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Sunday, August 28, 2022

सार्वजनिक निजता

दरार, की-होल या फांक से झांक लेना, कान लगा कर आहट लेना, चोरी-चोरी का अपना सुख होता है। निषिद्ध के प्रति उत्सुकता, उसका इंद्रिय-आस्वाद, मानवीय स्वभाव है। इस घिसी-पिटी बात के साथ, एक ताजे और बीच-बीच में उभरते विवाद पर कुछ बातें। फिनलैंड की युवा स्त्री प्रधानमंत्री चर्चा में हैं, कोलकाता के सेंट जेवियर्स की युवा असिस्टेंट प्रोफेसर की घटना भी याद की गई है, और रणवीर सिंह का न्यूड फोटो-शूट। मामला निजता और सार्वजनिक छवि-प्रस्तुति का है। इस पर नारी-विमर्श से अलग भी कुछ सोचने का प्रयास।

इस पर जहां से बात शुरू हुई है, वह पहली बात नर-नारी संदर्भ निरपेक्ष है। दूसरी बात कि नारी-देह के प्रति आकर्षण अधिक होता है, बाजार, विज्ञापन, मीडिया, फिल्मों में वह परोसा भी अधिक जाता हैै साथ ही नारी वैसी लोलुप नहीं होती, जितना पुरुष और होती भी हो तो यह प्रकट नहीं होता। तीसरी कि निसंदेह निजता पर सबका अपना हक होता है, होना चाहिए, उस पर सेंध मारना अनैतिक है, मगर स्थितियां अलग-अलग हो सकती है। व्यक्ति (स्त्री या पुरुष) अपने निजी क्षणों को स्वयं सार्वजनिक करे या दूसरों द्वारा सार्वजनिक करने दे, उसे आपत्ति न हो। व्यक्ति के निजी क्षणों को उसकी सहमति के बिना सार्वजनिक किया जाए, और उसे फर्क न पड़े, वह खुश हो या आहत-नाराज हो। एक तरफ पत्र, डायरी का सार्वजनिक किया जाना और आत्मकथा के प्रसंगों के संदर्भ तो इसके साथ अनजान बन चतुराई से ‘लीक‘ भी विचारणीय है।

आउट-फिट पर ध्यान दें तो डिजाइनर ड्रेस, स्लीव-लेस, हाइ हिल, लिपस्टिक, ब्यूटी पार्लर के मामले में सामान्यतः स्त्रियां, पुरुषों से अलग होती हैं। लड़का से लड़की बनी एक ट्रांसजेंडर से पूछने पर कि ऐसा क्या और क्यों जरूरी हो गया था, उसने बताया कि मुझे बात-बात पर शर्म आती थी, मन होता था चूड़ी-बिंदी करूं, बाल बढ़ा लूं, सज-संवर कर रहूं। तो क्या लड़के और लड़की की सोच में मुख्य फर्क यही है। मान लिया जा सकता है कि उन्हें सिंगार-पटार या कहें दिखावा? अधिक पसंद होता है। 
सौंदर्य-प्रतियोगिताओं के आयोजन से माना जा सकता है कि
सुंदरता का कारक महिलाओं के लिए मुख्य है।
उल्लेखनीय, प्रासंगिक और अनुकरणीय खबर-
मिस इंग्लैंड के 94 वर्ष के इतिहास में पहली बार
मेलिसा राउफ ने बिना मेकअप के हिस्सा लिया है।
वे कहती हैं-
"I never felt I met beauty standards. I have recently accepted that I am beautiful in my own skin and that's why I decided to compete with no makeup."
(अब तक तो प्रतियोगिता मेक अप की होती थी।)


अन्य, विशेषकर जिससे लगाव हो, ऐसे पुरुष का सुख और संतुष्टि, नारी के लिए प्राथमिक होती है, ऐसा सामान्यतः देखने में आता है। सबल सक्षम समाज की आत्म निर्भर नारी में इसका उदाहरण प्रभा खेतान में दिखता है। पुस्तक ‘नागरसर्वस्वम्‘ की भूमिका में डा. रामसागर त्रिपाठी कहते हैं- ‘उसने स्त्री में लोकातीत लज्जा की भावना भर दी और उससे पुरुष विरत न हो जाए इसके लिए पुरुष को औद्धत्य और दर्प प्रदान कर दिया।‘ स्त्री और पुरुष की मर्यादा और मानकों पर चर्चा करते हुए हजारी प्रसाद द्विवेदी का महत्वपूर्ण उद्धरण आवश्यक होगा- ‘कहते हैं सभ्यता का आरम्भ स्त्री ने किया था। वह प्रकृति के नियमों से मजबूर थी; पुरुष की भाँति वह उच्छृंखल शिकारी की भाँति नहीं रह सकती थी। झोंपड़ी उसने बनायी थी, अग्नि-संरक्षण का आविष्कार उसने किया था, कृषि का आरम्भ उसने किया था; पुरुष निरर्गल था; स्त्री सुशृंखल। पुरुष का पौरुष प्रतिद्वन्दी के पछाड़ने में व्यक्त होता था, स्त्री का स्त्रीत्व प्रतिवेशिनी की सहायता में। एक प्रतिद्वन्द्विता में बढ़ा, दूसरा सहयोगिता में। स्त्री पुरुष को गृह की ओर खींचने का प्रयत्न करती रही, पुरुष बन्धन तोड़कर भागने का प्रयत्न करता रहा। ... पुरुष ने बड़े-बड़े धर्मसम्प्रदाय खड़े किये- भागने के लिए। स्त्री ने सब चूर्ण-विचूर्ण कर दिया- माया से । पुरुष का सबकुछ प्रकट था, स्त्री का सबकुछ रहस्यावृत। पुरुष जब उसकी ओर आकर्षित हुआ तब उसे गलत समझकर, जब उससे भागा तब भी गलत समझकर। उसे स्त्री को गलत समझने में मजा आता रहा, अपनी भूल को सुधारने की उसने कभी कोशिश ही नहीं की। इसीलिए वह बराबर हारता रहा। स्त्री ने उसे कभी गलत नहीं समझा। वह अपनी सच्ची परिस्थिति को छिपाये रही। वह अन्त तक रहस्य बनी रही। ... रहस्य बनी रहने में उसे भी कुछ आनन्द मिलता था। इसीलिए जीतती भी रही और कष्ट भी पाती रही।‘

हम उसी समाज से अपेक्षाएं रखते हैं, जिससे हमें अक्सर शिकायत बनी रहती है। समाज से अपनी पसंद और सुविधानुसार छूट नहीं ली जा सकती। समाज से अपेक्षाएं हैं तो उसी समाज की अपेक्षाओं के अनुकूल, समाज की इकाई को आचरण भी करना होगा। और यह वस्तुनिष्ठ, मशीनी नहीं होगा, परिवर्तनशील भी होगा। निसंदेह इस पर राय भिन्न होगी, संदर्भों के साथ, व्यक्तियों के साथ। इसमें भी कोई संदेह नहीं कि सार्वजनिक जिम्मेदारी वाले व्यक्ति के साथ सीमाएं अलग होंगी, लेकिन इसकी न तो कोई आचार-संहिता संभव है, न ऐसा कोई निर्विवाद कानून। वात्स्यायन का शास्त्रीय अध्ययन, कालिदास का उत्कृष्ट साहित्य, खजुराहो की प्रतिमाएं, शिवलिंग, दिगंबर जैन साधु, नागा बाबा से ले कर सेंसर-बोर्ड, सभी को साथ रख कर स्वयं विचार करें कि किस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं, क्या ऐसी व्यवस्था दे सकते हैं, जो निर्विवाद न हो, लेकिन तार्किक और औचित्यपूर्ण हो।

सुनी-सुनाई। उच्च पद पर आसीन एक युवा महिला अधिकारी सोशल मीडिया पर अपनी आकर्षक तथा पति के साथ अंतरंग तस्वीरें लगाया करती थीं, ढेरों लाइक और कमेंट आते, वॉव, ब्यूटीफुल और कुछ इससे भी आगे, मगर तब तक मामला वर्चुअल होता। महिला अधिकारी का उत्साह बना रहा। किसी दिन उनके ‘चुगलखोर‘ स्टाफ ने बहुत संभाल कर बात कही, किसी और का नाम लेते, जिससे उसकी चर्चा हुई थी, इस सावधानी सहित कि मैडम खुश होंगी, तो शाबासी मिलेगी और बिगड़ गई तो अगले के मत्थे। मैडम को बताया कि अमुक मुझसे कह रहा था कि मैडम एक से एक फोटो लगाती हैं, मस्त, जोरदार। कुछ ठहर कर जोड़ना चाहता था, मुझे भी। मगर अब मामला वर्चुअल नहीं रहा, गाज गिरते देर नहीं लगी। मैडम फोटो अब भी लगाती हैं, कुछ अलग तरह की, लाइक-कमेंट भी कम हो गए, पता नहीं क्या सोचती होंगी। चिलमन से लगे छुपते-सामने आते जैसा कुछ या कि ‘अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वो, और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो।‘

बहरहाल, किसी संदर्भ-विशेष से अलग कभी इस पर सोच बनी थी कि ‘परदा, संदेह का पहला कारण, तो पारदर्शिता, विश्वसनीयता की बुनियादी शर्त‘ और हम सब सीसीटीवी की निगरानी में तो रहते ही हैं, दूसरों की नजर में बने रहना, ऐसी सोच कि कोई हमें देख रहा है, सुन रहा है, हमारी अंतरात्मा या उपर वाला ‘बिग बॉस‘, आचरण की शुचिता के लिए सहायक हो सकता है। वैसे भरोसे की बुनियाद में अक्सर ‘संदेह‘ होता है फिर संदेह से बचना क्यों? ऐतराज क्या? स्थापनाएं, साखी-प्रमाणों से बल पाती हैं या क्रि संदेह और अपवाद से।

आगे और कुछ पढ़ना चाहें तो ‘यौन-चर्चाःडर्टी पोस्ट‘ पर नजर डाल सकते हैं।

Friday, July 1, 2022

नेताजी

2004 में श्याम बेनेगल की फिल्म ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस: द फारगाटेन हीरो‘ आई। फिल्म में नेताजी के विवाहित होने पा कुछ शोधकर्ताओं ने आपत्ति की थी। उनका कहना था कि 23 जनवरी 1939 में चीन जाने के लिए वीसा आवेदन में नेताजी ने अपनी वैवाहिक स्थिति ‘अविवाहित‘ दर्शाई है। नेताजी की हवाई दुर्घटना में मौत भी संदिग्ध मानी गई है। सितंबर 1985 में फैजाबाद के गुमनामी बाबा के मौत के बाद उनके सामानों में नेताजी संबंधी सामग्री से भी रहस्यों की उधेड़-बुन होती रही। इस सबके साथ नेताजी का चमत्कारी व्यक्तित्व किसी महाकाव्यीय नायक की तरह है, जिसकी निरंतर व्याख्या होती रहती है।

प्रभा खेतान फाउंडेशन के माध्यम से अन्य शहरों की तरह रायपुर में भी स्तरीय साहित्यिक-वैचारिक आयोजन होते रहे हैं, जिनमें ‘आखर‘ और ‘कलम‘ जैसा ही लेखक से मुलाकात और पाठक-श्रोताओं से रूबरू संवाद का कार्यक्रम ‘द राइट सर्किल‘ है, जिसका सुरुचिपूर्ण और व्यवस्थित संयोजन महिलाओं के समूह ‘अहसास‘, रायपुर द्वारा किया जाता है। इसी कड़ी में 30 जून को मिशन नेताजी वाले शोधार्थी-लेखक चंद्रचूड़ घोष आमंत्रित थे। ‘अहसास‘ समूह की सर्व सुश्री आंचल गरचा, सृष्टि त्रिवेदी, कीर्ति कृदत्त तथा उनके सहयोगियों ने इस महत्वपूर्ण सत्र को पूरी गरिमा के साथ अंजाम दिया। आमंत्रित लेखक के साथ बातचीत का जिम्मा समूह की वरिष्ठ सदस्य गांधीवादी शिक्षाविद विदुषी सुश्री कल्पना चौधरी का था।


पूरा सत्र, सुघड़, करीने से, कुशल समय-प्रबंधन और समय-सीमा में अधिकतम संभव निष्पत्तियों के कारण यादगार रहा। चंद्रचूड़ जी की विद्वता और नेताजी के तथ्यात्मक इतिहास को उजागर करने का उद्यम झलकता रहा। प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान सुभाष चंद्र बोस की पुत्री अनीता से नेताजी संबंधी जानकारी पूछी जाने पर अनीता द्वारा प्रश्नों के प्रति उपेक्षा-उदासीनता के लिए चंद्रचूड़ जी का स्पष्टीकरण उल्लेखनीय था। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह वैसी ही बात होगी कि राहुल गांधी से राजीव गांधी या इंदिरा गांधी की मृत्यु से जुड़ी बातों की तहकीकात की जाए।

नेताजी संबंधी किसी भी जिज्ञासा, शंकाओं के समाधान के लिए डॉ. ब्रजकिशोर प्रसाद सिंह मुझे सदैव सहज उपलब्ध रहे हैं। नेताजी के प्रसंगों के साथ स्वाधीनता संग्राम, कांग्रेस, नौरोजी, गांधी, नेहरू, जिन्ना के न सिर्फ इतिहास, बल्कि उस दौरान की घटना और परिस्थितियों को संपूर्ण परिप्रेक्ष्य के साथ, उनसे जानना अनूठा अनुभव होता है। इसी क्रम में मध्यकालीन इतिहास के भी रोचक और कम चर्चित किंतु विशिष्ट पक्षों पर उनकी बातें पाठ्य पुस्तकों में मिलना संभव नहीं। फिल्म, हिंदी साहित्य और पौराणिक आख्यान भी उन्हें प्रिय हैं और संदर्भ, उदाहरण के लिए इस्तेमाल किए जाते रहते हैं। पिछले दिनों उत्तरप्रदेश चुनावों के पहले योगी आदित्यनाथ पर उनका लेख, समकालीन या निकट-भूत को वस्तुगत शोध दृष्टि से देखते हुए भविष्य की संभावनाओं को समझने का अनूठा नमूना है। बोस-गांधी मतभेद और मतांतर पर उनका एक लेख यहां है। डॉ. प्रसाद ने 1989 में प्रो. एस.पी. सिंह के निर्देशन में सुभाष चंद्र बोस पर शोध किया है। उनके शोध का शीर्षक ‘भारत के स्वाधीनता संग्राम में सुभाष चंद्र बोस की भूमिका‘ (मूल अंगरेजी में) था, इस कार्य में डॉ. प्रसाद को प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. बिपनचंद्र से भी मार्गदर्शन प्राप्त हुआ था। नेताजी, भारतीय इतिहास और क्षेत्रीय इतिहास के रोचक और महत्वपूर्ण पक्षों पर डॉ. प्रसाद यदा-कदा लिखते रहते हैं। पिछले दिनों गांधी पर लिखे उनके लेखों की श्रृंखला फेसबुक पर आई, जो संभवतः प्रकाशित भी होगी।

सुभाष चंद्र बोस पर डॉ. प्रसाद का एक लेख ‘सुभाष बोस, एमिली और अनिता‘ दैनिक हरिभूमि समाचार पत्र में 29 जनवरी 2006 को प्रकाशित हुआ था। वह लेख यहां यथावत प्रस्तुत-


सुभाष चन्द्र बोस आईसीएस से त्यागपत्र देने के उपरांत अपनी संपूर्ण ऊर्जा और समर्पण के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुये थे। गांधीवादी कांग्रेस की अहिंसात्मक जन आधारित राजनीति के बावजूद उनकी राजनीतिक विचारधारा तथा कार्यप्रणाली पर बंगाल की सशस्त्र क्रांतिकारी गतिविधियों का भरपूर प्रभाव पड़ा। इस परिवेश में उनके राजनैतिक विचार और कार्यों में राष्ट्रवाद की उग्रतम अभिव्यक्ति हुई। सविनय आंदोलन के दौरान कारावास की सजा भुगतते गंभीर तौर पर अस्वस्थ हुए तो चिकित्सा हेतु यूरोप जाना पड़ा। वियना और बैंडगेस्टीन में स्वास्थ्य लाभ करते हुए उन्होंने महसूस किया कि उनकी गतिविधियों पर खुफिया पुलिस के द्वारा निगरानी रखी जा रही है। आस्ट्रिया से बाहर अन्य देशों की यात्रा के दौरान भी उन पर निगरानी रखी जाती थी क्योंकि ब्रिटिश सरकार उन्हें अपना सर्वाधिक खतरनाक शत्रु मानती थी।

1934 में लंदन के प्रकाशक लॉरेंस विशार्ट ने उन्हें भारतीय राजनैतिक आंदोलन पर पुस्तक लिखने का प्रस्ताव दिया। करार के अनुसार पुस्तक उसी वर्ष पूर्ण की जानी थी। त्वरित लेखन हेतु सुभाष जी ने निजी सचिव रखने का फैसला किया। आस्ट्रिया में रह रहे डा. माथुर ने आस्ट्रिया परिवार की लड़की सुश्री एमिली शेंकल की अनुशंसा की। उनके पिता पशु चिकित्सक थे तथा दादा जी चमड़े के व्यवसाय से संबद्ध थे। उनका जन्म 26 दिसंबर 1910 को हुआ था। पूरा परिवार कैथोलिक मतावलंबी था। अंग्रेजी व्याकरण में एमिली ने प्रशंसा योग्य प्रवीणता प्राप्त की। शार्टहैंड में भी उन्होंने दक्षता हासिल की। 1930 में एमिली की स्कूली शिक्षा पूरी हो गयी तथा धर्म हेतु आजीवन व्रत का विचार छोड़ दिया। वे नौकरी की तलाश कर रही थीं। इसी समय डा. माथुर ने सुभाष चन्द्र बोस के निजी सचिव हेतु उनकी अनुशंसा की। सुभाष बोस को निजी सचिव इस प्रकार का चाहिये था, जो उनके विचार और कार्यों के बारे में सूचनाओं की गोपनीयता बनाये रख सके, क्योंकि ब्रिटिश खुफिया सेवा द्वारा उन पर सतत निगरानी रखी जा रही थी। एमिली इस मापदंड पर खरी उतर रही थीं।

पुस्तक लेखन में बोस स्वयं लिखते तो एमिली पांडुलिपि की टाइप प्रति तैयार करती या फिर बोस बोलते जाते और एमिली शार्टहैंड में नोट्स लेकर टाइप करतीं। सुभाष पहले तो होटल में रह रहे थे परन्तु जल्दी ही उन्होंने घर किराये पर ले लिया। सुभाष बोस के भतीजे अशोक नाथ बोस जर्मनी में पढ़ रहे थे। अवकाश होने पर वे भी आ जाते। चुनिंदा मौकों पर नेता जी स्वयं भोजन बनाते और अशोक के अनुसार वे भारतीय व्यंजन बहुत स्वादिष्ट बनाते थे। घर इस मामले में भी सुरक्षित था कि खुफिया विभाग के लोग होटल की तरह यहां निगरानी नहीं रख सकते थे। 1934 के अंत तक पुस्तक पूरी होने के उपरांत गाल ब्लैडर का आपरेशन होना था पुस्तक की प्रूफ चेकिंग करते-करते पिता को गंभीर रुग्णता की सूचना मिली तो तत्काल भारत लौटे। उन दिनों हवाई जहाज केवल दिन को ही उड़ा करते थे। यात्रा में समय अधिक लगता था करांची हवाई अड्डे पर पहुंचते ही मालूम हुआ कि उनके पिता का स्वर्गवास हो चुका है। कलकत्ते से श्राद्ध के बाद पुनः यूरोप लौटे। क्योंकि अभी उनके गाल ब्लैडर का आपरेशन होना था। उन्होंने एकमात्र नाम सुश्री एमिली शेंकल का लिखा था। संभवतः यह पुस्तक लेखन में की गयी सहायता के कारण कम और उस दौरान उनसे भावनात्मक लगाव का परिचायक अधिक था। 1935-36 के दौरान एमिली से उनकी घनिष्ठता बढ़ती गयी परंतु भारत की आजादी भी दृष्टि से ओझल नहीं हुई थी। बाद में गांधी नेहरू और कांग्रेस के दबाव में उन्हें रिहा किया गया। गांधी जी उन्हें 1938 के कांग्रेस सत्र के लिये अध्यक्ष नियुक्त किया तथा स्वास्थ्य लाभ के लिये यूरोप जाने की सलाह दी। क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर कार्य करने के लिये उन्हें अपने आप को फिट रखना था। इस संक्षिप्त यूरोपीय प्रवास में एमिली नेता जी के साथ रहीं। अब तक एमिली के साथ उनका स्नेह संबंध अत्यंत प्रगाढ़ हो चुका था।

1934 से 42 के आठ वर्षों की अवधि में दोनों के बीच उपजे अंतरंग तथा भावुक संबंधों का पता उनके बीच हुये पत्राचार से चलता है। आज कम से कम 180 पत्र उपलब्ध हैं जिनमें से अधिकांश सिगार के पुराने डब्बे में मिले थे। यह डब्बा 1980 में खोला गया था तथा 1993 में एमिली बोस ने इन पत्र को सार्वजनिक किये जाने की अनुमति दी। 1942 के उपरांत भी नेता जी ने एमिली को पत्र लिखना जारी रखा था। दक्षिण पूर्वी एशिया के विभिन्न हिस्सों से लिखे पत्र एमिली के वियना वाले घर में रखे थे। वियना पर मित्र राष्ट्रों की विजय के उपरांत ब्रिटिश अधिकारियों ने उनके घर की तलाशी ली और इस दौरान जब्त किये कागजातों में ये पत्र भी शामिल हो गये, आज ये पत्र अनुपलब्ध हैं। भारत से बर्लिन पहुंचने पर नेता जी ने एमिली के नाम पत्र लिखा तथा तार भी भेजा। एमिली के परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं थी। पिता की मृत्यु के उपरान्त परिवार में मां और बहन ही शेष बची थीं। आजीविका के लिये वे नौकरी कर रही थी। नेता जी ने उन्हें पुनः निजी सचिव के तौर पर रखने की अभिलाषा जाहिर की। पत्र में उन्होंने गुजारिश की थी कि व्यस्त और गोपनीय कार्यक्रम के कारण वे वियना आने में असमर्थ हैं सो एमिली हो बर्लिन आ जायें। जर्मन विदेश सेवा के अधिकारियों के मार्फत भी संदेश भेजा गया। एमिल मिलने आयी और इस बार दोनों ने विवाह कर लिया। 26 दिसंबर 1942 के दिन नवविवाहित दंपत्ति के घर पुत्री का जन्म हुआ। नेता जी इटालियन क्रांतिकारी गैरीबाल्डी को अपना आदर्श मानते थे और उनकी पुत्री एनीटा के नाम पर अपनी पुत्री का नामकरण अनीता किया। पत्नी और पुत्री के साथ वे अधिक समय नहीं बिता पाए क्योंकि दक्षिण पूर्वी एशिया में आजाद हिन्द फौज और सरकार के गठन हेतु उन्हें बर्लिन से जापान जाना पड़ा। एमिली और अनिता के प्रति पिता और पति के रूप में सुभाष बोस अपने आपको जिम्मेदारी से भागते महसूस कर रहे थे। अनिश्चितता की स्थिति में 8 फरवरी 1943 को अपने घनिष्ठ अग्रज और संरक्षक शरत बोस के नाम बंगला में पत्र लिखकर उन्होंने पत्नी को दिया जो जरूरत पड़ने पर उपयोग किया जाना था। पत्र इस प्रकार था,

मेरे प्रिय भाई,

आज मैं फिर से एक बार खतरे की राह पर निकल रहा हूं घर की तरफ। मुझे शायद मंजिल नहीं भी मिल पाए। अगर मुझे किसी खतरे का सामना करना पड़ता है, तो मैं इस जीवन में आगे अपनी खबर नहीं दे पाऊंगा। इसीलिए मैं यह पत्र यहां छोड़ रहा है। जो सही समय पर आप को मिलेगा। मैंने यहां विवाह कर लिया है और मेरी एक बेटी है। मेरी अनुपस्थिति में मेरी पत्नी और पुत्री को वही प्यार दें जो आपने मुझे जीवनभर दिया है। मेरी अंतिम प्रार्थना है कि मेरी पत्नी और पुत्री मेरे अधूरे कार्य को पूरा करें।
-आपका सुभाष

सुभाष के इस पत्र को अपनी थाती बना कर एमिली वियना में रह रही थीं। 1945 के अगस्त महीने तक मित्र राष्ट्रों की जीत हो चुकी थी। शाम का समय था। लगभग तीन साल की हो रही अनिता बेडरूम में सोयी थी और एमिली रसोईघर में ऊन के गोले डब्बे में रख रही थीं। तभी रेडियो पर संध्याकालीन समाचार आया कि वायुयान दुर्घटना में सुभाष चंद्र बोस गई है। सुभाष बोस ने उन्हें पहले एक बार लिखा था,

‘हो सकता है मैं फिर कभी नहीं मिल पाऊं पर मेरा विश्वास करो कि तुम हमेशा मेरे हृदय में, विचारों में और स्वप्न में रहोगी। अगर भाग्य मुझे तुमसे इस जीवन में जुदा कर देता है तो मैं तुम्हें अगले जन्म में मिलूंगा... मेरे देवदूत, मुझे स्नेह करने के लिए और स्नेह करना सिखाने के लिए धन्यवाद‘ एमिली किचेन से चुपचाप निकलीं और बेडरूम गयीं जहां अनिता अनिष्ट से बेखबर सो रही थी। वे बिस्तर के बगल से फर्श पर धीमे से बैठीं और बरबस रुलाई फूट पड़ी।
-डॉ. ब्रज किशोर प्र. सिंह