भरतपुर, जिला कोरिया की पुरासंपदा परिचय
छत्तीसगढ़ के उत्तर पश्चिम सीमांत भाग में स्थित कोरिया जिले का भरतपुर तहसील प्राकृतिक सौदर्य, पुरातत्वीय धरोहर एवं जनजातीय/सांस्कृतिक विविधताओं से परिपूर्ण भू-भाग है। जनमानस में यह भू-भाग राम के वनगमन मार्ग तथा महाभारत कालीन दंतकथाओं से जुड़ा हुआ है। नवीन सर्वेक्षण से इस क्षेत्र से प्रागैतिहासिक काल के पाषाण उपकरण प्रकाश में आए हैं। इसके अतिरिक्त शैलाश्रयों की विस्तृत श्रृखंला भी ज्ञात हुए हैं जिनमें से कुछ चित्रित भी हैं। ज्ञात पाषाण उपकरण तथा शैलचित्रों से ज्ञात होता है कि पाषाण युग में यहां आदिमानव संचरण करते थे। इस अंचल का प्राकृतिक भूगोल आदि मानवों के संचरण के लिए उपयुक्त स्थल रहा है। सोन नदी के प्रवाह के विस्तृत क्षेत्र में पल्लवित आदि मानवों की संस्कृति से लेकर निरंतर ऐतिहासिक युग तक यह अंचल सांस्कृतिक समन्वय से प्रभावित होता रहा है।
ऐतिहासिक काल में यह भू-भाग त्रिपुरी के कलचुरियों के द्वारा शासित रहा है। रियासत काल में भरतपुर श्चांग भखारश् के नाम से जाना जाता था। दुर्गम वन तथा विभिन्न प्रकार के वन्य पशुओं के लिए यह प्रख्यात था। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पश्चात् नवीन जिलों के पुनर्गठन के फलस्वरूप सरगुजा जिले का एक भाग (उत्तरी पश्चिम भाग) कोरिया जिले के रूप में आकारित हुआ है। विस्तृत सर्वेक्षण तथा अन्वेषण से इस क्षेत्र के अज्ञात पुरास्थल तथा धरोहर धीरे धीरे प्रकाश में आ रहे हैं जिससे छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास की रूपरेखा और सांस्कृतिक विरासत के विवध तथ्यों पर नवीन प्रकाश पड़ने के साथ साथ ऐतिहासिक पर्यटन के ये स्थल चिन्हित हो रहे हैं।
कोरिया जिला 23° 25' अक्षांश उत्तरी एवं 82° 55' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। भरतपुर तहसील इस जिले का उत्तरी/पूर्वी सीमांत भाग है। वर्ष 2013 में भरतपुर तहसील के ग्रामों का पुरातत्वीय सर्वेक्षण संपन्न किया गया है। इस सर्वेक्षण में मुख्य रूप से अंचल के नदी तटवर्ती क्षेत्रों के आसपास के स्थल एवं ग्रामों पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया गया था। सर्वेक्षण से ज्ञात महत्वपूर्ण पुरास्थलों की सम्यक जानकारी क्रमशः प्रस्तुत है।
शिवमंदिर घघरा- यह प्राचीन भग्न देवालय भरतपुर कोटाडोल सड़क मार्ग पर 14 वें किलोमीटर की दूरी पर स्थित घघरा ग्राम में शिखर मूल रूप में बचा हुआ है एवं मंडप पूर्णतः विनष्ट है। निम्नतल युक्त जगती पर, मंदिर का ऊर्ध्व विन्यास तराशे गये शिलाखंडों से किया गया है। अधिकांश शिलाखंडों पर गवाक्ष निर्मित हैं जिनके मध्य मानव मुखाकृतियाँ उत्खचित हैं। दक्षिण कोसल की स्थापत्य कला में मानव मुखाकृतियाँयुक्त गवाक्ष से शिखर इस मंदिर की विशिष्टता है। इस मंदिर का प्रवेश द्वार अपेक्षाकृत छोटा है। द्वार शाखाओं पर लता वल्लरी उत्खचित हैं। जंघा भाग पर पारंपरिक प्रतिमाओं का अभाव है तथापि गवाक्ष अलंकरण योजना तथा सम्मिति दर्शनीय हैं। शिखर के सम्मुख भाग पर स्थित देव कोष्ठ तथा अश्व नालाकार आकृति युक्त शुकनासिका अब प्रतिमा विहीन है। शुकनासिका के मध्य बाहर की ओर निकला हुआ शिलाखंड इस मंदिर के शिखर विन्यास का विलक्षण प्रयोग है। मंदिर परिसर में एक पीपल के वृक्ष के नीचे जलहरी तथा सिंह की प्रतिमा रखी हुई है जो इस मंदिर के अंग रहे होंगे। अवशेषों के आधार पर यह शैव मंदिर ज्ञात होता है। कला शैली के आधार पर यह 13 वीं सदी ईसवी के परवर्ती कलचुरियों के काल में निर्मित स्मारक अनुमानित है।
सीतामढ़ी (घघरा)- ग्राम घघरा से लगभग 2 किलोमीटर दूरी पर राँपा नदी के बायें किनारे पर एक उत्तराभिमुखी प्राकृतिक गुफा है जिसे स्थानीय ग्रामवासी सीतामढ़ी के नाम से जानते है। इस गुफा के मध्य में एक गर्भगृहनुमा संरचना है जिसके चारों तरफ प्रदक्षिणापथ निर्मित है। गुफा में दाये तरफ एक कक्ष है जिसके मध्य में शिवलिंग जलहरी सहित विद्यमान है। गुफा के दायें तरफ भी एक कक्ष है जिसमें भी शिवलिंग जलहरी सहित विद्यमान हैं। मध्य कक्ष के सम्मुख भाग में दोनों तरफ भित्ति में शैवद्वारपाल का अंकन है। इसी तरह बायें पार्श्व की भित्ति में भी प्रस्तर प्रतिमा उत्कीर्ण है। मध्य कक्ष के सम्मुख भाग में एक लम्बा आयताकार बरामदा है जिसके बाहर तरफ तीन प्रवेश द्वार हैं। प्रवेश द्वार के दायें पार्श्व में निर्मित कक्ष की छत विनष्ट हो चुकी है। इसी गुफा के सम्मुख राँपा नदी प्रवाहित होती है। यहाँ पर दर्शनार्थी पूजा अर्चना करते हैं। विशेष पर्व पर यहां मेला भरता है। इस गुफा के निर्माण के बारे में कोई विशेष प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं फिर भी इसकी बनावट तथा संरचना के आधार पर इसे कलचुरी शासकों के काल में 13-14वीं शताब्दी ई. में निर्मित माना जा सकता है।
हरचौका- यह ग्राम भरतपुर से उत्तर में सीधी मार्ग पर लगभग 30 किलोमीटर दूरी पर मवई नदी के किनारे बांयें तट पर स्थित है। नदी के बांयें तट पर पत्थर को काटकर सीतामढ़ी नामक उत्तराभिमुखी गुफा निर्मित है। इसके पूर्व के खण्ड में एक लम्बा बरामदा है जिससे संलग्न पांच कमरे हैं। इन कमरों में शिवलिंग स्थापित हैं। इस खण्ड के बायें तरफ की भित्ति से संलग्न एक लम्बे गलियारे में दांये तरफ दो कक्ष निर्मित हैं।
इसके बाद उत्तर के खण्ड में भी उत्तराभिमुखी कमरे पत्थर को काटकर बनाये गये हैं। इससे संलग्न बरामदा स्तंम्भों पर आधारित था। वर्तमान में इस बरामदे की छत नष्ट हो चुकी है। इन कमरों में भी चौकी के ऊपर शिवलिंग जलहरी सहित स्थापित हैं। इस बरामदे के एक कक्ष में सप्तमातृका तथा महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमा स्थापित हैं। पश्चिमी किनारे पूर्वाभिमुखी है कक्ष में उमामहेश्वर की प्रतिमा स्थापित है। इसके दक्षिणी किनारे पर स्थित बरामदा का जिसकी छत ध्वस्त है। इस बरामदे के बाहर में भी दो कमरे निर्मित थे जिनकी छत नष्ट हो चुकी है। इस खण्ड का प्रवेश द्वार नदी की तरफ था जिसे वर्ष 2004 में स्थानीय ग्रामवासियों द्वारा निर्मित की गई है।
कंजिया- यह ग्राम जनकपुर से पश्चिम में शहडोल रोड पर लगभग 40 किलोमीटर दूरी पर ओदारी नदी के किनारे दायें तट पर स्थित है तथा मोरइली नाले के दायें तरफ सीतामढ़ी नामक गुफा एक पहाड़ी चट्टान के ऊपर निर्मित है। इसमें पीछे तरफ दांये कोने में कक्ष है।
यहाँ की अधिकांश गुफाओं के छत ढह गई हैं तथा कुछ क्षतिग्रस्त स्थिति में हैं। इस गुफा से सम्बंधित कोई भी अभिलेख वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं लेकिन स्थापत्य संरचना के आधार पर इसका निर्माण काल घघरा में निर्मित गुफा के समकालीन प्रतीत होता है।
पाषाणकालीन उपकरण- ग्राम कंजिया में सीतामढ़ी के आसपास विविध आकार प्रकार के लघु पाषाण उपकरण अत्यधिक मात्रा में प्राप्त होते हैं। संभवतः इसी गुफा के आसपास आदिमानव लघु पाषाण उपकरणों का निर्माण करते रहे होंगे। यहां सूक्ष्म पाषाण उपकरण निर्माण करने का कार्यशाला रहा होगा।
छतोड़ा- यह ग्राम भरतपुर से कोटाडोल रोड पर लगभग 40 किलोमीटर दूरी पर, घासीदास अभ्यारण्य के बाद, कच्चे रास्ते पर स्थित है। यहाँ पर एक पत्थर की चट्टान को काटकर दो प्रस्तर स्तंभों के मध्य तीन प्रवेशद्वार युक्त गुफा का निर्माण किया गया था। इसमें बाहर तरफ एक लम्बा बरामदा है जिसके दोनों किनारे पर एक प्रस्तर का चबूतरा निर्मित है। इस बरामदे के मध्य में एक प्रवेश द्वार है जिसके अन्दर कमरा निर्मित है।
तिलौली- यह ग्राम जनकपुर से पश्चिम में शहडोल रोड पर लगभग 40 किलोमीटर दूरी पर स्थित ग्राम कंजिया तथा भंवरपुर के पश्चात लगभग 6 किलोमीटर दूरी पर पहाड़ी की तलहटी में बसा है। यहाँ से लगभग एक किलोमीटर दूरी पर पहाड़ी के ऊपर गढ़ादाई नामक स्थल में प्राकृतिक शैलाश्रय है।
लावाझोरी- ग्राम लावाझोरी घघरा से लगभग दो किलोमीटर दूरी पर राँपा नदी पार करके 5 किलोमीटर दूरी पर जंगल की तलहटी में स्थित है। इस ग्राम से लगभग 2 किलोमीटर दूरी पर पहाड़ी के ऊपर घोड़बंधा नामक स्थान पर शैलाश्रय हैं। यहीं पर लगभग 100 फीट ऊँचे पानी के दो प्राकृतिक झरने हैं
रमदहा जल प्रपात- यह जल प्रपात बनास नदी पर निर्मित है। यह स्थल मनेन्द्रगढ़ से भरतपुर जाने वाले रास्ते पर लगभग 65 किलोमीटर दूरी पर ग्राम भवंरपुर के समीप बनास नदी तथा बिचली नाले के संगम स्थल पर स्थित है। इस जल प्रपात की ऊँचाई लगभग 150 फीट संभावित है। बनास नदी के उस पार लगभग 15-16वीं शताब्दी ई. के कई मंदिर निर्मित थे जिनके मात्र अवशेष विद्यमान हैं। इनमें से एक शिवमंदिर तथा कुछ विष्णु मंदिर प्रतीत होते हैं। इसी स्थल पर अनेकों सती स्तंभ भी बिखरे पड़े हैं।
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