16 फरवरी 2022, ग्राम- भरदा, तहसील- बेरला, जिला- बेमेतरा, सहयात्री- श्री वृत्तांत गर्ग
भरदा, खारुन नदी के बांयें तट पर स्थित है। गांव के हाई स्कूल में पर्यावरण और उसमें विशेष रूप से पक्षियों पर चर्चा के लिए सभा का आयोजन किया गया। शाला में दो कक्षाएं नवमी और दसवीं हैं, जिसमें लगभग 80 दर्ज संख्या है। इनमें बालिकाओं की संख्या अधिक है। भवन, फर्नीचर, साफ-सफाई आदि अन्य व्यवस्था अच्छी है। आयोजन के सूत्रधार शाला के शिक्षक श्री विकेश यादव थे। गांव के वरिष्ठ, प्रतिष्ठित नागरिक श्री परगनिहा भी शामिल हुए। प्रधान अध्यापक बैठक में अन्यत्र गए थे। अन्य स्टाफ सर्व सुश्री मिश्रा, यादव, वर्मा की सक्रिय उपस्थिति थी। शाला के विद्यार्थियों के अलावा शाला के पूर्व छात्र और ग्राम के ही माध्यमिक शाला के आठवीं कक्षा के विद्यार्थी भी शामिल हुए।
श्री विकेश ने आयोजन और अतिथियों, अर्थात् श्री वृत्तांत गर्ग और राहुल कुमार सिंह का रोचक ढंग से परिचय दिया। उन्होंने गांव के पर्यावरण और जीव-जंतुओं के बारे में बात करते हुए विशेष रूप से उल्लेख किया कि गांव में कछुए आमतौर पर दिख जाते हैं। इस प्रकार आयोजन की भूमिका के रूप में गांव के पर्यावरण, जीव-जगत की उनकी बातों को विद्याार्थियों ने रुचिपूर्वक सुना। श्री वृत्तांत ने पर्यावरण के महत्व की संक्षिप्त भूमिका के साथ आगामी दिनों में बैकयार्ड बर्ड काउंट के बारे में बताया कि यह किस प्रकार उपयोगी और आवश्यक है साथ ही स्पष्ट किया कि इस दौरान अवलोकन पर ध्यान दें और अपनी जानकारी संभव हो तो फोटो, अन्यथा विवरण तैयार कर लें। मैंने ग्राम के नाम भरदा, साथ के गांव लवातरा की चर्चा के साथ बात आरंभ की, जो दोनों या अन्य भरर, भरुही जैसे नाम लार्क पक्षियों से संबंधित हैं और इन्हें नाइट जार से भी जोड़ा जाता है। पक्षियों के चित्र वाले, पिक्चर पोस्ट कार्ड विद्यार्थियों ने रुचि ली और पक्षियों के पहचान, स्थानीय नाम आदि सभी चर्चाओं में उत्साहपूर्वक भाग लिया। श्री परगनिहा ने गांव और जीव-जंतुओं, पक्षियों की चर्चा की। स्थानीय नाम, उनकी पहचान, आवास, स्वभाव को रोचक ढंग से बताया, जिससे स्पष्ट हुआ कि वे कितनी बारीकी और सजगता से अपने पर्यावरण पर नजर और समझ रखते हैं।
पूरे कार्यक्रम के दौरान विद्यार्थी अनुशासित रहे। उनमें कुछ संकोच अवश्य था, किंतु उत्सुक और सजग थे, ध्यान से सभी बातें सुनते रहे और बातचीत में हिस्सा भी लिया। विकेश यादव जी जैसे सक्रिय और उत्साही व्यक्ति शिक्षक के रूप में किस तरह विद्यार्थियों को पाठ्यक्रम की शिक्षा के साथ जानकारी और ज्ञान के सभी पक्षों के लिए प्रोत्साहित करते हैं, यह उल्लेखनीय है। परगनिहा जी स्कूल, ग्राम विकास, शिक्षा, समाज कल्याण के साथ पर्यावरण के प्रति उत्तरदायित्व महसूस करने वालों में से हैं। वृत्तांत जी शालीन और समझदार हैं, अपनी बात जिम्मेदारी सहित, स्पष्ट रूप से दूसरों के सामने सहज रूप से रखते हैं।
पुल, नदी के दोनों किनारों को जोड़ता है और कभी इस तरह बांटता भी है. |
विभाजक नदी के कारण रायपुर से करीब होने के बावजूद भी यह गांव, पहले दुर्ग जिले में था, अब बेमेतरा में है। जिला मुख्यालय से दूरी, गांव वालों के लिए अड़चन की बात है। अब पुल बन जाने से रायपुर आवागमन आसान हो गया है। कुछ और बातें रोचक मिलीं, जैसे गांव अनंदगांव, आनंद ग्राम। भेरवा ग्राम में भाट चितेरों की चित्रकारी का नमूना, जिनकी परंपरा क्षीण हो रही है और उनकी ओर ध्यान नहीं जाता और भी ऐसी कई बातें। रास्ते में ऐसे बहुत से खेत मिले, जिनमें हरियाली थी। खेतों में पम्प से पानी आ रहा था, कुछ खेतों में नमी थी, तो कई में पानी भरा हुआ था। संभवतः नदी पास होने के कारण भूमिगत जल पर्याप्त है। ऐसे सभी खेत तार घेराबंदी किए हुए थे। यह मवेशियों के प्रबंधन की स्थिति बदल जाने के कारण आवश्यक हो गया है, इस बदली हुई परिस्थिति में रोका-छेंका और गौठान आवश्यक हो गया है। इससे यह स्पष्ट हुआ कि इस क्षेत्र में उद्यमशील और सक्षम किसान हैं, जिसके कारण क्षेत्र धन-धन्य वाला होगा। रास्ते में खारुन नदी के पुल के पहले दाहिनी ओर विस्तृत क्षेत्र में बबूल के पेड़ फैले हुए हैं। नदी का किनारा, थोड़ी नमी और कुछ छाया है और चिड़ियों के लिए कीड़े-मकोड़ों का भरपूर चारा होने के कारण, यह स्थान उनको प्रिय है। दोपहरी धूप और गर्मी के बावजूद यहां लार्क, पिपिट, प्रीनिया, बुश चैट, हुप्पू, कोकल, कौआ, पंडुक, नीलकंठ, ड्रोंगो जैसी चिड़िया सक्रिय थीं और तीतर की पुकार लगातार सुनाई पड़ रही थी।
निषादराज बेनीराम भाट, जजमान के घर की दीवार पर चित्र बना कर चले गए हैं, वापसी में यथामति-यथाशक्ति विदाई स्वीकार करेंगे. |
ग्यारहवीं और बारहवीं की पढ़ाई के लिए बच्चे पास के एक बड़े गांव में जाते हैं, उस गांव का नाम है अनंदगांव। हमने जानना चाहा कि यह तो बड़ा सुंदर नाम है, किसने यह नाम रखा, यह कितना पुराना है। बताया गया कि यह नाम पुराना ही है, बल्कि मूल नाम आनंदग्राम था। हमें आश्चर्य हुआ, कि ऐसे नाम का कोई खास कारण? तब बताया गया कि वहां के लोग नैतिक, धर्मप्राण हैं, कथा-वार्ता का आयोजन होता रहता है। सभी जाति के लोग हैं, मिंझरा आबादी, लेकिन भेद-भाव नहीं, आपसी सौहार्द है। झगड़ा-झांसा नहीं होता, कोई मन‘मुटाव हो तो आपस में सुलझा लिया जाता है। बड़े-बुजुर्ग फैसला कर देते थे, वह सब लोग मानते थे। अभी भी वहां लोग अच्छे हैं।
सत्र के दौरान मेरे लिए कई रोचक और मजेदार अवसर बने। इनमें से उदाहरण के लिए एक- पक्षियों के चित्र दिखाते हुए उनकी पहचान, स्थानीय और अंग्रेजी नाम, उनके स्वभाव की बात हो रही थी, विद्यार्थी उत्साह से भाग ले रहे थे। आधे से अधिक कार्ड दिखाए जा चुके थे, तब ब्लैक ड्रोंगो के चित्र वाला कार्ड आया। इस पर जोर दिया कि इसका नाम विद्यार्थियों को बताना है। कोई जवाब नहीं आया। इस पर पूछा कि किसने-किसने यह देखा है साथ ही हम बताने लगे कि अभी आपके गांव आते-आते इन्हें तार पर बैठे देखा है। कई बच्चों सकारात्मक प्रतिक्रिया दे रहे थे, कि वे इससे परिचित हैं, इसे देखा है, मगर नाम नहीं बता पा रहे थे। तब हमने कहा कि इसका नाम तो आपलोगों को ही बताना है, चाहे गलत नाम बताओ, और कि फिर यहां गलत नाम बताने पर नंबर तो कटेंगे नहीं। फिर हमने कहा कि अगर इसका नाम आपलोगों ने नहीं बताया तो आगे कार्ड नहीं दिखाएंगे, दूसरी कोई बात करेंगे, जबकि अभी कई अच्छे सुंदर पक्षियों के कार्ड और हैं। विकेश जी ने भी प्रोत्साहित किया। एक किनारे से खुसफुसाहट हुई और कुछ बच्चे हंसने लगे। हमने कहा कि क्यों हंस रहे हो?, कोई हंसी की बात है तो हम सब लोग हंसेंगे, हमें भी बताओ। तब किसी ने कहा कि ये नाम बता रही है ‘करोना‘। हमने पूछा कि किसने यह बोला, उससे पूछा तो उसने धीमी आवाज में सही स्थानीय नाम बताया, हमने उसे शाबासी दी और अन्य बच्चों को बताया कि वह ठीक बता रही है, इस चिड़िया का नाम कर्राैआं है। इसे कोतवाल भी कहते हैं और फिर कोतवाल चिड़िया की खासियत बताई। सभी बच्चों ने इसका बहुत आनंद लिया।
विद्यार्थियों से पूछने पर कि जिस तरह तुम्हारे गांव कर नाम चिड़िया वाला है, आसपास और कौन सा गांव है, जो किसी जीव-जंतु पर है, एक बालिका ने तुरंत ही जवाब दिया 'भैंसबोड़'। हम भरदा जाते हुए कुछ दूर रास्ता भटककर भैंसबोड़ पहुंच गए थे और इस गांव का नाम हमारे ध्यान में था। जीव जगत के अन्य सदस्यों के आंचलिक-छत्तीसगढ़ी नाम, हिन्दी, अंग्रेजी और वैज्ञानिक नामों की बात होने लगी। हमने बच्चों से यह स्पष्ट करने के लिए उदाहरण लिया मेढक का, बच्चों ने तुरंत बता दिया राना टिग्रीना। यह उदाहरण लेने का एक कारण यह था कि शाला भवन के प्रवेश द्वार के दाहिनी ओर विद्यार्थियों द्वारा बनाए गए चार्ट थे, जिनमें एक चार्ट वैज्ञानिक नामों का था तथा इस चार्ट में सबसे ऊपर यही यानि मेढक-राना टिग्रीना था। ऐसे चार्ट की उपयोगिता रेखांकित हुई। बात आगे बढ़ी। हमलोगों के स्वागत में फूलों का गुलदस्ता था, उनकी ओर ध्यान दिला कर गुड़हल पूछा, जिसे छत्तीसगढ़ी में मंदार भी कहा जाता है, बच्चे नहीं बता पाए, उन्हें बताया गया हिबिस्कस रोजा। फिर गुलदस्ते से ही बात आगे बढ़ी। गुलदस्ते के बोगन वेलिया का फूल दिखा कर उसका नाम पूछने पर कई बच्चों ने एक साथ जवाब दिया- कागज फूल। हमने बोगन वेलिया नाम बताया, इससे कम ही बच्चे परिचित थे। फिर हमने कहा कि विज्ञान मैडम से पूछना कि यह कैसा फूल है? फूल है भी या नहीं, और इसकी खासियत क्या है। इस पर वर्मा मैडम ने अपनी ओर से रोचक सवाल किया कि हम मानव का वैज्ञानिक नाम क्या है? कईयों ने एक साथ जवाब दिया होमो सेपियन। बच्चों से उदाहरण पूछने पर उन्होंने गौरैया, बाम्हन चिराई और स्पैरो तुरंत रच लिया।
सभा के पहले शाला की कक्षाओं का अवलोकन करते हुए हमने ई-क्लास रूम देखा। यहां इतिहास विषय की मिश्रा मैडम क्लास में लैपटाप, मोबाइल और प्रोजेक्शन के माध्यम से बच्चों से रूबरू थीं। कक्षा की बैठक व्यवस्था पारंपरिक कतारवार के बजाय समूहवार थी, ई-क्लास और बैठक व्यवस्था के बारे में उन्होंने हमें बताया। यादव मैडम पूरे आयोजन की पृष्ठभूमि में व्यवस्थाओं में लगी थीं। विद्यार्थी उत्साहित थे, और संवाद-उत्सुक भी। सभी अपनी-अपनी भूमिका अनुरूप सक्रिय रहे।
ई-क्लास रूम और पाठ, अब बच्चों के लिए अजूबा नहीं रहा. |
स्पष्ट हुआ, ऐसा नहीं कि कमियां नहीं हैं, लेकिन नजरिया कि कमियां हमेशा बुराई नहीं होतीं, वे कई बार नई पैदा हुई और कभी समय के साथ बदली परिस्थितियों के कारण बनी आवश्यकताएं होती हैं, इसलिए कमियों को नकारात्मक मानते हुए उनकी उपेक्षा या बचने का नहीं बल्कि इस दृष्टि से उनके प्रति, परिवर्तन या पूर्ति का प्रयास ही श्रेयस्कर है। जिनसे भी मिले, सम-विषम परिस्थितियों के बावजूद वे अपनी भूमिका में सकारात्मक और उद्यमशील थे। हम वापस लौटते हुए अवचेतन में समृद्ध महसूस कर रहे थे, उसके पीछे ऐसी क्या बातें थीं, सोचते हुए अभिव्यक्ति का यह एक प्रयास।
अभावों में भी शिक्षा का दीपक पूरी प्रफ्फुलता से जगमगा सकता है ये आपके आलेख से जान पड़ता है . शिक्षक यदि सरलता और सिमित साधनों से रोचक विधि से बच्चो पढ़ाये तो उनका मनोरंजन भी होता है और ज्ञानोदय भी होता है.
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