Saturday, March 5, 2022

खुसरा चिरई के बिहाव

छत्तीसगढ़ी साहित्य की विशिष्ट कृति ‘खुसरा चिरई के बिहाव‘ की रचना, खरौद निवासी कपिलनाथ मिश्र जी ने लगभग सन 1950 में की थी। जानकारी मिलती है कि पुस्तक का प्रकाशन, वर्ष 1954 में हुआ। शिवनाथ-महानदी संगम के उत्तर में स्थित खरौद, शिवरीनारायण के साथ जुड़ा, ऐतिहासिक महत्व का स्थान है। कपिलनाथ मिश्र, खरौद के प्राचीन लक्ष्मणेश्वर मंदिर के पुजारी थे और बड़े पुजेरी मिसिर जी के नाम से जाने जाते थे, खुशखत अर्जीनवीस भी। कपिलनाथ जी के पिता, भदोही, बनारस निवासी श्री रामलाल मिश्रा, शिवरीनारायण थाने में पदस्थ हुए। मगर भोले बाबा की लौ लग गई, लक्ष्मणेश्वर की पूजा करने लगे, नौकरी छोड़ दी, पुजारी बन गए और खरौद में ही विवाह कर, पक्का रिश्ता जोड़ लिया।

मिश्र जी के कथन का उल्लेख मिलता है कि- ‘मैं हर एक दिन बैसाख के महिना मा मंझनिया ज्वार हमर गांव के जुन्ना मदरसा के परछी मा जूड़-जूड़ बैहर पा के बइठे रहें। वोहिच् मेर दू ठन पीपर के पेंड़ रहीस। अउ ठउका पाके रहिन, तो वोकर खाये बर खुबिच्च चिरई जुरे रहीन अउ सब्बोच चिरई के मंध म खुसरा मन बइठे रहिन। तो सब चिरई अउ खुसरा मन के चरित्तर ल देख के मोर मन मा आइस के ये मन के कारबार ला लिख डारों।‘ (छत्तीसगढ़ी साहित्य दशा और दिशा- नन्दकिशोर तिवारी)
 
‘खुसरा चिरई के बिहाव‘ के कई संस्करण प्रकाशित होने की जानकारी मिलती है। यहां जिस संस्करण को आधार बनाया गया है, उसमें कपिलनाथ जी के नाम के साथ ‘शांत‘ उल्लेख है। उनका निधन सन 1953-54 में हुआ। यह पुस्तिका शिवरीनारायण मेले का आकर्षण होती थी, लेकिन मुखपृष्ठ का चित्र और तोता-मैना के संदर्भ के कारण, इसकी प्रतिष्ठा ‘केवल वयस्कों के लिए‘ वाली थी। यह कृति, चर्चित किंतु सहज उपलब्ध नहीं रही है, इसलिए यहां प्रस्तुत की जा रही है। प्रस्तुति में ‘- 1 -, - 2 - ... से - 32 -‘ तक, इस प्रकार दर्शाई संख्या, पेज नंबर हैं। मौलिकता को ध्यान में रखते, छपाई में प्रूफ की अशुद्धियों को यथावत रखने का प्रयास है।

- 1 - 
जय लखनेसर बाबा के 
खुसरा चिरई के बिहाव 

भर भर भर भर भरदा करैं। पाखन फोर चितरा संग लरैं।। 
तब पंड़का मन धाइन गोहार। मार पीट चलिगे तलवार।। 
लावा मूॅंड मुड़ाती है। तितुर कान छिदाती है। 
किसनाथी रोव गोड़ा तान। भरदा रोवैं झगरा जान।। 
पटइल बाबू संग संघाती। चढ़ बैठिन भरदा के छाती।। 
पीपर मां रैमुनिया बोलै। देखा पूत पिपरा झन डोलै।। 
कवका गिधवा धुनै निसान। लड़वैं गिद्ध समान।। 
- 2 - 
खुसरी बर सब लड़थैं। हमिच हमिच कहा थैं।। 
तेला सुनके निकरिस खुसरा। ठउका मोटहा अउ धम धुसरा।। 
जो तो बटेरिस आँखा ला। फट फट करके पॉंखी ला।। 
कचपच कचपच करे लगिस जब। सबो चिराई सटक गइन तब।। 
तब खुसरा के भईस बिहाव। कोन कोन का करिन उपाव।। 
तेला तूॅं मन सूना अब। सब नेव तरहा जूरिन जब।। 
गुंडरिया धान कुटाती है। सुहेलिया तेल चढ़ाती है। 
हरपुलिया हरदी पिसती है। रै मुनियां गारी गाती है।। 
मैना भात परोसती है। सब्बो लिटिया जेंवती है।। 
- 3 - 
घाघर दार परोस थें। हंसा हांस भकोसा थें। 
बकुला ढोल बजावा थे। कोकड़ा बरात जावा थें। 
अन्धरी कोकड़ा अउ बगरैला। घर मां रहि गइन माई पिल्ला।। 
ये मन घर ला देखा थें। रात के डिड़वा झड़का थे।। 
कौवा पतरी खीला थें। नौवा नेवता देवा थें।। 
सब नेव तरहा आवा थें। ओसरी पारा खाबा थें।। 
अटई खात अंचोवा थें। बटबई बरा बनावा थें। 
पन कोइला पानी लाना थें। बटेर पीठी साना थें।। 
छचान छाता ताना थे। हरील सब ला माना थे।। 
- 4 - 
ठेहूं गेहूं सुखावा थे। लेंधरा लाई ढोवा थे। 
कन्हैया साज सजावा थे। दहिगला दही जमावा थे। 
लमगोड़ी गोड़ ला ताना थे। पतरंगिया पतरी लाना थे।। 
धोवनिन ओढ़ना धोवा थे। कोकिला आरती गांवा थे। 
पपिहा पान प्यू करा थे। स्वाती बून्द अगोरा थे। 
राम चिरइया पत्रा वाला। गर मां पहिरे तुलसी माला।। 
पी पिया अगोरा थे। फां फॉं मार बटोरा थे। 
चकोर चकरी दारा थे। दपकुल दार निमारा थे।। 
अधरतिया रात के आवा थे। देवार मांग मांग खावा थे।
- 5 - 
सुरसा खिरमा नावा थे। कोढ़िया सूत के गावा थे।। 
छितकुल छेना जोरा थे। बटरेंगवा लकरी फोरा थे।। 
गुँरू गुरला बांटा थे। चांबा चोली छांटा थे। 
सारस साग परोसा थे। रौना खूब भकोसा थे।। 
गरूड़ आलू रांधा थे। सोना सींका बांधा थे। 
कोंच जलदी धावा थे। चील चीला खावा थे।। 
चकही चकहा चन्व चक। बाज कर लक्ब लक्व।। 
फररौबा झांपी जोरा थे। जुर्ग नरियर फोरा थे। 
चेंपा चटक बताब थे। श्याम सोहाग जोरावा थे।। 
- 6 - 
घुटनूँ सरबत घोंटा थे। पी पी लोटत पोटा थे। 
तिल खाई तील भकोसा थे। घिवरी घीव परोसा थे।। 
लीलकंठ हर राधा थे। घोघिया घोड़ा बांधा थे। 
पपई पापा बांटा थे। कट खेलावा कउवा काटा थे।। 
तोंदुल चाउर धोवा थे। भरही ले ले ढोवा थे।। 
टिटिही टीका देवाथे। तेल हर्रा तेल लगावा थे। 
किल कीला मउर परोंसा थे। बंदुआ बरा झकोसा थे। 
घुघुवा ताल मिलावा थे। गिदरी गारी गावा थे। 
कराकूल जोरत धारा थे। परेवा पापर जीरा थे। 
- 7 - 
बन्दक सून के लदका थे। कोइली बोली झड़का थे।। 
सल्हई सारी लाना थे। धन्नेस पूड़ी छाना थे।। 
सुआ नगला पड़ा थे। दच्छोना वर आड़ा थे।। 
केप केपी कप कप कारा थे। फुल चुवकी फूल धारा थे।। 
सइहा सिहरी टारे है। पोझा मां मुँह ला फार हैं। 
रम ढेकवा गठरी बांधा थे। कोनरीला कोनरी रांधा थे। 
बुल बुल सब ला बलाबा थे। सबके घर मां जाबा थे।। 
बड़का गिधवा बाहे डोला। तैं का देवे खुसरा मोला।। 
मटुक लगाके सारस बईठे। खुसरा के तब डेना अहंथे।। 
- 8 - 
कुकरी कांवर बोहे। कुल छुल कुरता लोहे।। 
अकारा अटक केचाला थे। गिरे गिरिाये संकेला थे।। 
पनखौली। खपरेला खैर ला नवा थे।। 
सारदुल सुपारी काटा थे। चिंबरी चूना बांटा थे।। 
चकहा चोंगी देवा थे। सबो बरतिया लेवा थे। 
फैम करी गारा थे। अयरी पपची जारा थे।। 
नकटायर नीसान धरे हे। चंडुल चल चल करे हे।। 
काका तू आ कांपा थे। बुल बुल चिउरा नापा थे।। 
रेखा सबलो रेरा रेरा थे। रेंडुली गूरला पेरा थे।। 
- 9 - 
फुदुबकुल फरा जोरवा थे। पनबूड़ी पकुवा ढोवा थें। 
गराज स भैइदूहा थे। अकोला मुंगुवा गूहाये थे। 
खम कुकरा मंडवा छावा थे। भुदुकुल भजिया नावा थे। 
कारंड काजर पारा थे। राय गीध दार निमारा थे।। 
खंजन काजर आंजा थे। कोक भॅंड़वा मांजा थे। 
बट कोहरी ईंटा ढोवा थे। रम्हई गोरस खोवा थे।। 
मजूर मकुट बनावा थे। सूई जामा सीवा थे।। 
पनसू पानी ढोवा थे। डुम डुम सबो अंचोवा थे।। 
टिहला टिंग टिग कारा थे। रंगे बर ललकारा थे। 
- 10 - 
सबो बजनियां आवा थे। वाजा कइसे बजावा थे। 
डोला बइठे खुसरा हर। ठउका मोटहा धुसरा हर।। 
सूना भाई वाजा। सब्बो ये मैर आजा।। 
।। निसान हर कैसे बांजे।। 
गुदुम गुम गुदगुद गुदरम गों ओं ओं ओं ओं 
पद्दा बुड़ मड़ ते तद्दा बुड़ मर थे। 
कुड़ कत्थे कुड़ कत्थे बुड़गा डिम।। 
कुड़ कत्थे कुड़ कत्थे बुड़गी डिम। 
देव्वे तभ्म लीहां कायां।। 
देब्वे तभरे लीहां कथा।।१।। 
।। ढोला हर कैसे बाजे।। 
गिड़ियांग गिड़ियांग गिड़ियांग। 
ददा जाहां नीतो बाबा जाही।। 
ददा जाही नीनो बाबा जाती।।२।। 
- 11 - 
।। मांदर हर कैसे।। 
येद्दे येद्दे लसरे लसर। येद्दे येद्दे लतर लतर।। 
थिन्दा थिन्दा थीन्दा टोटा मेर ला खून्दा।। 
घिन्दा घिन्दा घिन्दा। टोटा मेर ला खून्दा।।३।। 
।। तमूड़ा हर कैसे बाजे।। 
ढन ढना झुमें ढनढनी झुमें ढनढना झुमें ढन ढनी झुमें।।४।। 
।। करताल हर कैसे बाजे।। 
उड़दे मटमटी उड़दे मटमटी उड़दे मटमटी।।५।। 
।। खंरी हर कैसे बाजे।। 
डुमलान बासीला डुमलान बासीला।।६।। 
।। मोहरी हर कैसे बाजे।। 
यूँकरी पूँकरी पूँकरी पूँकरी। 
तोर बापनी बाँचे डोकरी डोकरी।। 
लेले लेले झोंकरी झोंकरी। 
कुकुर अइसन भोंकरी भोंकरी।।७।। 
।। डफड़ा हर कइसे वाजे थे।। 
- 12 - 
फद्द फदा फदफद्दा के। एकौझन पद्दके। 
हटर हटर हद्दके। चला जलदी झद्दके।।८।। 
।। टिमटिमी हर कइसे बाजे।। 
टनन टनन पैसा खनन। सब्बे च पाईन मोरेच। 
मरन दिन रात ला काटे हां। बैठि मये तो चाटे हां। 
लिर बिट लिरबिट लटर लटर। मोर थोथना चटर चटर।।६।। 
।। नफेरी हर कइसे वाजे।। 
धरबे धरबे धरबे धरबे धार धार धार धार परपरहा ला मार मार मार मार। 
धत्ता धत्ता धत्ता धत्ता। चीकडू धरबे पनही छत्ता। 
धात्तेरे की दहात्तेरे की। हत्तात्तेरे की जहा त्तेरे कि चहा त्तेरे की 
लेइहौं लइहौं तीस वीस। टाँय टाँय फिस फीस।। १०।। 
‘‘शिखिरिणि छन्द‘‘ 
( १ ) 
अब होम होवाथे। 
आँड़ारू के हाँडी हम दुनों चाटेन एकमां। 
- 13 - 
पछाड़ी जो चाटै तब झपट भागे चटकमां। 
कहाँ आये बाई अब भयेन भैटा झट इहां।। 
बसातो मोला तै अस सपट बइठे चुप कहां। 
सरूपा बिलरी होमा थे मुँह ला फार के।। 
दांत ला निकार के सुआहा ! हा ! हा !! हा !! 
चोकडू बिलरा पढ़ा थे। 
( २ ) 
चला जल्दी जाई धर झपट गांड़ा घरगियां। 
बने कारी खैरी ठन दशक ठउका हय चियां। 
उहां ले जो आवो झट उत्तर दमले भितरमां। 
सबै लइका मारै तब टरका भौंड़ी उपर माँ। 
( ३ ) 
विदारे लै लूठी कहि जुटहि रांडी मरमुखी। 
चला भागा भाई अस कहत जाबो घर दुखी। 
कहां जावो कोती अउ कहत माऊँ सुन सबो। 
सवै मारैं ढेला पिउ उपर दमले हपटबो। 
- 14 - 
सबौ दौड़ैं छेकैं धरहु आसब घर घरन मां। 
कई बरजैं बोलैं यहि रहैं सब दिन सरनमां। 
कहै ननकी बच्चा हय ज्ञान दसवा धरनमॉं। 
नही आवें सुसुवा झट झपट लटकत गरनमां। 
( ५ ) 
(अब आहुती धर के पूरा कराथ, 
सरूपा बाई तैं अब घिव सुपारी धर लेवा। 
सुना ठउका मंत्रा बस पुरिस जल्ली धर देवा। 
कहैं ‘सांता नंदा‘ अब जबड़ फदा फद फदा। 
आहा हा ! हा ! हा ! कर दुइ झपट्टा कुदकुदा।
 
‘अब विदा होवा थे‘ 
आंवर परिगे भांवर परिगे आउ पर गे टक्का 
खुसरीके मुंहला खुसरा देखके मारत लेगे धक्का। 
दस प्रकारके बाजा बाजे पढ़वैया मन भाये हे। 
भाग भैगे खुसर के रट पटही खुसरी पाये हे। 
घाघर भांचा खुसर जाना तेकर भइसा विहाव। 
- 15 - 
कपिलनाथ हर जोरिस येला बठिके पापर छॉंव 
भूले चूके छीमा करिहा मैं तो निचट अनारी। 
तू हरे हांसे वर झपयायै झनि दइहा मोलागारी 
लइका मनवर वनगे भाई हांसा आउ हंसवा 
एक बात ला मनिहा भाई येला सबेच बिछावा 
।। जय लखनेसर बाबाके।। 
अब डोला उठा थे। 
बिदाई के गीत ला सूना। 
खुशरौवां राजकरैना। जेके ब्रह्माके रेख टरेना। 
आवा जाहीं में कागा निकलिगे कौर्रोवां कागद धरैनां।। हो।। 
आंजत माजत मजरूवा चेतसि, बनवां निरत करैना, 
आधा सरगले भरुतो बोलै, कुरीं के बजार भरैना। 
झूलवा ऊपर रेखा बोले, गडुली चूं चूं करैना। 
सारस के मूंड पां मटुक विराजे, रमढेकया थैली धरैना। 
चार बंद पानी मां बिन बिन, कोतरीला थैली धरैना। 
- 16 - 
ताला भीतर ले पन बूड़ी बोले, अयरी कसर करैना। 
सन तो गोरिया मन हर करिया, बकुला छगल धरैना। 
लील कंठ कारा भखत, राम राम बिसरैना।। 
करन मा कैसो वोकर, दरसन कौन तरैना। 
सुधर परेवा मुंड़ी डोलावै, जोड़ो छिन विछुरैना।। 
खुट खुट खुट दाना खाथे, कांदी घास चरैना। 
भूसी मजूरो के काम नइये, गल गल घान चरैना। 
घाम सीत बरसा सब सहथै, आन सङ्ग झगरैना।। 
रोज रोज माठा जल पीथै, मटकी मां पानी भरैना।। 
- 17 - 
मनमो कतको मौज उड़ावै बिन हर भजन तरैना। 
चकोर हर अङ्गारा ला खाथै, ओकर चोंच जरैना।। 
जैकर हरि रच्छा करवैया, कोनो के मारे मरैना।। 
दिन मां अँजोरी रात के अँजोरी, बो घर दिया बरैना।। 
बिन दाया सीना रघुबर के, कौनो काम सरैना। 
आधा सरग चील मडराये, छत्ता तान धरना।। 
चका चका की रैन बिछाहा, खुसरा मौज करैना। 
खुसरा खुसरी दोऊ नाच, मन मा मौज भरना।। 
मैना मीठी तान सुनावै, सुअना भजन करैना। 
- 18 - 
गये जवानी ढूँढ़े मिलैना, लाख जतन बहुरैना। 
सब पंछी मिलि हरिगुन गाइन, मगल चार करैना।। 
कपिलनाथ आसा चरनन के, बिन हरि कृपा तरैना। हो। 
बिदाई के बेरा समधी मन भेट करे लागिन, तौ एक झन सियान बरतिया कहीस महराज ये खुशी आनन्द के बेरा माँ मोरो भजन के एक दू पद ला र न ला तूॅं हर मरजी होय तौ कहौं तौ सब मन कहीन का हो हो गावाना हो येमा पूछे बर का काम है। तेकर पाछू वो ही सियान। बरतिहा हर झूल झूल के गाये लागीस।। 
।। जय लखनेसर बवा।। 
दुलहा डौकी ला सुनाय के गाथै, 
चम गेदरी भये वो रानी भाना।।वो।। 
वो तो गुरू के बचन नहि माना। वो। 
- 19 - 
मोती सिरा रानी ला छांड़ि के। भाना वर पंच रेंगना। 
चार कुटुम ला घर बइठांर के। घर के जमा लुटाना।।१।। 
मइके ले ससुरे मां आये, एँड़ा के दरस नइ पाये। 
दिन के तोला कैद करैहों, रात के पंथ चलाना।।२।। 
अस्ती ले तोर मस्ती आये, रंग में रंग मिलाना। 
भाव भजन के मरम म जाने, मनुख जनम नहिं पाना।।३।। 
बालापन मां खेल गंवाये, ज्वानी में रङ्ग नाना। 
बिरधापन अब आन तुलाना, हीरा अस जनम गंवाना।।४।। 
तैं भाना माया मोह मां भुलाये, काम क्रोध मन 
- 20 - 
बार बार तोला गुरु समझावै, हरि के भजन नहिं जाना।।५ 
घर के पुरुष पथाना बद मानैं, गुरु का काठ मसाना। 
गुरु के बचन पुरुख के कहना, एक्वोला नहिं माना।। ६।। 
कंचन के मोर देहिया बमे हैं, मन मां भरे गुमाना। 
कैसे के तोरे चरन पखारौं, जगिय मोला बताना।।७।। 
तोला देइहौं चम गेदरा के चोला, उलटा डार झुलाना। 
पिया के बचन ला माने नाहीं, परे नरक के खाना।।८।। 
दिन भर भान अंधरी रहिबे, दोउ नैना मां टोप लगाना 
रात रात भाना चारा चरबे, गिंजर भूल घर आना।६। 
- 21 - 
कहाँ के जोगी कहां के जिड़ा, कहां के हो बट पारा। 
पशु पंछी सब सोवन लागे, दुख मां रैन गवाना। १०। 
धन दौलत तोर माल खजाना, सबै छूट यह जाना।
कर सत सङ्ग गुरु चरनन के, तब ओही घर पाना।।११।। 
सत गुरु बचन सुनो भाई साधो, हरि के चरन चितलाना। 
हरि के चरन मां प्रान बसत हैं, छोड़ चरन कहं जाना।। १२।। 
(बरतिया ला सुनाय सुनाय के कथैं ) 
चिरई के नाव 
चीं चीं चीं चीं करती है, चार चिरिया आवत हैं। 
निवरा सुदिन बिचारता हैं, ठुमक ठुमुक मन 
- 22 - 
हरती हैं।। भर भर भरनी करे। पाथर फोर चितरा से लरे।। 
बप चितरा के औरे बात, ओकर कोई न पावैं घात।। 
तब मन सांकर टोर पराय। ढूँढ़े मिले न कोट उपाय।। 
बांझी के पीउ तरे तखार। ओला कांबर रचिस करतार।। 
दहिंगला दही जमाती है। पतरिलवा पानी डुहरती है।। 
कजरिलवा भात पसाती है। गौरेलिया पाठ पढ़ाता है। 
कठ खुलही कठवा खुलता है। मैना कैसे नचती है।। 
तीतुर तार मिलाया है। बकुला ढोल बजाया है। 
पहार ले बोल अखॅंडा, मोर पूँछा मां बांधा डंडा।। 
मै सब चिरइन का करिहौं बंडा, 
पहार ले बोले बावन वीर।। मोर पूँछी मां बांधा तीर। में लड़िहौं लिट्टी सों बीर।। 
बांस के पूत बसौंधा डोले। मोर बांह बल है अनमोले।। 
नौबाहाथे मूडमुंडाऊं। मोर असमंत्रीला कहँपाऊं।। 
मैं मारौ दहराके कोतरी। बिन बिन बोला डोरौं ओदरी।। 
सारस लमगोड़ी हर बैठे। जग थाला इक थाला ऐंठे।। बैठे बंदर बाह 
- 23 - 
डुलावे। खावे फल अउ गाल फुलावे।। 
ऊपर से उपरेल्हा रेंगे बांधे तीर कमान। जांवर खरदा लिटिया दाबे दल में बजे निशान।। 
सब चिरई जुर मिलि के नेवता करी विचार। अटैल नेवतै बटैल नेवते कुरौं के दल भारी।। 
हाथ गोड़ है सुरकुट मुरकुट, मूं ओकर बड़ भारी। लाख चिरैया माँ कुर्री के दलभारी।। 
सवा सवालाख चिरैया माँ कौन पियावै दूध। सवालाख चिरैया माँ चम गिदरी पियाइन दूध। 
बैंगा चिरई सगुन विचारै सबमिल होइन डेड़हा। माई पिल्ला नेवता जायें घर में दीहिन बेहड़ा।। 
कौने वर का लानी भाई, कुहरी बाज झनजानै। उनका सोरलगे ना पावे, नहिं तो झगरा ठानै। 
खुसरा चलिन बिहाये बर, तोरातीं भाजा खबाइन, भाग भैगे खूसर के छचान नइ पहुंचाइन।। 
खुसरा राते आवै राते जाय राते लगन सधावै। बैजनाथ चिरईला भेंटिस बनत बात बिगड़ावै।। 
मटुक बांध के सारस अम्बे, लम्बा गरदन खूब 
- 24 - 
हलावे, अड़वन्द दहिंगला साजे, सुहेलर के बड़ भाग। गौड़ चिरई रैमुनियां बोले तेरा सुनावै राग। 
हरहर मड़वा करे, खुसरा बर के दाइज परे अचहड़ पर गये पचहड़ परगे परगे दाइज टक्का। 
खुसरी के मुँहला खुसरा देखे मारन लये धक्का।। 

अन्न के नांव 
तिल कहै मैं कारो जात, मैं बरिहौं अंधियारी रात। 
बेई कहै मैं कटहा जात, छेरिया खात न गरुआ खात। 
मोहिं बेई का ठाढ़ धंसाव, मोहिं बेई के तेल पेराव। 
मसुरा कहै मोर पेड़ झिथरी, दरे छरे में दिखों सुन्दरी। 
राहेर कहै रहरटिया खास, बिन कौले ना लागौं मिठास। 
बटुरा कहै मैं ढुल २ जांव, रोवत लइका ला भुरियांव। 
कूट काट कोठरी में धरिन, काम परेलडुआ बर हेरिन। 
तिवरा कहै मैं भाभर भोर गुज 
- 25 - 
गुल भजिया होत है मोर। 
जौन बतर लुए किसान, तब अरुअन के बांचिस प्रान। 
तब तिवरा मैं हाथे आंव, नहिं तो चटक खेत रहि जांव। 
अंकरी कहै मोर नइये चाह, मोहू का नइये पर वाह। 
एक साल में परिस दुकाल माई पिल्ला भइन बिंहाल। 
ठाढ़े पीसैं रोटी बनावैं, बैठे माई पिल्ला खावैं। 
उरिद कहै मोर मेघई नांव, महीं बसावो गंवाई गाँव। 
मोरे चकरी मोरे पहीत, मै बेठारों समधी सहीत। 
ए देह जरी सहैना जाय, बेड़हा अरसी चले रिसाय। 
उरिद के पीठी अरसी के तेल, इन दूनों ताई में होय वह पेल। 
चुर चुर बरा गये उपलाय, समधिन के मन मां आय। 
उरिद कहै मोर पेंड़ झिथरी, मैं वइतौं समधिन भितरी। चना 
कहे चक्वे कहायों, डारा पाना सबे खवायों। 
वारे पन में मूड़ मूड़यों, भर जवानी में फूल खोचायों। 
बुढ़त काल में ठुन ठुन बाज्यों तवहूं छोडिन नही किसान। 
अब कैसे मोर बांचे प्रान 
- 26 - 
एक साल में परिस दुकाल, 
गेहूं चना भइन विहाल गेहूं गोसैयाँ मर गये, चना गोसैयां जी गये। 
तब गेहू के छाती फाट, चटक चना के नाक उचाट। 
कुटकीं कहैं में तालम तूल, मोर भात कंबल कस फूल। 
गोंड़ गिराहीं नुनियां खांय, बड़े आदमी बहुत न खायं। 
काँग, मुडिला ज्वार बाजरा, हम चारों के भैयाचारा। 
कोंहडा कहैं मोर पेंड दुरिदा, मोलां देइन छानी कुरिया। 
जोंथरी कहै मैं सबल हीन, कोला पिछौता मोका दिहीन। 
माथे फूलों पांजर फरों बहुते जाय तो कुतरक धरौं। थोरे खाय तो मन ना माढो, 
अंडी कहै मोर तेल गढ़ार, मोर बिन गाड़ा पैर गोहार। 
कोदों कहैं मैं सब ले बसे, मोर बिना न रइ है देस। 
धान कहै मैं एकइ धना, सोन के डाड़ी रूप के फना। 
सरसों कहै सरसोंवाँ कहायो, रोग राग सब दूर बहायों। 
धनियाँ मिरचा लेहौं मिलाय मैं आमा का देहाँ खवाय।। 
- 27 - 
रूख के नांव, 
ओक धतूरा अन्डा भइन चन्दन औ वग रंडा भईन। 
कुम्ही अमेरा करन भइन, मेंहदी ग्वालिन दहिमन भईन। 
कैथ अमुरी गिंदोलन भईन, लाल साय बिजरा के भईन। 
चुहरा पेड़ तिवरैया भईन, कटहा झाड़ मकोइया भईन। 
धंवई और अरैला भईन, बिही लिमाऊ पतुवन भईन। 
सेम्हर सिरको कुरु भईन, डोकर बेला मेलन गईन। 
बिकट बिकट सूख घनेर, दुरिहा ले देखै वो धन बहेर। 
शोभित मौहा तेंदू चार लीम वकायन और वोहार हरी। 
औरा धौरंग बढ़ी, कसही कोलम साल्हो खड़ी। 
और रूख के करौं बखान, तेका सुनला धरके ध्यान। 
करी कोरिया बोइर के झाड़, येना छाड़े जंगल पहाड़। 
पेड़ घडोली फेर बमूर, फर फर बेल उन्हंू रहें मूल। 
घोट घांट खैर खरहार, ये हू बनमां करे बिहार। 
आमा अमली मुनमा मिलिन, पियरी फूल सिर हुट के फुलिन। 
ताल छींद में और सुपात, तब 
- 28 - 
नरियरकेबारी सुहात। 
कलमीमलिया माचिन, तिन पर बैठ चिरैया नाचिनि। 
कटंग मचोलन लागिन झूल, तब देखा तिलई के फूल। 
सरई, साजा, परस, परार राजकाज में लग्यों अपार। 
सीताफल, कदली अउ जाम, डुमर आवे सबके काम। 
दहिमन सुनसुन पांडर भईन, कदम झाड़ का मिलिन। 
गइन जरहा पो तेंदुके भईन, थूहा में डर और अकोल, बेदुल बांस रहे घने घोल। 
अमटी रोहिना लाले लाल, फरैं मैन फल और सुताल। 
नरंग बिजारी दरमी तूल दिखै बगीचा फूल।। 

अब समधी के फजीता ला छेवर मां सूना। 
दुलहा हर तो दुलहीं पाइस, बाम्हन, पाइस टक्बा। 
सवबैं बराती बरा सोहारी समधी धक्कम धक्वा। 
नाऊ बजनियां दोऊ झगरैं, नेग चुकादा पक्वा। 
पास मां एको कौड़ी नइये, समधी हक्वा बक्वा।। 
काढ़ मूसके ब्याह करायों, गांठी सुक्वम सुक्वा। 
सादी नई बरवादी भइगे, घर मां फुक्वम
- 29 - 
फुक्का। पूँजीहर तो सबे गाव, अब काकर मूतक्का। 
दुटहा गोड़ा एक बचेहें, वोकरो नइये चक्का। लागा दिन दिन बाढ़त जाथे, साव लगावे धक्का।। 
दिन दुकाल ऐसन लागे हे, खेत परे है सुक्का। लोटिया थारीं सबो बेचागे माई पिल्ला भुक्का।। 
छितकी कुरिया कैसन बचि है, अब तो छूटिस छक्का।। आगा नगाथैं पागा नगाथैं, और नगाथैं पटका। 
जो भगवान करें सो होहो लल्दा इहं ले सटका।।

ले भाई भइगे। राम राम जोहार जाथन दया मया धरे रइहा। कहें सुनेला छीमा करिहा भगवान के मरजी होही तब फेर मिल बो। अब थोरकन लखनेसर वावा के अस्तुती कर ला 
जेमा तूंहर दुख दरिद्र हर छुटही 
( १ ) 
जयति शंभु स्वरूप मुनिवरं, चन्द्रशीश जटा धरम्। 
रुंड माल विशाल लोचन, वाहनम् वृषभ ध्वजम्। 
नाग चम त्रिशूल डमरू भस्म 
- 30 - 
अंग विहंग मम्। 
श्री लक्ष लिंग समेत शोभिम विपति हर लखनेश्वरम्।। 
( २ ) 
गंग संग प्रसंग सरिता, कामदेव सेवितम्। 
नाद बिंदु संयोग साधन, पंच वक्र त्रिलोचनम्। 
इन्दु शशि धर शुभ्र मस्तक, सेवितं सुर वंदितम्। 
श्रीलक्ष लिंग समेत शोभित, विपति हर लखनेश्वरम्। 
( ३ ) 
लक्ष लिंग सुलिंग फणि मणि, दिव्य देव सु सेवितम्। 
सुमन बहु विधि हृदय माला, धूप दीप नैवेदितम्।। 
अनिल कुंभशुकुंभ झले कत कलश कंचन शोभितम्। 
श्री लक्ष लिंग समेत विपति हर लखनेश्वरम्। 
(४) 
मुकुट क्रीटक कर्ण कुण्डल, मंडितं मुनि वेषितम्। 
भंगहार भुजङ्ग, लंकृत कनक रेख विशेषितम्।। 
लक्षलिंग समेत शोभित विपति हरलखनेश्वरम्। 
- 31 - 
मेघ डमरू छत्र धारन चरन कमल रिशालितम्। 
पुष्परथ पर बदन मूरत गौरी संग सदाशिवम्।। 
क्षेत्रपाल सुपाल भैरव कुसुम नवग्रहमूषितम्। 
श्री लक्ष लिंग समेतशोभित विपतिहर लखनेश्वरम्, 
(६) 
त्रिपुर दैत्य सु दैत्य दानव प्रात्यते फलदायकम्। 
रावण दशकमल मस्तक अङ्ग जल शायकम्।। 
श्रीरामचन्द्रसुचन्द्र रघुपति सेतुबन्ध निवासितम्। 
श्रीलक्ष लिंग समेत शोभित बिपतिहरलखनेश्वरम्। 
(७) 
मथित दधि चल शेष विगलित भ्रमत मेरु सुमेरुकम्। 
स्नयत विख जल दीयत् प्रनवत पुमत नेत्र सुयोरकम्।। 
महादेव सुरपति सर्व देव सदा शिवम् श्रीलक्ष लिंग समेत शोभित विपति हर लखनेश्वरम्।। 
(८) 
 रुद्ररूपसुतेजमक्रित, भक्षमानहलाहलम्। 
गगन विघतन अखिल धारा, आदि अन्त समाहितम्।। 
- 32 - 
कामकंजर मानकेशव महाकाल सदाशिवम्। 
श्री लक्षलिंग समेत शोभित, विपतिहरलखनेश्वरम्।। 
(९) 
ऋतु वसन्त चक्र चहुं दिशि, प्राप्यते फल दायकम्। 
नग्र खर उद दिशा पश्चिम बास मंगल दायकम्।। 
सन्मुखे कर्बदे लिंग नन्दि भैरव शोभितम्। 
श्री लक्ष लिंग समेत शोभित विपति हर लखनेश्वरम्।। 
( १० ) 
दिशा पश्चिम कुण्ड लक्षमण, नैऋते रघुनन्दनम्। 
ईश दिशि गोपाल रंजित, साक्षि ईश्वर उत्तरम्। 
गर्भ ऋतु मुख श्री गजानन, गंग जमुन सुवाहनम्। 
नन्दी गण युत मध्य सुन्दर, जयति जय लखनेश्वरम्।। 
अब समापत होंये - 
लिखवइया -
कपिलनाथ मिसिर पुजेरी शांत, लखनेसर 
महादेव गाँव - खरऊद, डाकघर - सौरी नरायन
जिला - बिलासपुर (मध्य प्रदेश)
पुस्तिका का पहला और अंतिम पृष्ठ
 - - - - 

सिंहावलोकन‘ में चिड़ियों पर अन्य पोस्ट के लिंक-

2 comments:

  1. Hello sir my name is dharmendra I read your blog, I loved it. I have bookmarked your website. Because I hope you will continue to give us such good and good information in future also. Sir, can you help us, we have also created a website to help people. Whose name is DelhiCapitalIndia.com - Delhi Sultanate दिल्ली सल्तनत से संबन्धित प्रश्न you can see our website on Google. And if possible, please give a backlink to our website. We will be very grateful to you. If you like the information given by us. So you will definitely help us. Thank you.

    Other Posts

    Razia Sultana दिल्ली के तख्त पर बैठने वाली पहली महिला शासक रज़िया सुल्तान

    Deeg ka Kila डीग का किला / डीग की तोप से दिल्ली पर हमला

    प्राइड प्लाजा होटल Pride Plaza Aerocity || Pride Hotel Delhi

    दिल्ली का मिरांडा हाउस Miranda House University of Delhi

    ReplyDelete
  2. Wow 😳 क्या कविता है खुशरा चिराई के बिहाव 😂😂

    ReplyDelete