Thursday, February 11, 2021

भानु जी के पत्र-1

जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु कवि‘ का बिलासपुर में निवास चांटापारा यानि तिलक नगर में था। उनके पुत्र जुगल किशोर हुए, जिनके निधन के बाद उनकी धर्मपत्नी पूर्णिमा देवी ने जगन्नाथ प्रिंटिंग प्रेस और प्रकाशन का काम संभाला। इनके पुत्र मोहन, स्वयं को मोहन मस्ताना या मोहन कवि कहलाना पसंद करते थे। मोहन कवि को हाथी पांव था। यही कोई 30 साल पहले वे यदा-कदा हमारे घसियापारा यानि राजेन्द्र नगर स्थित दफ्तर में मुझसे मिलने आते थे। उनके निवास की पहली मंजिल पर भानु जी की मेज-कुरसी, पुस्तके आदि धूल-गर्द भरी, लेकिन सुरक्षित थीं।

हरि ठाकुर के परिवार से जुगल किशोर के सपरिवार करीबी संबंध थे, जिनके माध्यम से भानु जी के दो पत्र उन्हें प्राप्त हुए, जो अब हरि ठाकुर के पुत्र आशीष सिंह के पास सुरक्षित हैं। आशीष जी ने इन पत्रों की जानकारी दी, दिखाया, प्रतिलिपि बनाने के साथ सार्वजनिक करने की अनुमति दी है। अनुमान होता है कि भानु जी ऐसे पत्र दो प्रतियों में लिखते और दूसरी प्रति संदर्भ हेतु अपने पास सुरक्षित रखते थे, जैसा उस जमाने का आम चलन था।

इनमें से पहला पत्र सन 1907 का खंडवा से तथा दूसरा 1912 का बिलासपुर से लिखा गया है। दोनों ही पत्र बंबई के प्रकाशक को लिखे गए हैं। यहां पत्र का मजमून दिया जा रहा है, जिसमें मूल से मामूली अंतर हो सकता है। शोधकर्ता और बारीकी से समझने का उद्यम करने वालों की सुविधा के लिए, सामग्री के मूल स्वरूप से मिलान हो सके, इसलिए पत्र की प्रति भी यहां लगाई जा रही है।

पत्रों को पढ़ते और प्रस्तुत करने के लिए फीड करते कई स्थानों पर टिप्पणी का विचार बना, किंतु वह फिर कभी। अभी कुछ छोटी-छोटी बातें। पत्रों में अनुस्वार के लिए चंद्र बिंदु के बजाय मात्र बिंदु का प्रयोग हुआ है। पहले पत्र का भारत वर्ष दूसरे पत्र में हिंदुस्थान हो गया है। दोनों पत्रों में प्रकाशक को पुराने नहीं बल्कि प्राचीन स्नेही कहा गया है। ग्रन्थों के लिए कम से कम दस हजार रुपये की अपेक्षा की गई है, जिनका व्यय सार्वजनिक कार्य में किए जाने और पुस्तक बाइ-बैक यानि वापस खरीदी (इस दौर में विनोद कुमार शुक्ल और पेंगुइन बुक्स विवाद याद आता है।) की बात कही गई है। साथ ही हिन्दी पाठकों की दशा का उल्लेख ध्यान देने योग्य है।

इन दोनों पत्रों में से पहला पत्र यहां और दूसरा इस लिंक पर है।

पहला पत्र

खंडवा. म. प्र.
21-7-07 

श्रीमान् सेठ खेमराज श्रीकृष्णदास जी, जयगोपाल! 

कृपा पत्र ताः 17-7 का मिला, समाचार जाने। इन ग्रन्थों को उत्तम बनाने में हम ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। ईश्वर चाहेगा तो ये ग्रन्थ थोड़े ही काल में भारत वर्ष में घर 2 व्याप्त हो जावेंगे। हमने अनुमान किया था कि, इन ग्रन्थों के उपलक्ष में हमें कम से कम दश हजार रुपैये मिलेंगे, तथा उन रुपैयों को हम अपने व्यवहार में न लाकर सार्वजनिक काय्र्य में व्यय करेंगे। किन्तु भाषा काव्य के दुर्भाग्य से कहो, किवां हिन्दी पाठकों के अभाव से कहो, अभी इतर देशों के समान यहां के कवि, लेखकों तथा विद्वानों का उतना मान नहीं है अस्तु चिन्ता नहीं, आप हमारे प्राचीन स्नेही तथा शुभचिन्तक हैं। अतएव हमने भी आप ही के यहां छपाना निश्र्चय किया है आपके लिखे अनुसार हम सब पुस्तकों का सत्त्व आपको दिये देते हैं। इस पर चाहे आप हमें इसके उपलक्ष में अपनी इच्छा अनुसार जो कुछ देंगे, सहर्ष स्वीकृत किया जायगा और वह परोपकार ही में लगाया जायगा। साथ में यह भी विदित हो कि अभी छन्दःप्रभाकर की पांच सौ प्रतियां शेष है यदि उन्हें भी आप अर्ध मूल पर खरीद लें तो छन्दःप्रभाकर का भी सत्त्व आप को दे देंगे। मूल्य जब चाहे तब भेजें कोई जल्दी नहीं है। इतनी काॅपी बचे रहने का कारण हमारे सात चर्ष से कोई विज्ञापन न देने का है। दूसरे अन्तिम प्रूफ शोधन के लिये हमें भी यहां पर एक कर्मचारी 25/ माहवार पर रखना पड़ेगा और बम्बई में भी यदि हम एक कर्मचारी रखें तो दुहरा खर्च हम को पड़ेगा। अतएव वहां के लिये दो प्रूफ जांचने तक का प्रबन्ध अपनी ओर से कर लेवें और अन्तिम प्रूफ पास करने को हमारे पास भेजें व जब तक हम पास न कर लेवें तब तक छापना ठीक नहीं है परन्तु छपाई के काम में ढील न हो। जहां तक हो ग्रन्थ शीघ्र छप जाना चाहिये। कागज तो आप उत्तम लगावेंगे ही, किन्तु काल प्रबोध व नव पंचामृत रामायण को छोड़कर शेष ग्रन्थों का उत्तम बाईडिंग अवश्य ही करना होगा। इन पुस्तकों की भविष्यावृत्तियों में भी शोधने तथा रदबदल करने का हमको पूर्ण अधिकार होगा। इन सब प्रश्नों का उचित उत्तर आते ही ग्रन्थ भेज दिये जावेंगे। पत्रोत्तर तफसीलवार शीघ्र देवें। इति.

कापीराइट इस प्रकार देंगे।

1 काव्य प्रभाकर ..... कापीराइट 100 जिल्द लेकर देवेंगे।
2 शुद्ध सप्तशती ..... तथा 100 ..... तथा,
3 छन्दःप्रभाकर ..... तथा 200 ..... तथा
4 मधुबनचरित्रामृत ..... तथा 50 ..... तथ
5 नव पंचामृत रा. ..... तथा 100 ..... तथा
6 काल प्रबोध ..... तथा 100 ..... तथा
यह आप ही के लेखानुसार है 

आपका कृपाअभिलाषी
(हस्ताक्षर)
असिटन्ट सेटल्मेन्ट आफीसर

2 comments:

  1. हीरे खोज लाने और उसकी झलक नहीं बल्कि पूरा हीरा ही दिखाने के लिये किन शब्दों में आपका आभार व्यक्त किया जाये, समझ से परे है। गजब और न केवल पठनीय बल्कि संग्रहणीय भी। बधाई। अभिनन्दन। स्वागतम्।

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