Monday, August 30, 2021

पीएससी परीक्षा

नये स्वरूप के साथ स्वागतेय पीएससी परीक्षा

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की राज्य सेवा संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा के नये स्वरूप की चर्चा और अनुमानों पर विराम लग गया है। पीएससी के नये पैटर्न के प्रस्ताव पर सरकारी मुहर लग गई है। साथ ही कैरियर के लिए शासकीय सेवा के इच्छुक युवाओं और उनके अभिभावकों के लिए यह राहत देने वाली उत्साहजनक बात है कि राज्य में शासकीय सेवा के 210 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञप्ति जारी हो गई है। यह भी स्पष्ट हो गया है कि परीक्षाओं की विज्ञप्ति, परीक्षा प्रणाली में आवश्यक संशोधन सहित उसे दुरुस्त करते हुए पूरी तैयारी के साथ की गई है। 2011 के निरंतर अगले इस कैलेंडर वर्ष 2012 में आई विज्ञप्ति के साथ अब परीक्षाएं लगातार प्रत्येक वर्ष होने की संभावना बनी है।

हमारे संविधान के भाग 14, अध्याय 2, 315 के अंतर्गत संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग का प्रावधान है। रोजगार के लिए शासकीय सेवा को लक्ष्य बनाने वाले युवाओं की आशा का केन्द्र संघ और राज्य के लोक सेवा आयोग ही होते हैं। बदलते परिवेश में उच्च तकनीकी शिक्षा, विदेश में रोजगार के अवसर और उच्चस्तरीय जीवन शैली की महत्वाकांक्षा के कारण, विशेषकर महानगरीय युवाओं में लोक सेवा का आकर्षण घट गया है। राज्य लोक सेवाओं में विगत वर्षों में पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में चयन और पदांकन में अड़चनें आती रही हैं, छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं है। इन तमाम परिस्थितियों के बावजूद नगरीय और कस्बाई युवाओं में शासकीय सेवा का आकर्षण आज भी बना हुआ है।

एक नजर डालते चलें, छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद 2003, 2005, 2008 और 2011 में परीक्षाएं हुई हैं। इनमें से 2003 के परिणामों से चयनित प्रत्याशी शासकीय सेवा में हैं, लेकिन इनका चयन कानूनी अड़चनों के साये से अभी भी पूरी तरह मुक्त नहीं है। 2005 परीक्षा के परिणामों को ले कर भी कुछ निजी याचिकाएं न्यायालय में हैं। 2008 की परीक्षा प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, परिणाम भी तैयार बताए जाते हैं लेकिन न्यायालयीन रोक के कारण परिणाम अब तक घोषित नहीं हुए हैं वहीं 2011 परीक्षा के प्रारंभिक का परिणाम पिछले दिनों आया है और शेष चरण प्रक्रियाधीन है, इसकी मुख्य परीक्षा के लिए भी बहुविकल्पीय वस्तुनिष्ठ प्रश्न पैटर्न तय किया गया है।

तेजी से बदलते दौर में लोक प्रशासन के लिए लोक सेवकों के चयन की प्रक्रिया और तौर-तरीकों में बदलाव जरूरी है। अब लोक सेवक के चयन में उसकी सामान्यज्ञता, तर्कशक्ति, अभिवृत्ति को परखने पर अधिक जोर दिया जा रहा है, जो अधिक उपयुक्त है। यों भी प्रतियोगी परीक्षाएं ज्ञान की नहीं, क्षमताओं की परीक्षा है। इसीलिए प्रतियोगी परीक्षाओ में उपाधि परीक्षाओं की तरह परिचयात्मक और विवरणात्मक मात्र नहीं बल्कि विवेचनात्मक, विश्लेषणात्मक प्रश्न पूछे जाते हैं और उसी के अनुसार उत्तर अपेक्षित होते हैं।

प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए न सिर्फ छत्तीसगढ़, बल्कि प्रत्येक राज्य के लिए मुख्यतः यूपीएससी मॉडल को अपनाया जाना उपयुक्त है, क्योंकि लोक सेवकों के चयन में राज्यों के साथ ऐसी कोई विशिष्ट स्थिति नहीं होती कि उन्हें पृथक चयन प्रक्रिया अपनानी पड़े, अलावे इसके कि राज्य लोक सेवा आयोग के लिए उस प्रदेश से संबंधित जानकारी, भाषा आदि को महत्व दिया जाता है, जो स्वाभाविक है। ध्यान देने वाली बात है कि यूपीएससी मुख्य परीक्षा में भाषा के प्रश्नपत्र क्वालिफाइंग मात्र होते हैं लेकिन एक महत्वपूर्ण परचा निबंध का होता है, जिससे अभ्यर्थी के अध्ययन, समझ, विश्लेषण क्षमता, अभिव्यक्ति और प्रस्तुति का आकलन होता है।

प्रारंभिक प्राक्चयन परीक्षा में मुख्य परीक्षा के लिए स्क्रीनिंग की जाती है, इसलिए इसके अंकों की महत्व अंतिम परिणाम को प्रभावित नहीं करता तथा इसमें सब के लिए समान, बहुविकल्प वाले वस्तुनिष्ठ प्रश्नपत्र, जिसमें ऋणात्मक मूल्यांकन भी हो, उपयुक्त है। इस परीक्षा के उत्तर-पुस्तिका, ओएमआर अर्थात ऑप्टिकल मार्क रीडर शीट की जांच कम्प्यूटर द्वारा कर ली जाती है। इसमें परिणाम कम समय में तैयार हो जाता है, मूल्यांकन में मानवीय कारक का प्रभाव नहीं होता और सबसे महत्वपूर्ण कि सभी अभ्यर्थियों के लिए समान प्रश्नपत्र होने के कारण स्केलिंग की स्थिति नहीं रह जाती।

मुख्य परीक्षा की योजना में अब तक विभिन्न ऐच्छिक विषयों में सामंजस्य के लिए अपनाई जाने वाली सांख्यिकीय स्केलिंग की विसंगति और उससे उपजा असंतोष न्यायालयीन प्रकरणों तक का कारण बनता रहा है। मुख्य परीक्षा के लिए विषयों की बहुलता और ऐच्छिक प्रश्नपत्रों की दृष्टि से यह तथ्य भी ध्यान देने योग्य है कि बड़ी संख्या में ऐसे प्रत्याशियों का चयन होता रहा है, जो अपनी उपाधि परीक्षा के विषयों के बजाय ऐसे विषय का चयन करते हैं, जिनसे उनका नाता मात्र प्रतियोगी परीक्षा तक ही होता है।

निबंधात्मक शैली की मुख्य परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के विवेचनात्मक, विश्लेषणात्मक उत्तर के साथ, प्रस्तुति में भाषा-अभिव्यक्ति का परीक्षण होगा, किसी लोक-प्रशासक के लिए इस क्षमता का मूल्यांकन आवश्यक होता है। परीक्षा में छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी का समावेश और अनिवार्यता भी उल्लेखनीय है, लेकिन अक्सर यह देखा गया है कि परीक्षा में पूछे जाने वाले छत्तीसगढ़ की जानकारी वाले प्रश्न, अधिकतर प्रतियोगी परीक्षा के लिए तैयार किए गए प्रकाशनों पर ही आधारित होते हैं, इस दृष्टि से यह आवश्यक नहीं रह जाता कि छत्तीसगढ़ से संबंधित प्रश्नों का जवाब छत्तीसगढ़ से जुड़ा परीक्षार्थी ही दे सके, बल्कि यह पाठ्य सामग्री, उसकी उपलब्धता और तैयारी के अनुरूप बेहतर ढंग से दिया जा सकता है।

वैसे तो न्यायालय में विचाराधीन प्रकरणों के कारण अभ्यर्थियों का असमंजस अब भी बरकरार है। आनलाइन आवेदन की व्यवस्था और बदली हुई परीक्षा प्रणाली को ले कर संभावना तो है कि अभ्यर्थियों का कोई वर्ग इसमें नुक्स निकाले, किन्तु समय की जरूरत के अनुरूप विवेकपूर्ण युक्तियुक्तकरण से संदेह के बादल छंट जाने की अधिक उम्मीद है। पीएससी की चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वसनीयता और प्रतिवर्ष की नियमितता की सर्वाधिक जरूरत इस समय है, परीक्षा पद्धति के ताजे निर्णय के साथ 210 पद रिक्तियों के लिए विज्ञप्ति जारी हो जाने से सकारात्मक वातावरण बनता दिखता है, जो प्रत्येक स्तर पर स्वागत योग्य है। 
(लेखक वरिष्ठ अधिकारी और कैरियर सलाहकार हैं।)


मेरा यह लेख नवभारत, रायपुर में 25 दिसंबर 2012 को प्रकाशित हुआ था। समाचार पत्र में निर्धारित स्थान की सीमा के कारण लेख को संक्षिप्त करने के लिए कुछ अंश कम किया गया था, जो यहां तिरछे अक्षरों में है।

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