01. छत्तीसगढ़ में जल-संसाधन और प्रबंधन की समृद्ध परम्परा के प्रमाण, तालाबों के साथ विद्यमान है और इसलिए तालाब स्नान, पेयजल और अपासी (आबपाशी या सिंचाई) आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष पूर्ति के साथ जन-जीवन और समुदाय के वृहत्तर सांस्कृतिक संदर्भयुक्त बिन्दु हैं।
02. नौ लाख ओड़िया, नौ लाख ओड़निन के उल्लेख सहित दसमत कइना की गाथा, एक लाख मवेशियों का कारवां लेकर चलने वाला लाखा बंजारा और नायकों के स्वामिभक्त कुत्ते का कुकुरदेव मंदिर सहित उनके खुदवाए तालाब, लोक-स्मृति में जीवन्त हैं।
03. खमरछठ (हल-षष्ठी) की पूजा के साथ प्रतीकात्मक तालाब-रचना और संबंधित कथा में तथा बस्तर अंचल की लछमी जगार गाथा में तालाब खुदवाने संबंधी मान्यता और सुदीर्घ परम्परा का संकेत है।
04. सरगुजा अंचल में कथा चलती है कि पछिमहा देव ने सात सौ तालाब खुदवाए थे और राजा बालंद, कर के रूप में खीना लोहा वसूलता और जोड़ा तालाब खुदवाता। उक्ति है- सात सौ फौज, जोड़ा तलवा; अइसन रहे बालंद रजवा।
05. यह रोचक है कि छत्तीसगढ़ में आमतौर पर समाज से दूरी बनाए रखने वाले नायक, सबरिया, भैना, लोनिया, बेलदार और रामनामियों की भूमिका तालाब निर्माण में महत्वपूर्ण होती है और उनकी विशेषज्ञता तो काल-प्रमाणित है ही।
06. छत्तीसगढ़ में पड़े भीषण अकाल के समय किसी अंग्रेज अधिकारी द्वारा खुदवाए गए उसके नाम स्मारक बहुसंख्य ‘लंकेटर तालाब’ अब भी जल आवश्यकता की पूर्ति और राहत कार्य के संदर्भ सहित विद्यमान हैं।
07. छत्तीसगढ़ के ग्रामों में तालाबों की बहुलता इतनी कि ‘छै आगर छै कोरी’, यानि 126 तालाबों की मान्यता रतनपुर, मल्हार, खरौद, महन्त, अड़भार, आरंग, धमधा जैसे कई स्थानों के साथ सम्बद्ध है। बस्तर अंचल के बारसूर, बड़े डोंगर, कुरुसपाल और बस्तर आदि ग्रामों में ‘सात आगर सात कोरी’ (147) तालाबों की मान्यता है, इन गांवों में आज भी बड़ी संख्या में तालाब विद्यमान हैं।
08. भीमादेव, बस्तर में पाण्डव नहीं, बल्कि पानी के देवता हैं। बस्तर में विवाह के कई नेग-चार पानी और तालाब से जुड़े हैं। विवाह के अवसर पर दूल्हा अपनी नव विवाहिता को पीठ पर लाद कर स्नान कराने जलाशय ले जाता है और पीठ पर लाद कर ही लौटता है।
09. छत्तीसगढ़ में छत्तीस से अधिक संख्या में परिखायुक्त मृत्तिका-दुर्ग (मिट्टी के किले या गढ़) जांजगीर-चांपा जिले में ही हैं, इन गढ़ों का सामरिक उपयोग संदिग्ध है किन्तु गढ़ों के साथ खाई, जल-संसाधन की दृष्टि से आज भी उपयोगी है।
10. छत्तीसगढ़ में तालाबों के विवाह की परम्परा भी है, जिस अनुष्ठान (लोकार्पण का एक स्वरूप) के बाद ही उसका सार्वजनिक उपयोग आरंभ होता था। विवाहित तालाब की पहचान सामान्यतः तालाब के बीच स्थित स्तंभ से होती है। इस स्तंभ से घटते-बढ़ते जल-स्तर की माप भी हो जाती है।
11. छत्तीसगढ़ में तालाबों के विवाह की परम्परा रही है और कुछ तालाब अविवाहित भी रह जाते हैं, लेकिन ऐसे तालाबों का अनुष्ठानिक महत्व बना रहता है क्योंकि ऐसे ही तालाब के जल का उपयोग चिन्त्य या पीढ़ी पूजा के लिए किया जाता है।
12. जांजगीर-चांपा जिले के किरारी के हीराबंध तालाब से प्राप्त काष्ठ-स्तंभ, उस पर खुदे अक्षरों के आधार पर दो हजार साल पुराना प्रमाणित है। इस उत्कीर्ण लेख से तत्कालीन राज पदाधिकारियों की जानकारी मिलती है।
13. तालाबों के स्थापत्य में कम से कम मछन्दर (पानी के सोते वाला तालाब का सबसे गहरा भाग), नक्खा या छलका (लबालब होने पर पानी निकलने का मार्ग), गांसा (तालाब का सबसे गहरा किनारा), पैठू (तालाब के बाहर अतिरिक्त पानी जमा होने का स्थान), पुंछा (पानी आने व निकासी का रास्ता) और मेढ़-पार होता है।
14. तालाबों के प्रबंधक अघोषित-अलिखित लेकिन होते निश्चित हैं, जो सुबह पहले-पहल तालाब पहुंचकर घटते-बढ़ते जल-स्तर के अनुसार घाट-घठौंदा के पत्थरों को खिसकाते हैं, घाट की काई साफ करते हैं, दातौन की बिखरी चिरी को इकट्ठा कर हटाते हैं और इस्तेमाल के इस सामुदायिक केन्द्र के औघट (पैठू की दिशा में प्रक्षालन के लिए स्थान) आदि का अनुशासन कायम रखते हैं।
15. तालाबों के पारंपरिक प्रबंधक ही अधिकतर दाह-संस्कार में चिता की लकड़ी जमाने से लेकर शव के ठीक से जल जाने और अस्थि-संचय करा कर, उस स्थान की शांति- गोबर से लिपाई तक की निगरानी करते हुए सहयोग देता है और घंटहा पीपर (दाह-क्रिया के बाद जिस पीपल के वृक्ष पर घट-पात्र बांधा जाता है) के बने रहने और आवश्यक होने पर इस प्रयोजन के वृक्ष-रोपण की व्यवस्था भी वही करता है। ऐसे व्यक्ति मान्य उच्च वर्णों के भी होते हैं।
16. तालाबों का नामकरण सामान्यतः उसके आकार, उपयोग, चरित्र पर आधारित होता है, इनमें खइया, नइया, पचरिहा, खो-खो तालाब, पनपिया, सतखंडा, अड़बंधा, डोंगिया, गोबरहा, पुरेनहा, देउरहा, नवा तलाव, पथर्रा, कारी, पंर्री जैसे नाम हैं।
17. तालाबों का नामकरण उसके चरित्र-इतिहास और व्यक्ति नाम पर भी आधारित होता है, जैसे- फुटहा, दोखही, भुतही, छुइहा, फूलसागर, मोतीसागर, रानीसागर, राजा तालाब, गोपिया, भीमा आदि। बरात निकासी, आगमन व पड़ाव से सम्बद्ध तालाब का नाम दुलहरा पड़ जाता है।
18. पानी और तालाब से संबंधित ग्राम-नामों की लंबी सूची है इनमें उद, उदा, दा, सर (सरी भी), सरा, तरा (तरी भी), तराई, ताल, चुआं, बोड़, नार, मुड़ा, पानी आदि जलराशि-तालाब के समानार्थी शब्दों के मेल से बने गांवों के नाम आम हैं।
19. जल अभिप्राय के उद, उदा, दा जुड़कर बने ग्राम नाम के कुछ उदाहरण बछौद, हसौद, तनौद, मरौद, रहौद, लाहौद, चरौदा, कोहरौदा, बलौदा, मालखरौदा, चिखलदा, रिस्दा, परसदा, फरहदा हैं।
20. जल अभिप्राय के सर, सरा, सरी, तरा, तरी, के मेल से बने ग्राम नाम के उदाहरण बेलसर, भड़ेसर, लाखासर, खोंगसरा, अकलसरा, तेलसरा, बोड़सरा, सोनसरी, बेमेतरा, बेलतरा, सिलतरा, भैंसतरा, अकलतरा, अकलतरी है।
21. तालाब समानार्थी तरई या तराई तथा ताल के साथ ग्राम नामों की भी बहुलता है। कुछ नमूने डूमरतराई, शिवतराई, पांडातराई, बीजातराई, सेमरताल, उड़नताल, सरिसताल, अमरताल हैं।
22. चुआं, बोड़ और सीधे पानी जुड़कर बने गांवों के नाम बेंदरचुआं, घुंईचुआं, बेहरचुआं, जामचुआं, लाटाबोड़, नरइबोड़, घघराबोड़, कुकराबोड़, खोंगापानी, औंरापानी, छीरपानी, जूनापानी जैसे ढेरों उदाहरण हैं।
23. तालाबों और स्थानों का नाम सागर, डबरा तथा बांधा आदि से मिल कर भी बनता है तो जलराशि सूचक बंद के मेल से बने कुछ ग्राम नाम ओटेबंद, उदेबंद, कन्हाइबंद, बिल्लीबंद, टाटीबंद जैसे हैं।
24. तालाब अथवा जल सूचक स्वतंत्र ग्राम-नाम तलवा, झिरिया, बंधवा, सागर, डबरी, डभरा, गुचकुलिया, कुंआ, बावली, पचरी, पंचधार, सेतगंगा, गंगाजल, नर्मदा और निपनिया भी हैं।
25. छत्तीसगढ़ की प्रमुख नदी का नाम महानदी और सरगुजा में महान नदी है तो एक जिला मुख्यालय का नाम महासमुंद है और ग्राम नाम बालसमुंद (बेमेतरा) भी है लेकिन रायपुर जिले के पलारी ग्राम का बालसमुंद, विशालकाय तालाब है। जगदलपुर का समुद्र या भूपालताल बड़ा नामी है।
26. कार्तिक-स्नान, ग्रहण-स्नान, भोजली, मृतक संस्कार के साथ नहावन और पितृ-पक्ष की मातृका नवमी के स्नान-अनुष्ठान, ग्राम-देवताओं की बीदर-पूजा, अक्षय-तृतीया पर बाउग (बीज बोना) और विसर्जन आदि और पानी कम होने जाने पर मतावल, तालाब से सम्बद्ध विशेष अवसर हैं।
27. हरेली (सावन अमावस्या) की गेंड़ी को पोरा (भाद्रपद अमावस्या) के दिन तालाब का तीन चक्कर लगाकर गेंड़ी के पउवा (पायदान) का विसर्जन तालाब में किए जाने का लोक विधान है और विसर्जित सामग्री के समान मात्रा की लद्दी (गाद) तालाब से निकालना पारम्परिक कर्तव्य माना जाता है।
28. गांवजल्ला (ग्रामवासियों द्वारा मिल-जुल कर) लद्दी (गाद) निकालने के लिए गांसा काट कर तालाब खाली कर लिया जाता है। पानी सूख जाने पर तालाब में झिरिया (पानी जमा करने के लिए छोटा गड्ढ़ा) बना कर पझरा (पसीजे हुए) पानी से आवश्यकता पूर्ति होती है।
29. तालाब की सत्ता, उसके पारिस्थितिकी-तंत्र के बिना अधूरी है, जिसमें जल-वनस्पति, सीप-घोंघी, जोंक, संधिपाद, चिड़िया (ऐरी), मछलियां, उभयचर आदि और कहीं-कहीं ऊद व मगर भी होते हैं।
30. जलीय जन्तुओं को देवतुल्य सम्मान देते हुए सोने का नथ पहनी मछली और लिमान (कछुआ) का तथ्य और उससे सम्बद्ध विभिन्न मान्यताएं तालाब की पारस्थितिकी सत्ता के पवित्रता और निरंतरता की रक्षा करती हैं।
31. जल की रानी, मछलियों के ये नाम छत्तीसगढ़ में सहज ज्ञात होते हैं- डंडवा, घसरा, अइछा, सोढ़िहा या सोंढ़ुल, लुदू, बंजू, भाकुर, पढ़िना, भेंड़ो, बामी, काराझिंया, खोखसी या खेकसी, झोरी, सलांगी या सरांगी, डुडुंग, डंडवा, ढेंसरा, बिजरवा, खेगदा, तेलपिया, ग्रासकाल।
32. तालाब जिनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं, उनके जबान पर कटरंग, सिंघी, लुडुवा, कोकिया, रेछा, कोतरी, खेंसरा, गिनवा, टेंगना, मोहराली, सिंगार, पढ़िना, भुंडी, सांवल, बोलिया या लपची, रुखचग्घा, केवई, मोंगरी, पथर्री, चंदैनी, कटही, भेर्री, कतला, रोहू और मिरकल मछलियों के नाम भी सहज आते हैं।
33. सामुदायिक-सहकारी कृषि का क्षेत्र- बरछा, कुसियार (गन्ना) और साग-सब्जी की पैदावार के लिए नियत तालाब से लगी भूमि, पारंपरिक फसल चक्र परिवर्तन और समृद्ध-स्वावलंबी ग्राम की पहचान माना जा सकता है। आम के पेड़ों की अमरइया भी प्रमुख तालाब के अभिन्न अंग होते हैं।
34. तालाब स्नान के बाद जल अर्पित करने के लिए शिवलिंग, मंदिर, देवी का स्थान- माताचौंरा या महामाया और शीतला की मान्यता सहित नीम के पेड़ और अन्य वृक्षों में पीपल (घंटहा पीपर) भी तालाबों के अभिन्न अंग हैं।
35. छत्तीसगढ़ में तालाब के साथ जुड़े मिथक, मान्यता और किस्सों में झिथरी, मिरचुक, तिरसाला, डोंगा, पारस-पत्थर, हंडा-गंगार, पूरी बरात तालाब में डूब जाना जैसे पात्र और प्रसंग तालाब के चरित्र को रहस्यमय और अलौकिक बनाती है।
36. तालाब से जुड़ी दंतकथाओं में पत्थर की पचरी, मामा-भांजा की कथा, राहगीरों के उपयोग के लिए तालाब से बर्तन निकलना और भैंसे के सींग में चीला अटक जाने से किसी प्राचीन निर्मित या प्राकृतिक तालाब के पता लगने का विश्वास, जन-सामान्य के इतिहास-जिज्ञासा की पूर्ति करता है।
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