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Monday, May 29, 2023

लाल साहब

इंद्रजीत सिंह मेमोरियल ट्रस्ट, अकलतरा, जिला-जांजगीर चांपा की ‘स्मारिका‘ में प्रकाशित डॉ. मदन लाल शुक्ल का लेख यहां प्रस्तुत है, उनका एक अन्य लेख नवभारत समाचार पत्र में भी प्रकाशित हुआ था। 


लाल साहब को विनम्र श्रद्धांजली 

पाँच दिसम्बर 2006 को अकलतरा में रा. कु. सिंह उ.मा.शाला के सभाभवन में लाल साहब के जन्म शती समारोह का आयोजन हुआ। डॉ. इन्द्रजीत सिंह के कनिष्ठ पुत्र धीरेन्द्र कुमार के प्रयास स्वरुप यह आयोजन अत्यंत सफल रहा। आपस में सबका मेल जोल हुआ। अकलतरा गांव के सभी पुराने प्रबुद्ध वर्ग के लोग तथा डॉ. साहब के परिवार के उनके सभी बंधु बांधव उपस्थित हुये। समारोह की विशेषता यह थी कि छत्तीसगढ़ समाज के समस्त महिलाएँ भी उत्साह पूर्वक वहां पधारी तथा अनेक महिलाओं ने स्व. डॉ. साहब के व्यक्तित्व की प्रशंसा भी की तथा उन्हें उस जमाने के श्रेष्ठ मालगुजारों में गिनाया। मैं सन् 1933 में क्षेत्रीय मेरिट छात्रवृत्ति पाकर हाईस्कूल बिलासपुर चला गया था, सन् 1940 में प्रथम श्रेणी में मेट्रीकुलेशन की परीक्षा पास की। मेरी उम्र 18 वर्ष थी तब तक लाल साहब कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक होकर आ गये थे तथा उन्हें पी.एच.डी. की उपाधि भी मिल चुकी थी। समारोह के दिन उनके जीवन की उपलब्धियों को लेकर एक संक्षिप्त विवरणिका भी वितरित की गयी थी, जिसमें उनके जीवन की समस्त सफलताओं का उल्लेख है। वह छोटी पुस्तक स्वयं में सम्पूर्ण है। 


मेरी मान्यता के अनुसार लाल साहब एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। वे अपने जमाने के प्रसिद्ध फुटबाल तथा टेनिस, व्हालीबाल के खिलाड़ी थे। इसीलिए अच्छे खिलाड़ियों से मिलकर वे बहुत प्रसन्न रहते थे। अक्सर ग्रीष्मकालीन अवकाश में जब हम सब सायंकाल खेल के मैदान में मिलते थे तो वे कहा करते थे कि मदनलाल न केवल प्रथम श्रेणी के विद्यार्थी है परन्तु अच्छे खिलाड़ी भी है, जो प्रायः नही होता। उनकी गुणग्राह्यता के कई उदाहरण है - सन् 1936 में मेरे अग्रज स्व. प्रोफेसर गोरेलाल शुक्ल ने मैट्रिक में पूरे प्रांत भर में हिन्दी विषय में विशिष्ट योग्यता प्राप्त थी। तत्कालीन कामता प्रसाद गुरु व्याकरणाचार्य ने गोरेलाल को पत्र लिखकर उन्हें शुभकामनाएं दी थी। लाल साहब को जब हमारे पिता जी ने यह पत्र दिखाया वे प्रसन्न हो गये और कहा कि गोरेलाल जी का भविष्य उज्जवल है। 1941 में गोरेलाल जी नागपुर विश्वविद्यालय के बी.ए. आनर्स अंग्रेजी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। एक वर्ष के अंदर प्रोफेसर आफ अंग्रेजी नियुक्त हुये। इस समाचार को सुनते ही लाल साहब हमारे घर पधारे तथा हमारे पिता जी से कहा कि गोरेलाल जी ने पूरे गांव को गौरवान्वित किया है। लाल साहब ने हम सबों को भोज भी दिया। लाल साहब जितने वैभवशाली थे उतने ही सहृदय तथा संवेदनशील भी थे। वे करुणा व दया के कायल थे। लाल साहब हमारे पिता जी पंडित रामभरोसे शुक्ल से भी प्रभावित थे। उनका हरिकीर्तन सुनने वे प्रायः पहुँच जाते थे। कहा करते थे कि शुक्ल जी का परिवार अनुकरणीय है। बड़ा लड़का प्रोफेसर है तथा दूसरा शीघ्र डॉ. होने वाला है। हम सब लोगों के लिये दुःख का विषय यह रहा कि मात्र 46 वर्ष की उम्र में सन् 51 में उनका निधन हुआ। वे एक व्यक्ति नही थे वरन स्वयं में संस्था स्वरुप थे। उनके द्वारा संचालित कई जनकल्याण के कार्य अभी भी उस इलाके में चल रहे है। बड़ी श्रद्धा से उन्हें याद किया जाता है। 

लाल साहब शिकार के बहुत शौकीन थे। बड़े शिकार करने में उन्हें बहुत आनंद मिलता था। उनकी बैठक कमरा शेर, चीता, हिरण के खाल तथा सींग से सुसज्जित है। 

पर्यटन प्रेमी इतने थे कि पूरे देश एवं विदेश का भ्रमण उन्होंने कर लिया था। एक बार शिमला में ग्रीष्म ऋतु व्यतीत करने के बाद जब वे आये तो उनने वहां के फूलों के बगीचे की तारीफ की। तत्कालीन वायसराय ने अपने भवन के सामने वह अद्भुत बगीचा बनवाया था देश विदेश के सभी प्रकार के फूलों के पौधे वहां अभी भी देखे जा सकते है। वहीं से लौटने के बाद उनके अपने गांव ‘कटघरी‘ में फलों का बगीचा लगाया जिसमें सब तरह के आम, केला, संतरा पाइनेपल तथा बीज रहित खरवानी के पपीते के वृक्ष भी लगे थे। उनके यहां जो भी अतिथि आते थे- उन्हें वे फलों का बगीचा दिखाने जरुर ले जाया करते थे। वह एक बहुत ही आकर्षक ‘पिकनिक स्पॉट‘ था। 

उनकी दिनचर्या में प्रमुख हिस्सा था शाम को डॉ. ज्वाला प्रसाद मिश्रा के यहां बैठक जिसमें पं. रामभरोसे शुक्ल, श्री गजानंद प्रसाद गौरहा, मेऊ वाले तथा श्री कौशल प्रसाद तिवारी, शिवरीनारायण वाले रहते थे। उस बैठक में कभी कभी श्री पं. राधेश्याम वकील, लिमहा वाले भी आया करते थे। श्री राधेश्याम जी, विशेषर सिंह जी आदि कभी कभी संगीत की गोष्ठी किया करते थे। 

कहा जाता है कि जिसे तलवार नही जीत सकती उसे मधुर वाणी जीत लेती है। लाल साहब इस कथन की पुष्टि के प्रतीक थे। मीठी बोली, सरल, शालीन स्वभाव तथा विनम्रता उनके व्यक्तित्व के विशेष आकर्षण थे। 

ब्राम्हणों के प्रति श्रद्धा, धर्म में आस्था और निष्ठा के प्रेमी लाल साहब सदैव सबके हृदय में विराजित रहेंगे। विशेषकर अपने वृहद परिवार के सदस्यों के बीच। उनके इलाके में जितने भी किसान थे वे सदैव उनका गुणगान करते थे। उनकी निष्पक्षता, निर्भयता तथा न्यायप्रियता के सभी कायल थे। 

ईश्वर से प्रार्थना है कि उनके कनिष्ठ पुत्र धीरेन्द्र कुमार भी अपने पूज्य पिताजी के पद चिन्ह पर चलते हुए अपने पूज्य पिताजी का पितृ ऋण चुकाते रहेंगे। 

डॉ. मदन लाल शुक्ल, 
एम.बी.बी.एस., एम.एस. 
सेवा निवृत्त सिविल सर्जन 
क्रांतिनगर, बिलासपुर