छत्तीसगढ़ में पुरातत्व की प्रगति के तीन दशक
छत्तीसगढ़ भौगोलिक दृष्टि से मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा क्षेत्र है। जिसके अन्तर्गत बस्तर, रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, बिलासपुर, रायगढ़, अम्बिकापुर जिले आते हैं। यह क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यन्त सम्पन्न है। यहां प्रागैतिहासिक काल से वर्तमान समय तक के इतिहास और संस्कृति की निरन्तर श्रृंखला मिलती है।
१ नवम्बर १९५६ को नये मध्य प्रदेश राज्य का गठन हुआ। उस समय से अब तक पुरातत्व के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां हुई हैं जो क्षेत्रीय इतिहास के उन्नयन में महत्वपूर्ण सिद्ध हुई हैं। इस क्षेत्र में पुरातत्व की दृष्टि से हुई प्रगति का विवरण निम्नानुसार है-
नवीन उपलब्धियां
(अ) स्मारक एवं प्रतिमाएं-
छत्तीसगढ़ क्षेत्र में अनेक प्रागैतिहासिक चित्रित शैलाश्रय, मंदिर, प्रतिमाएं, अभिलेख एवं मुद्राएं विगत ३० वर्षों में प्राप्त हुई हैं।
(१) चित्रित शैलाश्रय- रायगढ़ जिले में सिंघनपुर एवं कबरा पहाड़ के शैलचित्र अत्यन्त प्रसिद्ध एवं सर्वज्ञात हैं। इसके अतिरिक्त मध्यप्रदेश शासन के पुरातत्व-विभाग के सर्वेक्षण के परिणाम स्वरूप इसी जिले में ओंगना, करमागढ़, लेखामाड़ा तथा दुर्ग जिले में चितवा डोंगरी के चित्रित शैलाश्रय प्रकाश में आये हैं।
(2) मंदिर स्थापत्य- मंदिर स्थापत्य की सुस्पष्ट परम्परा इस क्षेत्र में रही है। अभी हाल के वर्षों में बिलासपुर जिले के ताला नामक स्थान से ५वीं-६वीं शती ई. के देवरानी जेठानी नामक दो मंदिर प्राप्त हुए हैं। राजनांदगांव जिले में बिरखा-घटियारी नामक स्थान में शिवमंदिर, रायपुर जिले में धोबनी ग्राम में ईंटों का बना चितावरी मंदिर, दुर्ग जिले में सरदा नामक स्थान का शिवमंदिर, अम्बिकापुर जिले में देवगढ़, सतमहला, महेशपुर एवं डीपाडीह के मंदिर उल्लेखनीय हैं।
(3) मूर्तियां- छत्तीसगढ़ क्षेत्र में विगत ३० वर्षों में अनेक प्रतिमाएं मिली हैं। मूर्ति शिल्प की दृष्टि से बिरखा-घटियारी ग्राम से मंदिर की सफाई में प्राप्त त्रिपुरान्तक शिव की दो, अंधकासुर वध एवं नटराज की एक-एक प्रतिमा मिली (रायपुर संग्रहालय में रखी है) मठपुरेना (रायपुर) में ब्रह्मा, वज्रपाणि की मूर्तियां, गंगरेल बांध के डूब क्षेत्र में पायी अनन्तशेषशायी विष्णु की प्रतिमा, बस्तर जिले मे इन्द्रावती डूब क्षेत्र में चित्रकूट के समीपवर्ती ग्रामों में विष्णु, उमामहेश्वर, लज्जागौरी, लक्ष्मीनारायण, ब्रह्मा, पार्श्वनाथ आदि की प्रतिमाएं उल्लेखनीय हैं। दुर्ग जिले में नर्राटोला में अनेक गोंडकालीन प्रतिमाएं मिली हैं। ताला (बिलासपुर) में कार्तिकेय, शिवलीला के दृश्य, कीर्तिमुख, मल्हार में अभिलिखित विष्णु, स्कन्दमाता, कुबेर, अड़भार में महिषासुर मर्दिनी, अष्टभुजी शिव आदि की प्रतिमाएं मिली हैं।
(४) अभिलेख- छत्तीसगढ़ क्षेत्र में मौर्यकाल से लेकर १७वीं शती तक के अभिलेख मिले हैं। इस श्रृंखला में विगत तीस वर्षों में प्राप्त अभिलेखों में शरभपुरीय वंश के शासकों में नरेन्द्र का कुरुद और रीवां से प्राप्त ताम्रपत्र, मल्हार से प्राप्त प्रवरराज का एक तथा जयराज के दो तथा व्याघ्रराज का एक ताम्रपत्र, सुदेवराज का महासमुंद ताम्रपत्र, पाण्डुवंशीय शासकों में तीवरदेव एवं महाशिवगुप्त के बोंडा ताम्रपत्र तथा महाशिवगुप्त के ही महासमुन्द तथा मल्हार से प्राप्त ताम्रपत्र उल्लेखनीय हैं। कलचुरि शासकों में पृथ्वीदेव द्वितीय तथा रत्नदेव तृतीय का पासिद ताम्रपत्र तथा प्रतापमल्ल का कोनारीग्राम ताम्रपत्र महत्वपूर्ण है। बिलासपुर जिले में लेंहगाभांठा से प्राप्त शिलालेख तथा मल्हार से पांडववंशीय राजा शूरबल का ताम्रपत्र भी उल्लेखनीय है।
(५) मुद्राएं- महन्त घासीदास स्मारक संग्रहालय में आहत मुद्राओं से लेकर ब्रिटिशकाल तक की मुद्राओं का सुन्दर संग्रह है। विगत तीस वर्षों में इस क्षेत्र से अनेक मुद्राएं प्राप्त हुई हैं। इनमें बानबरद (जिला दुर्ग) से प्राप्त गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्राएं अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। इसके साथ ही उभारदार (repousse) स्वर्ण मुद्राओं की एक लम्बी श्रृंखला विगत वर्षों से मिली है, जिसमें पितईबंध, रीवां तथा कुलिया से प्राप्त मुद्राएं महत्वपूर्ण हैं। पूर्व में प्रसन्नमात्र, महेन्द्रादित्य, वराहराज, भवदत्त तथा अर्थपति नामक राजा उभारदार मुद्राओं द्वारा ज्ञात थे पर इन स्थानों से क्रमादित्य, नन्दनराज और स्तम्भ नामक नए राजाओं का ज्ञान हुआ है। हाल ही में प्रसन्नमात्र के ताला से चांदी तथा मल्हार से ताम्र सिक्के भी मिले हैं। धरसींवा के निकट सोंड्रा ग्राम में सतीमदेव नामक राजा की एक स्वर्ण मुद्रा मिली हैं। इन महत्वपूर्ण मुद्राओं के अतिरिका पूर्व में ज्ञात शासकों की मुद्राएं भी बड़ी मात्रा में मिली हैं। सहसपुर लोहारा (राजनांदगांव) से ३४ स्वर्ण मुद्राएं कलचुरि शासक जाजल्लदेव, पृथ्वीदेव एवं ३ पद्मटंका हाल ही में प्राप्त हुए हैं।
(ब) उत्खनन- इस क्षेत्र में इस अवधि में उत्खनन कार्य अत्यन्त सीमित रूप से हुआ है। सिरपुर में १९५३-५४ में सागर विश्वविद्यालय तथा १९५४-५५ एवं ५५-५६ में तत्कालीन शासन द्वारा कराया गया उत्खनन महत्वपूर्ण है।
जिसमें स्वस्तिक विहार एवं आनन्दप्रभकुटी विहार नामक दो बौद्ध विहार प्रकाश में आए तथा अनेक सिक्के, अभिलेख, सील, मिट्टी के पात्र, मृणमूर्तियां, पाषाण प्रतिमाएं प्राप्त हुयी हैं।
वर्ष १९५६-५७ में धनोरा नामक स्थान का सीमित उत्खनन कराया गया है, जिसमें हड्डियों के टुकड़े, मनके, कांच की चूड़ियों के टुकड़े तथा ताम्बे के पात्र के खंडित अंश प्राप्त हुए। इसके पश्चात सागर वि. वि. द्वारा मल्हार में १९७५ से ७८ तक उत्खनन कार्य किया गया जिसमें अनेक प्रतिमाएं, सिक्के, मुहरें तथा स्मारकों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
मलबा सफाई एवं अनुरक्षण कार्य- वर्ष १९७७ में राजनांदगांव जिले के बिरखा घटियारी ग्राम में विभाग द्वारा शिवमंदिर का मलबा सफाई कराया गया जिसमें मंदिर के ध्वंसावशेष, विशाल स्तम्भ, चंद्र-शिला, प्रतिमाएं आदि प्राप्त हुईं तथा मंदिर का मंडप, गर्भ-गृह आदि प्रकाश में आए । वर्ष १९७८ में बिलासपुर जिलान्तर्गत ताला (ग्राम-अमेरीकांपा) के मलबा सफाई में देवरानी मंदिर की भू-योजना स्पष्ट हुई। वर्ष १९८५-८६ में यहीं टीले के रूप में जेठानी मंदिर की मलबा सफाई होने से अधिष्ठान, गर्भगृह, मंडप स्पष्ट हुए तथा विशाल स्तम्भ, सिक्के, मनके, पाषाणास्त्र, मृदभाण्ड तथा पंचधातु के आभूषण एवं पाषाण प्रतिमाएं प्राप्त हुई।
इस क्षेत्र के स्मारकों में स्वस्तिक विहार, आनन्दप्रभकुटी विहार, सिरपुर, भोरमदेव, मंडवामहल, चितावरी देवी मंदिर, घोबनी आदि में फेन्सिग कार्य तथा शेड आदि बनवाए गये एवं राजिम, ताला, पलारी, घटियारी आदि में प्रस्तावित है।
सर्वेक्षण- इन तीस वर्षों में यहां की पैरी, सोंढूर, महानदी, इन्द्रावती आदि नदियों पर विविध बांध परियोजनाओं का पुरातत्वीय सर्वेक्षण हुआ है। ये परियोजनाएं हैं- महानदी-गंगरेल बांध, सोंढूर बांध, कोडार बांध, मोगरा बांध, बोधघाट जल विद्युत परियोजना, इन्चमपल्ली, चित्रकूट, कुटरु प्रथम, मटनार जल विद्युत परियोजनाएं आदि। परियोजनाओं में गंगरेल बांध में कई स्थलों पर प्रतिमाएं डूब क्षेत्र के ग्रामों में मिली हैं। इन्चमपल्ली, चित्रकूट, कुटरु प्रथम जल विद्युत परियोजनाओं में १०वीं से लेकर १६-१७वीं शती तक की प्रतिमाएं मिली हैं, जिसका संग्रह किया जाने वाला है। इन्द्रावती नदी पर बनने वाले चित्रकूट जल-विद्युत परियोजना में छिदगांव में छिदक नागवंशीय शासकों का शिवमंदिर वर्ष १९८५-८६ के सर्वेक्षण की नवीन उपलब्धि है। इसी के साथ आदिवासी संस्कृति के स्मारक एवं स्थलों का समुचित रिकार्ड व जानकारी भी संग्रहित की गई है।
संरक्षित स्मारक- इस अवधि में इस क्षेत्र के निम्न १७ स्मारक स्थल संरक्षित किए गये -
रायपुर जिला - १ स्वस्तिक विहार, सिरपुर। २ आनन्दप्रभकुटी विहार, सिरपुर। ३ कुलेश्वर महादेव मंदिर, नवापारा राजिम। ४ सिद्धेश्वर मंदिर, पलारी। ५ चितावरी देवी मंदिर, धोबनी। ६ शिवमंदिर, चंदखुरी।
बिलासपुर जिला - १ देवरानी-जेठानी मंदिर, ताला । २ लक्ष्मणेश्वर मंदिर, खरौद। ३ डिडिनदाई मंदिर, मल्हार। ४ धूमनाथ मंदिर, सरगांव। ५ देव मंदिर, किरारी गोढी। ६ महामाया मंदिर, रतनपुर। ७ कबीर पंथियों की मजार, कुदुरमाल।
राजनांदगांव जिला - १ शिव मंदिर, बिरखा-घटियारी। २ भोरमदेव मंदिर, चौरा। ३ मंडवा-महल एवं छेरकी महल, छपरी।
रायगढ़ जिला - १ चित्रित शैलाश्रय, सिंघनपुर।
इनके अतिरिक्त निम्नलिखित ५ स्मारकों को संरक्षण किए जाने हेतु प्रथम अधिसूचना शासन द्वारा जारी हो चुकी है-
१ गन्धेश्वर मंदिर, सिरपुर (रायपुर), २ रहस्यमय सुरंग, करियादामा (रायपुर) ३ प्राचीन संग्रहालय भवन, रायपुर ४ प्राचीन शिव मंदिर, गनियारी (बिलासपुर) ५ गोपाल मंदिर, बोरासेमी मंदिर, एवं केवटिन मंदिर, पुजारीपाली (रायगढ़)।
इनके अतिरिक्त इस क्षेत्र के करीब १० स्मारक एवं स्थलों के संरक्षित किए जाने के प्रस्ताव शासन के विचाराधीन है।
संग्रहालय- इस क्षेत्र के पुरातत्वीय संग्रहालयों में भारत के प्राचीन संग्रहालयों में १०वां स्थान रायपुर स्थित महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय का है। जिसकी स्थापना वर्ष १८७५ है। इसके अतिरिक्त वर्ष १९८२-८३ में जिला संग्रहालय बिलासपुर की स्थापना हुई है। तीसरा संग्रहालय इन्दिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ (राजनांदगांव) में खोला गया है। एक नृतत्वशास्त्रीय संग्रहालय जगदलपुर में हाल के वर्षों में बना है, जिसमें आदिवासी संस्कृति को सुरूचिपूर्ण ढंग से प्रदर्शित किया गया है।
महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय रायपुर में पाषाण प्रतिमाएं, कांस्य प्रतिमाएं, सिक्के, प्रस्तर अभिलेख, ताम्रपत्र, हस्तलिखित ग्रंथ, मृण्मय मूर्तियां, सील, मनके, पाषाणास्त्र, ताम्रास्त्र आदि का सुन्दर एवं सुरुचिपूर्ण संग्रह है। यह सामग्री छत्तीसगढ़ के ही विविध स्थलों से संग्रहीत की गई है। इनके अतिरिक्त यहां के संग्रहालय में प्राकृतिक इतिहास एवं मानवशास्त्रीय सामग्री भी प्रचुर मात्रा में प्रदर्शित है। यह सारी सामाग्री छत्तीसगढ़ की कला एवं संस्कृति का सच्चा प्रतिनिधित्व करती है तथा इतिहास की कड़ियों का श्रृंखलाबद्ध क्रम यहां पाते हैं।
जिला संग्रहालय, बिलासपुर का संग्रह अपनी प्रारंभिक अवस्था में है। यहां करीब ८० पुरावशेष संग्रहीत है जिनमें ६० पाषाण प्रतिमाएं रतनपुर, पंडरिया, खैरासेतगंगा, ताला, मदनपुरगढ़, गनियारी, दारसागर, मल्हार आदि से संग्रहीत की गई है। इसके साथ ही करीब १५ सिक्के, एक ताम्रपत्र तथा ३ शिलालेख प्रदर्शित है।
इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के प्राचीन भारतीय कला इतिहास विभाग के अन्तर्गत छोटा सा संग्रहालय है, जिसमें प्रमुख रूप से राजनांदगांव एवं दुर्ग जिले की गोंडकालीन प्रतिमाओं का संग्रह है।
पंजीयन- छत्तीसगढ़ क्षेत्र के तीन संभागों के अंतगंत रजिस्ट्रीकरण अधिकारी के दो कार्यालय हैं, जिनमें अप्रैल १९७६ से अक्टूबर १९८६ तक जिलेवार पुरावशेषों के पंजीयन की स्थिति निम्नानुसार है-
(घ) अन्य गतिविधियां- वर्ष १९८४ में दशहरे के पर्व पर जगदलपुर में विभाग द्वारा प्रदर्शनी लगायी गयी। वर्ष १९८५ में खैरागढ़ में नृत्य एवं संगीत विषय के अन्तर्गत एक प्रदर्शनी का सुंदर आयोजन किया गया। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर वर्ष १९८५ में ही सिरपुर उत्सव मनाया गया जिसमें प्रदर्शनी, सिरपुर यात्रा एवं लोक संगीत के कार्यक्रम हुए।
रायपुर संग्रहालय में संग्रहीत सिरपुर की धातु प्रतिमाओं का प्रदर्शन जापान, जर्मनी, इंग्लैंड, अमेरिका एवं फ्रांस में हाल के वर्षों में हो चुका है।
रायपुर संग्रहालय से संबद्ध महंत सर्वेश्वरदास ग्रंथालय है, जिसमें करीब १५ हजार पुस्तकों का सुन्दर संग्रह है जो ज्ञान, विज्ञान, कला, साहित्य, संस्कृति, धर्म, दर्शन आदि पर हैं तथा देश की सभी प्रमुख पत्रिकाएं एंव समाचार पत्र आते हैं जिससे स्थानीय जन लाभान्वित होते हैं ।
(य) प्रकाशन- इन तीस वर्षों में छत्तीसगढ़ से संबंधित विभागीय प्रकाशन निम्नानुसार है-
१. महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय में सुरक्षित उत्कीर्ण लेखों की विवरणात्मक सूची लेखक- बालचन्द्र जैन, मूल्य ००-३१
२. लिस्ट ऑफ क्वाइन्स डिपोजिटेड इन दि एम. जी. एम. म्यूजियम रायपुर (अंग्रेजी में) लेखक- बालचन्द्र जैन, मूल्य - ००-३०
३. महन्त घासीदास स्मारक संग्रहालय (उद्भव इतिहास और प्रवृत्तियां)लेखक- बालचन्द्र जैन, निःशुल्क
४. मानवशास्त्रीय उप विभाग प्रदर्शिका लेखक- बालचन्द्र जैन, मूल्य -१-००
५. प्रकृति इतिहास उप विभाग प्रदर्शिका लेखक- बालचन्द्र जैन मूल्य १-२५
६. पुरातत्व उप विभाग प्रदर्शिका लेखक- बालचन्द्र जैन मूल्य १-५०
७. पुरातत्व विभाग का सूचीपत्र भाग २ पाषाण प्रतिमाएं लेखक- बालचन्द्र जैन मूल्य -१-५०
८. पुरातत्व उप विभाग का सूची पत्र भाग ३ धातु प्रतिमाएं लेखक-बालचन्द्र जैन मूल्य १-००
९. पुरातत्व उपविभाग का सूचीपत्र भाग ६, उत्कीर्ण लेख लेखक- बालचन्द्र जैन मूल्य १३-००
१०. पिक्चर पोस्टकार्ड (म. पा. स्मा. सं.) लेखक-बालचन्द्र जैन मूल्य प्रतिसेट ००-४०
११. भोरमदेव मंदिर प्रदर्शिका लेखक- डा. जी.के. चन्द्रौल, मूल्य ५-४०
१२. सिरपुर लेखक एस.एस. यादव मूल्य ५-००
कार्यालयः
१. संग्रहाध्यक्ष, एम. जी. एम. म्यूजियम रायपुर फोन 26976
२. रजिस्ट्रीकरण अधिकारी, पुरातत्व एवं संग्रहालय, सुभाष स्टेडियम के पीछे, रायपुर (म. प्र.) फोन 27058
३. पुरातत्ववेत्ता, पुरातत्व एवं संग्रहालय, (रायपुर वृत्त) सुभाष स्टेडियम के पीछे, रायपुर (म.प्र.) फोन 27058
४. रजिस्ट्रीकरण अधिकारी, पुरातत्व एवं संग्रहालय, राजेंद्रनगर, हेड पोस्ट आफिस के पास, बिलासपुर, फोन 4249
५. संग्रहाध्यक्ष, जिला संग्रहालय, टाऊन हाल, बिलासपुर (म. प्र.)
६. उप संचालक, पुरातत्व एवं संग्रहालय का कार्यालय रायपुर में प्रारम्भ किये जाने की वित्तीय स्वीकृति शासन द्वारा प्राप्त हो गई है यह कार्यालय शीघ्र खोला जाना प्रस्तावित है।
पुरातत्व एव संग्रहालय, मध्यप्रदेश रायपुर द्वारा प्रकाशित तथा कृष्णसखा प्रेस द्वारा मुद्रित आलेख- वेदप्रकाश नगायच 1000/... 1986
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