजेन्द्र प्र. पाण्डेय के साथ 9 अन्य नाम हैं। स्मारिका में ‘गांधी जी की छत्तीसगढ़ यात्रा‘ शीर्षक भुवनलाल मिश्र का लेख है। इस लेख में कहा गया है कि ‘‘इसी कंडेल नहर सत्याग्रह के नेतृत्व को गांधी जी को सौंपने हेतु पंडित सुंदर लाल शर्मा अपने सहयोगियों के परामर्श से कलकत्ता गये एवं महात्मा गांधी को 20 दिसंबर सन् 1920 को साथ लेकर रायपुर आये।‘‘ ... ‘‘अंतोतगत्वा गांधी जी के आगमन के एक दिन पूर्व अंग्रेजी शासन को आंदोलनकारियों के कदमों पर झुकना पड़ा।‘‘ ... ‘‘इस तरह इतिहास की धारा ही बदल गयी, अन्यथा बिहार के प्रसिद्ध चंपारन सत्याग्रह के बाद महात्मा गांधी को कंडेल नहर सत्याग्रह का नेतृत्व करना पड़ता जिससे पूरा छत्तीसगढ़ गौरवान्वित हुआ होता।’’ इसके पश्चात लेख में गांधी जी की रायपुर सभा, धमतरी और वहां से लौटते हुए कुरुद की सभा की जानकारी दी गई है। इसी लेख में आगे कहा गया है कि ‘‘सन 1920 एवं सन 1933 में किये गये दो यात्राओं के अवसर पर महात्मा गांधी ने छत्तीसगढ़ का कुल मिलाकर 6-7 दिन भ्रमण किया था।‘‘ तथा ‘‘शासकीय ग्रंथों में राष्ट्रपिता के छत्तीसगढ़ भ्रमण को बहुत ही संक्षिप्त रूप में लिखा गया है जो खेद की बात है। धमतरी के देशभक्त स्व. डा, शोभाराम देवांगन, भूतपूर्व शिक्षा मंत्री श्री भोपाल राव पवार आदि लेकों ने उसे विस्तार पूर्वक लिखने का प्रयास किया है, किंतु इस दिशा में और शोध की आवश्यकता है।‘‘

प्रसंगवश, सन 2004 में कु. साधना श्रीवास्तव के पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के शोध-प्रबंध ‘छत्तीसगढ़ के राष्ट्रीय आंदोलन में धमतरी अंचल का योगदान‘ में पंढरी राव कृदत्त का साक्षात्कार शामिल है, जो 29-3-2001 को लिया गया था। शोध प्रबंध में यह साक्षात्कार शोधार्थी की लिखावट में, पंढरी राव कृदत्त के हस्ताक्षर सहित है। यहां गांधीजी का दो बार आना कहा गया है, किंतु पहली बार का स्पष्ट उल्लेख नहीं है और ‘गांधी जी जब 1930 में आये‘ उल्लिखित है‘, अतएव ठोस प्रमाणस्वरूप स्वीकार किया जाना संभव नहीं होता। साक्षात्कार शब्दशः इस प्रकार है-


साक्षात्कार
पंडरी राव कृदत्त

1930 में नवागांव में जंगल सत्याग्रह लोगों ने किया। उसमें दो-तीन दिन लोगों की गिरफ्तारियां हुई। गोली चली व दो लोगों की मृत्यु हो गयी। नत्थूजी जगताप व बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव के नेतृत्व में सत्याग्रह चल रहा था। नारायण राव जी का भी सहयोग था। गांधी जी का यहां दो बार आना हुआ। एक बार उनका मुनिस्पल हाई स्कूल में उनका भाषण हुआ था। जहां लोगो ने अपने गहने तक उतार कर आंदोलन के लिये दिये उनमें से एक यशोदाबाई कृदत्त जो कि नत्थूजी जगताप की बुआ थी उन्होंने भी अपने गहने उतार कर दिये।

इस आंदोलन के पहले 1920 में कंडेल का एक नहर आंदोलन हुआ जिसमें सरकार द्वारा नहर के किनारे चरने वाले पशुओं को कांजी हाउस में बंद करने का षड़यंत्र सरकार द्वारा हुआ तो इस आंदोलन के आधार पर जितने भी बैल बाजार हैं उन्हें बेचने के लिये घुमाया गया पर किसी ने नहीं खरीदा व सरकार को झुकना पड़ा।

गांधी जी जब 1930 में आये तो उन्होंने कहा कि यह आंदोलन तो मेरे आंदोलन के पूर्व ही हो चुका है और सराहनीय है।

धमतरी क्षेत्र में बहुत से और भी आंदोलन हुये। आज भी कई लोगों को पेंशन मिलती है। धमतरी के मराठा पारा में एक आश्रम हुआ करता था जहां सत्याग्रही लोग एकत्र होकर प्रभातफेरी किया करते थे। व सुबह सुबह प्रभात फेरी में जाया करते थे मेरी उम्र उस समय 8 वर्ष की थी मैं भी उन लोगो के साथ घूमा करता था।

पंढरीराव कृदत
29-3-2001

सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खंड 18, जुलाई 1966 में प्रकाशित संस्करण, नेट पर उपलब्ध है, जिसके पेज 229-230 पर, जुलाई से नवंबर 1920, ‘हमारी दैनन्दिनी‘ शीर्षक के अंतर्गत 10 अगस्त से 26 अगस्त तक का विवरण देते हुए लिखा है कि ‘‘हम लगातार 24 घंटे मद्रासके अतिरिक्त और किसी स्थानपर न रह सके और मद्रास भी इसी कारण रह पाए क्योंकि हम पहले-पहल वहीं गये थे। बादमें तो केन्द्रस्थान होनेके कारण हम आते-जाते दो-चार घंटे वहाँ रुकते। सेलमसे बंगलौर की 125 मीलकी यात्रा हमें मोटरमें तय करनी पड़ी थी। इस रफ्तार से यात्रा करना हमारे लिए कुछ अधिक हो जाता था; लेकिन निमन्त्रण बहुत जगहोंसे मिले थे। इनकार करना उचित नहीं लगता था और फिर यह लोभ भी था कि हम जितनी दूरतक अपना सन्देश पहुँचा सकें उतना ही अच्छा है।‘‘ इस दौरे में बम्बई और अहमदाबाद होते गांधीजी 3 सितंबर 1920 की रात में कलकत्ता पहुंचे थे। इसके पश्चात् 10 सितंबर तक कलकत्ता में, 17 सितंबर तक बंगाल में और 20 सितंबर को साबरमती आश्रम में होने की स्पष्ट जानकारी मिलती है। इस प्रकार कलकत्ता विशेष अधिवेशन के पूर्व गांधीजी के रायपुर आगमन की संभावना नहीं जान पड़ती।

सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खंड 19, नवंबर 1966 में प्रकाशित संस्करण, नेट पर उपलब्ध है, जिसमें नवंबर 1920 से अप्रैल 1921 में पेज 133 पर 16 दिसंबर 1920, गुरुवार को ढाका से कलकत्ता जाते हुए मगनलाल गांधी को लिखे पत्र की जानकारी है। पेज 143 पर 18 दिसंबर को नागपुर की सार्वजनिक सभा में भाषण की जानकारी है। पेज 151 पर 25 दिसंबर को नागपुर की बुनकर परिषद् में भाषण तथा पेज 152 पर नागपुर के अन्त्यज सम्मेलन में भाषण। पेज 161 पर 26 दिसंबर को नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन के उद्घाटन दिवस पर, गांधीजी द्वारा में भाषण, श्री विजयराघवाचार्य को कांग्रेस का अध्यक्ष चुनने के प्रस्ताव का अनुमोदन किया था।

सी.बी. दलाल की अंगरेजी पुस्तक ‘गांधीः 1915-1948‘ ए डिटेल्ड क्रोनोलाजी, गांधी पीस फाउंडेशन नई दिल्ली ने भारतीय विद्या भवन बम्बई के साथ मिलकर सन 1971 में प्रकाशित किया है। पुस्तक के पेज 35 पर माह दिसंबर, सन 1920 के गांधीजी के दैनंदिन का उल्लेख है, जिसके अनुसार गांधीजी ने 17 दिसंबर 1920 को कलकत्ता छोड़ा और 18 दिसंबर 1920 को नागपुर की आमसभा में रहे। इसके पश्चात दिनांक 19 से 23 तक नागपुर में तथा पुनः 31 दिसंबर तक नागपुर के विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुए। एक अन्य अंगरेजी पुस्तक के. पी गोस्वामी की ‘‘महात्मा गांधी ए क्रोनोलाजी‘‘ मार्च 1971 में पब्लिकेशन डिवीजन से प्रकाशित हुई है। इसमें भी गांधीजी के प्रवास की तिथियां दलाल की पुस्तक की तुलना में संक्षिप्त, किंतु पुष्टि करने वाली हैं।

सन 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ आने के संबंध में पं. सुंदरलाल शर्मा द्वारा किया गया कोई उल्लेख नहीं मिलता, वहीं सर्वविदित है कि गांधीजी की आत्मकथा के अंतिम दो शीर्षकों में से ‘असहयोगका प्रवाह‘ में सितंबर 1920 के कलकत्ता के विशेष अधिवेशन का तथा ‘नागपुरमें‘ में दिसंबर 1920 के नागपुर वार्षिक अधिवेशन का उल्लेख है। यहां भी छत्तीसगढ़ का कोई उल्लेख नहीं हुआ है। इस तरह पं. सुंदरलाल शर्मा और महात्मा गांधी, दोनों द्वारा 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रवास का उल्लेख न होने से संदेह/संभावना की गुंजाइश रह जाती है कि ऐसा संयोग-मात्र हो सकता है किंतु विसंगतियों तथा प्रामाणिक प्रकाशनों से मिलान करने पर छत्तीसगढ़ के लिए इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक गौरव के प्रसंग पर तथ्यों, दस्तावेजों के साथ असंदिग्ध जानकारियों आवश्यक हो जाती है। अपने संसाधनों की सीमा में जितनी जानकारी जुटा पाया, जानता हूं कि वह पर्याप्त नहीं है, सुधिजन के परीक्षण हेतु प्रस्तुत है। आशा है कि कुछ और पुष्ट जानकारी प्राप्त हो सकेगी, जिससे इतिहास के पन्नों में स्पष्टीकरण, संशोधन हो सके। अन्यथा, मान लेना होगा कि 1920 में छत्तीसगढ़ में गांधीजी का सघन-आह्वान हुआ, जिसके चलते समय बीत जाने पर वे साकार सत्य की तरह साक्षात हो गए।