रहस्य को भेदने का अपना आकर्षण होता है और रोमांच भी, इसलिए खतरों, चुनौतियों, आशंकाओं के बावजूद व्यक्ति अनदेखे, अनजाने, अंधेरे, उबड़-खाबड़ रास्तों को चुन लेता है, कुछ नया, अलग, खास, ‘बस अपना’ पा लेने के लिए, भले यह सफर 'तीर्थ नहीं है केवल यात्रा' साबित हो।
इतिहास में कालक्रम और वंशानुक्रम की सीढ़ी पर घटित जय-पराजय, निर्माण-विनाश और मलिन-उज्ज्वल कहानियों को महसूस कर सकें तो यही अनगढ़ कविता भी है। यह कविता पढ़ लिये जाने पर काल और पात्र के भेद को मिटाती, इतिहास का शुष्क विवरण न रह कर मानव-मन का दस्तावेज बन जाती है। प्राचीन इतिहास की टोही सुस्मिता, शोध-अध्येता के रूप में काल की परतों में दबे इतिहास में झांकते हुए भूत के अंधे-गहरे कुएं में थाह लगाने के पहले से उतरने को उद्यत रहती हैं और वह भी बिना कमंद के।
मानव-मन, जीवन-निर्वाह करते तर्क और खोया-पाया में ऐसा मशगूल होता है कि अपने अगल-बगल बहती जीवन धारा से किनाराकशी कर लेता है। इस धारा को स्पर्श करने या देखने का भी साहस वह नहीं जुटा पाता, इसमें उतर जाने की कौन कहे। ऐसा करना अनावश्यक, कभी बोझिल और कई बार खतरनाक जान पड़ता है, लेकिन व्यक्ति का कवि-मन बार-बार इस ओर आकृष्ट होता है। सुस्मिता की कविताएं, साहित्यिकता के दबाव से मुक्त, किसी कवि नहीं बल्कि एक ऐसे आम व्यक्ति की अन्तर्यात्रा और महसूसियत की लेखी है, जिसने इस धारा को भी समानान्तर अपना रखा है।
एक तरह का संकट यह भी है कि साहित्य की भाषा अधिक से अधिक टकसाली होने लगे और मनोभाव रेडीमेड-ब्रांडेड, जब कविताएं शब्दकोश और तुकांतकोश के घालमेल का परिणाम दिखें, ऐसे दौर में सुस्मिता की कविताओं का साहित्यिक मूल्यांकन सिद्धहस्त समीक्षक करेंगे, हो सकता है ये कविताएं 'अकवि की गैर-साहित्यिक सी रचनाएं' ठहराई जाएं लेकिन इसमें दो मत नहीं कि 'कविता में गढ़ने का उद्यम जितना कम हो और सृजन की सहज निःसृति जितनी स्वाभाविक, कविता उतनी ही ईमानदार होती है', जो इन कविताओं में है, इसलिए पाठक के लिए इनमें अपनेपन के साथ ताजगी तो है ही, गहरी उम्मीदें भी।
'एक टुकड़ा आसमां' शीर्षक कविता की कुछ पंक्तियां इस तरह हैं-
छत से सूखे हुए कपड़े उतार लाते हुए
एक टुकड़ा आसमां भी तोड़ लाये हम ... ... ...
सितारे थककर एक दिन
जुगनू बनकर उड़ गए
'जामदानी' शीषर्क कविता की कुछ पंक्तियां-
घरों में उनके रोटियों के लाले हैं
हाथों में उनके सिर्फ छाले हैं
पहनने वालों को कभी न समझ आएगा
इन फूल पत्तों में छिपे कितने निवाले हैं
आज बुन रहा है वो जामदानी
दो महीने बुनने पर होगी आमदनी... ... ...
आँखों की रौशनी से नींद में उसने
मांगा सिर्फ एक वादा है
और कुछ दिन रोक ले मोतियाबिंद को
बेटे ने अब शहर का रुख साधा है
और 'हिसाब के कच्चे हैं हम (२)' शीर्षक कविता की पंक्ति है-
चाँद जोड़ा आज हमने, सूरज घटाकर
तेरे इंतज़ार में
एक कविता है- 'मन बावरा', जो पढ़ने से अधिक सुनने की है, (नाम पर ऑडियो-विजुअल लिंक है.)
सुरुचिपूर्ण छपाई वाली पुस्तक "TRIANGULAM", ISBN 978-93-5098-112-2 सुस्मिता बसु मजुमदार, राजीव चक्रवर्ती और सुष्मिता गुप्ता की क्रमशः हिन्दी, बांग्ला और अंगरेजी कविताओं का संग्रह है, उक्त टिप्पणी हिन्दी कविताओं के लिए है। इस पुस्तक में मेरे नाम का भी आभार-उल्लेेख है।