Tuesday, January 18, 2022

लाफा-चैतुरगढ़ ट्रेक

यूथ हास्टल से मेरा परिचय 1980-81 में भोपाल में हुआ और तभी मैंने वाईएचआई, यूथ हास्टल्स एसोसिएशन आफ इंडिया की आजीवन सदस्यता ले ली थी। लगभग 15 साल बाद यात्रा के दौरान पुरी, तिरुपति और चाणक्यपुरी, दिल्ली में हास्टल में आसरा लिया और बिलासपुर के आसपास लाफा-चैतुरगढ़ तथा दलहा पहाड़, अकलतरा के ट्रेक के आयोजन में शामिल रहा। लाफा ट्रेक का संस्मरण तब 13 जनवरी 1996 के दैनिक समाचार पत्र ‘नवभारत‘, बिलासपुर में इस प्रकार प्रकाशित हुआ था- 

बंद गुफा की दन्तकथा सुनते, पहाड़ी पर इसके चैत्याकार कटाव को देखते, लाफागढ़ के तिलस्म को भेदने की इच्छा-उत्कंठा और सीधी खड़ी चुनौतीपूर्ण चढ़ाई पर आगे बढ़ने का रोमांच ही उस उत्साह का संचार करता है, जिसके सहारे कदम आगे बढ़ते हैं और पहाड़ी की किलोमीटर भर ऊंची दूरी ‘सर‘ होने लगती है। दिसम्बर के सुबह की रेशमी धूप की रोशनी भी मुलायम थी। स्कूली बच्चों का अदम्य उत्साह और ग्रामवासियों का हैरत भरा सवाल ‘पैदल जायेंगे..?‘ गर्मजोशी से भरा था। श्रीमती रत्ना राय बुखार से तपती दवा खाकर स्वस्थ्य बने रहने का प्रयास कर रही थीं। सैंतालीस वर्षीय श्री रंजन राय, दमा से पीड़ित, एस्थिलीन लिये और श्री विवेक जोगलेकर उच्च रक्तचाप के मरीज। इन सभी ने अपनी व्यथा, अपने तक सीमित रखी और अपना उल्लास खुले मन से सब बांटते रहे, यात्रा शुरू हुई। 

उपरोक्त पंक्तियाँ किसी कथा की पृष्ठभूमि नहीं वरन इसी शहर की एक संस्था यूथ हास्टल द्वारा आयोजित, स्थानीय स्तर पर मैकल (लाफागढ़) ट्रेकिंग ‘95 से संबद्ध है। 

चैतुरगढ़ या चितूरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध यह स्थल, बिलासपुर से पाली-लाफा होकर लगभग 82 किलोमीटर दूर स्थित है। यह स्थान पुरातात्विक उपलब्धियों व प्राकृतिक, धार्मिक कारणों से भी विख्यात है। लगभग एक किलोमीटर (3244 फीट) ऊंची तथा 15 वर्ग किलोमीटर विस्तृत, इस पहाड़ी पर बारहवीं से सोलहवीं सदी ईस्वी तक के कलावशेष विद्यमान हैं। इस सीधी खड़ी चढ़ाई वाली पहाड़ी ने पिछले सदी के अंग्रेज पुराविद् मि. बेग्लर तथा वन संरक्षक कैप्टन जे. फारसिथ को आकर्षित किया था। अनियमित चारदीवारी तथा हुंकरा, मनका व सिंहद्वार युक्त पहाड़ी पर महिषासुरमर्दिनी का एक प्राचीन मंदिर तथा तालाब है। लाफागढ़, गढ़ा मंडला के गोंड राजाओं रतनपुर के कलचुरि शासकों की सूची में रहा है और परवर्तीकाल में इस पर लाफा के जमींदारों का पूर्ण आधिपत्य हो गया। यह पहाड़ी प्राकृतिक सौंदर्य औषधिगुण युक्त वृक्षों, पशु-पक्षी संपदा के साथ ही एक छोटी नदी जटाशंकर या अहिरन का उद्गम स्थल होने के कारण भी प्रसिद्ध है। 

गत वर्ष मई माह में यूथ हास्टल के निरीक्षण में दल ने ट्रेकिंग के लिए लाफागढ़ की यात्रा की थी तथा पिछले दिनों 24 व 25 दिसम्बर को यूथ हास्टल की बिलासपुर इकाई द्वारा विधिवत् प्रथम ट्रेकिंग का आयोजन किया गया। यह संस्था, युवक-युवतियों तथा युवा-भावना युक्त व्यक्तियों को, स्वच्छंद किन्तु अनुशासित भ्रमण के लिए प्रेरित कर, इस हेतु आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था करता है ताकि व्यक्ति, निजी शारीरिक क्षमता के साथ प्रकृति, पर्यावरण, इतिहास और संस्कृति का ज्ञान-मधु एकत्र कर, जागरूक हो सकें। यूथ हास्टल द्वारा आयोजित ट्रेकिंग तथा अन्य कार्यक्रमों के लिए केन्द्र शासन, राज्य शासन, बैंकिंग सेवा आदि के कर्मचारियों को विशेष आकस्मिक अवकाश की पात्रता देता है और प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र भी दिये जाते हैं। बिलासपुर इकाई के पदाधिकारियों और सदस्यों ने गत वर्षों में यूथ हास्टल एसोसिएशन द्वारा आयोजित विभिन्न राष्ट्रीय ट्रेकिंग कार्यक्रमों में सफलतापूर्वक भाग लिया है, जिनमें सतपुड़ा (पचमढ़ी) ट्रेकिंग हिमालयन सारपास ट्रेकिंग व कुल्लू-चंद्रखान प्रमुख हैं। 

ट्रेकिंग आरंभ करते हुए दल को, पूर्व विधायक लाल कीर्तिकुमार, सरपंच श्री इन्द्रजीत सिंह तथा संयोजकों ने संबोधित किया, जिसमें ट्रेकिंग का परिचय, आवश्यक सावधानियों, निर्देशों के साथ यह भी ध्यान दिलाया गया कि दल का कोई भी सदस्य प्लास्टिक, पालिथीन, रैपर, कवर आदि न फैलाये बल्कि रास्ते में मिलने वाली ऐसी वस्तुएँ एकत्र करें और जो सदस्य सर्वाधिक रैपर एकत्र करेगा, उसे पुरस्कृत भी किया जावेगा। आशंकित, मगर उत्साहित युवा सरपंच दल को रवाना करते हुए स्वयं भी साथ हो लिये, मार्गदर्शन के लिए ग्राम के वरिष्ठ व सम्मानित नागरिक श्री उदय प्रताप सिंह साथ रहे। 

चालीस सदस्यीय पूरा दल, जिसमें अधिकतर डैफोडिल कान्वेंट स्कूल के शहरी माहौल में पले बढ़े बच्चे थे, उनकी आंखों में चमक झलक रही थी। हंसते खिलखिलाते, दौड़ते-भागते लेकिन शालीन और मर्यादित खुलेपन के माहौल में प्रकृति को सीधे सम्पर्क से जानने का आनंद अद्वितीय था। ऊपर आसमान पर सूरज अपनी मंजिल की ओर अग्रसर था और इधर ट्रेकिंग दल लाफागढ़ की ऊंचाई का फासला नाप रहा था। ट्रेकिंग के लिए जंगल के बीच से सीधी-चढ़ाई वाला रास्ता चुना गया था। वैसे तो यह संरक्षित वन है, लेकिन वृक्षों की अवैध कटाई धड़ल्ले से हो रही है और दुखद पहलू है कि शाल के मूल्यवान वृक्षों को थोड़े से गोंद (धूप) के लिए काटा गया है, और कटे पेड निरर्थक सड-गल रहे हैं। शाम ढलते-ढलते दल, हुंकरा द्वार पर पहुंच गया और आगे बढ़ने पर घंटों से प्रतीक्षारत समिति सदस्यों श्री चौहान, श्री नटवर लाल के साथ डॉ. बांधी ने सभी का स्वागत किया, पूरी पहाड़ी पर वानस्पतिक हरियाली और उबड़-खाबड़ विस्तार था। मंदिर के पास कुछ झोपड़ियाँ थीं, इन्हीं झोपड़ियों में रात बसर होनी थी। रात को कैम्प फायर में सभी ने भाग लिया और स्कूली छात्रा वर्षा सोन्थालिया ने सर्वाधिक रैपर इकट्ठे कर पुरस्कार जीता, तत्काल पुरस्कार की राशि सरपंच महोदय ने अपनी ओर से भेंट की। 

रात्रि-विश्राम के पश्चात् सुबह हुई. छात्र-छात्राएँ जो इस माहौल के प्रति उत्सुक और आशंकित थे, अब आश्वस्त और आत्मीय हो रहे थे। राजा-बैठकी से धुंध भरी वादियों और विस्तृत असीमित प्राकृतिक विविधता की दृश्यावली का सबने जी भरकर रसास्वादन किया। गढ़ की प्राचीनता और मंदिर स्थापत्य की जानकारी प्राप्त करते हुए. विद्यार्थियों ने सवालों की झड़ी लगा दी। सामान समेटा जाने लगा, तैयारी पूरी कर वापसी यात्रा आरंभ हुई। चढ़ाई का मार्ग आमटी-आमा वाला 9 किलोमीटर लम्बा था, तो वापसी के लिए नगोई भांठा की रोमांचक ढाल वाला 13 किलोमीटर लम्बा रास्ता। दल ने जैसे ही वापसी यात्रा आरंभ की, तालाब पर कम दबाव का क्षेत्र निर्मित होने से चारों ओर से कोहरा और बादल झूमते-लहराते आकर मानों तालाब में समाने लगे। सबके पैर ठिठक गए और पूरे दल को इस अद्भुत प्राकृतिक दृश्य की दुर्लभ छवि ने मानो विदाई देकर विभोर और अभिभूत कर दिया। उल्लासमय वातावरण में वापसी भी हो गई। लगभग सभी शहरी बच्चों ने ट्रेक की अवधि सात दिन तक लम्बी करने की सम्मति प्रकट की थी।

1 comment:

  1. सर,
    आपके उक्त संस्मरण से मुझे यादें लौट आई। कितने वर्ष बीत गए। पर आज भी मेरे मानसपटल पर सब ताजा है। वे हमारे जिंदगी के सबसे आनंददायक अनुभवो में एक है।
    आपको साभार सकुशल रहे।

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