6 अक्टूबर, फिल्म रास्कल्स आम नियत रिलीज दिन शुक्रवार से एक दिन पहले आ गई है, दशहरे पर। 25-26 हजार आबादी वाले कस्बे अकलतरा में फिल्म का पोस्टर, जिस पर श्री सुदर्शन सिनेमा में यूएफओ प्रदर्शन की चिप्पी है।
अकलतरावासी, जो इन दिनों प्रवासी हैं उनके लिए खास खबर। मेरे लिए ग्लोबलाइज होती दुनिया का एक पहलू। कभी अस्थायी, टीन-टप्पर वाले, टूरिंग टाकीज सुदर्शन सिनेमा, जहां नई फिल्मों के लिए बरसों इंतजार करना होता, के एयरकंडीशंड यूएफओ केबिन और वहां के झरोखे से रिलीज के ही दिन फिल्म की झलक देखा। घनघोर किस्म के हिन्दीवादियों के लिए चिंता की खुराक होगी कि फिल्म का न सिर्फ नाम अंगरेजी में है, बल्कि देवनागरी में लिखा भी नहीं गया है।
टाकीज के पास ही रावण पुतला और चौपहिया प्रचार वाहन खड़ा है। यह देख कर दशहरा-रामलीला से अनुपम टाकीज, भोंपू, सायकल, रिक्शे से आगे बढ़ता प्रचार और श्रुति-स्मृति से जो चलचित्र मानस पटल पर धावमान है, वह खुद देखते हुए लगा कि ढंग की किस्सागोई आती तो बता पाता। खैर, हाजिर की हुज्जत नहीं, गैर की तलाश नहीं। यह है, करीब 80 साल पुराना अकलतरा रामलीला का पोस्टर, जिसमें विज्ञापन शीर्षक से सूचना है। तब इस गांव की आबादी पांच हजार भी न रही होगी। गांव की अपनी लीला का दौर बीता, खास मौकों पर रहंस-गम्मत के आयोजन में दूर-पास के कलाकार आते रहे।
लगभग सन 1950 में छः-एक हजार हो गई आबादी वाले अकलतरा में पहले-पहल 'गणेश' टाकीज स्थापित हुई। इसके कर्ता-धर्ता शिवरीनारायण नाटक-लीला से जुड़े द्वारिका प्रसाद खण्डेलिया जी थे। अकलतरा रामलीला से जुड़े मुलमुलावासी प्रसिद्ध तबलावादक भानसिंह जी के पुत्र जीतसिंह जी ने राजलक्ष्मी टूरिंग टाकीज शुरू कर, केन्द्र अकलतरा को रखा। इस टाकीज के साथ लोग याद करते हैं सोहराब मोदी के शेर मार्का मिनर्वा मूवीटोन वाली फिल्म 'झांसी की रानी'। राजलक्ष्मी टाकीज के रुपहले परदे पर पहली बार यह रंगीन चलचित्र प्रदर्शित हुआ। विदेशी तकनीशियनों की मदद से बनी संभवतः पहली टेकनीकलर हिन्दुस्तानी फिल्म थी यह। रामलीला के सूत्रधार बैरिस्टर छेदीलाल जी के भतीजे केशवकुमार सिंह जी (उनके न रहने का यह पहला दशहरा था मेरे लिए) ने लगभग इसके साथ ही सन 1957 में अनिल टाकीज शुरू की।
इसी साल रामलीला में प्रमुख भूमिका निभाने वाले शिवाधीन महराज के पुत्र रमेश दुबे जी ने 'जय अम्बे' फिल्म प्रदर्शन के साथ अनुपम टाकीज शुरू किया। उनकी श्री टाकीज बनी और सक्ती से रघुवीर टूरिंग टाकीज आती-जाती रही। तब तक बिजली आई नहीं थी, जनरेटर का सहारा होता। 'ओम जै जगदीश हरे और हरे मुरारे मधुकैटभारे...' आरती रिकार्ड के साथ भारतीय समाचार चित्र, फिल्म्स डिवीजन की भेंट, आरंभ होता। फिल्म में मध्यांतर तो होता ही, बीच में ''कृपया शांत रहें, रील बदली जा रही है'' स्लाइड दिखाया जाता। एक तरफ मर्दाना तो दूसरी तरफ जनानी-बच्चों की बैठक और बीच में स्क्रीन वाली व्यवस्था भी प्रचलित रही। चाह रहा हूं, वैसी बात, वह रफ्तार और रवानी नहीं बन पा रही, सो वापस दशहरे पर।
इसी साल रामलीला में प्रमुख भूमिका निभाने वाले शिवाधीन महराज के पुत्र रमेश दुबे जी ने 'जय अम्बे' फिल्म प्रदर्शन के साथ अनुपम टाकीज शुरू किया। उनकी श्री टाकीज बनी और सक्ती से रघुवीर टूरिंग टाकीज आती-जाती रही। तब तक बिजली आई नहीं थी, जनरेटर का सहारा होता। 'ओम जै जगदीश हरे और हरे मुरारे मधुकैटभारे...' आरती रिकार्ड के साथ भारतीय समाचार चित्र, फिल्म्स डिवीजन की भेंट, आरंभ होता। फिल्म में मध्यांतर तो होता ही, बीच में ''कृपया शांत रहें, रील बदली जा रही है'' स्लाइड दिखाया जाता। एक तरफ मर्दाना तो दूसरी तरफ जनानी-बच्चों की बैठक और बीच में स्क्रीन वाली व्यवस्था भी प्रचलित रही। चाह रहा हूं, वैसी बात, वह रफ्तार और रवानी नहीं बन पा रही, सो वापस दशहरे पर।
पुरानी रामलीला, न जाने कब दशहरे की झांकी में सीमित हो गई है। सोचता हूं लीला पुरुष तो कृष्ण हैं और राम मर्यादा पुरुषोत्तम, लेकिन अवतार और विग्रह लीला ही है, राम की हो या कृष्ण की। सामने से झांकी गुजर रही है। राम-रावण दरबार साथ-साथ ट्रेक्टर की एक ही ट्राली पर। गीत बज रहा है 'डीजे'- ''इश्क के नाम पर करते सभी अब रासलीला हैं, मैं करूं तो साला, कैरेक्टर ढीला है'' - क्या यह रावण की ओर से कहा जा रहा है?
रावण-वध की तैयारी है। तीनेक साल का बच्चा कंधे पर सवार, सवाल किए जा रहा है और मचल रहा है, पापा! हमू लेमनचूस (लॉलीपाप) लेबो, ओ दे रावन घलो धरे हे।
सब प्रभु की माया, राम तेरी लीला न्यारी।कुछ दिनों से बार-बार ध्यान में आता है कि सभ्यता का सब-आल्टर्न इतिहास- गनीमत है कि यह दलित, शोषित, उपेक्षित, वंचितों का इतिहास नहीं, बल्कि हाशिये का या उपाश्रयी इतिहास कहा जाता है, सही मायनों में ब्लाग पर ही लिखा जा रहा है।