दूसरा पत्र
बिलासपुर 26।2।12
प्रियवर सेठजी - जयगोपाल
आपका पत्र हस्तगत हुआ। परमानंद हुआ। छंदःप्रभाकर की तृतीयावृत्ति शोधकर छपने को तय्यार है आपने ठीक समय पर उसका स्मरण किया एतदर्थ आपको धन्यवाद देता हूं हमें कल्यान वालों ने बहुत धोखा दिया और हमारा एक बड़ा भारी ग्रंथ 500 से अधिक पृष्ठ वाला ‘‘मधुबन चरितामृत‘‘ तीन बरस से लापता कर दिया कई पत्र लिखे कि उसको वापिस ही कर देव परंतु कोई जवाब नहीं देवे इसके लिये उनके साथ खास कारवाई करना होगी हमारा उनका अब कोई संबंध नही रहा. यदि आपकी सहायता से हमें वह ग्रंथ ही वापिस मिल जायगा अथवा आप ही छापें तो विषेष कृपा होगी आशा है आप इसमें हमारी सहायता करेंगे
छंदःप्रभाकर के विषय में काशी और प्रयाग में लिखा पढ़ी चल रही है परंतु आप हतारे प्राचीन स्नेंही हैं आप ही के यहां शीघ्र छपे तो अत्युतम है परंतु आप यह लिख भेजिये कि किस शर्त से आप उसे छापेंगे. इस तृतीयावृति का आप स्वत्व लेने को प्रसन्न हैं तो हमें क्या प्रदान करेंगे और मूल्य ले कर छापेंगे तो किस निरख से छापेंगे.
कहना नही होगा कि इस ग्रंथ की बहुत मांग हिंदुस्थान के प्रत्येक नगर में है और सरकार से भी यह मंजूर हो चुका है शीघ्र पत्रोत्तर प्रदान करने की कृपा करें।। और भी ग्रंथ छापने को तयार हैं जैसे -
काव्य प्रभाकर (भाषा द्वितीयावृति) पृष्ठ 800
शुद्ध सप्तशती सान्वय भाषा टीका ‘‘ 400
रसिक प्रमोद ‘‘ 200
नवपंचामृत रामायण ‘‘ 70
काल प्रबोध ‘‘ 60
तुम्ही तो हो (श्रीकृष्णाष्टक) ‘‘ 10
मेरी हार्दिक इच्छा यही है कि हमारा और आपका जैसा प्रेम चला आया है वैसा ही बना रहे कोइ अंतर न पड़े वरन वृद्धिगत होता रहै.
आपकी सेवा में गत वर्ष एक कापी काव्य प्रभाकर की भेजी गई थी परंतु आज तक समालोचना की कृपा न हुई अस्तु इस बात की जल्दी नही
आशा है छोटे सेठ कुशल होंगे.
आपका परम स्नेही
जगन्नाथ प्रसाद
भानुकवि
छोटेसाहीब
बंदोबस्त
प्रसंगवश-
भानु जी के सबसे लोकप्रिय ग्रंथ छन्दःप्रभाकर की दसवीं आवृत्ति सन 1960 में पूर्णिमा देवी, धर्मपत्नि स्वर्गीय बाबू जुगल किशोर द्वारा प्रकाशित कराई गई, जिसके अंतिम कवर पृष्ठ पर भानु-कवि विरचित ग्रंथों की सूची दी गई है, जिसका चित्र यहां दिया गया है।
भविष्य में उपयोगी होगी. सरकार से पिंड छूटने के बाद समय का ऐसा भी उपयोग हो सकता है, अवकाश प्राप्तों के लिए नजीर.
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