Monday, April 18, 2022

विरासत और जलवायु

18 अप्रैल को प्रतिवर्ष विश्व विरासत दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष थीम है ‘विरासत और जलवायु‘। सामान्यतः विरासत का आशय मानवकृत उदाहरणों से जोड़ लिया जाता है, किंतु इसके साथ प्राकृतिक विरासत, और उसमें भी जल और वायु के महत्व को रेखांकित करने के लिए ही संभवतः यह ‘जलवायु‘ विशेष रूप से है।


यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थलों के चयन के लिए मुख्यतः मानव रचनात्मक प्रतिभा, वास्तुकला आदि, मानव-इतिहास के महत्वपूर्ण चरण की उत्कृष्ट कृति/ घटनाओं या परंपराओं, विचारों या विश्वासों के साथ, उत्कृष्ट सार्वभौमिक महत्व के कलात्मक और साहित्यिक कार्यों का प्रत्यक्ष या मूर्त रूप/ पर्यावरण और मानव संपर्क के विशिष्ट उदाहरण/ पारिस्थितिक जैव समुदायों की जैविक प्रक्रिया और विकास का प्रतिनिधित्व करने वाले उत्कृष्ट उदाहरण, प्राकृतिक स्थितियां/ उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य की संकटग्रस्त प्रजातियां को शामिल किया जाता है। इस प्रकार विरासत के अंतर्गत प्राकृतिक, मानवकृत-सांस्कृतिक तथा मिश्रित विरासत शामिल है।

इसे यों समझ सकते हैं कि जंगल, नदी, पहाड़, जल-प्रपात आदि नैसर्गिक सौंदर्य स्थल मूर्त विरासत है। साथ ही पुरातात्विक और ऐतिहासिक मंदिर, भवन, संरचनाएं भी मूर्त विरासत हैं। संस्कृति और परंपरा, जिसमें नृत्य, संगीत, खान-पान, जीवन-शैली, लोकाचार, रीति-रिवाज, तीज-त्यौहार आदि सभी शामिल है, अमूर्त विरासत है। दूसरे शब्दों में नदी-पहाड़, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, उनका परिवेश, स्मारक, कला, गीत-संगीत, परंपरा, जीवन-शैली, जिनमें मानव सभ्यता के सुदीर्घ इतिहास और उद्यम की सौंदर्यमूलक अभिव्यक्ति हो, वह सभी विरासत है।

ऐसी विरासत किसी एक व्यक्ति की नहीं, अपितु पूरी सभ्यता और समाज की थाती होती है। यह मात्र पर्यटन और मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि मानवता के उच्चतर मूल्यों और प्रतिमानों की पहचान है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी, बरसों से चली आ रही विरासत को आने वाली पीढ़ी के हाथों सौंपना हर पीढ़ी का दायित्व है। ऐसे स्थलों और विरासत के इन उदाहरणों के प्रति जागरूकता और संतुलन आवश्यक है। कई ऐसे विरासत स्थल है, जो महत्वपूर्ण होने के बावजूद भी उपेक्षित रह जाते हैं, वहीं दूसरी तरफ लोकप्रिय स्थलों में पर्यटकों की भारी संख्या पहुंचती है, साथ ही अनियंत्रित विकास के कारण उस विरासत को क्षति पहुंचने की आशंका बनी रहती है। इसलिए इनका ध्यान रखा जाना आवश्यक हो जाता है।

अपनी विरासत की स्थिति, उसके संरक्षण के पक्षों और संभावनाओं पर विचार करते हुए उल्लेखनीय है कि भारतीय पुरातत्तव सर्वेक्षण की 150वीं वर्षगांठ समारोह में प्रधानमंत्री जी ने कहा था- ‘शहरीकरण और जनसंख्या के विस्तार के दबावों से देश भर में हमारे ऐतिहासिक स्मारकों के लिए खतरा पैदा हो गया है।‘ ... इसके लिए दूर दृष्टि, उद्देश्य के प्रति निष्ठा और विभिन्न सम्बद्ध पक्षों के सम्मिलित प्रयासों की आवश्यकता होगी। मुझे उम्मीद है कि आप इस महत्वपूर्ण प्रयास के दायित्व को संभालेंगे।‘ निसंदेह यह बात मात्र पुराने स्मारकों पर ही नहीं, बल्कि समूचे विरासत पर लागू होती है।

इस परिप्रेक्ष्य में उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों समाचार आया कि नीति आयोग के ‘ट्रांसफार्मेशन ऑफ एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम‘ के अंतर्गत छत्तीसगढ़ के 10 आकांक्षी जिले शामिल हैं, इसके संबंध में मुख्यमंत्री जी ने प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखा कर विश्वास व्यक्त किया है कि हमारे वनांचल तथा गांव के जीवन में संस्कृति और परंपराओं का विशेष योगदान होता है, जिससे वहां के लोगों के जीवन में समरसता, उत्साह एवं स्वावलंबन का भाव रहे, इसलिए आकांक्षी जिलों की अवधारणा में सांस्कृतिक उत्थान के बिन्दु को भी यथोचित महत्व एवं ध्यान दिया जाना चाहिए। उपरोक्त इंडीकेटरों को भी जोड़े जाने पर आकांक्षी जिलों के बहुमुखी विकास में किये जा रहे सभी प्रयासों पर भी ध्यान रहेगा और जिस आशा के साथ यह आकांक्षी जिलों की पृथक मॉनीटरिंग व्यवस्था शुरू की गई है वह भी सफल होगी।

दूरद्रष्टा राजनेताओं और नीतियों के कियान्वयन की दृष्टि से उल्लेखनीय है कि 73वें संविधान संशोधन, पंचायती राज अधिनियम के साथ 11वीं अनुसूची को सम्मिलित किया गया, इस अनुसूची में पंचायतों के 29 कार्यकारी विषय-वस्तुओं में से ‘बाजार एवं मेले, सांस्कृतिक गतिविधियां और सार्वजनिक संपत्ति का रखरखाव‘ को सीधे विरासत संरक्षण से जोड़ कर देखा जा सकता है। अधिनियम की विषय-वस्तु से स्पष्ट है कि महान विरासत के साथ, गांव-बस्ती, नगर के पारा-मुहल्ला में आसपास फैली विरासत और उसके संरक्षण का भी अपना महत्व है।

इस दृष्टि से वन-पर्वत क्षेत्रों के साथ-साथ प्रत्येक बसाहट से संबद्ध विशिष्ट प्राकृतिक संरचना, जीव-जंतु, पेड़-पौधे, नदी-नाले का उद्गम, संगम और अन्य जल-स्रोत, नदी-नालों के घाट, गुड़ी आदि स्थानीय आस्था-उपासना स्थल महत्वपूर्ण होते हैं। पुराने तालाब, डीह-टीला आदि की जानकारी के साथ विरासत स्थलों का संकेत मिलता है। कम प्रचलित मार्ग, पैडगरी रास्तों के साथ इतिहास और परंपरा के प्रमाण सुरक्षित रहते हैं। हरेक गांव में घटना, पर्व, परंपरा, संस्था आदि की अपनी विरासत, मान्यताओं, विश्वास और विभूतियों से जुड़ी गौरव-गाथा होती ही है, यही विरासत के विशिष्ट उपादान हैं। स्थानीय निकाय स्तर पर अपनी अस्मिता, गौरव की पहचान और दस्तावेजीकरण कर उनके संरक्षण में स्थानीय सहभागिता और उत्तरदायित्व को महत्व दिया जाना आवश्यक है।

ध्यान रहे कि सरकारों की प्राथमिकता रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क और कानून-व्यवस्था है। इसलिए धरोहर की रक्षा के लिए प्रत्येक नागरिक को इसे पुनीत कर्तव्य मानते हुए स्वयं जिम्मेदारी लेनी होगी। जिस प्रकार हम अपनी खुशियों, सुखद स्मृतियों सुंदर वस्तुओं, कलाकृतियों, पुरखों की निशानियों को बचा कर रखना चाहते हैं, उसी प्रकार का लगाव रखते, धरोहर के प्रति सजगता आवश्यक है। इसके संरक्षण में स्वयंसेवी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों, उद्योगों, जन-प्रतिनिधियों तथा आवश्यक होने पर दबावपूर्वक शासन/एजेंसियों का सहयोग लेना होगा, तभी अपनी विरासत पर गौरव और उनका सम्मान करते हुए, उन्हें बेहतर संरक्षित किया जा सकेगा।

1 comment:

  1. इस विषय पर और पढ़ना चाहंगे....ज्ञानवर्धक जानकारी.

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