Saturday, August 27, 2022

घर का पता

लेकिन मुझे हमेशा लगता है कि
आपके घर का पता आप खुद नहीं जानते,
लोग आपको बताते हैं
क्योंकि 
आप तो अपने घर को जानते हैं
न कि घर का पता
इसलिए बिना किसी पहचान के
अपने घर पहुंच जाते हैं।
लोग बताते हैं कि आपका घर कहां है,
वह किस तरह से आपके घर पहुंचते हैं,
उसे पहचानते हैं।
कोई पेड़, कोई भवन या कोई दुकान,
क्या पहचान, आपके घर का पता बनता है,
इसलिए मुझे लगता है कि
आप अपने घर का पता नहीं जानते,
आप के घर का पता लोग आपको बताते हैं।
विनोद कुमार शुक्ल घर का पता बताते हैं,
‘सफेद चम्पे के फूल वाला घर‘,
तो लगता है
कोई कविता सुनाने जा रहे हैं
और कह पड़ेंगे-
‘हर बार घर लौट कर आने के लिए ...‘

गली का आखिरी मकान है यह
या मान लें पहला
इसे पहला या आखिरी ही होना चाहिए
यह गली बंद नहीं है
धर्मवीर भारती वाला ‘बंद गली का आखिरी मकान‘ नहीं,
न ही राजेन्द्र यादव के ‘हंस‘ दफ्तर की तरह
गली खुली हुई है दोनों ओर
बाएं और दाएं

बिना नाम-पट्टिका घर
अब आम, मौलश्री और सप्तपर्णी
चिड़िया और गिलहरी और ...
हरियाली, जीवन शाश्वत
सफेद चम्पा,
घर की पहचान, पता बताने के लिए?
या हर बार घर पहचान,
लौट लौट आने के लिए।

पिछले दिनों जया जादवानी जी से उनके घर और अपने घर के साथ किसी तीसरे पते की बात हुई, जहां हम दोनों को पहुंचना था। इस दौरान विनोद जी के घर जाने की बात भी मेरे मन में थी। याद आया फरवरी 2020 में आशुतोष भारद्वाज ने ‘संडे एक्सप्रेस मैगजीन‘ के लिए विनोद जी पर कवर स्टोरी की थी, उसकी शुरुआत इसी तरह पता पूछने-बताने से होती है। विनोद जी के घर तक पहुंचा, वहां नाम-पट्टिका नहीं है, अब सफेद चंपा भी नहीं। विनोद जी के पुत्र शाश्वत ने बताया कि गली का नंबर बदला है, घर वहीं है, ‘घर पर किसी का नाम नहीं लिखा है। अंदर एक आम का पेड़ है। बाहर एक ओर मौलश्री के दो पेड़ और दूसरी ओर सप्तपर्णी के दो पेड़ हैं। इन सब में बहुत से पक्षी, गिलहरी रहते हैं। हम सब इनके साथ रहते हैं। यही घर की पहचान है।‘

एक गद्य कविता-
बात करीब बीस साल पुरानी है। 
एक भूले से मगर प्रतिष्ठित साहित्यकार को 
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद याद कर, 
पत्र भेजा गया। 
पता अनुमान से लिखा गया था। 
पत्र उन्हें मिल गया, 
उनका जवाब आया, जिसमें दो खास बात थी। 
पहली कि उनके लेटर हेड पर 
शहर के नाम के साथ अब भी म.प्र. था, 
मगर दूसरी बात कि 
उन्हें जिस पते पर पत्र भेजा गया था, 
उस पर अपनी खिन्नता प्रकट करते लिखा था- 
‘पता, जिस पर डाकिया पत्र पहुंचा जाया करता है‘ 
मेरे साथी ने कहा कि साहित्यकार भी अजीब होते हैं, 
सीधी सी बात, सीधे नहीं कहते। 
ऐसा लगता है कि पता, पत्र पाने का ही है, 
उनके निवास का नहीं, रहते कहीं और हैं। 
मुझे साहित्य(कारों) का प्रतिपक्ष बने रहने से, 
अपनी जगह उचित लगती है 
बल्कि यों भी प्रतिपक्ष बने रहना। 
मगर यहां मैंने उन साहित्यकार का पक्ष लिया कि 
इसमें गड़बड़ क्या है, हम भी तो ‘डाक का पता‘ लिखते हैं, 
इसका भी मतलब निकाला जा सकता है कि 
यह डाक का पता है, निवास का नहीं। 
तब मित्र ने तर्क दिया, मगर यह रूढ़ हो गया हैै। 
मैंने आगे कुछ न कह कर संवाद विराम किया। 
याद करने लगा कि पहले पत्र में लिखने का चलन था- 
मु.पो. यानि मुकाम और पोस्ट। 
इसी तरह कुछ अधिक बारीक लोग 
हाल मुकाम और खास मुकाम, बताते थे 
यानि वर्तमान पता और स्थायी पता। 
बहरहाल, पता बताने और खोजने की अधिक सावधानी, 
प्रकारांतर से खुद की तलाश होने लगती है, 
पता वही रहता है, हम ही खोए रहते हैं, 
कभी पता बताते, कभी तलाशते।

1 comment:

  1. वाह क्या बात है घर के पते के विषय में सुंदर जानकारी देने के लिए __ सादर अभिवादन

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