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Saturday, March 22, 2025

कोचिंग

1996-97। संयोगवश प्रतियोगी परीक्षा और कोचिंग से जुड़़ गया। हुआ यूं कि पता चला मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा के बाद साक्षात्कार की तैयारियां हो रही हैं। वह दौर ऐसा भी आया था कि दो-तीन सत्रों की मुख्य परीक्षा के परिणाम आ गए थे और कुछ समय के अंतर से साक्षात्कार होने थे। मैंने जानने की कोशिश की, किस तरह तैयारी कराई जाती है। जानकर अजीब लगा कि साक्षात्कार के लिए पिछले वर्षों में पूछे गए सवालों की सूची इंदौर से आ जाती है, फिर उसके प्रश्नों के जवाब लिखवाए जाते हैं और अधिकतर प्रतियोगी नोट्स ले कर, प्री और मेन्स की तैयारी की तरह इन जवाबों को रट लेते हैं। मुझे लगा कि यह अजीब है, साक्षात्कार की तारीख आने में थोड़ा वक्त था, इसलिए मैंने अपनी निशुल्क सेवा देने का प्रस्ताव रखा। धीरे-धीरे माहौल बदला। प्रतियोगी किसी कोचिंग के हों, मुझसे आ कर मिलने लगे, कई घर पर भी आने लगे। 

इस दौरान की ढेरो यादें हैं, जिन कुछ समझाइशों के लिए जोर होता था, यहां उनमें से कुछ-

# हां-नहीं, सही-गलत के बजाय सहमत -असहमत, उचित-अनुचित, उपयुक्त-अनुपयुक्त, जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें, जजमेंटल हो, विश्लेषण करें। 
# उत्तर देते हुए भावुक नहीं संवेदनशील हों, विषयगत नहीं वस्तुगत तथ्यात्मक रहें। जब तक आवश्यक न हो माता-पिता, भाई-बहन के बजाय परिवार-अभिभावक, रिश्तेदार-परिचित जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें। अखबार, पत्रकारिता की भाषा चिन्ताजनक, दुर्भाग्यपूर्ण, कलंक जैसे शब्दों और अपावश्यक विशेषण के इस्तेमाल से बचें।
# अपनी प्रामाणिकता और असलियत (आथेन्टिक और जेनुइन होने) का भरोसा रखें। अपने विचारों को स्पष्ट तार्किकता के साथ प्रस्तुत करें, न कि भावनात्मक प्रतिबद्धता से। प्रश्नों के जवाब में जानकारी, दृष्टिकोण को प्रस्तुति-कौशल होना चाहिए, शोध की गहराई या विशेषज्ञ की तरह के बजाय सामानज्ञ की सहजता और सतर्क जागरूकता अधिक जरूरी है। 
# एक सवाल अधिकतर होता कि क्या शासन/तंत्र की किसी नीति के विरुद्ध बोल सकते हैं/ सरकारी योजना की आलोचना कर सकते हैं? तंत्र के हिस्से के रूप में शासन की आलोचना या कमी का जिक्र सुधार-पूर्ति के सुझाव सहित किया जा सकता है। जैसे आधा गिलास पानी में आधा भरा होना आशावाद और आधा खाली होना निराशावाद है तो आधा खाली को कैसे भरा जा सकता है की दृष्टि से देखना तथ्यगत सकारात्मक है, जिसे साक्षात्कारवाद कह सकते हैं। 

सिलसिला बना रहा। बैंक, डिफेंस, एसएससी, पुलिस आदि के साक्षात्कार की तैयार वालों से संपर्क होता गया, मानता हूं कि अलग-अलग पृष्ठभूमि के युवाओं से लगातार मिलते रहने से अधिक साफ सोच पाने और बेहतरी में सहायक हुई होगी। 2012-13 में छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग का पैटर्न बदला, इस दौरान कई भूमिकाओं में आयोग से जुड़ गया, इसलिए अपनी मर्यादा तय कर ली। इस भूमिका के साथ खास तौर पर कहना है कि परीक्षा परिणाम के बाद चयनितों की दुनिया बदल जाती है, उनसे संपर्क न रहे, मेरा यथासंभव प्रयास होता, मगर जिनका चयन नहीं हो पाया, उनमें से कई ऐसे हैं, जो चयनितों से बेहतर स्थिति में हैं। 

1998.99 में पुलिस सब-इंस्पेक्टर की लिखित परीक्षा के बाद, उनके फिजिकल और साक्षात्कार के लिए बिलासपुर में मेरा नियमित जुड़ाव रहा। रेलवे ग्राउंड में फिजिकल का अभ्यास होता था। इस परीक्षा में चयन न हो पाने वाले एक प्रतियोगी को पत्र लिखा था, वह यहां है- 
प्रिय ..., 
शुभकामनाए 

कल शाम लगभग सभी लोग इकट्ठे हुए, श्री पी. जी. कृष्णन भी लगभग डेढ़-दो घन्टे रुके, पंकज अवस्थी भी आया था, मुझसे अलग से चर्चा हुई, वह अपना परिचय बताया और एकदम घरू बालक निकला. 

लगभग पूरे समय सब लोग (मेरे आलावा) तुम्हारी चर्चा करते रहे, और तुम्हारे सलेक्ट न होने पर आश्चर्य तो शायद किसी को नहीं था, अफसोस जरूर सबको था, पी. जी. का कहना था कि उनके लाड़ ने तुम्हारा नुकसान किया, वरना तुम्हें फिजिकल में 70 तक नन्बर मिलना था, लेकिन देर से आना, उनकी सहानु‌भूति और स्नेह के इच्छुक रहना, इस दिशा में तुम अधिक प्रयासरत रहे। 

तुम्हारे सभी मित्रों का यह मानना था कि जहाँ भी उन्हें किसी जानकारी के लिए मुश्किल होती थी, किसी किताब के बजाय तुम्हारी जानकारी पर अधिक भरोसा होता था, लेकिन तुम्हारे चयन की संभाव‌ना को लेकर कहीं-न-कहीं शंकित सभी थे, ऐसा क्यों हुआ तुम अधिक अच्छा विश्लेषण कर सकते हैं। 

इन्टरव्यूज (मॉक) के दौरान के लिए मैं तुमसे बार-बार जो कहता रहा, वह यहाँ दुहराने की जरूरत नहीं समझता. 

अब यह विश्लेषण करो कि तुम्हारी योग्यता (जो सचमुच तुममें है) का विश्‌वास तुम उन सभी लोगों को दिलाने में सफल रहे हो, जो तुम्हारा चयन करने वाले नहीं है, और चयन करने वालों के लिए अपनी उर्जा और क्षमता बचाकर नहीं रख पाये, तुम्हारे इस प्रयास ने तुम्हें सबकी सहानुभूति का पात्र बनाया, यदि तुम्हें इससे तसल्ली मिल रही हो, तो कम से कम मेरा ऐसा उद्देश्य नहीं है, क्योंकि बधाई का पात्र, सहानुभूति का पात्र बन जाये तो इस पर गुस्सा ही आ सकता है, मैं अपने लिए यह जरूर दुहराना चाहूँगा कि मेरे प्रति किसी का सहानुभूति दिखाना मुझे सबसे घृणास्पद लगता है और इसीलिए किसी अन्य के प्रति भी कुशलता (या चतुराईपूर्वक) सम्वेद‌ना प्रकट नहीं कर पाता, मुझे ऐसा लगता है कि किसी को या किसी की सहानुभूति, सच्ची वही होती है जो सहयोग के रूप में सामने आए. 

खैर पुनः दुहराता हूँ अपना विश्लेषण तुम करो, तुम्हारा मूल्यांकन न सिर्फ मैंने बल्कि उपरोक्त उल्लेख के अनुसार सभी ने किया है, और अपनी क्षमता और योग्यता सिर्फ वहाँ साबित करना सीखो, जहां वह आवश्यक है, हर सडक चलते बेकार के आदमी या चाय-पान ठेले पर अपने बुद्धि कौशल का प्रकाश फैलाना सार्थक नहीं होता है लेकिन यदि यह अभ्यास मानकर किया जाय तो इसे भी उपयोगी बनाया जा सकता है, अपनी योग्यता और अपनी सफलता के बीच सीधा और हक का रिश्ता कायम करने का प्रयास करो न कि अवैध संबंध स्थापित करने का, बीच के लोग सहयोगी हो सकते हैं निर्णायक नहीं, निर्णायिक सिर्फ तुम हो सकते हो और दूसरे लोग, अधिकृत लोग, उसे अटेस्ट कर सकते हैं, उन्हें उनके द्वारा तुम्हें सत्यापित किया जाय, इसके लिए मजबूर किया जा सकता है, यानि अगर परीक्षा केन्द्र उल्टा-पुल्टा हो तो ज्यादा जिद के साथ अपने लक्ष्य के लिए प्रयास करना, अपने को झोंककर अपनी सफलता खुद तय करना, पुनः शुभकामनाएं. 

राहुल 15-4-2000 

प्रतियोगी परीक्षा के दौर के बाद तब संपर्क में आए युवा अब भी यदा-कदा संपर्क करते हैं, तब की कोई बात याद दिलाते हैं, जिनमें से एक ऊपर वाला पत्र है, इसी तरह एक चयनित ने याद दिलाया था, वह यह है- 

प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के बाद मिलने आने वालों से मैं कहा करता- Be an average officer, who is constantly trying to improve his average ... ’

तुम एक ऐसे औसत अधिकारी बनो जो सदैव अपने औसत को बेहतर करने की कोशिश कर रहा हो।’ न कि Excellent या Best बनो। बस अपने औसत को लगातार सुधारते चलो। 

मेरी इस बात की याद दिलाते हुए एक चयनित, अब वरिष्ठ अधिकारी ने टिप्पणी की- बच्चे बुजुर्गों की बात सुनते ही कहां हैं... मैं भी अपनी मस्ती में रहता था। कभी उनका कहना मानता नहीं था, पर आज उनकी कही बात याद आती है बहुत और मानने की कोशिश भी होती है। 

वो कहते थे कि औसत होने का अभिमान नहीं पकड़ता। बेहतरीन होने का अभिमान पकड़ सकता है। औसत के आगे बेहतर दिशा में भी बहुत कुछ है, पीछे भी बहुत कुछ ... स्कोप बहुत है औसत इंसान के पास बेहतर होने का...

औसत व्यक्ति विनम्र होता है, क्योंकि वो औसत है, वो बहुत कुछ नहीं जानता। ’मेरी ही बात सही है, ऐसा उसका आग्रह नही होता। आपकी भी बात आपके Point of View (दृष्टिकोण) से सही है, ऐसा मानने में उसे कोई दिक्कत नहीं। सबकी दृष्टि का कोण एक हो, ऐसा संभव भी नहीं।’ 

औसत का नियम यह भी बताता है कि सिर्फ एक इंसान के साथ भी बेहतर या खराब संबंध आपके संपूर्ण औसत को बहुत बेहतर या बहुत खराब तरीके से प्रभावित कर सकता है, यदि वो इंसान बेहद प्रभावशाली हो। So, 

 Always pick your battles carefully...Avoid unnecessary battles ... लड़ो तभी जब उससे आपके औसत के बेहतर होने की संभावना हो...’ अब समझ पा रहा हूं कि मेरा प्रयास होता था, साक्षात्कार को एक पड़ाव माना जाए, प्रतियोगी युवा इसे अंतिम लक्ष्य की तरह न देखें और साक्षात्कार में कामयाबी के गुर, सुखी और सफल जीवन के लिए भी लगभग उतने ही अनुकूल और आवश्यक होते हैं।

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Monday, February 26, 2024

पीएससी - दावे, आपत्तियां और निराकरण

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा वर्ष 2023, पिछले 11 फरवरी को आयोजित हुई थी, 16 फरवरी को मॉडल आंसर जारी हुए और 27 फरवरी तक दावा-आपत्तियां मंगाई गई हैं। और अब खबर आई है कि आयोग मार्च के प्रथम सप्ताह में संशोधित मॉडल आंसर जारी करेगा, जिसके आधार पर परिणाम घोषित किए जाएंगे।

भ्रष्टाचार के आरोपों और जांच से जूझ रहे छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की इस परीक्षा पर खबरें आईं, उनमें उल्लेखनीय कि ‘पहली आपत्ति (सत्तारूढ़) भाजपा नेताओं की तरफ से आई और खबरों के अनुसार इसके बाद मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी मुखर हो गई है। अभ्यर्थी और कोचिंग संस्थान, जो सीधे प्रभावित होने वाले पक्ष हैं, भी खोज-बीन में जुटे होंगे। लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में अनियमितता, पक्षपात, भूल-गलती, विलंब, अदालती और जांच की कार्यवाही जैसी की खबरें लगातार आती रहती हैं। छत्तीसगढ़ के साथ अन्य राज्यों की स्थिति भी कमोबेश एक जैसी है। 

फिलहाल जांच वाले विषय को छोड़ कर परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों, मॉडल आंसर और उन पर दावा-आपत्ति की समस्या को समझने का प्रयास करें। यह स्थिति अधिकतर प्रारंभिक परीक्षा, जिसमें बहुविकल्पीय वस्तुनिष्ठ प्रश्न होते हैं, के साथ होती है। इसमें मानवीय कारकों के चलते होने वाली त्रुटि दूर करने के लिए उत्तर पुस्तिकाएं ओएमआर शीट के रूप कर दी गईं। एक समस्या ऐच्छिक विषय और स्केलिंग को ले कर भी होती थी, जिसके कारण अब ऐच्छिक के बजाय, सभी अभ्यर्थियों के लिए एक जैसा प्रश्नपत्र होने लगा है। यह माना जा रहा है कि इससे विज्ञान, अभियांत्रिकी और तकनीकी विषय के अभ्यर्थियों को लाभ मिलता है, कला-मानविकी के अभ्यर्थी पिछड़ जाते हैं। अंतिम चयन के आंकड़े देखने पर स्थिति कुछ ऐसी ही दिखाई पड़ती है। 

इस परीक्षा के कुछ सवाल, जिन पर आपत्तियों की चर्चा है, क्षेत्रफल की दृष्टि से छोटा जिला, जिले में लिंगानुपात, बस्तर की लोक संस्कृति में विवाह मंडप में प्रयुक्त होने वाली लकड़ी, छत्तीसगढ़ राज्य कितने राज्यों की सीमा को छूता है? इन प्रश्नों पर ध्यान दें तो स्पष्ट होता है कि आपत्तियों का मुख्य कारण काल-सन का उल्लेख न होना है, अर्थात छत्तीसगढ़ में पिछले वर्षों में नये जिले बने हैं, इसके बाद आंकड़ों का बदल जाना स्वाभाविक है, इसी तरह राज्यों की सीमा में बिहार-झारखंड या आंध्र से तेलंगाना भाग का राज्य बनना, उत्तर में मतभेद का कारण बनेगा। बस्तर के प्रश्न में लोक-संस्कृति बनाम जनजातीय संस्कृति के अलावा, विभिन्न जनजातियों की भिन्न परंपराएं, भौगोलिक क्षेत्र (बस्तर का विस्तृत क्षेत्र, जो अब सात जिलों में से एक है।) उत्तर में मतभेद की स्थिति का कारण बनता है। हिंदी और अंग्रेजी के प्रश्नों में अंतर, भाषाई भूल के अलावा प्रकाशित, सार्वजनिक उपलब्ध स्रोत अथवा प्रश्नपत्र में छपाई की भूल, प्रूफ केी गलतियां भी समस्या का कारण बनती है। 

ऐसे प्रश्न, जिनके मॉडल आंसर पर आपत्तियां होती हैं, सामान्यतः सामाजिक विज्ञान-मानविकी के होते हैं, परंपरा-मान्यता से संबंधित होते हैं। ऐसा इसलिए कि प्राकृतिक विज्ञान के प्रश्नों जैसी वस्तुनिष्ठता सामाजिक विज्ञान के प्रश्नों में संभव नहीं होती। विज्ञान में कारण होते हैं तो कला में कारक। और विज्ञान में भी आवश्यक होने पर नियत मान के साथ एनटीपी जोड़ा जाता है, यानि वह मान सामान्य ताप-दाब पर होगा, अन्यथा बदल जाएगा। कालगत आंकड़ों में जनगणना दशक, योजनाएं पंचवर्षीय और अनेक सर्वेक्षण-प्रतिवेदन वार्षिक होते हैं। इस मसले के कुछ अन्य पक्षों को सीधे उदाहरणों में देख कर समझने का प्रयास करें। छत्तीसगढ़ की काशी, कई स्थानों को कहा जाता है। मूरतध्वज की नगरी आरंग भी है, खरौद भी। खरौद, खरदूषण की नगरी है तो बड़े डोंगर में भी खरदूषण की जनश्रुति है। सोरर की बहादुर कलारिन, लोक विश्वास में बड़े डोंगर में भी है। ऐसी स्थिति में ‘कहा जाता है, माना जाता है ...‘ वाले प्रश्न वस्तुनिष्ठ कैसे होंगे! 

प्रश्नपत्र तैयार करने वालों, माडरेटर्स और अभ्यर्थी, इन सभी की समस्या जो अंततः आयोग की समस्या बन जाती है, यह कि किन स्रोतों को प्रामाणिक आधार माना जाए। शासन की वेबसाइट अपडेट नहीं होती, दो शासन की ही दो भिन्न साइट पर तथ्य और आंकड़े भिन्न होते हैं (पूर्व में वन विभाग से संबंधित एक प्रश्न में ऐसी स्थिति बनी थी।) इसके साथ पुनः उदाहरणों सहित बात करें तो 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रवास का उल्लेख विभिन्न स्थानों पर है, मगर तिथियां अलग-अलग मिलती हैं, और खास बात यह कि किसी प्राथमिक-प्रामाणिक स्रोत से पुष्टि नहीं हो पाती कि गांधी 1920 में छत्तीसगढ़ आए थे। इसी तरह वीर नारायण सिंह की फांसी के स्थान में मतभेद है और डाक तार विभाग द्वारा जारी डाक टिकट में उन्हें तोप के सामने बांधा दिखाया गया है साथ ही उनके एक वंशज ने कुछ और ही कहानी दर्ज कराई है। पहली छत्तीसगढ़ी प्रकाशित रचना ‘छत्तीसगढ़ी दानलीला‘ के प्रकाशन की तिथि विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्य-इतिहासकारों ने अलग-अलग बताई है। ऐसे ढेरों उदाहरण और भी हैं। 

सामान्य अध्ययन और सामान्य ज्ञान के फर्क का ध्यान भी आवश्यक होता है। सामान्य अध्ययन, ऐसी आधारभूत जानकारियां हैं, जो सामान्यतः अध्ययन से, पुस्तक आदि माध्यम से पढ़ाई प्राप्त होती हैं और जिन जानकारियों की अपेक्षा किसी सामान्य जागरूक नागरिक से की जाती है, जबकि सामान्य ज्ञान आवश्यक नहीं कि पुस्तकों में आया हो, जहां समझ-बूझ की अपेक्षा होती है, और यह संस्कृति-परंपरा की दृष्टि से कई बार वैविध्यपूर्ण छत्तीसगढ़ में मतभेद का कारण बनती है, एक उदाहरण हरियाली अमावस्या का है, जो मैदानी छत्तीसगढ़ में हरेली, सरगुजा में हरियरी और बस्तर में अमुस तिहार नाम से प्रचलित है। कुरुद- धमतरी क्षेत्र के पंडकी नृत्य से अन्य छत्तीसगढ़ लगभग अनजान है, वह सुआ नृत्य-गीत को जरूर जानता है। बस्तर का दशहरा, दंतेश्वरी देवी का पर्व है, रायपुर के आसपास रावण की विशाल स्थायी मूर्तियां हैं, जिनकी पूजा भी होती है, सरगुजा में गंगा दशहरा का प्रचलन है तो सारंगढ़ के आसपास दशहरा के आयोजन का प्रमुख हिस्सा मिट्टी की मीनारनुमा स्तंभ पर चढ़कर गढ़ जीतना होता है। राम-रावण और रावण-वध वाला दशहरा तो है ही। इसी तरह भाषाई फर्क में शिवनाथ के उत्तर और दक्षिण यानि मोटे तौर पर बिलासपुर और रायपुर, दोनों की छत्तीसगढ़ी का फर्क क्रमशः- अमरूद जाम-बिही है, मेढ़क बेंगचा-मेचका है, तालाब तलाव-तरिया है और कुछु काहीं हो जाता है।

इस समस्या का सीधा और आसान हल दिखाई नहीं देता, मगर कुछ हद तक इसे कम किया जा सकता है, जैसे- मानविकी के प्रश्नों में एकमात्र सही विकल्प के बजाय निकटतम विकल्प को सही माना जाए। मान्यता है, कहा जाता है आदि जैसे प्रश्न न पूछे जाएं। आंकड़ों वाले प्रश्नों के कारण यह स्पष्ट हो कि सही उत्तरों के लिए निर्धारित तिथि क्या होगी। दावा-आपत्ति में गाइड बुक की जानकारियों के बजाय पाठ्य-पुस्तकों और अधिक प्रामाणिक ग्रंथों में आई जानकारी को सही माना जाए, मगर प्रश्न अनावश्यक चुनौतीपूर्ण न हों, क्योंकि अभ्यर्थी, विद्यार्थी होता है, शोधार्थी नहीं, और परीक्षा सामान्य ज्ञान की ली जानी है। एक ही प्रामाणिकता के दो स्रोतों में जानकारी में अंतर हो तो, परीक्षा के लिए निर्धारित माह-वर्ष के ठीक पहले अर्थात अंत में आई, अद्यतन जानकारी को प्रामाणिक माना जाए। यानि ऐसे आंकड़े या जानकारियां, जब तक विशिष्ट महत्व के न हों, करेंट अफेयर की तरह, अद्यतन स्थिति के ही प्रश्न होने चाहिए। इस तरह अन्य बिंदु निर्धारित कर वह परीक्षा की अधिसूचना के साथ प्रश्न-पत्र पर भी स्पष्ट अंकित हो।


Monday, August 30, 2021

पीएससी परीक्षा

नये स्वरूप के साथ स्वागतेय पीएससी परीक्षा

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की राज्य सेवा संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा के नये स्वरूप की चर्चा और अनुमानों पर विराम लग गया है। पीएससी के नये पैटर्न के प्रस्ताव पर सरकारी मुहर लग गई है। साथ ही कैरियर के लिए शासकीय सेवा के इच्छुक युवाओं और उनके अभिभावकों के लिए यह राहत देने वाली उत्साहजनक बात है कि राज्य में शासकीय सेवा के 210 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञप्ति जारी हो गई है। यह भी स्पष्ट हो गया है कि परीक्षाओं की विज्ञप्ति, परीक्षा प्रणाली में आवश्यक संशोधन सहित उसे दुरुस्त करते हुए पूरी तैयारी के साथ की गई है। 2011 के निरंतर अगले इस कैलेंडर वर्ष 2012 में आई विज्ञप्ति के साथ अब परीक्षाएं लगातार प्रत्येक वर्ष होने की संभावना बनी है।

हमारे संविधान के भाग 14, अध्याय 2, 315 के अंतर्गत संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग का प्रावधान है। रोजगार के लिए शासकीय सेवा को लक्ष्य बनाने वाले युवाओं की आशा का केन्द्र संघ और राज्य के लोक सेवा आयोग ही होते हैं। बदलते परिवेश में उच्च तकनीकी शिक्षा, विदेश में रोजगार के अवसर और उच्चस्तरीय जीवन शैली की महत्वाकांक्षा के कारण, विशेषकर महानगरीय युवाओं में लोक सेवा का आकर्षण घट गया है। राज्य लोक सेवाओं में विगत वर्षों में पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में चयन और पदांकन में अड़चनें आती रही हैं, छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं है। इन तमाम परिस्थितियों के बावजूद नगरीय और कस्बाई युवाओं में शासकीय सेवा का आकर्षण आज भी बना हुआ है।

एक नजर डालते चलें, छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद 2003, 2005, 2008 और 2011 में परीक्षाएं हुई हैं। इनमें से 2003 के परिणामों से चयनित प्रत्याशी शासकीय सेवा में हैं, लेकिन इनका चयन कानूनी अड़चनों के साये से अभी भी पूरी तरह मुक्त नहीं है। 2005 परीक्षा के परिणामों को ले कर भी कुछ निजी याचिकाएं न्यायालय में हैं। 2008 की परीक्षा प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, परिणाम भी तैयार बताए जाते हैं लेकिन न्यायालयीन रोक के कारण परिणाम अब तक घोषित नहीं हुए हैं वहीं 2011 परीक्षा के प्रारंभिक का परिणाम पिछले दिनों आया है और शेष चरण प्रक्रियाधीन है, इसकी मुख्य परीक्षा के लिए भी बहुविकल्पीय वस्तुनिष्ठ प्रश्न पैटर्न तय किया गया है।

तेजी से बदलते दौर में लोक प्रशासन के लिए लोक सेवकों के चयन की प्रक्रिया और तौर-तरीकों में बदलाव जरूरी है। अब लोक सेवक के चयन में उसकी सामान्यज्ञता, तर्कशक्ति, अभिवृत्ति को परखने पर अधिक जोर दिया जा रहा है, जो अधिक उपयुक्त है। यों भी प्रतियोगी परीक्षाएं ज्ञान की नहीं, क्षमताओं की परीक्षा है। इसीलिए प्रतियोगी परीक्षाओ में उपाधि परीक्षाओं की तरह परिचयात्मक और विवरणात्मक मात्र नहीं बल्कि विवेचनात्मक, विश्लेषणात्मक प्रश्न पूछे जाते हैं और उसी के अनुसार उत्तर अपेक्षित होते हैं।

प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए न सिर्फ छत्तीसगढ़, बल्कि प्रत्येक राज्य के लिए मुख्यतः यूपीएससी मॉडल को अपनाया जाना उपयुक्त है, क्योंकि लोक सेवकों के चयन में राज्यों के साथ ऐसी कोई विशिष्ट स्थिति नहीं होती कि उन्हें पृथक चयन प्रक्रिया अपनानी पड़े, अलावे इसके कि राज्य लोक सेवा आयोग के लिए उस प्रदेश से संबंधित जानकारी, भाषा आदि को महत्व दिया जाता है, जो स्वाभाविक है। ध्यान देने वाली बात है कि यूपीएससी मुख्य परीक्षा में भाषा के प्रश्नपत्र क्वालिफाइंग मात्र होते हैं लेकिन एक महत्वपूर्ण परचा निबंध का होता है, जिससे अभ्यर्थी के अध्ययन, समझ, विश्लेषण क्षमता, अभिव्यक्ति और प्रस्तुति का आकलन होता है।

प्रारंभिक प्राक्चयन परीक्षा में मुख्य परीक्षा के लिए स्क्रीनिंग की जाती है, इसलिए इसके अंकों की महत्व अंतिम परिणाम को प्रभावित नहीं करता तथा इसमें सब के लिए समान, बहुविकल्प वाले वस्तुनिष्ठ प्रश्नपत्र, जिसमें ऋणात्मक मूल्यांकन भी हो, उपयुक्त है। इस परीक्षा के उत्तर-पुस्तिका, ओएमआर अर्थात ऑप्टिकल मार्क रीडर शीट की जांच कम्प्यूटर द्वारा कर ली जाती है। इसमें परिणाम कम समय में तैयार हो जाता है, मूल्यांकन में मानवीय कारक का प्रभाव नहीं होता और सबसे महत्वपूर्ण कि सभी अभ्यर्थियों के लिए समान प्रश्नपत्र होने के कारण स्केलिंग की स्थिति नहीं रह जाती।

मुख्य परीक्षा की योजना में अब तक विभिन्न ऐच्छिक विषयों में सामंजस्य के लिए अपनाई जाने वाली सांख्यिकीय स्केलिंग की विसंगति और उससे उपजा असंतोष न्यायालयीन प्रकरणों तक का कारण बनता रहा है। मुख्य परीक्षा के लिए विषयों की बहुलता और ऐच्छिक प्रश्नपत्रों की दृष्टि से यह तथ्य भी ध्यान देने योग्य है कि बड़ी संख्या में ऐसे प्रत्याशियों का चयन होता रहा है, जो अपनी उपाधि परीक्षा के विषयों के बजाय ऐसे विषय का चयन करते हैं, जिनसे उनका नाता मात्र प्रतियोगी परीक्षा तक ही होता है।

निबंधात्मक शैली की मुख्य परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के विवेचनात्मक, विश्लेषणात्मक उत्तर के साथ, प्रस्तुति में भाषा-अभिव्यक्ति का परीक्षण होगा, किसी लोक-प्रशासक के लिए इस क्षमता का मूल्यांकन आवश्यक होता है। परीक्षा में छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी का समावेश और अनिवार्यता भी उल्लेखनीय है, लेकिन अक्सर यह देखा गया है कि परीक्षा में पूछे जाने वाले छत्तीसगढ़ की जानकारी वाले प्रश्न, अधिकतर प्रतियोगी परीक्षा के लिए तैयार किए गए प्रकाशनों पर ही आधारित होते हैं, इस दृष्टि से यह आवश्यक नहीं रह जाता कि छत्तीसगढ़ से संबंधित प्रश्नों का जवाब छत्तीसगढ़ से जुड़ा परीक्षार्थी ही दे सके, बल्कि यह पाठ्य सामग्री, उसकी उपलब्धता और तैयारी के अनुरूप बेहतर ढंग से दिया जा सकता है।

वैसे तो न्यायालय में विचाराधीन प्रकरणों के कारण अभ्यर्थियों का असमंजस अब भी बरकरार है। आनलाइन आवेदन की व्यवस्था और बदली हुई परीक्षा प्रणाली को ले कर संभावना तो है कि अभ्यर्थियों का कोई वर्ग इसमें नुक्स निकाले, किन्तु समय की जरूरत के अनुरूप विवेकपूर्ण युक्तियुक्तकरण से संदेह के बादल छंट जाने की अधिक उम्मीद है। पीएससी की चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वसनीयता और प्रतिवर्ष की नियमितता की सर्वाधिक जरूरत इस समय है, परीक्षा पद्धति के ताजे निर्णय के साथ 210 पद रिक्तियों के लिए विज्ञप्ति जारी हो जाने से सकारात्मक वातावरण बनता दिखता है, जो प्रत्येक स्तर पर स्वागत योग्य है। 
(लेखक वरिष्ठ अधिकारी और कैरियर सलाहकार हैं।)


मेरा यह लेख नवभारत, रायपुर में 25 दिसंबर 2012 को प्रकाशित हुआ था। समाचार पत्र में निर्धारित स्थान की सीमा के कारण लेख को संक्षिप्त करने के लिए कुछ अंश कम किया गया था, जो यहां तिरछे अक्षरों में है।