चिड़िया और साँप
हमारे घर के पीछे मुनगा का पेड़ था। उसमें बरसात में बया घोसला बनाती थी। एक दिन क्या हुआ कि एक साँप चढ़ने लगा मुनगा के पेड़ पर। घोसला में से अण्डा खाने। सब बया ची-चीं करने लगीं। गौरैया भी आ गई। मैना आकर चिऊँ-चिऊँ करने लगी। सुनकर एक कौवा आ गया। तब तक साँप एक अण्डा खा गया। कौवा के काँव-काँव से डरकर साँप नीचे उतरने लगा। पर कौवा के उड़ जाने के बाद साँप फिर ऊपर चढ़ने लगा। फिर सब चिड़िया चिल्लाने लगीं। इस बार कौवा आया और चोंच से मारकर साँप को भगा दिया।
दार भात चुर गे
मोर किस्सा पुर गे
- अनुपम सिसौदिया, पहली, अकलतरा, बिलासपुर, म.प्र.
सस्टेनेबल डेवलपमेंट के स्नातकोत्तर पत्रोपाधिधरी अनुपम, अब वन-संपदा, जीवन और वन्य-प्राणियों और पर्यावरण जैसे क्षेत्र में रुचि लेते हैं। एक संयोग यह भी कि पत्रिका के इस अंक के मुखपृष्ठ पर मसालों की तस्वीर है, और अनुपम को खान-पान, मसालों, स्वाद, पाक-कला और पाक-शास्त्र में भी खासी रुचि है। स्वास्थ्य, स्वावलंबन, पर्यावरण और अर्थशास्त्र को जोड़ कर देखते हुए कहा करते हैं कि सप्लाई चेन-परिवहन और प्रासेसिंग को यथासंभव सीमित रखना ढेर सारे आदर्श लक्ष्यों की प्राप्ति का सहज तरीका हो सकता है।
श्री अनुपम सिसोदिया, राहुल कुमार सिंह के, यानि मेरे पुत्र हैं।
जब अपना किया-धरा इस तरह से याद किया जाता है, तो लगता है कि अपन ने सचमुच कुछ सार्थक काम किया है...साधुवाद आपको।
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