Saturday, October 14, 2023

जाना-अनजाना रायपुर

खारुन के मंथर प्रवाह के साथ मानव सभ्यता को कई ठौर ठिकाने मिले- कउही, परसुलीडीह, तरीघाट, खट्टी, खुड़मुड़ी, उफरा और जमरांव में सदियों की बसाहट के प्रमाण हैं। यह क्रम नदी के दाहिने तट पर मानों ठिठक गया, महादेव घाट-रायपुरा पहुंचते। हजार साल से भी अधिक पुराने अवशेष इतिहास को रोशन करते हैं। बसाहट को आकर्षित किया पूर्वी जल-थल ने। सपाट ठोस-मजबूत थल और उसके बीच जगह-जगह पर भरी-पूरी जलराशि। यही बसाहट- रायपुर, तीन सौ तालाबों का शहर बना। 

मैदानी-मध्य छत्तीसगढ़, लगभग बीचों-बीच शिवनाथ से दो हिस्सों में बंटता है। छत्तीस गढ़ों के लिए कहा गया है, शिवनाथ नदी के उत्तर में अठारह और शिवनाथ नदी के दक्षिण में अठारह। ये सभी गढ़ राजस्व-प्रशासनिक केंद्र थे। कलचुरि शासकों के इन सभी छत्तीस गढ़ों का मुख्यालय रतनपुर था, किंतु अनुमान होता है कि शिवनाथ नदी के कारण और दक्षिणी अठारह गढ़ों की सीमा नागवंशियों से जुड़ी होने के कारण, इस अंचल में एक अन्य मुख्यालय आवश्यक हो गया। 

कलचुरि शासक ब्रह्मदेव के दो शिलालेख पंद्रहवीं सदी के आरंभिक वर्षों के हैं, जिनसे ब्रह्मदेव के वंश में उसके पिता रामचंद्र के क्रम में सिंहण और लक्ष्मीदेव की जानकारी मिलती है। लक्ष्मीदेव को रायपुर शुभस्थान का राजा बताया गया है। शिलालेख से सिंहण द्वारा अठारह गढ़ जीतने और फिर उसके पुत्र रामदेव/रामचंद्र द्वारा नागवंशियों को आहत करने की जानकारी मिलती है। शिलालेख में रोचक उल्लेख है कि ‘नायक हाजिराजदेव ने हट्टकेश्वर मंदिर बनवाया ... रायपुर में रहने वाली सुंदर स्त्रियां जो कामदेव को जीवित करने के लिए स्वयं संजीवनी औषधियां हैं, यहां के सुखों के कारण कुबेर की नगरी को मन में तुच्छ समझती हैं।‘ कलचुरि शासकों के पुराने केंद्र रतनपुर की बुढ़ाती जड़ों के समानांतर रायपुर शाखा की नई पौध-रोपनी ताकतवर होती गई, और सन 1818 में छत्तीसगढ़ का मुख्यालय रतनपुर से रायपुर स्थानांतरित हो गया।

बाबू रेवाराम की पंक्तियां हैं- 
मोहम भये सुत जिनके, सूरदे नृप नायक तिनके। 
ब्रह्मदेव तिनके अनुज, मति गुण रूप विशाल। 
दायभाग लै रायपुर, विरच्यो बूढ़ा ताल। 

मुख्य सड़क से जुड़े होने के कारण अब बूढ़ा तालाब और तेलीबांधा सामान्यतः जाने-पहचाने जाते हैं, मगर इनके साथ आमा तालाब, राजा तालाब, कंकाली तालाब, महाराजबंद सहित मठपारा के तालाब आदि कई जलाशयों का अस्तित्व अभी बचा हुआ है, जबकि पंडरीतरई, रजबंधा का नाम ही रह गया है और लेंडी तालाब अब शास्त्री बाजार है। 

उन्नीसवीं सदी में रायपुर के विकास के कुछ मुख्य कार्यों की जानकारी मिलती है, जिनमें 1804 में भोसलों और अंग्रेजों के मध्य संधि के फलस्वरूप डाक सेवा का आरंभ हुआ। 1820-25 के दौरान रायपुर-नागपुर सड़क निर्माण कराया गया। राजकुमार कालेज परिसर का लैंप पोस्ट, जिस पर ‘नागपुर 180 मील‘ अंकित है, अब भी सुरक्षित है। 1825 में सदर बाजार मार्ग निर्माण हुआ। 1825-30 के बीच मिडिल तथा नार्मल स्कूल और दो अस्पतालों का निर्माण हुआ। बाबू साधुचरणप्रसाद ने ‘भारत-भ्रमण में लिखा है- ‘सन 1830 में रायपुर का वर्तमान कसबा बसा। पुराना कसबा इससे दक्षिण और पश्चिम था।‘ 1860 में रायपुर से बिलासपुर और रायपुर से धमतरी के लिए सड़क बनी। रायपुर में म्युनिसिपल कमेटी का गठन 1867 में हुआ। 1868 में केंद्रीय जेल भवन, गोल बाजार तथा दो सार्वजनिक उद्यानों का निर्माण हुआ। 1875 में राजनांदगांव के महंत घासीदास के दान से संग्रहालय का निर्माण हुआ, जो जनभागीदारी से बना देश का पहला संग्रहालय है। 

1887 में टाउन हॉल, सर्किट हाउस, अस्पताल भवन बना तथा इसी दौरान लेडी डफरिन जनाना अस्पताल भी खुला। 1888 में रायपुर तक आई रेल की बड़ी लाइन, आगे खड़गपुर होते 1900 में कलकत्ता से जुड़ गई। 1890 में रायपुर-कलकत्ता सड़क, रायपुर-बलौदा बाजार सड़क और धमतरी रेल लाइन बनी। 1892 में ‘बलरामदास वाटर वर्क्स‘ नाम से खारुन से जल-प्रदाय आरंभ हुआ। सरकारी मिडिल स्कूल 1887 में गवर्नमेंट हाई स्कूल का दरजा पा गया, तब यह कलकत्ता विश्वविद्यालय से फिर 1894 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संबद्ध हुआ। 1894 में राजकुमार कॉलेज जबलपुर से रायपुर आ गया, 1939 तक यहां सिर्फ राजकुमारों को प्रवेश दिया जाता था। महाविद्यालयीन शिक्षा के लिए 1938 में दाऊ कामता प्रसाद के दान, शिक्षाशास्त्री जे. योगानंदम की इच्छा-शक्ति और तत्कालीन नगर पालिका अध्यक्ष ठा. प्यारेलाल सिंह के सद्प्रयासों से रायपुर में छत्तीसगढ़ कॉलेज की स्थापना हुई।

1867 में म्युनिसिपल बना, जिसकी सीमा में रायपुर के साथ चिरहुलडीह, डंगनिया और गभरापारा बस्ती शामिल थी। टिकरापारा से संलग्न गभरापारा लगभग भुला दिया गया नाम हैै। गभरा शब्द भी सामान्य प्रचलन में अब नहीं है। टिकरा-गभरा जोड़े के साथ ध्यान रहे कि गभरा या गभार, टिकरा की तरह कृषि भूमि का एक प्रकार है, जिसका आशय गहरी उपजाऊ भूमि होता है। रायपुर की शान रहे, रजवाड़ों और जमींदारों के बाड़े- खैरागढ़, रायगढ़, खरियार, छुईखदान, छुरा, कवर्धा, फिंगेश्वर, बस्तर, कोमाखान आदि अधिकतर अब स्मृति-लोप हो रहे हैं। और बीसवीं सदी के आरंभ में सिंचाई विभाग की स्थापना और नहर निर्माण के साथ महानदी का पानी खेतों तक पहुंचने लगा। तब तक रायपुर की जनसंख्या 30000 पार कर चुकी थी।

सबसे पुरानी कामर्शियल बैंक, 1912 में स्थापित इलाहाबाद बैंक है। को-ऑपरेटिव बैंक 1913 में और इंपीरियल बैंक 1925 में स्थापित हुआ। बिजली अक्टूबर 1928 में आई, मगर व्यवस्थित होने में समय लगा, जब 1939 में 240 किलोवॉट का पावर हाउस स्थापित हो गया। 1950-51 में ईस्टर्न ग्रिड सिस्टम के अंतर्गत रायपुर पायलट स्टेशन बना, तब रायपुर पावर हाउस का काम शासकीय विद्युत विभाग द्वारा किया जाने लगा।

पुराने रायपुर को इन शब्द-दृश्यों में देखना रोचक है- 1790 में आए अंग्रेज यात्री डेनियल रॉबिन्सन लेकी बताते हैं- यहां बड़ी संख्या में व्यापारी और धनाढ्य लोग निवास करते हैं। यहां किला है, जिसके परकोटे का निचला भाग पत्थरों का और ऊपरी हिस्सा मिट्टी का है। किले में पांच प्रवेश द्वार हैं। पास ही रमणीय सरोवर है। पांच साल बाद आए कैप्टन जेम्स टीलियर? ब्लंट गिनती में बताते हैं कि नगर में 3000 मकान थे। नगर के उत्तर-पूर्व में बहुत बड़ा किला है, जो ढहने की स्थिति में है। 

सन 1893 का विवरण यायावर बाबू साधुचरण ने दिया है, जिसके अनुसार रेलवे स्टेशन से एक मील दूर पुरानी धर्मशाला से दक्षिण गोल नामक चौक (गोल बाजार) में छोटी-छोटी दुकानों के चार चौखूटे बाजार हैं। गोल चौक से दक्षिण दो मील लंबी एकपक्की सड़क है। जिसके बगलों में बहुतेरे बड़े मकान और कपड़े, बर्तन इत्यादि की दुकानें बनीं हैं। ... प्रधान सड़कों पर रात्रि में लालटेने जलती हैं। ... एक पुराना जर्जर किला देख पड़ता है, जिसको सन् 1460 ई. में राजा भुवनेश्वर देव ने बनवाया था। ... किले के दक्षिण आधा वर्ग मील में फैला महाराज तालाब है। तालाब के बांध के निकट श्रीरामचंद्र का मंदिर (दूधाधारी) खड़ा है। जिसको सन् 1775 में रायपुर के राजा भीमाजी (बिंबाजी) भोंसला ने बनवाया।‘ इस विवरण में कंकाली तालाब, आमा तालाब, तेलीबांधा, राजा तालाब का भी उल्लेख है। कोको तालाब के लिए बताया गया है कि इसमें गणेश चौथ के अंत में गणपति जी की मूर्तियां विसर्जित होती हैं, (ध्यान देने वाली बात कि इसी विवरण-वर्ष यानि 1893 में तिलक ने गणेशोत्सव को सार्वजनिक उत्सव का स्वरूप दिया था।) व्यापार संबंधी जानकारी आई है कि गल्ले, कपास, लाह (लाख) और दूसरी पैदावार की सौदागरी बढ़ती पर है। साथ ही यह भी बताया गया है कि वर्तमान कस्बे के दक्षिण और पश्चिम छोटी नदी के किनारे महादेव घाट तक रायपुर का पुराना कस्बा बसा था। 

रायपुर की जनांकिकी की दृष्टि से 2011 की जनगणना में 10 लाख आबादी का आंकड़ा पार यह बसाहट, यही कोई 500 साल बीते, खारुन नदी के किनारे का रायपुरा फैलकर पुरानी बस्ती के साथ रायपुर बनने लगा। कलचुरी आए और राजधानी की नींव पड़ी। अब तक सरयूपारी ब्राह्मण आ चुके थे। राजपूत, पहले कलचुरियों के साथ और बाद में गदर के आगे-पीछे आए। वैश्य, यहां रहते छत्तीसगढ़िया दाऊ बन चुके थे। राजधानी ने अन्य को भी आकर्षित किया। मठपारा, कुम्हारपारा, बढ़ईपारा, अवधियापारा, गॉस मेमोरियल, ढीमरपारा, मौदहापारा, यादवपारा, सोनकर बाड़ा, बूढ़ा तालाब, तेलीबांधा वाले इस शहर में चौबे कालोनी, शंकर नगर, सुंदर नगर और विवेकानंद नगर भी बसा। रजबंधा का शहीद स्मारक, प्रेस काम्प्लेक्स तक सफर तो पूरा अध्याय है। 

इसी दौरान अठारहवीं सदी के मध्य में भोंसलों के साथ मराठी परिवार आ गए। अन्य में मोटे तौर पर डॉक्टर, वकील पेशे में और रेलवे के काम में बंगाली आए। रेलवे ठेकेदारी, तेंदू पत्ते और लकड़ी के व्यवसाय के लिए गुजराती आए। बुंदेलखंडी जैनों की बड़ी खेप की आमद मारवाड़ियों के बाद हुई। स्वाधीनता-विभाजन के दौर में सिंधी, पंजाबी आए। रोटी, कपड़ा और मकान के मारे, इन्हीं का व्यवसाय यानि गल्ला-राशन, होटल-रेस्टोरेंट, कपड़े की दूकान और बिल्डर-रियल स्टेट का काम करते, दूसरों को मुहैया कराते, अपने लिए इसका पर्याप्त इंतजाम कर लिया। इस क्रम में टुरी हटरी पर गोल बाजार और सदर फिर इन सब पर मॉल हावी हो गया। शहर अब नवा रायपुर तक फैल कर अटलनगर अभिहित है। उसके आर्थिक परिदृश्य में, व्यवसायिक प्रभुत्व सिंधी-पंजाबी और जैनों का है तो कामगारों में उड़िया और तेलुगू पैठ न सिर्फ नगर, बल्कि घर-घर में बन गई है। नगर में सामान्यतः आपसी भाईचारा बना रहा है, छत्तीसगढ़ी सहज स्वीकार्यता का यह सबल उदाहरण है और इस दृष्टि से रायपुर, राज्य की राजधानी के साथ अपने स्वाभाविक औदार्य में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधि शहर भी है।

पुनश्च- दैनिक भास्कर, रायपुर के 35 स्थापना दिवस पर रायपुर के लिए लिखना था। रायपुर के इतिहास से वर्तमान तक का सफर सीमित शब्दों में लिखना चुनौती जैसा था, यह भी कि अब तक जो लिखा जाता रहा है, उससे अलग और क्या हो सकता है। फिर भी प्रयास किया कि नये-पुराने रायपुर के लिए अपनी समझ को झकझोर कर देखा जाए कि क्या निकलता है, जो बना वह ऊपर है, जो समाचार पत्र में आया, वह आगे है-
(यहां आए पुराने तथ्यों को एकाधिक और यथासंभव मूल-स्रोतों से लिया गया है। डॉ. लक्ष्मीशंकर निगम जी ने उनके लेखन में आई जानकारियों के उपयोग की अनुमति दी तथा हरि ठाकुर जी की सामग्री से कुछ महत्वपूर्ण दुर्लभ जानकारियां, उनके पुत्र आशीष सिंह जी के माध्यम से मिलीं। अपने दौर की जानकारी और उनकी व्याख्या मेरी है।) 


5 comments:

  1. बहुत बढ़िया भैया

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  2. बहुत अच्छी जानकारी है आदरणीय

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  3. अच्छी सारगर्भित जानकारी..

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  4. वाह-वाह। सारगर्भित-संकलनीय। अउ गागर मा सागर।

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