यहां प्रस्तुत लेख, मूलतः स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. डॉ. ज्वाला प्रसाद मिश्र जी (जन्म: 18 अगस्त 1902, निर्वाण: 31 जनवरी 1994) के जीवन परिचय के पत्रक से है। पत्रक पर संपर्क का पता में डॉ. प्रभुलाल मिश्र (अब दिवंगत) का नामोल्लेख तथा अंकित है-
एकेनापि सुवृक्षेण पुष्पितेन सुगन्धिना। वासितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा।।
डॉ. ज्वाला प्रसाद मिश्र
बिलासपुर जिले के मुंगेली तहसील के लिम्हा ग्रामवासी ब्राह्मण समाज में प्रतिष्ठित स्व. चन्दूलाल मिश्र के द्वितीय पुत्र थे। डॉ. ज्वाला प्रसाद जी का जन्म 18 अगस्त 1902 रक्षाबंधन के दिन रायपुर जिले के तांदुल ग्राम (ननिहाल) में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा खेड़हा ग्राम मुंगेली तहसील में पूर्ण करने के पश्चात माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक शिक्षा रायपुर में हुई। जब वे उच्चतर माध्यमिक स्तर तक पहुंचे थे उसी समय नागपुर अधिवेशन में गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन की घोषणा की तथा विद्यार्थियों को यह सन्देश भेजा गया कि वे शासकीय शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार करें। इस आह्वान के फलस्वरुप डॉ. साहब ने अन्य विद्यार्थियों के साथ शासकीय विद्यालय की पढ़ाई छोड़कर राष्ट्रीय स्कूल रायपुर से शिक्षा पूर्ण की। मध्यप्रदेश व बरार में राष्ट्रीय स्कूलों के छात्रों के लिये महाविद्यालयीन शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश निषेध था अतः डॉ. साहब सन् 1922 में आयुर्वेदिक एवं यूनानी तिब्बिया कॉलेज दिल्ली में प्रवेश लिया। इस कॉलेज के संचालन समिति के अध्यक्ष हकीम अजमल खाँ तथा ज्येष्ठ मानद शल्य चिकित्सा प्राध्यापक डॉ. अन्सारी थे। ये दोनों राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रमुख स्तम्भों में से थे, इनका प्रभाव डॉ. साहब पर भी पड़ा तथा उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन के लिये प्रेरित किया।
अखिल भारतीय कांग्रेस का दिल्ली अधिवेशन 1923 में आयोजित किया गया तथा तिब्बिया कालेज के डॉ. अन्सारी स्वागताध्यक्ष थे अतः डॉ. ज्वाला प्रसाद एवं अन्य विद्यार्थियों को स्वयं सेवकों की भूमिका निभाने का सुअवसर मिला। इसी अधिवेशन में मध्यप्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेसी प्रतिनिधियों डॉ. ई. राघवेन्द्र राव, ठा. छेदीलाल बैरिस्टर तथा अन्य लोगों से डॉ. साहब का परिचय हुआ। एक ही जिले के होने से स्वाभाविक रुप से डॉ. साहब तथा ठाकुर साहब एक दूसरे की ओर आकृष्ट हुए तथा डॉ. साहब ने ठाकुर साहब से अकलतरा में आयुर्वेदिक अस्पताल प्रारंभ करने का अनुरोध किया तथा ठाकुर साहब ने इस शर्त पर उनका अनुरोध स्वीकार किया कि अध्ययन पूर्ण करने के पश्चात् उस अस्पताल के प्रथम प्रमुख चिकित्सक का भार उन्हें स्वीकारना होगा। तिब्बिया कॉलेज से भिषगाचार्य धन्वतरी की सनद लेने के पश्चात डॉ. अन्सारी के मातहत में 9 माह शल्य चिकित्सा का स्नातकोत्तर सनद प्राप्त कर अपने ग्राम लिम्हा वापस लौटे। उनके पिता स्व. चन्दूलाल मिश्र चाहते थे की डॉ. साहब मुंगेली में कार्य शुरु करें परन्तु इसी बीच बैरिस्टर साहब का पत्र आया कि वायदा निभाओ, अतः वचन से बंधे डॉ. साहब ने सन् 1926 में अकलतरा आयुर्वेदिक अस्पताल में प्रथम मुख्य चिकित्सक के रुप में अपनी सेवा अर्पित की। चूंकि डॉ. साहब कांग्रेस व गांधी जी के कार्यक्रम में अपने आप को अर्पित कर चुके थे अतः प्रत्येक रविवार तथा अवकाश के दिनों में गाँधीवादी कार्यक्रम में सम्मलित होते थे।
1930 में डिस्ट्रिक्ट कौंसिल में परिवर्तन हुआ तथा नई डिस्ट्रिक्ट कौंसिल को डाक्टर साहब के इन कार्यक्रमों में भाग लेना अनुचित लगा अतः डाक्टर साहब ने गांधीवादी कार्यों को छोड़ने की जगह चिकित्सक पद छोड़ना उचित माना तथा इस पद से स्तीफा देकर स्वयं का अस्पताल प्रारंभ किया। अब वे राष्ट्रीय कार्यक्रमों में पूर्णरुप से भाग लेने लगे।
डॉ. साहब की सक्रिय राजनीतिक जीवन अकलतरा सेनीटेशन पंचायत के अध्यक्ष के रुप में शुरु हुई। इसके पश्चात् डॉ. साहब ने पीछे मुड़ कर देखा नही तथा अपने आप को राष्ट्रीय कार्यक्रमों में झोंक दिया।
गाँधी जी के आह्ववान पर सन् 1941 में 6 माह के लिये तथा 1942 में दो साल 9 माह के लिये जेल यात्रा की। द्वितीय जेल यात्रा के समय 14 दिन का उपवास भी किया।
1946-51 तक कटघोरा विधान सभा डॉ. साहब विधायक रहे। डॉ. साहब जांजगीर कांग्रेस कमेटी जिला बिलासपुर कांग्रेस कमेटी के कार्य समिति के सदस्य रहे हैं। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ वर्षाें पश्चात् जोड़ तोड़ की राजनीति से ऊब कर सक्रिय राजनीति को अलविदा कहा इसके पश्चात मृत्युपर्यन्त डॉ. साहब का अधिकतर समय खादी ग्रामोद्योग, सहकारिता क्षेत्र, भूदान, भारत सेवक समाज, छत्तीसगढ़ ब्राह्मण समाज, रामकृष्ण आश्रम आदि के कार्यक्रमों में बीतता था। डॉ. साहब छत्तीसगढ़ भ्रात संघ कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे।
जीवन के सोपान
1920 - दिसम्बर 1920 में राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में हुए निर्णय का पालन करते हुए शासकीय शिक्षण संस्था का बहिष्कार ।
1923 - अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन दिल्ली में कांग्रेस स्वयं सेवक
1926 - अकलतरा आयुर्वेदिक अस्पताल के मुख्य चिकित्सक
1928 - कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन कलकत्ता में काम किये
1930 - स्वयं का आयुर्वेदिक अस्पताल जिले का प्रथम आयुर्वेदिक फार्मेसी खोली। डॉ. चन्द्रभान सिंह आगरा में पदस्थापना के पूर्व अस्पताल में डॉ. साहब के साथ कार्यरत रहे।
1932-51 - जांजगीर तहसील कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, एक वर्ष बिलासपुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे।
1941 - वर्धा जेल में 6 माह का कारावास इसी समय उस जेल में महात्मा गांधी का सानिध्य प्राप्त हुआ।
1942 - अगस्त 1942 में 2 साल 9 माह के लिये कारावास इस कार्यक्रम अवधि में नागपुर केन्द्रीय जेल में इनके साथ पंडित रविशंकर शुक्ला, द्वारिका प्रसाद मिश्र, आचार्य विनोबा भावे, शंकर राव देव, सेठ गोविन्द दास, इत्यादि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे। त्रिपुरी कांग्रेस में ठा. छेदीलाल जी के साथ सक्रिय रुप से भाग लिया।
1946-51 मध्यप्रदेश विधान सभा में कटघोरा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
1947 - से मृत्युपर्यन्त जिला खादी ग्रामोद्योग के सदस्य रहे। जांजगीर भूदान समिति के 2 वर्ष अध्यक्ष रहे। मुंगेली में भूदान संबंधित सभा में आचार्य विनोबा भावे ने डा. साहब को अपने पुराने साथी के रुप में संबोधित किया था। शंकर राव देव भूदान के लिये मुंगेली तहसील के कार्यक्रम के अवसर पर डॉ. साहब के ग्राम लिम्हा में उनके घर में भोजन करने की शर्त रखी थी कि उन्हे भूदान में जमीन देनी होगी। तब डॉ. साहब के परिवार ने अपने एक गांव की 35 एकड़ भूमि दान में दी थी। बिलासपुर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी समिति के अध्यक्ष रहे।
1954 - से मृत्युपर्यंत अकलतरा हाई स्कूल शिक्षण समिति के कार्यकारणी के सदस्य रहे।
1955 - संस्कृत परिषद बिलासपुर के संस्थापक सदस्य-इस समय श्री मुकुन्द केशव चितले अध्यक्ष थे। भारत सेवक समाज जिला स्तर के संयोजक रहे। एक वर्ष बिलासपुर भारत सेवक समाज के अध्यक रहे। खादी ग्रामोद्योग अनन्त आश्रम मुलमुला के संस्थापक तथा लगभग दो दशक तक इससे जुड़े रहे।
जांजगीर को ऑपरेटिव बैंक के बहुउद्देश्यीय सोसाइटी (कृषक शाखा) के अध्यक्ष रहे। ग्राम लिम्हा में बहुउद्देशीय कोआपरेटिव सोसाइटी स्थापित कराई 15 वर्ष तक जनपद सभा जांजगीर के स्वास्थ्य कमेटी के अध्यक्ष रहे। छत्तीसगढ़ वैद्य समाज के दो बार अध्यक्ष रहे। धन्वंतरी महासंघ ने इनका अभिनंदन किया। छत्तीसगढ़ी ब्राह्मण समाज के दो बार अध्यक्ष रहे समाज ने द्विज रत्न से इनका अभिनंदन किया। जांजगीर तहसील में प्लेग की भयंकर महामारी के समय गांव-गांव सायकल से दौरा करते हुए ग्रामीणों की सेवा करते थे।
1964 - से मृत्युपर्यंत तक रायपुर रामकृष्ण आश्रम में सक्रिय रुप से कार्यरत रहे तथा आश्रम के कार्य समिति के सदस्य रहे पेन्ड्रा में रामकृष्ण आश्रम को जमीन भी दान में दी।
28.01.1965 में छत्तीसगढ़ बनाने के लिये आमंत्रित छत्तीसगढ़ी महासंघ की सभा राजनांदगांव में हुई थी तथा डॉक्टर साहब भी इसमें भाग लिये थे। छत्तीसगढ़ भ्रातृ संघ के कार्यकारिणी के सदस्य रहे।
छ.ग. शासन द्वारा उनके नाम पर मुंगेली (जि. बिलासपुर) स्थित शासकीय विज्ञान महाविद्यालय का नामकरण ‘स्व. डॉ. ज्वाला प्रसाद मिश्र शा. विज्ञान महाविद्यालय मुंगेली‘ रखा गया है। वहीं उनके गृहग्राम पंचायत गीधा लिम्हा का नामकरण स्व. ज्वाला प्रसाद मिश्र के नाम पर डॉ. ज्वाला प्रसाद मिश्र गौरव ग्राम पंचायत रखा गया है।
मेरी स्मृति में डॉ. ज्वालाप्रसाद जी कुछ अर्थों में आजादी के मायने के रूप में दर्ज हैं।
आदरणीय मिश्र जी के स्नेह की छाँह में कुछ समय बिताने का सुअवसर मिला । मान्य मिश्र जी के निवास अकलतरा में एक कुँआ है , जिसका जल इतना मीठा कि थोड़ी चीनी घोल दी हो । डॉ. मिश्र जी हम बच्चों पर् स्नेह वर्षाते तो उनकी श्रीमति जी कुछ न् कुछ देकर खुश कर देतीं !
ReplyDeleteआपके लेख ने पुराने दिनों को जीवन्त कर दिया सरजी ! जिनके आवास पर् प्रतिदिन सायंकाल बैठकें आयोजित होती थीं , काँग्रेस के बड़े नेताओं के चरण पड़ते थे जहाँ, अब वो खण्डहर हुआ जा रहा है और एक इतिहासपुरुष के चिह्न अकलतरा से मिटने के....😢😢
Kya baat hai
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