Monday, November 7, 2022

केलो

रायगढ़, हमारे राज्य गीत ‘अरपा, पइरी के धार ...‘ में मंउरे मुकुट है। रायगढ़ की पहचान, केलो नदी की गौरव गाथा में मेरी स्मृति में बारेननाथ बैनर्जी का नाम आता है। स्टेशन से निकलते ही सबसे पहले उनके निवास पर जाते। वे सदैव चुस्त, तत्पर मिलते। इसके साथ यहां प्रस्तुत रचना में आए नामों के साथ देवेंद्र प्रताप सिंह, वेदमणि सिंह ठाकुर, डॉ. बिहारीलाल साहू, हरिहर सिंह, रवि मिश्रा, जगदीश मेहर, शिव राजपूत ‘केलो कपूत‘, अजय आठले, डॉ. अतुल श्रीवास्तव, विनोद पांडेय, राजू पांडेय, प्रताप खोड़ियार, डॉ गंगा डनसेना भी मेरे लिए रायगढ़ के साथ जुड़े रहे हैं। 

अनुपम कुमार दासगुप्ता, लंबे समय तक 'नवभारत' समाचार पत्र के सम्मानित प्रतिनिधि रहे। 13 मार्च 1978 को प्रकाशित रायगढ़ के इस विवरणनुमा कविता के रचयिता के साथ किसी का नाम नहीं है, मगर उनसे होने वाली बातों-मुलाकातों से यह अनुमान आसान कि ये पंक्तियां उन्हीं की हैं। 

नहीं थमा है, केलो तुम्हारा प्रवाह अभी... 

केलो तुम एक प्रवाह हो 
तुम्हारे सुरमय तट के घनघोर हरियाली मध्य 
शिलाओं पर उकेरता है आदिमानव 
सभ्यता का अमूल्य धरोहर 
विंध्याचल की इन पर्वत श्रृंखलाओं में जीवन्त है 
मनुष्य में जन्म लेती 
सभ्यता का प्रथम कलात्मक हस्ताक्षर 
कलात्मक अनुभूति/रंग और भावनाओं की 
प्रागैतिहासिक पाषाण पाण्डुलिपि 
सिंघनपुर, कबरा, कर्मागढ़, भैसगढ़ी से टेरम तक 
तुम्हारी तटीय सभ्यता के प्रथम दस्तावेज आज भी है। 


केलो तुम एक धारा हो 
उत्तर वैदिकाल में 
तुम्हारे सघन वनप्रान्तरों से ही होकर गुजरे थे 
चौदह वर्षीय वनवासी राम 
आखिर तुम प्रवाहित होती हो 
सरगुजा की सीता बेंगरा, जोगीमारा गुफाओं से 
दण्डकारण्य के रास्ते के मध्य। 
तुम्हारे तट पर बसे मुकडेग, केसला, आमगांव में 
यत्र तत्र बिखरी पड़ी है 
मोहनजोदड़ो सा वही प्रस्तर शिल्प-पाषाण स्तंभ 
कर्मागढ़ का पाषाण सिंह द्वार 
महाभारत कालीन प्रस्तर शिल्प का साक्ष्य। 
मौर्यों ने दक्षिण पथ की विजय यात्रा 
तुम्हारे तट से होकर की थी 
मौर्यों ने तुम्हारे ही तट पर बौद्ध धर्म का प्रसार किया था 
नेतनागर, कलमी बुनगा से पुजारी पाली तक फैला है 
जैन धर्म के प्रभाव का साक्ष्य 
तुम्हारे तट से कुछ दूर जमरगी में 
सहज ही मिलते हैं विश्व के प्राचीनतम महाजनपदकालीन आहत सिक्के 
तुम्हारे तटीय भू-भाग पर शासन करते रहे 
सातवाहन, शरमपुरी, सोमवंशी, कलचुरि, नल, नागवंशी नरेश। 

केलो तुम इतिहास के कालचक की मूक साक्षी हो 
अलिखित इतिहास हो 
कोई चार शताब्दी पहले 
तुम्हारे ही तट पर किसी राज्य की नींव रखी थी, 
चांदा के नागवंशी गोड़ों ने 
हटराज साय के स्थापित इस राज्य में 
जुझारसिंह, देवनाथ सिंह थोड़ा बहुत जुझे जरूर 
पर जिसे युद्ध कहा जाए वह कभी हुआ नहीं 
भूपदेवसिंह ने जिस कला परम्परा की आधार शिला रखी
... त कर गए चक्रधर सिंह 
कला साहित्य संस्कृति की दृष्टि से 
इस शताब्दी का वह चौथा दशक 
आज भी तुम्हारे तट पर बसे इस नगरी का 
कहते हैं वह स्वर्णकाल था 
तुम्हारे इस शासक के 
अवसान और अकाल मृत्यु का कारण न पूछो 
इतिहास के कुछ तथ्य नेपथ्य में रहने दो 
व्यक्ति कालजयी नहीं होता 
उसका ललित कला प्रेम चिरस्थायी रह गया। 

केलो तुम एक संस्कृति हो 
तुम्हारे तट की इस कला धनी नगरी में 
उस काल में कौन नहीं आया 
संगीत ऋषि विष्णु दिगम्बर पुलस्कर से मल्ल सम्राट राममूर्ति तक 
गायक मनहर बर्वे, नृत्याचार्य लच्छू महाराज, अच्छन महाराज, सितारादेवी, 
डा. रामकुमार वर्मा, जानकी वल्लभ शास्त्री, पं. माखनलाल चतुर्वेदी, आनन्द मोहन बाजपेई। 
चक्रधर पुरस्कार के अधिकारी बने 
कवि जगन्नाथ ‘भानु‘/डा. रामकुमार वर्मा/कवि अंचल 
और अनेकों नाम हैं 
प्रति वर्ष लगता था महाव्यापी गणेश मेला 
पर अब वह अतीत की बाते हैं 
तुम्हारे इस नरेश को सद्बुद्ध देने विद्वानों का साथ था 
मानस मर्मज्ञ डा. बल्देव मिश्र/दीवान जे. एन. महंत प्रभृति विद्वान थे 
पर ये सभी राजशाही के अंग भी थे 
दबाव के उनके अपने तरीके थे 
इसीलिए लोकमत तेजी से जागा नहीं 
आजादी के बिना मन रमा नहीं 

केलो तुम एक प्रेरणा हो 
तुम्हारे तट के महल में 
माटी के कलाकारों ने ऊंचाई को छुआ 
कार्तिक/कल्याण/बर्मन/बडकू मिया/जगदीश सिंह ‘दीन‘ 
बहुत कुछ सीखा और पीढ़ियों में बांटा। 
अनन्तराम पाण्डेय ने हिन्दी में प्रथम सानेट लिखा 
डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र ने तुलसी दर्शन की रचना की 
पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय ने भारतीय इतिहास की खोई कड़ियों को कालक्रम से एकबद्ध किया। 
पं. मुकटधर पाण्डेय ने हिन्दी में छायावाद को अवतरित किया 
चिरंजीव दास ने गीत गोविन्द हिन्दी में रचा 
बनमाली प्रसाद शुक्ल ने हिन्दी को प्रथम बीजगणित दिया 
इससे भिन्न कलमकार सजग प्रहरी की तरह रहे 
राजपथ से जनपथ की दिशा देते रहे 
महादेव प्रसाद मिश्र ‘अतीत‘/मनोहर प्रसाद मिश्र/अमरनाथ तिवारी, बन्दे अली फातमी
अपने कलम का पैनापन बराबर दर्शाते रहे, जगाते रहे 
किशोरी मोहन त्रिपाठी हर दौर में साथ रहे 
कभी सामने रहे कभी नेपथ्य में रहे 
आजादी के बाद नये कलमकार आए 
... धूमकेतु की तरह छाये 
... ... तेवर उभरे 
...प्रकृति के नये गीत गाए 
किरोड़ीमल ने शहर को नया रूप दिया 
पालू ने पंच का दायित्व निबाहा 
रामकुमार ने सामंती विरोध को जनवादी तेवर दिया 
उमाशंकर ‘दद्दू‘ ने नई पौध को विचारों का रंग मंच दिया 
राममूर्ति बचई यायावर की तरह जीया। 

केलो तुम्हारे तट की प्रतिभाएं कहीं कुठित नहीं हैं 
प्रमोद वर्मा, गुरूदेव कश्यप, अशोक झा, प्रभात त्रिपाठी ने 
इस शहर को फिर प्रसिद्धि दी है 
मुस्तफा/जीवतसिंह ठाकुर/दिनेश पाण्डेय/डा. महेन्द्र परमार/डा. बल्देव/
अम्बिका वर्मा/ मुमताज भारती/हरिकिशोर दास/हेमचन्द्र पाण्डेय/रवीन्द्र चौबे अभी सजग हस्ताक्षर हैं 
यहां राजनीति का तेवर अभी वाम नहीं है 
राजशाही से वर्तमान तक खंडित पहचान नहीं है 
कल जो रंक थे आज वे वक्त के शहजादे हैं 
कल जो खास थे आज वे खाक हो रहे हैं। 
बढ़ते शहर को, बढ़ते विचारों को 
अभी तेज चलना है 

केलो तुम्हारा प्रवाह अभी थमा नहीं है। 
अभी तुम्हें और बहना है, और बहना है।

रायगढ़ के साथ मेरी स्मृति में स्थायी दर्ज यह चित्र।
सन 1948 में बने श्री गौरीशंकर मंदिर में
दशावतारों के बीच नेहरू-गांधी हैं।


1 comment:

  1. प्रिय राहुल जी , आपके अक्स में रायगढ़ की शक्ल,सूरत और सीरत बेहद साफ और सुन्दर है।इस आलेख के लिए अनेक आभार

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