शेर जंगल का राजा है।
शेर बचेगा तो जंगल बचेगा
जंगल को बचाना है
इसलिए शेर को बचाना है
हमारा सरोकार!
हम पर सारा दारोमदार?
शेर, शिकार करता है
अपनी भूख मिटाने को
अपनी प्राण रक्षा के लिए।
प्रकृति का नियम पालन करते
भोजन चक्र पूरा करते
संतुलन बनाए रखता है।
शेर, रोज शिकार नहीं करता
शिकार करता है,
तसल्ली से उसे सहेजता,
कई दिनों जीमता रहता है
फिर कुछ दिनों सोता है
बचा-खुचा, जूठन-छोड़न
रह जाता है, मुंह मारने
गीदड़, चील, लकड़बग्घों के लिए
इस राजा की प्रजा आखिर कौन है!
न पहेली है, न सवाल
जवाब सीधा सा,
प्रजा है हिरण।
यह प्रजा, कभी हाड़ मांस की
चाहे माया-मृग बनाई जा कर
आखेट-शिकार के लिए हमेशा मुफीद
दिहाड़ी हिरण के लिए
काम के घंटे,
सूर्योदय से सूर्यास्त
सातों दिन, बारहों महीने
काम-कमाई पेट भरना।
पूरे दिन लगातार घास चरना
प्रकृति का नियम पालना-पलना
भीड़ बन, समूह में रहना
और राजा का ग्रास बनना
उसका पेट भरना।
राजा का बचना, राजा को बचाना
हमारा पाठ, सीख, हमारा संकल्प।
एक राजा के लिए
बहुल प्रजा की कुर्बानी
प्रकृति का सं-विधान
पर्यावरण-प्रजातंत्र, नारे और अभियान।
शेर भी नहीं बचेगा
अगर जंगल नहीं बचेगा।
जंगल भी नहीं बचेगा
अगर हिरण नहीं बचेगा।
हिरण भी तभी बचेग
जब घास-पात बचेगा।
घास-पात बचा रहे।
प्रकृति अपने घाव खुद भरती है।
और प्राकृतिक नियम
जैसा हम नियंता बन, जाने-समझे-मानें
मगर वैसा अपवाद?
तदैव सदैव नहीं होता।
(यहां शेर, बाध से अभिन्न है, आशय lion-tiger दोनों से है, सामान्यतः lion-सिंह, बबर शेर और tiger के लिए शेर ही प्रचलित है।)
‘समाज में सदाचार का बहुमत, बिखरा हुआ होता है और बहुमत का इकट्ठा होना, कभी स्वाभाविक, कभी खतरा आभास कराने पर, प्राण-रक्षा के लिए होता है‘ मेरे ऐसा कहने पर जैव-रूप अध्येता श्री अनुपम सिसोदिया ने मेरी इस बात को दुर्बोध स्थापना कहते, व्याख्या वाली ‘सुबोध‘ निर्मम बात कही, कि यह शिकारी-शिकार जैसा रिश्ता है। शिकारी महत्वपूर्ण माना जाता है और शिकार उनका स्वाभाविक भक्ष्य। शिकारी, शीर्ष पर अल्प और शिकार अंतिम पायदान पर, सीमांत और बहुल। समाज में देखना होता है कि कौन भरा पेट है और किसे अपने पेट के लिए दिन भर भटकना है। इस तरह भटकता, असंगठित बहुमत ही होगा। उसका शिकार होना, ग्रास बन जाना, सहज मान लिया जाता है। इस जगह मानव-समाज ने, उसी ‘बर्बर‘ व्यवस्था को, नियम की तरह स्वीकार कर पालनीय, संहिता की तरह मान्य कर लिया है, आदि ... वही कविता की शक्ल में।
बहुत सही भाव हैं...
ReplyDeleteकविता में शेर शिकार करता है अपनी भूख मिटाने को...
भले ही वह शिकार उसकी प्रजा हिरण है
मानव समाज में सत्ताधारी की भावना कुछ अलग होती है...
वह अपनी भूख मिटाने के लिए शिकार नहीं करता
वह शिकार करता है अपने अहंकार के लिए अपने मनोविनोद के लिए अपनी शक्ति के विस्तार के लिए.. हमारे समय में रूस का हमला यूक्रेन पर इसी तरह का है... राजा की प्रजा लाचार हिरण की तरह ही है. उसके सामने शिकार होने एवं नहीं होने का कोई ऑप्शन नहीं होता...
कौन सा शेर राजा पूछता है आज किस हिरण की बारी है किस हिरण को मोक्ष प्राप्त करना है...
पर शेर तो एक ही हिरण को मोक्ष देता है. हमारे पुतिन सामूहिक तौर पर टैक्स लेकर सामूहिक तौर पर मोक्ष देते हैं. अलग राजा...