Friday, December 27, 2024

कोड़ेगांव सती लेख

यहां प्रस्तुत लेख इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ की शोध पत्रिका ‘कला-वैभव’ के अंक-17 (2007-08) में पृष्ठ 107-108 पर प्रकाशित हुआ है। लेख के वाचन तथा भूमिका तैयार करने में सहयोगी अधिकारी श्री जी.एल. रायकवार की मुख्य भूमिका रही है। मूल शिलालेख का अवलोकन मेरे द्वारा नहीं किया गया है, वाचन श्री रायकवार द्वारा लिए तथा उपलब्ध कराए गए छायाचित्र के आधार पर किया जा कर पुष्टि कराई गई है। लेख का टेक्स्ट इस प्रकार है- 

सारंगदेव के समय का कोड़ेगांव से प्राप्त सती लेख 
- श्री राहुल कुमार सिंह* 
* उप संचालक, संस्कृति विभाग, रायपुर (छ.ग.) 

छत्तीसगढ़ अंचल में महाषाणीय शवाधान संस्कृति के स्मृतिपरक अवशेषों के व्यापक क्षेत्र में बस्तर के वनांचल से लेकर दुर्ग धमतरी तक के मैदानी भाग में मानव संस्कृति की इस धारा में बस्तर अंचल के माड़िया गोंड़ जनजाति की शवाधान परम्परा में स्मृतिपरक काष्ठ स्तंभों में प्रकृति, प्रथा और दर्शन एक साथ समाहित रहते हैं। छत्तीसगढ़ के परवर्ती ऐतिहासिक काल के स्मृतिपरक अवशेषों में योद्धा प्रतिमाओं तथा सती प्रस्तर का अंकन विशेष लोकप्रिय रहा है। खड्ग-ढाल, धनुष-बाण और कटार से सज्जित योद्धा प्रतिमाएं अनेक स्थलों से प्राप्त हुई हैं। युद्ध में प्राणोत्सर्ग और आततायी दस्यु तथा नरभक्षी वन्य जन्तुओं से पीड़ितों की रक्षा हेतु आत्मोत्सर्ग करने वाले शूरवीरों की प्रतिमाओं का अंकन तथा सम्मान लोक संस्कृति और परम्परा में प्रचलित रही है। ग्रामीण अंचलों में इस प्रकार की प्रतिमाओं की पूजा लोक देवता मानकर की जाती है, जिसमें पूर्ववत रक्षा की भावना सन्निहित होती है। 

छत्तीसगढ़ में प्राचीन सामाजिक प्रथाओं के अंतर्गत सती प्रस्तर, सती स्तंभ तथा शिलापट्ट बहुतायत से मिलते हैं। सामान्य रूप से इन्हें सती स्तंभ के रूप में अभिज्ञान किया जाता है। प्राचीन काल की कलाकृतियां होने से इन्हें पुरावशेषों के अंतर्गत भी रखा जाता है। सती प्रस्तरों का मुख्य लक्षण है- सूर्य, चन्द्र तथा भुजा सहित दायीं हथेली और दम्पति आकृति का रूपांकन। कुलीन, प्रतिष्ठित और धनाढ्य वर्ग से संबंधित अधिकांश सती प्रस्तरों पर लेख मिलते हैं। कुछ सती प्रस्तरों पर शिवलिंग अथवा विष्णु की आराधना रूपायित की जाती है। अधिकांश सती प्रस्तरों पर अंजलिबद्ध दम्पति युगल (पद्मानस्थ अथवा स्थानक) दिखाई पड़ते हैं। आकृति विहीन सती प्रस्तर भी प्राप्त होते हैं। ग्रामीण अंचलों में श्रद्धा से इनकी पूजा होती है। 

छत्तीसगढ़ अंचल से प्राप्त सती प्रस्तरों में जाति अथवा व्यवसाय मूलक प्रतीक चिह्न कोल्हू, हथौड़ी, कुदारी, अश्व भी पाये गए हैं। अभिलिखित सती प्रस्तरों में पारंपरिक रूप से स्वस्ति वाचन, स्थल, वंशावली (कुल पुरुषों के नाम), शासक का नाम, संवत, मास, तिथि, दिन तथा अंत में कुटुम्बियों के लिये शुभ भावना उत्कीर्ण की गई है। 

छत्तीसगढ़ के विभिन्न अंचलों में लगभग 11-12वीं सदी ईसवी के पश्चात् सती प्रस्तर मिलने लगते हैं। प्राचीन नगर, राजधानी, गिरि- दुर्ग, संगम स्थल, नदियों के तट पर स्थित ग्राम एवं सरोवर और धार्मिक स्थलों के आस-पास सती प्रस्तर विशेष रूप से प्राप्त होते हैं। कुछ स्थलों के नाम के साथ सती नारी के त्याग, भक्ति, शौर्य तथा चरित्र, किंवदंतियों में जीवित हैं। अभिलिखित सती प्रस्तरों में सती नारी के लोकहित से संबंधित जानकारी के उल्लेख नहीं मिले हैं। राजिम तेलिन का नाम इस अंचल के महत्त्वपूर्ण धार्मिक एवं पुरातत्त्वीय स्थल राजिम और राजीव लोचन के साथ जुड़ा हुआ है। राजिम स्थित सती माता मंदिर के गर्भगृह की भित्ति में दो बड़े आकार के सती पट्ट जड़े हुए हैं। इनमें से एक राजिम तेलिन से संबंधित माना जाता है। दोनों सती प्रस्तरों में मानव आकृतियां एवं कोल्हू का अंकन है। 

सती प्रस्तरों की श्रृंखला में ग्राम कोड़ेगांव (बी) जिला धमतरी से प्राप्त अवशेष लेखन शैली की दृष्टि से विशिष्ट है। यह 57x47x20 से.मी. आकार का है। इसके ऊपरी भाग पर क्रमशः सूर्य, हथेली, कलश और चन्द्र का अंकन है। मध्य में प्रकोष्ठ के भीतर प‌द्मानस्थ दम्पति युगल प्रदर्शित हैं। प्रतीक चिन्हों के नीचे, प्रकोष्ठ के उभार पर लम्बवत एक पंक्ति का लेख अंकित है। शेष अंश प्रकोष्ठ के बायें तथा दायें स्तंभ पर ऊपर से नीचे की ओर दृष्टव्य है। यह सती प्रस्तर एवं लेख श्री संवत् 1435 के अनुसार ईसवी 1378 के लगभग निर्मित है। इसमें तत्कालीन शासक, स्थल तथा संवत की जानकारी होने से ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तथा शोधपरक है। 

मूल पाठ 

प्रथम पंक्ति - स्वस्ती श्री सम्वत 1435। श्री सारंगदेव रा (.) काकैर दुर्गे होला साउ पुत्रधानु साउ सति हीराई सास्त 

बायां पार्श्व             दायां पार्श्व 

रलोक समै             भुरमा साउ पु (-) 
सुधी अ                  त् र ऐरू सेठी कृतिः
धीक -                   सुभं भ 
मासे                      वतुः 
(.....) स 
नीच 
रे 
मु 
ल 

शुद्ध पाठ 

स्वस्ति श्री संवत 1435। श्री सारंगदेव राजः कांकैर दुर्गे होला साउ पुत्र धानु साउ सती हीराय पास (प) रलोक समै (-) अधिक मासे (-) सनीचरे मुल भुरमा साउ पुत्र ऐरू सेठी कृतिः शुभं भवतु। अनुवाद स्वस्ति। श्री संवत 1435 में श्री सारंगदेव राजत्वकाल में कांकैर, दुर्ग (किला) के निवासी होला साहू के पुत्र धानु साहू की सास हीराई के परलोक गमन के समय (-) अधिक मास (पुरुषोत्तम मास) (-) शनिवार के दिन भुरमा साहू के पुत्र ऐरू सेठी के द्वारा निर्मित की गई। शुभ (कल्याण) हो। 
अभिलेख का महत्त्व - यह अभिलेख शासक का नाम, स्थल नाम, जाति सूचक, संवत, मास, दिन एवं पुरुषोत्तम मास की जानकारी के कारण क्षेत्रीय इतिहास की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इस सती प्रस्तर में कलात्मकता भी प्रदर्शित है।

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