सदी बीत गई, सन् 1920, जब गांधीजी आए थे। इस साल 2 अक्टूबर के आगे-पीछे, गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रथम प्रवास के बताए जाने वाले माह, सितंबर-दिसंबर के बीच भटकते मन ने सत्य के प्रयोग करना चाहा, यहां उसका लेखा-जोखा है। विभिन्न स्रोतों से यहां एकत्र की गई जानकारियों का उद्देश्य यह कि गांधीजी के प्रथम छत्तीसगढ़ प्रवास की तथ्यात्मक, असंदिग्ध जानकारी स्पष्ट हो सके, ताकि ‘सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय‘ तथा ऐसे अन्य प्रामाणिक स्रोतों में जहां यह सूचना दर्ज नहीं है, प्रविष्टि के लिए ठोस प्रस्ताव प्रस्तुत किया जा सके।
‘‘श्री रविशंकर शुक्ल अभिनंदन ग्रंथ‘‘ का प्रकाशन उनकी 79 वीं जन्म-तिथि पर अगस्त 1955 में हुआ था। सन 1920 में गांधीजी के रायपुर आने का संभवतः पहले-पहल उल्लेख यहीं हुआ है। इस ग्रंथ के जीवनी खंड में श्री रविशंकर शुक्ल के ‘मेरे कुछ संस्मरण‘ शीर्षक लेख में पेज 44 पर उल्लेख आया है कि ‘‘सन् 1920 की कलकत्ता की विशेष कांग्रेस से पूर्व महात्मा गांधी रायपुर आये थे।‘‘ इस पंक्ति के अलावा गांधीजी के रायपुर आगमन-प्रवास का कोई विवरण यहां नहीं दिया गया है। इसके पश्चात् ‘‘सन् 1920 में दिसम्बर मास में कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में हुआ‘‘, उल्लेख आता है। आगे उनकी 1933 की यात्रा का विवरण पर्याप्त विस्तार से है। ध्यातव्य है कि सन 1920 में कलकत्ता में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का विशेष अधिवेशन, गांधीजी की उपस्थिति में 4 से 9 सितंबर तक हुआ था, जिसमें असहयोग, हंटर कमेटी की रिपोर्ट तथा पंजाब में हुए अत्याचारों के संबंध में ब्रिटिश मंत्रिमंडल के रुख पर प्रस्ताव पारित किये गये।
‘मध्यप्रदेश संदेश‘ के 30 जनवरी 1988 अंक में सितम्बर, 1920 की 20 एवं 21 तारीख को गांधीजी की छत्तीसगढ़ यात्रा, जिसमें रायपुर, धमतरी और जाने तथा यात्रा का कारण कंडेल नहर आंदोलन, उल्लेख आया है। इसी अंक में अन्य स्थान पर धमतरी से कुरुद और कन्डेल ग्राम जाने का भी लेख है। पुनः इस अंक में श्यामसुन्दर सुल्लेरे के लेख का उद्धरण है- ‘‘21 दिसंबर, 1920 को गांधी जी रायपुर से धमतरी होते हुए कुंडेल गांव भी गए और सत्याग्रहियों से मिलकर उनके साहस की सराहना की।
अक्टूबर 1969 में मध्यप्रदेश गांधी शताब्दी समारोह समिति के लिए सूचना तथा प्रकाशन संचालनालय द्वारा ‘मध्यप्रदेश और गांधीजी‘ पुस्तक प्रकाशित की गई। प्रस्तावना में बताया गया है कि पुस्तक की सामग्री का संकलन, लेखन, सम्पादन तथा मुद्रण का कार्य श्री श्यामसुन्दर शर्मा ने किया है। पुस्तक के आरंभ में ‘‘दस ऐतिहासिक यात्राएँ‘‘ शीर्षक लेख है, जिसमें बताया गया है कि ‘‘सन् 1920 में रायपुर तथा धमतरी की यात्रा में भी मौलाना शौकतअली गांधीजी के साथ थे।‘‘ तथा ‘‘गांधीजी की रायपुर तथा धमतरी की प्रथम यात्रा इस दृष्टि से महत्वपूर्ण कही जा सकती है कि धमतरी की जनता ने सत्याग्रह-युग के विधिवत् उद्घाटन के पहले ही असहयोग तथा बहिष्कार के मार्ग पर चलकर सफलता प्राप्त की थी। सन् 1920 में जब गांधीजी धमतरी गए तब तक वहां कण्डेल नहर सत्याग्रह द्वारा जनता विदेशी शासन से लोहा ले चुकी थी और उसे सफलता भी मिल चुकी थी।‘‘ यहां तिथि अथवा माह का उल्लेख नहीं है।
पुस्तक में ‘‘दूसरी यात्रा-1920 रायपुर तथा धमतरी में‘‘ लेख की उल्लेखनीय प्रासंगिक जानकारियां इस प्रकार है कि सितंबर 1920 कलकत्ता में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन और दिसंबर 1920 के नागपुर अधिवेशन, इन दो ऐतिहासिक अधिवेशनों के बीच (पं. रविशंकर शुक्ल के संस्मरण में दी गई जानकारी से यह अलग है।) रायपुर नामक स्थान को इस बात का गौरव प्राप्त है कि उसने गांधीजी का स्वागत किया औैर उनके राजनीतिक विचारों का श्रवण तथा मनन किया। ... जुलाई के महीने में धमतरी के निकट कंडैल नामक गांव में नहर-सत्याग्रह आरंभ हो गया। गांधीजी की रायपुर की यह यात्रा इसी सत्याग्रह की पृष्ठभूमि में हुई थी। कंडैल नहर-सत्याग्रह के प्रमुख संचालक, पं. सुन्दरलाल शर्मा को गांधीजी से परामर्श के लिए कलकत्ता भेजा गया। किन्तु कलकत्ता में उन की गांधी से भेंट न हो सकी और दक्षिण भारत के किसी स्थान पर ही यह भेंट हुई। श्री शर्मा ने उन्हें कण्डैल नहर-सत्याग्रह का परिचय दिया तथा उनसे धमतरी आने का अनुरोध किया। इस प्रकार वे पं. सुन्दरलाल शर्मा के साथ 20 अथवा 21 दिसम्बर 1920 को कलकत्ता से रायपुर पधारे। उनके साथ अली-बन्धुओं में मौलाना शौकत अली भी थे।
प्रसंगवश, सन 2004 में कु. साधना श्रीवास्तव के पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के शोध-प्रबंध ‘छत्तीसगढ़ के राष्ट्रीय आंदोलन में धमतरी अंचल का योगदान‘ में पंढरी राव कृदत्त का साक्षात्कार शामिल है, जो 29-3-2001 को लिया गया था। शोध प्रबंध में यह साक्षात्कार शोधार्थी की लिखावट में, पंढरी राव कृदत्त के हस्ताक्षर सहित है। यहां गांधीजी का दो बार आना कहा गया है, किंतु पहली बार का स्पष्ट उल्लेख नहीं है और ‘गांधी जी जब 1930 में आये‘ उल्लिखित है‘, अतएव ठोस प्रमाणस्वरूप स्वीकार किया जाना संभव नहीं होता। साक्षात्कार शब्दशः इस प्रकार है-
आज जो गांधी चौक है, उस स्थान पर एक विशाल सार्वजनिक सभा में उनका भाषण हुआ। इस समय गांधीजी ने अपने भाषण में असहयोग के महत्व पर प्रकाश डाला। ... रायपुर से गांधी जी मोटर द्वारा धमतरी और कुरुद गये। ... धमतरी पहुंचने पर गांधीजी का बड़े उत्साह से स्वागत हुआ। कंडैल सत्याग्रह अब तक समाप्त हो चुका था ... उनके भाषण का प्रबंध जामू हुसैन के बाड़े में किया गया था ... श्री उमर सिंह नामक एक कच्छी व्यापारी ने उन्हें कंधे पर बिठाया और मंच तक ले गया ... श्री बाजीराव कृदत्त ने नगर तथा ग्राम-निवासियों की ओर से गांधीजी को 501 रु. की थैली भेंट की। लगभग 15000 लोगों की उपस्थिति में गांधीजी और मौलाना शौकत अली के भाषण हुए। गांधीजी ने अपने भाषण में असहयोग और सत्याग्रह की बात लोगों को समझाई। श्री शौकतअली ने अपने भाषण में सदा की तरह मजाकिया अंदाज में कहा- मैं तो हाथी जैसा हूं और गांधीजी बकरी जैसे हैं ...
धमतरी से गांधीजी कंडैल ग्राम भी गये। इस अवसर पर वे कुरुद गांव भी गये ... धमतरी में गांधीजी के ठहरने की व्यवस्था श्री नारायणराव मेघावाले के निवास-स्थान पर की गई थी जहां उन्होंने रात्रि विश्राम किया। प्रातःकाल वे पुनः रायपुर के लिये रवाना हो गये। ... धमतरी से लौटने के बाद गांधीजी ने रायपुर में महिलाओं की एक सभा को भी संबोधित किया ... अनुमानतः दो हजार रुपयों के मूल्य के सोने चांदी के गहने और रुपये एकत्रित हो गये। ... इस सभा के पश्चात् बापू नागपुर की ऐतिहासिक-कांग्रेस के लिए रवाना हो गये।
रायपुर से प्रकाशित राष्ट्रबंधु साप्ताहिक के गांधी जन्म शताब्दी अंक 2-10-1969 में पेज-4 पर श्री रामानन्द दुबे का संस्मरण, ‘मुझे महिलाओं में देखकर बापू खिलाखिला कर हंस पड़े थे‘ शीर्षक प्रकाशित हुआ। यह शीर्षक सन 1945 मई के बंबई में आयोजित शिविर के प्रसंग से संबंधित है। मगर इस लेख का आरंभ होता है- ‘गांधीजी को निकट से निहारने की लालसा बचपन से थी। सन् 1920-21 में जब वे कलकत्ता जाते हुए रायपुर पधारे थे तब मैं नौ वर्ष का निरा नादान बालक था। आनन्द समाज पुस्तकालय के समीप ‘विनोबा‘ बालोद्याान के मैदान में टट्टों से बने विशाल पेंडाल में उनका कार्यक्रम था। टट्टों के छेद से घुसकर किसी प्रकार मैं मंच के पास पहुंच ही गया और गांधीजी को जी भरकर देखा। यह प्रथम दर्शन लाभ था। बाल मन पर उनका अमिट प्रभाव पड़ा जो जीवन पर्यन्त कायम रहेगा।‘ इस संस्मरण में तिथि रहित काल 1920-21 तथा ‘कलकत्ता जाते हुए‘ विशेष ध्यान देने योग्य है।
सन 1970 में ‘‘छत्तीसगढ़ में गाँधीजी‘‘ का प्रकाशन, रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर से गांधी शताब्दी समारोह समिति द्वारा डॉ. ठा. भा. नायक के सम्पादकत्व में हुआ। इस पुस्तक में श्री हरि ठाकुर ने अपने लेख में लिखा है कि ‘‘देश को गांधीजी ने सर्वप्रथम सत्याग्रह का मार्ग सुझाया। ... कन्डेल नामक ग्राम में नहर सत्याग्रह आरम्भ हुआ। इस सत्याग्रह के सूत्रधार थे पं. सुन्दरलाल शर्मा ... अन्त में इस सत्याग्रह के नेताओं ने गांधीजी से पत्र-व्यवहार किया। और गांधीजी ने इस सत्याग्रह का मार्गदर्शन करना स्वीकार किया। गांधीजी उस समय बंगाल का दौरा कर रहे थे। उन्हें बुलाने के लिये पं. सुन्दरलाल शर्मा गये। 20 दिसम्बर सन् 1920 को महात्मा गांधी का प्रथम बार रायपुर आगमन हुआ। उसी दिन उन्होंने गांधी चौक में अपार जनसमूह को संबोधित किया। रायपुर से गांधीजी मोटर द्वारा धमतरी और कुरुद गये।... गांधीजी के आगमन के साथ ही कंडेल सत्याग्रह स्थगित हो गया। ... इसलिये गांधीजी धमतरी से ही वापस लौट आये। धमतरी और कुरुद से वापस लौटने पर गांधीजी पुनः राययपुर में रुके और उन्होंने महिलाओं की एक विशाल सभा को संम्बोधित किया। महिलाओं से गांधीजी ने ‘तिलक स्वराज्य‘ फण्ड के लिए मांग की और उन्हें तुरन्त दो हजार रु. के मूल्य के गहने प्राप्त हुए।
इस पुस्तक में केयूर भूषण मिश्र ने अपने लेख में मात्र उल्लेख किया है कि ‘‘कन्डेल सत्याग्रह सन् 1917 में प्रारंभ हुआ और 1920 में इस सत्याग्रह ने सफलता प्राप्त की।‘‘ किंतु यहां सन् 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रवास की कोई चर्चा नहीं है। डॉ. शोभाराम देवांगन के लेख में ‘‘इस सत्याग्रह को व्यापक तथा सर्वदेशीय रूप प्रदान करने हेतु यहां से पं. सुन्दरलालजी शर्मा राजिम वाले को 2 दिसम्बर सन् 1920 ईं को महात्मा गांधीजी के पास कलकत्ता इस परिस्थिति का ज्ञान कराने तथा उन्हें धमतरी लाकर आशीर्वाद प्राप्त करने के अतिरिक्त इस सत्याग्रह का संचालन सूत्र उनके हाथ में देने की अपेक्षा कर रवाना किया।’’ ... इस तरह यह नहर सत्याग्रह, महात्मा गांधी के धमतरी आगमन के पूर्व ही पूर्ण सफलता के साथ सम्पन्न हुआ।‘‘(पेज-90) यहां सन् 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रवास की स्पष्ट चर्चा नहीं है।
हरिप्रसाद अवधिया ने लिखा है कि ‘‘अपने आन्दोलन के सर्व प्रथम चरण में ही सन् 1920 में मौलाना शौकत अली को साथ लिये गांधीजी का रायपुर में आगमन हुआ। इस पुस्तक में डॉ बलदेव प्रसाद मिश्र और घनश्याम सिंह गुप्त के संस्मरणों में सन 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ के प्रवास की चर्चा नहीं है।
अब्बास भाई का संस्मरण है कि सन् 1921 में महात्माजी और मौलाना शौकत अली का रायपुर में आगमन हुआ। उन्हें धमतरी जाना था परन्तु शासन और पुलिस के आतंक के कारण मोटर मिलना दुष्कर था। पं. शुक्लजी के आह्वान पर मैं महात्माजी, मौलाना शौकत अली और उनकी पार्टी को अपनी मोटर बस में ले जाने के लिए तैयार हुआ। समय पर पुलिस वालों ने मेरे मोटर ड्राइवर को वहीं रोक लिया। ... मैं महात्माजी और मौलाना सहित पं. शुक्लजी और दूसरे नेतागण को रायपुर ब्राह्मणपारा में जो लाइब्रेरी है, वहां सं बैठाकर धमतरी ले गया। ... रायपुर मोटर बस सर्विस, रायपुर के नामसे सर्विस चलती थी तथा प्रोप्रायटर वली भाई एण्ड ब्रदर्स। ... डिप्टी कमिश्नर श्री सी. ए. क्लार्क ने हमारी कंपनी का मोटर चलाने का लाइसेंस भी रद्द कर दिया।
प्रभूलाल काबरा ने लिखा है कि- राजनांदगांव में गांधीजी मौ. मोहम्मद अली, शौकत अली, जमनालाल बजाज, के साथ जब कलकत्ता जा रहे थे ... जिस समय वे कलकत्ता के खास अधिवेशन में जा रहे थे उसी ट्रेन में लोकमान्य तिलक, दादा साहब खापर्डे, डा. मुंजे भी प्रथम दर्जे के डब्बे में यात्रा कर रहे थे ... आखिर गांधीजी ने दरवाजा खोला। इसके पश्चात्, जब गांधीजी रायपुर आयेः- में बताया है कि ‘‘ज्योंही गाड़ी प्लेटफार्म पर लगी, श्री शुक्ल आदि नेतागण ... इस विवरण के साथ सन् नहीं दिया गया है, लेकिन अनुमान होता है कि यह सन् 1933 का विवरण है। कन्हैया लाल वर्मा का संस्मरण भी बिना सन् के उल्लेख के है। अद्वैतगिरी जी ने लिखा है कि सन् 1920 में गांधीजी रायपुर आये। स्वर्गीय श्री सुन्दरलालजी शर्मा के भांजे कन्हैयालाल जी अध्यापक के निवासगृह में उनके ठहरने की व्यवस्था की गई। संध्याकाल उन्होंने एक आमसभा को संबोधित किया। भाषण के मुख्य विषय देश की स्वतंत्रता, एकता और सत्याग्रह थे।
महंत लक्ष्मीनारायण दास जी ने लिखा है कि सन् 1921 की घटना है, जब महात्मा गांधी पहली बार रायपुर आये और उन्होंने जैतूसाव मठ को अपनी अविस्मरणीय भेंट दी। ... महात्मा गांधी के साथ उनके दो अनन्य मित्र और अनुयायी स्वर्गीय शौकत अली और स्वर्गीय मोहम्मद अली भी साथ थे।
इसी पुस्तक के अन्य लेख में डा. शोभाराम देवांगन ने लिखा है कि पं. सुन्दरलालजी शर्मा, राजिम वाले, महात्मा गांधी को धमतरी लाने के लिये 2 दिसम्बर, सन् 1920 को कलकत्ता गये थे किन्तु वहां उनसे भेंट न हो सकी। ... अंत में उनसे दक्षिण भारत के एक नगर में जहां महात्माजी का कार्यक्रम अधिक दिनों के निश्चित था, वहां भेंट होना संभव हुआ। वे गांधीजीको धमतरी तहसील के कंडेल गांव के नहर सत्याग्रह का पूर्ण परिचय कराकर धमतरी में लाने में सफल हुए (पेज-41)। 21 दिसंबर, 1920 ई. को ठीक 11 बजे महात्मा गांधी मौलाना शौकत अली के साथ, रायपुर होते हुए यहां पधारे। ... महात्मा गांधीजी के भाषण का प्रबन्ध यहां के एक प्रसिद्ध सेठ हुसेन के वृहत बाड़े में निश्चित हुआ था ... गुरुर निवासी श्री उमर सेठ नामक, एक कच्छी व्यापारी झट महात्माजी को उठाकर और अपने कंधों पर बिठाकर ... मालगुजार श्रीमन बाजीराव कृदत्त महोदय के हाथ से 501/ रुपये की थैली भेंट कर उनका हार्दिक स्वागत किया गया। लेख में बताया गया है कि लगभग 1 घंटे का भाषण हुआ इसके पश्चात् लगभग साढ़े बारह बजे सभा का कार्य समाप्त हुआ। श्री नत्थूजी जगताप के भवन पर फलाहार और लगभग दो बजे दिन को यहां से रायपुर के लिए प्रस्थान किए। इस तरह तीन चार घंटे के लिये यह नगर महात्माजी के आगमन पर आनंद विभोर में मग्न रहा।
श्रीमती प्रकाशवती मिश्र ने लिखा है कि महात्माजी के दर्शन 1920 के दिसम्बर माह में हुए जब रायपुर में उनका आगमन हुआ। कलकत्ते में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन हुआ। लाला लाजपतराय अध्यक्ष थे। उसके पश्चात अखिल भारतवर्षीय दौरे पर कांग्रेस का असहयोग आन्दोलन के प्रचारार्थ महात्माजी रायपुर पधारे। महात्माजी उस समय ठक्कर बैरिस्टर के बंगले में ठहरे थे। ... महात्माजी रायपुर के दौरे के समय कुरुद व धमतरी भी गये थे।
धमतरी नगरपालिका परिषद, शताब्दी वर्ष 1981 की स्मारिका में, त्रिभुवन पांडेय ने सम्पादकीय में गांधीजी का पहली बार धमतरी आगमन नहर सत्याग्रह से प्रभावित होने के कारण और प्रवास की तिथि 21 दिसंबर 1920 बताया है। स्मारिका के इतिहास खण्ड ‘महात्मा गांधी की धमतरी यात्रा‘ शीर्षक सहित है, जिसमें 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रवास संबंधी जानकारी ‘मध्यप्रदेश और गाांधीजी‘ से ली गई है।
इस स्मारिका में भोपालराव पवार का लेख है, जिसका प्रासंगिक अंश- ‘‘अगस्त 1920 में कलकत्ता अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के विशेष अधिवेशन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने असहयोग का प्रस्ताव खूब कश्मकश के बीच पास कराया और देश को तीन नये नारे दिये:- (1) सरकारी शिक्षालयों में पढ़ना पाप है। (2) सरकारी अदालतों में जाना पाप है। (3) विदेशी वस्त्रों का उपयोग करना पाप है। उन दिनों मैं भी श्री त्र्यंबकरावजी कृदत्त के साथ कलकत्ता में पढ़ता था। स्व. पं. सुन्दरलालजी शर्मा और स्व. नत्थूजीराव जगताप कलकत्ता अधिवेशन में आये थे और उसी मकान में ठहरे थे - जहां हम लोग रहते थे। ... स्व. शर्मा जी और स्व. जगताप साहेब ने महात्मा जी को धमतरी आने का निमंत्रण दिया, जिसे महात्मा जी ने स्वीकार किया। जिस दिन असहयोग का प्रस्ताव पास हुआ - उसी दिन रात में कलकत्ता के विल्गिंटन स्क्वेयर में गांधीजी की आमसभा हुई। जिसमें उन्होंने अपने तीन नारों को दुहराया। दूसरे दिन हमलोग भी पढ़ाई छोड़कर उसी गाड़ी से घर आये-जिससे महात्मा जी रायपुर आये। रायपुर से महात्माजी को कार द्वारा धमतरी लाया गया और हम लोग ट्रेन से धमतरी आये।’’ अन्य स्रोतों के तथ्य इससे मेल नहीं खाते, इसलिए यह विश्वसनीय नहीं रह जाता।
सन 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रवास के संबंध में 1973 में प्रकाशित रायपुर जिला गजेटियर में जानकारी दी गई है कि महात्मा गांधी, कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन के ठीक पहले 20 दिसंबर 1920 को अली बंधुओं के साथ तिलक कोष और स्वराज्य कोष के सिलसिले में रायपुर आए। गांधी जी धमतरी तथा कुरुद भी गए। गजेटियर में कंडेल नहर सत्याग्रह की घटना का विवरण गांधीजी के साथ नहीं, बल्कि पृथक से हुआ है। उल्लेखनीय है कि उक्त जानकारी के मूल स्रोत-संदर्भ का हवाला भी यहां नहीं दिया गया है।
‘मध्यप्रदेश संदेश‘ का 15 अगस्त 1987 का अंक में स्वाधीनता आंदोलन विशेषांक था। इसमें सन्तोष कुमार शुक्ल के लेख में कंडेल नहर सत्याग्रह के संदर्भ में कहा गया है कि ‘‘पं. सुन्दरलाल शर्मा, श्री नारायणराव मेघावाले तथा छोटेलाल बाबू ने गांधी जी के सत्याग्रह से प्रेरणा पाकर ऐसा कदम उठाया था। जब नहर सत्याग्रह उग्र रूप से चल रहा था तभी पं. सुन्दरलाल ने सत्याग्रह के प्रणेता महात्मा गांधी से परामर्श लेकर इसे अखिल भारतीय रूप प्रदान करने का विचार किया। वे मांधीजी से मिलने कलकत्ता गये और उन्हीं के साथ 20 दिसम्बर, 1920 को कलकत्ता से रायपुर पधारे व उनके साथ मौलाना शौकतअली भी रायपुर आये थे। छत्तीसगढ़ में गांधीजी की यह प्रथम यात्रा थी। रायपुर में गांधी जी पं. रविशंकर शुक्ल के निवास-स्थान पर ठहरे। गांधीजी धमतरी और कुरूद भी गये। धमतरी में गांधीजी की ठहरने की व्यवस्था श्री नारायणराव मेघावाले के निवास-स्थान पर हुई थी। जब गांधीजी धमतरी पहुंचे तब कंडेल सत्याग्रह समाप्त हो चुका था। धमतरी की जनता विजयी सत्याग्रही के समान सत्याग्रह आंदोलन के जन्मदाता का स्वागत कर रही थी। धमतरी की सभा में श्री बजीराव कृदत्त ने ग्रामवासियों की ओर से 501 रुपये की थैली गांधीजी को भेंट दी। गांधीजी ने कंडेल ग्राम जाकर ग्रामवासियों को धन्यवाद दिया था, सत्याग्रह के मौलिक गुणों को समझाया भी था।‘‘
इस अंक में सुन्दर लाल त्रिपाठी के लेख के विवरण से सन 1921 तक बस्तर के लोग महात्मा गांधी से अनजान थे। वे स्वयं 1921 में उत्तरप्रदेश गए तब महात्मा गांधी के दर्शन का भी सौभाग्य मिला। उनके इस लेख में 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रवास की कोई चर्चा नहीं की है। स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी के लेख में कहा गया है- सन 1920 में तिलक निधि के संग्रह के सिलसिले में महात्मा गांधी के रायपुर आगमन ने राष्ट्रीयता की भावना को प्रस्फुटित करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। तब कांग्रेस में महात्मा गांधी का वर्चस्व स्थापित हो चुका था। उनके द्वारा प्रणीत सत्याग्रह के शस्त्र का सर्वप्रथम उपयोग हुआ रायपुर जिले के कण्डेल नहर सत्याग्रह के रूप में, जिसके सूत्रधार थे धमतरी के बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव। ... किसानों के इस अभूतपूर्व सत्याग्रह की सूचना महात्मा गांधी तक पहुंची। राजिम के लोकप्रिय नेता. पं. सुन्दरलाल शर्मा जो कि स्वयं उन दिनों हरिजन उद्धार के रचनात्मक अभियान के सूत्रधार थे, गांधी जी को लेकर रायपुर आये। गांधी जी के आगमन की सूचना से हुकुमत के शिविर में हड़कम्प मच गया। सरकारी कार्यवाही वापिस ली गई लेकिन इस सत्याग्रह को राष्ट्रव्यापी महत्व मिला। स्वयं गांधी जी धमतरी गये जहां उनका सार्वजनिक अभिनंदन, तत्कालीन नगरपालिका के द्वारा किया गया।‘‘
इसी अंक में सालिकराम अग्रवाल ‘शलभ‘ के लेख का उद्धरण है- ‘‘छत्तीसगढ़ के गांधी पंडित सुन्दरलाल शर्मा 3-12-1920 (तिथि छपाई के अक्षर के बजाय हाथ की लिखावट में है, जिससे अनुमान होता है कि यह अंतिम प्रूफ में संशोधित किया गया है।) को महात्मा गांधी से मिलने कलकत्ता गए और कंडेल ग्राम के नहर के सत्याग्रह और अंग्रेजों की दमन नीति से गांधी जी को अवगत कराया। अंग्रेजी सरकार से असहयोग करने की वृहत योजना लेकर जब श्री सुन्दरलाल शर्मा वापस आये तब धमतरी तहसील सहित समूचे रायपुर जिले में खलबली मच गई‘‘ इस लेख में तब गांधी जी के छत्तीसगढ़ प्रवास का कोई उल्लेख नहीं है। आगे इस अंक में राजेन्द्र कुमार मिश्र द्वारा प्रस्तुत पं. द्वारका प्रसाद मिश्र के संस्मरण में सन 1920 और गांधीजी की चर्चा में छत्तीसगढ़ प्रवास का उल्लेख नहीं है। इसी तरह श्यामलाल चतुर्वेदी द्वारा प्रस्तुत पंडित मुरलीधर मिश्र ने 1919 में जलियांवाला बाग के शहीदों की स्मृति में शोक दिवस मनाने और जुलूस निकाले जाने के बाद सीधे 1921 में नागपुर कांग्रेस के बाद जिला राजनीतिक सम्मेलन को याद किया है। इस बीच 1920 और गांधी जी के छत्तीसगढ़ प्रवास का उल्लेख नहीं किया है।
डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र एवं डॉ. शांता शुक्ला की पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ का इतिहास‘ द्वितीय संस्करणः 1990 में पेज 106 पर उल्लेख है- ‘1920 का वर्ष भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में नये युग का प्रतीक था। ... चूंकि महात्मा गाँधी इस वर्ष छत्तीसगढ़ आये थे और धमतरी तहसील के विभिन्न स्थानों व रायपुर नगर की यात्रा की थी,‘। पेज 108 पर- पं. सुन्दरलाल शर्मा (राजिम वाले) को 2 दिसंबर 1920 को, महात्मा गाँधी को धमतरी आमंत्रित करने हेतु कलकत्ता भेजा गया, सत्याग्रह की बागडोर उनके हाथों में सौंपकर सत्याग्रह को सफल बनाने का निर्णय लिया गया।‘ इसी पेज पर- ‘यह नहर सत्याग्रह महात्मा गाँधी के धमतरी आगमन के पूर्व ही सफलता के साथ खत्म हो गया। गाँधीजी के छत्तीसगढ़ आगमन पर धमतरीवासियों ने विजयी सत्याग्रहियों के रूप में गाँधीजी का हार्दिक स्वागत किया।‘ पेज 214 पर- ‘शर्माजी ने स्थिति का निरीक्षण करने के लिए महात्मा गाँधी को आमन्त्रित किया व उन्हें लाने के लिए स्वयं कलकत्ता गये और महात्मा गाँधी जी को लेकर 20 दिसम्बर, 1920 को रायपुर आये। गाँधीजी का यह प्रथम छत्तीसगढ़ आगमन था।‘ (प्रसंगवश, पुस्तक के इस संस्करण के अंत में ‘छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक स्रोत‘ सूची है, जिसमें 1979 तक के शोध-प्रबंध सम्मिलित हैं, अतएव पुस्तक का पहला संस्करण इसके पश्चात का होगा, किंतु पेज-2 पर उल्लेख है कि ‘वर्तमान छत्तीसगढ़ में रायपुर, सरगुजा, बिलासपुर, दुर्ग एवं बस्तर जिले हैं‘, यहां रायगढ़ और राजनांदगांव जिले का नामोल्लेख न होना, समझ से परे है।)
डाॅ. भगवान सिंह वर्मा की पुस्तक छत्तीसगढ़ का इतिहास राजनीतिक एवं सांस्कृतिक (प्रारंभ से 1947 ई. तक), संस्करणः तृतीय संशोधित 1995, मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल में पेज 153 पर उल्लेख इस प्रकार है- ‘कन्डेल का आन्दोलन - इन दिनों छत्तीसगढ़ में शासन के खि़लाफ़ आन्दोलन करने के लिए लोगों में ग़ज़ब का उत्साह था। 20 सितम्बर सन् 1920 ई. को कण्डेल नहर सत्याग्रह के संदर्भ में गाँधीजी का रायपुर आगमन हुआ। वे कुरुद और धमतरी भी गये।‘
इसी पुस्तक में पुनः पृष्ठ - 155-56 पर उल्लेख है- कंडेल ग्राम का यह आन्दोलन अनेक माह तक चलता रहा। सरकारी अत्याचार दिनों दिन बढ़ते गये, ऐसी स्थिति में आन्दोलन का नेतृत्व गाँधीजी को ही सौंपने का विचार किया गया। इस आशय की प्रार्थना गाँधीजी से की गयी, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस हेतु पं. सुन्दरलाल शर्मा गाँधीजी से भेंट करने कलकत्ता गये। इसकी सूचना पाकर सरकार की सक्रियता में वृद्धि हुई। आन्दोलन स्थल पर जाकर रायपुर के डिप्टी कमिश्नर ने वस्तुस्थिति का ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने यह सुझाव दिया कि ग्रामवासियों पर लगाया गया आरोप निराधार है। ऐसी स्थिति में उन्होंने जुर्माने की राशि को माफ करने की घोषणा की और प्रामीणों को जानवर वापस कर दिये गये। इस प्रकार गांधीजी के यहाँ आने के पूर्व यह सत्याग्रह आन्दोलन सफलतापूर्वक समाप्त हो गया, जो सम्पूर्ण क्षेत्र के लिए गौरव का प्रतीक था। गाँधीजी ने यहाँ आकर आन्दोलन को क्रियान्वित करने के सम्बन्ध में जनता का मार्गदर्शन किया।
गाँधीजी का छत्तीसगढ़ प्रवास - दिसम्बर सन् 1920 ई. में गांधीजी का छत्तीसगढ़ आगमन हुआ। वे सर्वप्रथम रायपुर आये। उनके आगमन से इस अंचल में राजनीतिक हलचल तीव्र हो उठी। रायपुर की जनता ने उनका हार्दिक स्वागत किया। गांधी चैक से उन्होंने लोगों को सम्बोधित किया। उन्होंने लोगों से यह आह्वान किया कि दासता से मुक्ति पाने के लिए वे असहयोग आन्दोलन में जुड़ें। 21 दिसम्बर सन् 1920 ई. को गांधीजी धमतरी पहुंचे। वहाँ भी उनका शानदार स्वागत किया गया। उन्होंने वहाँ लोगों को मंडई-बन्ध-चौक में सम्बोधित किया। धमतरी तहसील के प्रतिष्ठित जमींदार बाज़ीराव कृदत्त ने 501/- (पाँच सौ एक रुपये) की थैली भेंटकर उनका अभिनन्दन किया। उन्होंने अपने भाषण में कंडेल आन्दोलन की सफलता के लिए लोगों को बधाई दी और उनसे काँग्रेस के कार्यक्रम में सक्रियता से भाग लाने की अपील की। वहाँ से वे लगभग 3.00 बजे रायपुर के लिये रवाना हुये। मार्ग में उन्होंने कुरुद को जनता से भेंट की। रायपुर आने पर उन्होंने आनन्द समाज वाचनालय के समीप महिलाओं को एक सभा को सम्बोधित किया। सभा के दौरान महिलाओं ने तिलक स्वराज्य फंड के लिए 2,000/- (दो हजार रुपये) का दान दिया। इसके बाद वे वापस चले गये, पर उनका व्यक्तित्व यहाँ के युवकों और महिलाओं को प्रभावित करता रहा। उन्होंने महिलाओं को भी स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
यही उल्लेख डाॅ. भगवान सिंह वर्मा की पुस्तक छत्तीसगढ़ का इतिहास (राजनीतिक एवं सांस्कृतिक) (प्रारंभ से 2000 ई.) पंचम संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण 2007, मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल के पेज 220 तथा पेज 221-222 पर भी है।
2003 में प्रकाशित ‘छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर-20‘, पं. सुन्दरलाल शर्मा जयंती समारोह परिशिष्टांक तथा इस दौर के अन्य स्रोतों से भी इसी से मिलती-जुलती जानकारी सामने आती है, जिनमें से दो का उल्लेख यहां किया जा रहा है। 1992 में प्रकाशित ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर स्मृति ग्रंथ में महात्मा गांधी के 1926 में बिलासपुर आगमन पर बैरिस्टर का स्वागताध्यक्ष होना बताया गया है तथा कुलदीप सहाय ने 1917 से 1921 तक के अपने संस्मरण में गांधी जी के छत्तीसगढ़ आने का उल्लेख नहीं किया है। एक अन्य प्रकाशन, अखिल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकार परिषद द्वारा 11 सिंतबर 1995 तिथि पर महात्मा गांधी 125 वां जन्म वर्ष समारोह आयोजन कर स्मारिका निकाली गई। स्मारिका समिति में राजेन्द्र प्र. पाण्डेय के साथ 9 अन्य नाम हैं। स्मारिका में ‘गांधी जी की छत्तीसगढ़ यात्रा‘ शीर्षक भुवनलाल मिश्र का लेख है। इस लेख में कहा गया है कि ‘‘इसी कंडेल नहर सत्याग्रह के नेतृत्व को गांधी जी को सौंपने हेतु पंडित सुंदर लाल शर्मा अपने सहयोगियों के परामर्श से कलकत्ता गये एवं महात्मा गांधी को 20 दिसंबर सन् 1920 को साथ लेकर रायपुर आये।‘‘ ... ‘‘अंतोतगत्वा गांधी जी के आगमन के एक दिन पूर्व अंग्रेजी शासन को आंदोलनकारियों के कदमों पर झुकना पड़ा।‘‘ ... ‘‘इस तरह इतिहास की धारा ही बदल गयी, अन्यथा बिहार के प्रसिद्ध चंपारन सत्याग्रह के बाद महात्मा गांधी को कंडेल नहर सत्याग्रह का नेतृत्व करना पड़ता जिससे पूरा छत्तीसगढ़ गौरवान्वित हुआ होता।’’ इसके पश्चात लेख में गांधी जी की रायपुर सभा, धमतरी और वहां से लौटते हुए कुरुद की सभा की जानकारी दी गई है। इसी लेख में आगे कहा गया है कि ‘‘सन 1920 एवं सन 1933 में किये गये दो यात्राओं के अवसर पर महात्मा गांधी ने छत्तीसगढ़ का कुल मिलाकर 6-7 दिन भ्रमण किया था।‘‘ तथा ‘‘शासकीय ग्रंथों में राष्ट्रपिता के छत्तीसगढ़ भ्रमण को बहुत ही संक्षिप्त रूप में लिखा गया है जो खेद की बात है। धमतरी के देशभक्त स्व. डा, शोभाराम देवांगन, भूतपूर्व शिक्षा मंत्री श्री भोपाल राव पवार आदि लेककों ने उसे विस्तार पूर्वक लिखने का प्रयास किया है, किंतु इस दिशा में और शोध की आवश्यकता है।‘‘
साक्षात्कार
पंडरी राव कृदत्त
1930 में नवागांव में जंगल सत्याग्रह लोगों ने किया। उसमें दो-तीन दिन लोगों की गिरफ्तारियां हुई। गोली चली व दो लोगों की मृत्यु हो गयी। नत्थूजी जगताप व बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव के नेतृत्व में सत्याग्रह चल रहा था। नारायण राव जी का भी सहयोग था। गांधी जी का यहां दो बार आना हुआ। एक बार उनका मुनिस्पल हाई स्कूल में उनका भाषण हुआ था। जहां लोगो ने अपने गहने तक उतार कर आंदोलन के लिये दिये उनमें से एक यशोदाबाई कृदत्त जो कि नत्थूजी जगताप की बुआ थी उन्होंने भी अपने गहने उतार कर दिये।
इस आंदोलन के पहले 1920 में कंडेल का एक नहर आंदोलन हुआ जिसमें सरकार द्वारा नहर के किनारे चरने वाले पशुओं को कांजी हाउस में बंद करने का षड़यंत्र सरकार द्वारा हुआ तो इस आंदोलन के आधार पर जितने भी बैल बाजार हैं उन्हें बेचने के लिये घुमाया गया पर किसी ने नहीं खरीदा व सरकार को झुकना पड़ा।
गांधी जी जब 1930 में आये तो उन्होंने कहा कि यह आंदोलन तो मेरे आंदोलन के पूर्व ही हो चुका है और सराहनीय है।
धमतरी क्षेत्र में बहुत से और भी आंदोलन हुये। आज भी कई लोगों को पेंशन मिलती है। धमतरी के मराठा पारा में एक आश्रम हुआ करता था जहां सत्याग्रही लोग एकत्र होकर प्रभातफेरी किया करते थे। व सुबह सुबह प्रभात फेरी में जाया करते थे मेरी उम्र उस समय 8 वर्ष की थी मैं भी उन लोगो के साथ घूमा करता था।
पंढरीराव कृदत
29-3-2001
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खंड 18, जुलाई 1966 में प्रकाशित संस्करण, नेट पर उपलब्ध है, जिसके पेज 229-230 पर, जुलाई से नवंबर 1920, ‘हमारी दैनन्दिनी‘ शीर्षक के अंतर्गत 10 अगस्त से 26 अगस्त तक का विवरण देते हुए लिखा है कि ‘‘हम लगातार 24 घंटे मद्रासके अतिरिक्त और किसी स्थानपर न रह सके और मद्रास भी इसी कारण रह पाए क्योंकि हम पहले-पहल वहीं गये थे। बादमें तो केन्द्रस्थान होनेके कारण हम आते-जाते दो-चार घंटे वहाँ रुकते। सेलमसे बंगलौर की 125 मीलकी यात्रा हमें मोटरमें तय करनी पड़ी थी। इस रफ्तार से यात्रा करना हमारे लिए कुछ अधिक हो जाता था; लेकिन निमन्त्रण बहुत जगहोंसे मिले थे। इनकार करना उचित नहीं लगता था और फिर यह लोभ भी था कि हम जितनी दूरतक अपना सन्देश पहुँचा सकें उतना ही अच्छा है।‘‘ इस दौरे में बम्बई और अहमदाबाद होते गांधीजी 3 सितंबर 1920 की रात में कलकत्ता पहुंचे थे। इसके पश्चात् 10 सितंबर तक कलकत्ता में, 17 सितंबर तक बंगाल में और 20 सितंबर को साबरमती आश्रम में होने की स्पष्ट जानकारी मिलती है। इस प्रकार कलकत्ता विशेष अधिवेशन के पूर्व गांधीजी के रायपुर आगमन की संभावना नहीं जान पड़ती।
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खंड 19, नवंबर 1966 में प्रकाशित संस्करण, नेट पर उपलब्ध है, जिसमें नवंबर 1920 से अप्रैल 1921 में पेज 133 पर 16 दिसंबर 1920, गुरुवार को ढाका से कलकत्ता जाते हुए मगनलाल गांधी को लिखे पत्र की जानकारी है। पेज 143 पर 18 दिसंबर को नागपुर की सार्वजनिक सभा में भाषण की जानकारी है। पेज 151 पर 25 दिसंबर को नागपुर की बुनकर परिषद् में भाषण तथा पेज 152 पर नागपुर के अन्त्यज सम्मेलन में भाषण। पेज 161 पर 26 दिसंबर को नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन के उद्घाटन दिवस पर, गांधीजी द्वारा में भाषण, श्री विजयराघवाचार्य को कांग्रेस का अध्यक्ष चुनने के प्रस्ताव का अनुमोदन किया था।
सी.बी. दलाल की अंगरेजी पुस्तक ‘गांधीः 1915-1948‘ ए डिटेल्ड क्रोनोलाजी, गांधी पीस फाउंडेशन नई दिल्ली ने भारतीय विद्या भवन बम्बई के साथ मिलकर सन 1971 में प्रकाशित किया है। पुस्तक के पेज 35 पर माह दिसंबर, सन 1920 के गांधीजी के दैनंदिन का उल्लेख है, जिसके अनुसार गांधीजी ने 17 दिसंबर 1920 को कलकत्ता छोड़ा और 18 दिसंबर 1920 को नागपुर की आमसभा में रहे। इसके पश्चात दिनांक 19 से 23 तक नागपुर में तथा पुनः 31 दिसंबर तक नागपुर के विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुए। एक अन्य अंगरेजी पुस्तक के. पी गोस्वामी की ‘‘महात्मा गांधी ए क्रोनोलाजी‘‘ मार्च 1971 में पब्लिकेशन डिवीजन से प्रकाशित हुई है। इसमें भी गांधीजी के प्रवास की तिथियां दलाल की पुस्तक की तुलना में संक्षिप्त, किंतु पुष्टि करने वाली हैं।
सन 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ आने के संबंध में पं. सुंदरलाल शर्मा द्वारा किया गया कोई उल्लेख नहीं मिलता, वहीं सर्वविदित है कि गांधीजी की आत्मकथा के अंतिम दो शीर्षकों में से ‘असहयोगका प्रवाह‘ में सितंबर 1920 के कलकत्ता के विशेष अधिवेशन का तथा ‘नागपुरमें‘ में दिसंबर 1920 के नागपुर वार्षिक अधिवेशन का उल्लेख है। यहां भी छत्तीसगढ़ का कोई उल्लेख नहीं हुआ है। इस तरह पं. सुंदरलाल शर्मा और महात्मा गांधी, दोनों द्वारा 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रवास का उल्लेख न होने से संदेह/संभावना की गुंजाइश रह जाती है कि ऐसा संयोग-मात्र हो सकता है किंतु विसंगतियों तथा प्रामाणिक प्रकाशनों से मिलान करने पर छत्तीसगढ़ के लिए इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक गौरव के प्रसंग पर तथ्यों, दस्तावेजों के साथ असंदिग्ध जानकारियों आवश्यक हो जाती है। अपने संसाधनों की सीमा में जितनी जानकारी जुटा पाया, जानता हूं कि वह पर्याप्त नहीं है, सुधिजन के परीक्षण हेतु प्रस्तुत है। आशा है कि कुछ और पुष्ट जानकारी प्राप्त हो सकेगी, जिससे इतिहास के पन्नों में स्पष्टीकरण, संशोधन हो सके। अन्यथा, मान लेना होगा कि 1920 में छत्तीसगढ़ में गांधीजी का सघन-आह्वान हुआ, जिसके चलते समय बीत जाने पर वे साकार सत्य की तरह साक्षात हो गए।
अच्छा लगा। गांधी जी दिखे जैसे कहीं।
ReplyDeleteIs shodhparak aalekh ke liye hriday se aapka aabhar.
ReplyDeleteYah shodh parak aalekh dr. Rahul singh hi likh sakta hai .. isme gandhiji ka uddesya ka bhi sahi tarike se ulekh hai .. respected shri prabhu lal kabra wale bhi hain .. sangrahniya .. shobh parakh aalekh ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आलेख। गाँधीजी की छत्तीसगढ़ यात्रा के सभी प्रसंगों को आपने बहुत विस्तार से याद किया है। हार्दिक आभार।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आलेख। गाँधीजी की छत्तीसगढ़ यात्रा के सभी प्रसंगों को आपने बहुत विस्तार से याद किया है। हार्दिक आभार।
ReplyDeleteBahut bhadiya
ReplyDeleteसम्पूर्ण गांधी वाङ्मय में रायपुर यात्रा का जिक्र न होना, कुछ अन्य लेखकों का कंडेल सत्याग्रह के साथ गांधी जी की यात्रा का विवरण न होना कौतूहल पैदा करता है। गांधीजी की 1920 की यात्रा पर आपने लगभग सभी प्रमुख ग्रंथों, लेखों, संस्मरणों को लिया है।
ReplyDeleteगांधीजी की छत्तीसगढ़ यात्रा पर मुझे भी विश्वास नहीं हो रहा है उनके आने का वर्णन रविशंकर शुक्ल अभिनंदन ग्रंथ से शुरू होता है और जो क्रमशः बढ़ता जाता है तथा आंखों देखा हाल जैसा बन जाता है फिर बाद के समय में इतिहासकार उसको दोहराने लगते हैं ऐसा मेरा समझना है .
ReplyDeleteमैंने भी इस विषय पर एक वाचन तैयार किया है . आप से अनुरोध है कि 2 दिनों बाद जब मैं प्रेषित करूंगा तो पढ़कर प्रतिक्रिया देंगे...
यह तथ्य अब छत्तीसगढ़ राज्य में स्पष्ट शासन स्तर पर होना चाहिए कि गांधी जी वास्तव में कब आये थे, अभी तो परीक्षा में पूछे जाते हैं और इसका मॉडल उत्तर 20 दिसंबर 1920 ही माना जाता है, अतः सरकार के लिए प्रश्न चिन्ह है कि सच क्या है l अभी इस पर शोध कार्य करने की आवश्यकता है
ReplyDeleteअनेक मुँह अनेक बातें। क्या सच क्या झूठ ? लेकिन इतिहास लेखन के लिए महत्वपूर्ण आलेख, हार्दिक बधाई सर जी सादर प्रणाम
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण दस्तवेज ।
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